December 8, 2022

आज कुछ यों भी : बहारों का इशारा हो गया है

साथियो नमस्कार 🌹🌹🙏🙏

मित्रो वर्ष ,२०२१ में मेरा पहला ग़ज़ल संग्रह " दर्द का एहसास" प्रकाशित हुआ था। उसमें एक बहुत ही हल्की- फुल्की ग़ज़ल थी मेरी जिसे प्रसंगवश आज यहां साझा कर रहा हूं:
ग़ज़ल -- ओंकार सिंह विवेक 
बहारों   का   इशारा   हो   गया  है,
बड़ा   सुंदर   नज़ारा   हो  गया  है।

वसाइल   तो   रहे   मेहदूद   अपने,
मगर  फिर  भी  गुज़ारा  हो गया है।

किया  है   खूं-पसीना  एक  जिसने,
बुलंदी   पर   सितारा  हो   गया  है।

तरफ़दारी ज़रा क्या कर दी सच की,
मुख़ालिफ़  जग ये  सारा हो गया है।

बहुत   बदले  हुए   हैं  इसके   तेवर,
ये  दिल  जबसे  तुम्हारा हो गया है।

ख़ुशी  है अब मुख़ालिफ़ भी,हमारी-
ग़ज़ल  सुनकर  हमारा  हो  गया है।
           --- ओंकार सिंह विवेक 
       (सर्वाधिकार सुरक्षित)
वसाइल -- संसाधन
मेहदूद -- सीमित
मुख़ालिफ़ -- विरोधी

हमारी धर्म पत्नी को थोड़ा-बहुत गाने का शौक़ है।वह हारमोनियम भी बजा लेती हैं। कुछ मैंने उन्हें प्रेरित किया और कुछ उनका मूड बना दो उन्होंने साज़ पर मेरी इस ग़ज़ल को गाने का प्रयास किया जिसे बच्चों ने रिकॉर्ड/शूट करके यू ट्यूब पर अपलोड कर दिया।
आप लोगों से अनुरोध है कि नीचे दिए गए संकेत को क्लिक करके उसे देखकर अपनी प्रतिक्रिया से अवश्य अवगत कराएं और हमारा उत्साहवर्धन करें 🙏🙏

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