September 8, 2022

बज़्म-ए- अंदाज़-ए-बयां का तरही मुशायरा

दोस्तो नमस्कार🙏🙏🌹🌹

फेसबुक पर एक प्रतिष्ठित साहित्यिक समूह है जिसका नाम है "बज़्म-ए-अंदाज़-ए-बयां"।इस समूह के उत्कृष्ट साहित्यिक स्तर और अनुशासन के बारे में पहले भी मैं अपने ब्लॉग पर लिखता रहा हूं।
अपने कड़े अनुशासन-मानकों और समर्पित प्रशासक मंडल की सक्रियता के चलते यह समूह उत्तरोत्तर प्रगति के पथ पर अग्रसर है।
समूह के इस बार के तरही मुशायरे के आयोजन में मेरी भी हिस्सेदारी रही। मैं समूह के योग्य निर्णायक मंडल का ह्रदय से आभार प्रकट करता हूं कि उन्होंने मेरी तरही ग़ज़ल को प्रथम पुरस्कार हेतु चुना। मेरी ह्रदय से यही कामना है कि यह समूह संस्थापक श्री अश्क चिरैयाकोटी जी के कुशल निर्देशन में यों ही साहित्य के आकाश में अपनी यश-पताका लहराता रहे।

इस आयोजन में दिए गए तरही मिसरे पर कही गई अपनी ग़ज़ल आपकी प्रतिक्रिया हेतु प्रस्तुत कर रहा हूँ :

तरही मुशायरे का मिसरा -- मुझको उल्फ़त सिखा गया कोई
ग़ज़ल -- ओंकार सिंह विवेक 
झूठ   को   सच   बता   गया  कोई,
रंग    अपना    दिखा   गया   कोई।

क्या ये कम है  कि दौर-ए-हाज़िर में,
क़ौल  अपना   निभा    गया   कोई।

ज़ेहन   में    है  अजीब-सी  हलचल,
शेर    जब से     सुना    गया   कोई।

रात  को  कह  रहा   है   दिन  देखो,
उसको   इतना   डरा    गया   कोई।

हाय ! मज़दूर आज  फिर  मिल  में,
क्रेन   के   नीचे    आ    गया  कोई।

ज़िंदगानी     सँवर      गई,   जबसे-
"मुझको  उल्फ़त  सिखा गया कोई।"

चार   दिन   की    है  ज़िंदगी  प्यारे!
साधु    गाता    हुआ    गया   कोई।

दे   दिया   अपना   कौर  भी   उसने,
दर   पे  भूखा  जो   आ  गया  कोई।
       --- ओंकार सिंह विवेक
            (सर्वाधिकार सुरक्षित)
कुछ समय पहले इस बज़्म के स्थापना दिवस के अवसर पर मैंने कुछ मिसरे कहे थे।वो मिसरे भी आज आपके साथ साझा करना प्रासंगिक हो गया :
  ओंकार सिंह विवेक
🌹
है  भले  ऊँचा  बहुत इल्म-ओ-अदब  का  आसमां,
चूम  लेगी   पर   इसे   ये  बज़्म-ए-अंदाज़-ए-बयां।
🌹
नित   बड़ी  तादाद   में  जुड़ते   रहें  इससे   अदीब,
और   तेज़ी   से   यूं   ही   बढ़ता   रहे   ये   कारवां।
🌹
हो  कहीं  भी   गर  कोई  शेर-ओ-सुखन  की  गुफ्तगू,
हो ज़ुबां पर सबकी नाम-ए-बज़्म-ए-अंदाज़-ए-बयां।
🌹
अपनी  तो बस रोज़-ओ-शब ये कामना है अश्क जी,
काविशों    के    आपकी    होते    रहें    गाढ़े   निशां।
🌹
मजलिसें इल्म-ओ-अदब की  और भी  हैं पर 'विवेक',
बज़्म-ए-अंदाज़-ए-बयां  है, बज़्म-ए-अंदाज़-ए-बयां।
 🌹  ओंकार सिंह विवेक (सर्वाधिकार सुरक्षित)

4 comments:

  1. हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं

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  2. बेहतरीन पोस्ट!💐💐

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