साहित्यिक कार्यक्रमों में जल्दी-जल्दी हिस्सेदारी करते रहने का एक फ़ायदा यह होता है कि कुछ नए सृजन का ज़ेहन बना रहता है। मैंने अक्सर यह देखा है कि जब किसी साहित्यिक कार्यक्रम में हिस्सेदारी करके लौटो तो एक-दो दिन में कोई ग़ज़ल मुकम्मल हो ही जाती है।अभी ग़ाज़ियाबाद एक बड़े साहित्यिक कार्यक्रम में शामिल होने का अवसर प्राप्त हुआ।
अपने अल्फ़ाज़ साहित्यिक,सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्था द्वारा आयोजित लोकार्पण, अभिनंदनम सह साहित्यकार सम्मान समारोह का आयोजन गाजियाबाद में संपन्न हुआ।इसमें रामपुर से विश्वविख्यात शायर जनाब ताहिर फ़राज़ साहब के साथ मैं (ओंकार सिंह विवेक), सुरेन्द्र अश्क रामपुरी तथा राजवीर सिंह राज़ ने सहभागिता की।कार्यक्रम बहुत ही अनुशासित ढंग से कई चरणों में संपन्न हुआ।कार्यक्रम के आयोजकों ख़ास तौर पर आदरणीया सोनी सुगंधा जी तथा आदरणीय सुशील साहिल साहब ने बड़ी सादगी और शालीनता के साथ सबकी आवभगत की।
देश भर से आए साहित्यकारों ने अवसर के अनुकूल काव्य पाठ करके अंत तक श्रोताओं/दर्शकों को बांधे रखा।कार्यक्रम में वरिष्ठ शायर श्री सुशील साहिल साहब के ग़ज़ल संग्रह "यहां सब लोग हँसते बोलते हैं" का रस्म- ए-इजरा भी किया गया।
साहिल साहब की पुस्तक के विमोचन के अवसर पर मैंने भी अपनी चार पंक्तियां साहिल साहब और उनकी पुस्तक के प्रति श्रद्धा प्रकट करते हुए कुछ इस तरह प्रस्तुत कीं :
मुसलसल ख़ूबसूरत शायरी से,
फ़ज़ा में प्रेम का रस घोलते हैं।
रहे आबाद 'साहिल' की ये महफ़िल,
'यहाँ सब लोग हँसते-बोलते हैं।'
©️ ओंकार सिंह विवेक
इस बीच मेरी एक ग़ज़ल प्रतिष्ठित समाचार पत्र दैनिक अमृत विचार में भी प्रकाशित हुई,उसका भी रसास्वादन कीजिए
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पटना के मशहूर शायर श्री रमेश कंवल जी के सहयोग से चुनाव जागरूकता को लेकर मेरे कुछ दोहे जहानाबाद, बिहार के अख़बार जहानाबाद अरवल टाईम्स में प्रकाशित हुए,उनका भी आनंद लें।
Bahut sundar, vah vah
ReplyDeleteDhanywaad
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