September 30, 2022

यादों के झरोखों से (कड़ी-१)

प्रणाम मित्रो 🙏🙏🌹🌹
अक्सर कहा जाता है कि आदमी को वर्तमान में ही जीना चाहिए।न तो अतीत की बुरी यादों में खोकर दिल को भारी करना चाहिए और न ही भविष्य की सोचकर चिंता में डूबना चाहिए। मन की शांति के लिए यह बात कुछ ठीक-सी भी लगती है परंतु ऐसी आदर्श स्थिति किसी भी आदमी के जीवन में कम ही देखने को मिलती है।
हर व्यक्ति के स्मृति पटल पर गाहे-बगाहे अतीत की स्मृतियां भी आती हैं और भविष्य को लेकर चिंता भी सताती है। 
यदि अतीत की स्मृतियां सुखद हों तो उनका बार-बार मस्तिष्क में आना अच्छा लगता हैं क्योंकि वह आनंद की अनुभूति कराता है। हां !अतीत के ख़राब अनुभव और स्मृतियां ज़रूर विचलित करती हैं। 
इन बातों पर विचार करते हुए मेरा मन हुआ कि अपनी कुछ सुखद और सकारात्मक स्मृतियां आपके के साथ सिलसिलेवार साझा करूं।निश्चित तौर पर ऐसी चीज़ों से जीवन के प्रति सकारात्मकता और उत्साह बना रहता है।सो इस सिलसिले की पहली कड़ी प्रस्तुत कर रहा हूं :

यह तस्वीर १३अक्टूबर,२०१९ की है जब पल्लव काव्य मंच के संस्थापक/अध्यक्ष श्री शिवकुमार चंदन के निवास ज्वाला नगर, रामपुर-उ०प्र० पर मंच की और से एक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया था।

        (गोष्ठी में काव्य पाठ करते हुए मैं)
 
गोष्ठी में श्री शिवकुमार शर्मा चंदन,शायर इफ्तिखार ताहिर,शायर नोमानी साहब और डॉक्टर रघुवीर शरण शर्मा जी तथा मेरे द्वारा सहभागिता की गई थी।

मुझे ध्यान आ रहा है कि ऊपर चित्र में दिखाई दे रहे कवियों में वरिष्ठ कवि डाक्टर रघुवीर शरण शर्मा (बीच में) द्वारा कवि गोष्ठी की अध्यक्षता की गई थी और संचालन मंच के संस्थापक श्री चंदन जी द्वारा किया गया था।डॉक्टर रघुवीर शरण लगभग अस्सी साल के हैं। आज भी बहुत ही आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी, धर्म और अध्यात्म में गहरी आस्था रखने वाले व्यक्ति हैं। यों तो आप अपनी कविताओं में हास्य की पैनी धार से गुदगुदाने के लिए जाने जाते हैं परंतु आपकी रचनाओं का गांभीर्य भी कुछ सोचने को विवश करता है :

ढोते-ढोते कभी थकूं ना 
जीवन के इस भार को,
सदा सहेजूं अपना मानूं
 सबके प्यार दुलार को।

मंच के संस्थापक श्री चंदन जी भक्ति प्रधान साहित्य सृजन के लिए जाने जाते हैं :
प्रिय तेरे सानिध्य को पाकर,
मगन हुआ है मन-मधुकर।
क़दम बढ़ाया भक्ति पंथ पर,
तब दर्शन का हुआ असर।

शायर नोमानी साहब ज़मीन से जुड़ी सच्ची और अच्छी शायरी के लिए जाने जाते हैं।उनका तरन्नुम भी ग़ज़ब का है।उनके अशआर इस वक्त मुझे याद नहीं आ रहे हैं।फिर किसी वक्त उनका पुख़्ता कलाम ज़रूर साझा करूंगा।
एक उम्दा शायर सैय्यद इफ्तिखार ताहिर साहब दुर्भाग्य से अब हमारे बीच नहीं हैं परंतु अपनी शायरी के माध्यम से आज भी सबके दिलों में बसते हैं ।उनका एक शेर मुझे याद आता है :

हर क़दम देखभाल कर रखना,
अपनी इज़्ज़त सँभाल कर रखना।

ऐसे आयोजनों का अपना अलग ही महत्व और आनंद होता है।न कोई बड़ा तामझाम और न ही किसी बड़े खाने/ठहरने आदि के इंतज़ाम की चिंता। सात-आठ साहित्यकार इकट्ठा हुए और किसी एक के घर बैठकर एक दूसरे का हाल-चाल जान लिया और फिर बिल्कुल अनौपचारिक माहौल में एक दूसरे की रचनाएँ का आनंद ले लिया --- और बस हो गईं मानसिक क्षुधा शांत।श्रोता के रूप में घर-परिवार के सदस्यों की उत्साहवर्धक हिस्सेदारी  ---- परिवार के सदस्यों द्वारा बड़े प्रेम से जलपान आदि का प्रबंध करना और बीच-बीच में वाह वाह वाह!के द्वारा कवियों/शायरों का उत्साहवर्धन करना ---- बहुत मज़ा आता है ऐसे अनौपचारिक आयोजनों में।आजकल सोशल मीडिया/ऑनलाइन गोष्ठियों के चलन या अन्य कारणों से ऐसे आयोजनों की गति थोड़ी धीमी ज़रूर पड़ी है परंतु समाप्त नहीं हुई है। ऐसे आयोजन अब फिर से गति पकड़ रहे हैं।सोशल मीडिया पर ऑनलाइन गोष्ठियां भले ही कितनी भी हो जाएं परंतु इन ऑन द स्पॉट गोष्ठियों की जगह नहीं ले सकतीं।
बड़ी प्रसन्नता का विषय है कि प्रबुद्ध वर्ग बड़े साहित्यिक आयोजनों के साथ-साथ ऐसी गोष्ठियों के आयोजन और प्रोत्साहन को लेकर पुन: गंभीर नज़र आ रहा है। ऐसे आयोजन साहित्य साधकों को निरंतर साहित्य सृजन की प्रेरणा देते हैं।
अंत में अपना एक शेर  पेश करके इजाज़त चाहता हूं।जल्द ही इस सिलसिले की दूसरी कड़ी के साथ आपके सम्मुख फिर हाज़िर होऊंगा :
अच्छे लोगों में जो उठना-बैठना हो जाएगा,
फिर कुशादा सोच का भी दायरा हो जाएगा।
--ओंकार सिंह विवेक
(इस ब्लॉग का कोई भी कॉन्टेंट कॉपी या साझा करने से पूर्व कृप्या ब्लॉगर की गोपनीयता पॉलिसी को अवश्य पढ़ें)



























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