September 28, 2022

समीक्षा : एक विमर्श

मैं सोशल मीडिया पर कई साहित्यिक मंचों से जुड़ा हुआ हूं। काव्य सृजन विशेष तौर पर ग़ज़ल विधा में रुचि होने के कारण अक्सर उन पटलों पर अपनी रचनाएँ भी पोस्ट करता रहता हूं।कई मंचों पर ग़ज़ल विधा की रचनाओं की समीक्षा का कार्य करने का अवसर भी प्राप्त होता है।इस कार्य के निष्पादन में काफ़ी खट्टे - मीठे अनुभव भी होते हैं।

कल समीक्षा कार्य को लेकर एक वरिष्ठ साहित्यकार ने एक पटल (साहित्यकार और पटल के नामों का उल्लेख करना ठीक नहीं होगा) पर अपने विचार रखे थे। उनके विचारों को पढ़कर विषय विशेष पर विमर्श का रास्ता खुला तो मैंने भी  अपने विचार पटल पर रखे जिन्हें ज्यों का त्यों आप सुधी साथियों के साथ साझा कर रहा हूं:

समीक्षा : एक विमर्श
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प्रणाम मित्रो🌹🌹🙏🙏

आज मैं तो अति व्यस्त्तता के कारण दिए गए मिसरे पर कोई ग़ज़ल पोस्ट नहीं कर पाया लेकिन सभी रचनाकारों की अच्छी रचनाएँ पढ़ने को मिलीं।समीक्षकद्वय द्वारा भी बहुत अच्छी समीक्षाएँ प्रस्तुत की गईं।सभी को हार्दिक बधाई!!!!

आज पटल पर विषय काल समाप्त होने के बाद मेरी भी समीक्षा-कार्य जैसे महत्वपूर्ण विषय पर अपने विचार रखने की इच्छा हुई। कविता या शायरी तो हम सब पोस्ट करते ही हैं पटल पर लेकिन काव्य सृजन और समीक्षा आदि को लेकर साहित्यकारों द्वारा अपने विचार भी रखे जाने चाहिए।इससे सभी का ज्ञानवर्धन होता है और सृजन में सुधार की संभावनाएं बढ़ती हैं तथा स्वस्थ विमर्श के रास्ते खुलते हैं।

चूंकि रचनाएँ सार्वजनिक रूप से समीक्षा हेतु पटल पर प्रस्तुत की जाती हैं अत: उनकी समीक्षा भी सार्वजनिक रूप से ही पटल पर प्रस्तुत की जाती है। हां,यह बात ठीक है कि सार्वजनिक मंच पर जितना भी हो सके समीक्षात्मक टिप्पणियों को अपेक्षाकृत अधिक शालीनता से अंकित किया जाना चाहिए। समीक्षक द्वारा शालीन और मर्यादित टिप्पणी किया जाना जितना ज़रूरी है उतना ही ज़रूरी रचनाकार द्वारा टिप्पणी को सहृदयता और सद्भावना से लिया जाना भी है। यदि कुछेक अपवादों को छोड़ दिया जाए तो इस पटल पर ऐसा ही देखने में आता भी है कि सभी योग्य समीक्षक रचनाओं पर अपने अनुभव और ज्ञान के आधार पर शालीन टिप्पणियां ही अंकित करते हैं और रचनाकार भी प्रतिउत्तर में उन्हें धन्यवाद ज्ञापित करते हैं।यही स्वस्थ्य परंपरा सीखने और सिखाने में सहायक भी होती है।समीक्षक भी एक रचनाकार ही है,उसकी टिप्पणी में विधा विशेष के ज्ञान के साथ-साथ उसके अपने चिंतन तथा कहन की शैली के रंग भी सम्मिलित होते हैं जिसके आधार पर वह एक मशवरा देता है।वह किसी रचनाकार पर अपनी बात थोपता नहीं है बल्कि विनम्रतापूर्वक अपने सुझाव प्रस्तुत करता है।यदि रचनाकर को सुझाव पसंद न हों  तो वह भी बिना किसी वाद-विवाद के विनम्रता से अपनी असहमति व्यक्त करते हुए बात को ख़त्म कर सकता है।

समीक्षा का शाब्दिक अर्थ है परीक्षण,गुण दोष-विवेचन या समालोचन।यदि गंभीरता से विचार करें तो समीक्षा शब्द का अर्थ इस्लाह शब्द के अर्थ से कहीं अधिक विस्तृत और व्यापक है।यह संभव नहीं है कि समीक्षक रचना के केवल शिल्पगत गुणदोष का विवेचन करे ,उसके भाव और कहन की समालोचना न करे। शिल्प यदि कविता की आत्मा है तो भाव और कहन उसका शरीर।दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं।समीक्षक आत्मा की सुरक्षा के उपाय बताए और शरीर को सजाने सँवारने के बारे में कोई राय न दे तो शायद यह उचित नहीं होगा। यदि समीक्षक भाव और कहन पक्ष की समीक्षा को यह कहकर छोड़ दे कि यह तो अनुभव से स्वत: आ जाएगा तो फिर अनुभव और ज्ञान से आदमी कविता का शिल्प भी सीख ही लेगा।
आइए अब ग़ज़ल की बात करते हैं। शेर को शेर उसकी कहन अर्थात निराले ढंग से कहने की कला ही बनाती है।यह ग़ज़ल के मूलभूत तत्वों में से एक है।मेरे विचार से समीक्षा में समीक्षक को यह भी देखना चाहिए कि रचनाकार द्वारा ग़ज़ल में शिल्प की शर्तों को पूरा करने के साथ-साथ भाषा को किस रूप में सँवारा गया है। बेहर/मापनी पूरी करने के साथ-साथ वाक्य विन्यास और व्याकरण आदि पर कितना ध्यान दिया गया है।सिर्फ़ बेहर पूरी करके रचनाकर रचना के और पहलुओं के प्रति कहीं केजुअल तो नहीं हो गया है आदि आदि -----।
एक आदर्श समीक्षा कभी एक्सक्लूसिव नहीं हो सकती वह हमेशा इंकलूसिव ही होगी।समग्रता ही समीक्षा का प्राण तत्व है मैं ऐसा मानता हूं।

यह बात सही है कि अदब के आसमान में मीर,ग़ालिब या फ़िराक़ जैसे दैदीप्यमान सितारों जितनी ऊंचाई तक कोई नहीं पहुंच सकता परंतु उनसे प्रेरणा लेकर सामर्थ्य के अनुसार अपनी रचनाधर्मिता को निरंतर बेहतर करने का प्रयास तो किया ही जा सकता है।यह भी तभी संभव है जब कोई समीक्षक या उस्ताद किसी रचनाकार के कलाम को पढ़कर उसकी बेहतरी के बारे में शालीनता के साथ कोई सुझाव दे और रचनाकार उसे सद्भावना के साथ ग्रहण करे।
अक्सर देखने में यह आता है कि समीक्षक जब किसी रचनाकार की रचना में किसी दोष की और इंगित करते हैं तो कुछ लोग(सब नहीं) तुरंत ही किसी बड़े रचनाकार की कोई ऐसी रचना कोट कर देते हैं जिसमें इस तरह का दोष रहा हो।ऐसा करके अपनी रचना के दोष को कवरअप करना कहां तक उचित है? बड़े उस्ताद शायर या कवि भी मानव ही हैं या थे।उनसे भी त्रुटियां हुई होंगी। अच्छा तो यह है कि हम उनकी त्रुटियों की आड़ न लें बल्कि उनके श्रेष्ठ कलाम से प्रेरणा लेकर कुछ बेहतर कहने की कोशिश करें।
जहां तक दूसरी भाषाओं के शब्दों यथा शहर, ज़ेहर,अम्न आदि के वज़्न और उच्चारण का प्रश्न है इसको लेकर अब कोई इतना रिज़िड नहीं है।लोग अपने ढंग से प्रयोग कर रहे हैं और देवनागरी में उसे स्वीकार्यता भी मिल रही है।यह अब कोई बड़ा मुद्दा नहीं रह गया है।यहां फिर मैं एक बात कहूंगा कि यह रचनाकार विशेष के सोच पर निर्भर करता है कि वह अन्य भाषा के शब्द को उस मूल भाषा के उच्चारण और वज़्न के अनुसार प्रयुक्त करता है अथवा किसी और ढंग से।
अंग्रेज़ी भाषा का एक शब्द है रिपोर्ट इसे हिंदी शब्दकोश में रपट के रूप में भी स्वीकार किया गया है और ग्रामीण अंचल में लोग बहुतायत में रिपोर्ट के स्थान पर रपट शब्द ही प्रयोग करते हैं जो स्वीकार्य है।जैसे थाने में रपट लिखाना,रपट करना आदि। लेकिन जो व्यक्ति अंग्रेज़ी भाषा का थोड़ा-बहुत भी जानकार है वह रपट के स्थान पर देवनागरी में भी रिपोर्ट ही लिखना पसंद करता है।

तमाम साहित्यकार बंधु मुझसे भिन्न मत भी रखते होंगे।उन सभी की असहमति का भी हार्दिक स्वागत है।

सादर
ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)

16 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 29 सितंबर 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  3. खाना तो बहुत बना लेते है लेकिन जिस तरह उसे किस तरह और स्वादिष्ट बना सकते हैं, यह बात पाक कला विशेषज्ञ ही हमें अच्छे से बता और समझा सकते हैं, उसी तरह एक कुशल समीक्षक जब किसी रचना के समीक्षा कर उसमें निहित कमियों की बात कर उसका समाधान हमें बताता है तो रचनाकार की रचनाएँ बेहतर होती चली जाती हैं।
    बहुत अच्छी सार्थक व प्रेरक विचार विमर्श प्रस्तुति

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  4. खाना तो बहुत बना लेते है लेकिन जिस तरह उसे किस तरह और स्वादिष्ट बना सकते हैं, यह बात पाक कला विशेषज्ञ ही हमें अच्छे से बता और समझा सकते हैं, उसी तरह एक कुशल समीक्षक जब किसी रचना के समीक्षा कर उसमें निहित कमियों की बात कर उसका समाधान हमें बताता है तो रचनाकार की रचनाएँ बेहतर होती चली जाती हैं।
    बहुत अच्छी सार्थक व प्रेरक विचार विमर्श प्रस्तुति

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  5. उपयोगी आलेख

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    1. हार्दिक आभार आपका 🙏🙏

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  6. Wow great absolutely correct

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