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January 23, 2021
January 20, 2021
January 15, 2021
January 12, 2021
"हस्ताक्षर" की काव्य गोष्ठी
January 7, 2021
January 6, 2021
नया साल होगा
January 2, 2021
December 24, 2020
स्व0श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी,स्व0श्री मदन मोहन मालवीय जी एवं स्व0 श्री धर्मवीर भारती जी को श्रद्धा सुमन
December 22, 2020
December 18, 2020
हैरानी से
ग़ज़ल--ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल 9897214710
दूर है वो रिश्वत के दाना - पानी से,
देख रहे हैं सब उसको हैरानी से।
यार बड़ों के दिल का दुखना लाज़िम है,
नस्ले - नौ की पैहम नाफ़रमानी से।
कुछ करना इतना आसान नहीं होता,
कह देते हैं सब जितनी आसानी से।
मुझको घर में मात-पिता तो लगते हैं,
राजभवन में बैठे राजा - रानी से।
रखनी पड़ती है लहजे में नरमी भी,
काम नहीं होते सब सख़्त ज़ुबानी से।
ज़ेहन को हरदम कसरत करनी पड़ती है,
शेर नहीं होते इतनी आसानी से।
होना है सफ़ में शामिल तैराकों की,
और उन्हें डर भी लगता है पानी से।
---–-ओंकार सिंह विवेक
https://vivekoks.blogspot.com/?m=1
December 14, 2020
सब्र का सरमाया
ग़ज़ल**ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल 9897214710
सब्र करना जाने क्यों इंसान को आया नहीं,
जबकि इससे बढ़के जग में कोई सरमाया नहीं।
आदमी ने नभ के बेशक चाँद-तारे छू लिए,
पर ज़मीं पर आज भी रहना उसे आया नहीं।
धीरे - धीरे गाँव भी सब शहर जैसे हो गए,
अब वहाँ भी आँगनों में नीम की छाया नहीं।
लोग कहते हों भले ही चापलूसी को हुनर,
पर कभी उसको हुनर हमने तो बतलाया नहीं।
ज़हर नफ़रत का बहुत उगला गया तक़रीर में,
शुक्र समझो शहर का माहौल गरमाया नहीं।
देखलीं करके उन्होंने अपनी सारी कोशिशें,
झूठ का पर उनके हम पर रंग चढ़ पाया नहीं।
----ओंकार सिंह विवेक
www.vivekoks.blogspot.com
December 8, 2020
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