एक धीर-गंभीर कवि और शायर रणधीर प्रसाद गौड़ 'धीर'
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जी हां, मैं बात कर रहा हूं बरेली-उ०प्र० में जन्मे प्रसिद्ध कवि और शायर श्री रणधीर प्रसाद गौड़ 'धीर' जी की। धीर जी को कविता और शायरी का फ़न विरासत में मिला है।आपके पिता स्मृतिशेष श्री देवीप्रसाद गौड़ 'मस्त' बरेलवी साहब अपने ज़माने के जाने माने शायर थे। श्री रणधीर प्रसाद गौड़ धीर साहब रेलवे के सीनियर सैक्शन इंजीनियर के पद से सेवा निवृत्ति प्राप्त करके आजकल स्वतंत्र साहित्य सृजन और समाज सेवा के कार्यों में निमग्न हैं।
'धीर' साहब से मेरा परिचय रामपुर की दो साहित्यिक संस्थाओं पल्लव काव्य मंच तथा आध्यात्मिक साहित्यिक संस्था काव्य धारा के माध्यम से हुआ।ये दोनों साहित्यिक मंच किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। इन मंचों के माध्यम से अक्सर ही रामपुर और बरेली जनपदों में साहित्यिक कार्यक्रम आयोजित होते रहते हैं।मेरी ऐसे ही आयोजनों में श्री धीर साहब से रामपुर और बरेली में कई मुलाक़ातें हो चुकी हैं।इसे मैं अपनी ख़ुश-क़िस्मती ही कहूंगा कि एक कार्यक्रम में उनके कुशल संचालन में मुझे काव्य पाठ का अवसर भी प्राप्त हो चुका है।
श्री रणधीर प्रसाद गौड़ धीर जी में ७५-७६ वर्ष की आयु में भी ग़ज़ब की सक्रियता और ऊर्जा है। मेरा जब-जब भी उनसे मिलना होता है मैं उन्हें पहले से अधिक सक्रिय, ऊर्जावान और साहित्यिक सरोकारों के प्रति चिंतनशील पाता हूं। गौड़ साहब के व्यवहार में निहित सद्भावना और विनम्रता दिल को छू जाती है।रेलवे में अपनी नौकरी के दौरान धीर साहब एक अच्छे खिलाड़ी रहे और विभाग के रचनात्मक कार्यों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते रहे। श्री गौड़ साहब बरेली में काव्य गोष्ठी आयोजन समिति के अध्यक्ष हैं। बरेली में साहित्यिक प्रतिभाओं को निखारने,प्रोत्साहित करने और अदबी सरगर्मियों को परवान चढ़ाने में धीर साहब का बड़ा योगदान रहा है।
(विशेष : सभी छायाचित्र भारतीय पत्रकारिता संस्थान बरेली की त्रैमासिक पत्रिका 'विविध संवाद' के अगस्त- अक्टूबर,2022 अंक से साभार प्राप्त किए गए हैं।यह पत्रिका मुझे स्वयं श्री रणधीर प्रसाद गौड़ धीर जी द्वारा भेंट की गई थी।उल्लेखनीय है कि पत्रकारिता संस्थान द्वारा श्री धीर जी के ७५ वर्ष का होने पर उनके सम्मान में पत्रिका का विशेषांक निकाला गया था)
धीर साहब उर्दू और हिंदी पर समान अधिकार रखते हैं। दोनों ही भाषाओं में भाव,कथ्य और शिल्प के स्तर पर उनकी रचनाएँ उत्कृष्ट हैं।उनके गीत और ग़ज़लों में प्रेम,दर्शन,अध्यात्म और जनसरोकार सभी की बानगी देखने को मिल जायेगी।धीर साहब गीत,ग़ज़ल,ख़याल, ख़मसा,मुक्तक और दोहा आदि सभी विधाओं के सिद्धहस्त रचनाकार हैं।
श्री धीर साहब की अब तक छह पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।ग़ज़ल संग्रह कल्याण काव्य कौमुदी,बज़्म-ए-इश्क़, इश्क़- का दर्द,तथा गीत संग्रह अनुभूति से अभिव्यक्ति, जब याद तुम्हारी आती है आदि उनकी प्रमुख काव्य कृतियां हैं। कवि या शायर के पास श्रेष्ठ काव्य सृजन क्षमता के साथ यदि मधुर कंठ भी हो तो सोने में सुहागा हो जाता है।धीर जी इस मामले में सौभाग्यशाली हैं। मां सरस्वती ने उन्हें सुरीले कंठ से भी नवाज़ा है।आप मंचों पर तहत में तो अपनी प्रभावशाली प्रस्तुति देते ही हैं आपका तरन्नुम भी लाजवाब है।जब आप किसी महफ़िल में सस्वर रचना पाठ करते हैं तो लोग मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।
धीर साहब की विभिन्न रचनाओं की चुनिंदा पंक्तियां बानगी के तौर पर प्रस्तुत कर रहा हूं जिससे आपको उनकी कविता/शायरी की गहराई का अंदाज़ा बा-आसानी हो जाएगा :
द्वेष रहित जीवन जीने की की सीख देती ये पंक्तियां देखिए :
अपना हर कर्तव्य दृढ़ता से निभाना चाहिए,
छल कपट और द्वेष से आँचल बचाना चाहिए।
अन्य की त्रुटियां निकालें, अपने गुण पर गर्व हो,
ऐसे लोगों को हमें दर्पण दिखाना चाहिए।
बज़्म-ए-इश्क़ ग़ज़ल संग्रह से
रहबरी भी देख ली और रहनुमाई देख ली,
बे-वफ़ा दुनिया की हमने बे-वफ़ाई देख ली।
अपनी क़िस्मत में कहां हैं आपकी नज़रों के जाम,
हमको ख़ाली ही मिली शीशा-सुराही देख ली।
धीर साहब के कुछ और अशआर जो मुझे पसंद हैं :
इश्क़ हर तौर ही इंसां को मज़ा देता है,
दर्द देता है मगर ख़ुद ही दवा देता है।
चोर से कहें चोरी कर,शाह से कहें जागना,
आज रहनुमाओं की ये ही रहनुमाई है।
शिकवा ही रहा है कि फ़क़त आपने हमें,
बस दिल से खेलने का ही सामान बनाया।
हम बड़े शौक़ से ग़म उठाते रहे,
चोट खाते रहे,मुस्कुराते रहे।
धीर जी एक स्थान पर अपने नगर बरेली के बारे में कहते हैं :
यह तो नाथों की नगरी है, इसकी हर छटा निराली है,
शिव और शंकर के संगम से इस नगरी में ख़ुशहाली है।
धीर जी की काव्य चेतना का एक और सकारात्मक भक्तिमय रूप देखिए :
मां ऐसी शक्ति प्रदान करो,
पालन में अपना धर्म करूं।
उपकार करूं हर मानव का,
अनुभव ना इसमें धर्म करूं।
अपने एक गीत में आप कहते हैं :
आज गगन में काले बादल छाए हैं,
तुम पूनम की याद दिलाना मत साथी।
'धीर' भरत का भारत संकटग्रस्त हुआ,
तुम अतीत की याद दिलाना मत साथी।
कविता या शायरी वही कामयाब कही जाती है जो श्रोता/पाठक को आह! या वाह! करने को मजबूर करे,उसके दिल के तारों को झंकृत कर दे।धीर साहब की कविता/शायरी में यह तासीर मौजूद है।उनकी कविता की एक-एक पंक्ति आम जन से सीधा संवाद करती हुई प्रतीत होती है।
मेरी यही कामना है की धीर साहब शतायु हों और इसी तरह इल्म-ओ-अदब के चराग़ रौशन करते रहें।अपनी इन चार पंक्तियों के साथ मैं वाणी को विराम देता हूं :
महफ़िलों का नूर हैं, शृंगार हैं,
सबकी चाहत हैं सभी का प्यार हैं।
कहते हैं हम सब जिन्हें रणधीर जी,
वो अदब के इक बड़े फ़नकार हैं।
---ओंकार सिंह विवेक
प्रस्तुतकर्ता : ओंकार सिंह विवेक
ग़ज़लकार/समीक्षक/कॉन्टेंट राइटर/ब्लॉगर
(ब्लॉगर पॉलिसी के तहत सर्वाधिकार सुरक्षित)
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (27-9-22} को "सर्वमंगला मंगल लाए"(चर्चा-अंक 4564) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
अतिशय आभार आपका। अवश्य उपस्थित रहूंगा।
Deleteसुंदर सराहनीय समीक्षा ।
ReplyDeleteजी शुक्रिया 🙏🙏
DeleteVah sundar
ReplyDeleteथैंक्स
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