December 1, 2022

दिसंबर का महीना

मित्रो शुभ प्रभात 🙏🙏🌹🌹

वर्ष,२०२२ भी जाने को है बस एक माह ही शेष बचा है।
समय कैसे पंख लगाकर उड़ रहा है यह तो हम और आप देख ही रहे हैं। इसलिए ज़रूरी है कि जो कुछ हम जीवन में जानना, देखना, सीखना और करना चाहते हैं उसे लक्ष्य निर्धारित करके शीघ्र अतिशीघ्र करने का प्रयास करते रहें। पता नहीं किस के पास कितना वक्त शेष बचा है। सबके लिए यही दुआ है कि आशावादी बने रहकर कुछ नया और श्रेष्ठ सृजन करते रहें।अपने दायित्वों का निर्वहन करते हुए मस्त,व्यस्त और स्वस्थ्य रहें।
इन दिनों मेरा भी अपने दूसरे ग़ज़ल-संग्रह का काम लगभग पूरा हो चुका है। सब कुछ योजनाबद्ध रूप से चलता रहा तो वर्ष,२०२३ में मेरी इस दूसरी पुस्तक का विमोचन भी हो ही जाएगा।आप सभी शुभचिंतकों के आशीर्वाद की अपेक्षा है।
लीजिए प्रस्तुत हैं मेरे कुछ दोहे :
दोहे 
***
©️
दादा  जी  होते  नहीं, कैसे  भला  निहाल।
नन्हें   पोते   ने    छुए, झुर्री   वाले   गाल।।

मन में जाग्रत हो गई,लक्ष्य प्राप्ति की चाह।
अब पथरीली राह की, होगी क्या परवाह।।

बतलाओ कब तक नहीं,याची हों हलकान।
झिड़क रहे हैं द्वार पर,उनको ड्योढ़ीबान ।।

शातिर   कुहरे  ने   यहाँ,खेला  ऐसा   खेल।
पड़ी काटनी सूर्य को,कई  दिनों तक जेल।।
©️ ओंकार सिंह विवेक

No comments:

Post a Comment

Featured Post

आज एक सामयिक नवगीत !

सुप्रभात आदरणीय मित्रो 🌹 🌹 🙏🙏 धीरे-धीरे सर्दी ने अपने तेवर दिखाने प्रारंभ कर दिए हैं। मौसम के अनुसार चिंतन ने उड़ान भरी तो एक नवगीत का स...