आज मैं मुरादाबाद,उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ साहित्यकार श्री ओंकार सिंह 'ओंकार' जी के ग़ज़ल-संग्रह "आओ ख़ुशी तलाश करें" की समीक्षा लेकर आपके सम्मुख उपस्थित हूं:
पुस्तक : आओ ख़ुशी तलाश करें (ग़ज़ल-संग्रह)
ग़ज़लकार : श्री ओंकार सिंह 'ओंकार'
प्रकाशक : गुंजन प्रकाशन मुरादाबाद-उत्तर प्रदेश
पृष्ठ संख्या : 142 मूल्य : रुपए 250/-
प्रकाशन वर्ष :2022
समीक्षक : ओंकार सिंह 'विवेक'
काव्य की विभिन्न विधाओं में श्रेष्ठ सृजन करके काव्यकार समाज को राह दिखाने का कार्य कर रहे हैं। यदि गीत का कोमल भाव लोगों के मर्म को छू रहा है तो दो पंक्तियों के दोहे की मारक क्षमता भी जनमानस का ध्यान खींच रही है।इसी तरह फ़ारसी,अरबी तथा उर्दू से होती हुई हिंदी में आई ग़ज़ल विधा का जादू भी आज लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा है। ऐसे समय में श्री ओंकार सिंह ओंकार जी का ग़ज़ल-संग्रह
"आओ ख़ुशी तलाश करें" हिंदी भाषा में ग़ज़ल को लेकर नई आशा जगाते हुए सामने आता है।
ओंकार सिंह जी के ग़ज़ल-संग्रह का शीर्षक 'आओ ख़ुशी तलाश करें' ही इस किताब के प्रति जिज्ञासा उत्पन्न करता है। आज की दुखों से दो चार होती भागमभाग ज़िंदगी में हर आदमी को दो पल सुकून और ख़ुशी की तलाश है। ऐसे में कौन भला इस किताब को पढ़ना नहीं चाहेगा।
अपनी किताब के शीर्षक की सार्थकता को सिद्ध करते हुए ओंकार जी के ये दो अशआर देखिए :
ग़मों के बीच में आओ ! ख़ुशी तलाश करें,
अँधेरे चीर के हम रौशनी तलाश करें।
दिल अपना शोर से दुनिया के आज ऊब गया,
चलो जहां भी मिले ख़ामुशी तलाश करें।
ग़ज़ल में औरतों से गुफ्तगू तो बहुत हो चुकी।अब ग़ज़ल के माध्यम से मज़दूर के पसीने और जनसरोकार की बात भी होनी चाहिए जो हो भी रही है। इसी बात को आगे बढ़ाते हुए ओंकार जी अपने एक शेर में कहते हैं :
शेर हुस्न-ओ-इश्क़ पर तो कह चुके कितने,मगर -
शायरो! कुछ और भी है शायरी के नाम पर।
यों तो ओंकार जी की शायरी में कहीं-कहीं रिवायती रंग भी मिलता है परंतु उनकी अधिकांश ग़ज़लें जदीदियत के रंग से ही सराबोर हैं।उनके अशआर में हमें प्रेम-सद्भाव,आम इंसान के अधिकार और नैतिक मूल्यों की ज़बरदस्त पैरोकारी देखने को मिलती है।कुछ अशआर देखें :
प्रेम का संदेश लेकर आ रही मेरी ग़ज़ल,
इसलिए सबके दिलों को भा रही मेरी ग़ज़ल।
आओ सब ईद की ख़ुशियों को मना लें मिलकर,
और दीवाली भी मिल-जुलके मना ली जाए।
कर ले जनता की वकालत आज से 'ओंकार' तू,
ये क़लम रुकने न पाए ज़ुल्म की तलवार से।
छीनकर सुख दूसरों का अपना सुख चाहें नहीं,
ऐसे सुख की कामनाओं का दमन करते चलें।
अक्सर देखने में आता है कि कुछ रचनाकर अपनी रचनाओं में कहीं-कहीं दार्शनिक होकर ऐसे भारी भरकम शब्दों का प्रयोग कर बैठते हैं जो आम आदमी की समझ से परे होते हैं। आम जन के लिए कही गई कविता में ऐसे प्रयोग उचित नहीं जान पड़ते।क्योंकि जब कविता आम आदमी की समझ में ही नहीं आएगी तो फिर उसका उद्देश्य ही समाप्त हो जाएगा। ओंकार जी के यहां ऐसा नहीं है।हम उन्हें आम आदमी का कवि/शायर कह सकते हैं क्योंकि उनका हर शेर आम आदमी से सीधा संवाद करता हुआ दिखाई देता है।
उनके कुछ शेर देखिए जिनमें आसान ज़ुबान और क़ाफ़ियों का कितनी ख़ूबसूरती से इस्तेमाल किया गया है :
हम नई राहें बनाने का जतन करते चलें,
जो भी वीराने मिलें उनको चमन करते चलें।
नफ़रतों की आग से बस्ती बचाने के लिए,
प्यार की बरसात से ज्वाला शमन करते चलें।
जन कल्याण की प्रबल भावना उनके इन शेरों में भी देखी जा सकती है:
बस्ती-बस्ती हमें ज्ञान के दीप जलाने हैं,
हर बस्ती से सभी अँधेरे दूर भगाने हैं।
मिले सभी को सुख-सुविधा, सब शोषण मुक्त रहें,
धरती पर मुस्कानों के अंबार लगाने हैं।
गद्य में तो सीधे-सीधे बात कही जाती है परंतु कविता/शायरी में बिंबों और प्रतीकों के माध्यम से कही गई बात अधिक प्रभाव छोड़ती है। ओंकार जी ने फूल और भौंरा प्रतीकों का अपनी शायरी में ख़ूबसूरती के साथ जगह-जगह प्रयोग किया है :
जिसमें हर रंग के फूलों की महक हो शामिल,
ऐसे फूलों से ही महफ़िल ये सजा ली जाए।
कभी 'ओंकार' गुलशन में हमारे देख तू आकर,
ख़ुशी के फूल गुलशन में बहुत हमने खिलाए हैं।
काश ! दिल की बगिया में भौंरा भी कोई होता,
फूल-फूल खिल उठता,हर कली निखर जाती।
अपनी अधिकांश ग़ज़लों में ग़ज़लकार ने अपने तख़ल्लुस को बड़ी ख़ूबसूरती के साथ मक्तों में पिरोया है ।यह ग़ज़लकार की दक्षता का प्रमाण है।
जैसा कि मैंने पहले भी अर्ज़ किया है कि ओंकार जी की ग़ज़लें जदीदियत का आईनादार हैं परंतु उन्होंने ग़ज़ल में रिवायत का दामन भी नहीं छोड़ा है। उनकी ग़ज़ल का यह रिवायती शेर देखिए :
इक नज़र भर देखना उनका शरारत से मुझे,
इतना ही काफ़ी था मुझको गुदगुदाने के लिए।
मुख्तसर ये कि ओंकार जी की शायरी नैतिक मूल्य/सांप्रदायिक सौहार्द/जनसरोकार/पर्यावरण-प्रकृति तथा देशप्रेम जैसे महत्वपूर्ण और ज्वलंत विषयों के आसपास रहते हुए हमारी संवेदनाओं को झकझोरती है। आपकी ग़ज़लों में जो फ़साहत और सलासत देखने को मिलती है वो नए ग़ज़ल कहने वालों के लिए एक प्रेरणा कही जा सकती है।ऐसे कवि/शायर के सृजन को बार-बार पढ़ने का मन करता है।
ग़ज़ल विधा के बड़े उस्ताद और जानकार कुछ ग़ज़लों में तक़ाबुल-ए-रदीफ़/तनाफ़ुर या क़ाफ़ियों को लेकर अलग राय रख सकते हैं परंतु आसान ज़ुबान में कही गई श्री ओंकार जी की अधिकांश ग़ज़लें भाव और शिल्प की दृष्टि से प्रभावित करती हैं।
यों तो हर रचनाकार अपनी तरफ़ से पूरी कोशिश करता है कि उसकी किताब में प्रूफ और पृष्ठ सेटिंग आदि की कमियां न रहें परंतु कुछ न कुछ त्रुटियां रह ही जाती हैं जो इस किताब में भी छूट गई हैं। इसे एक एक सामान्य बात कहा जा सकता है।
कुल मिलाकर ओंकार सिंह 'ओंकार' जी का यह ग़ज़ल-संग्रह हिंदी में सीधी और सरल ज़ुबान में कही गई ग़ज़लों की तलाश में रहने वाले पाठकों /साहित्य प्रेमियों को निश्चित ही पसंद आएगा।
मैं आदरणीय ओंकार जी के उत्तम स्वास्थ्य और दीर्घायु होने की कामना करता हूं ताकि निकट भविष्य में उनके और भी श्रेष्ठ ग़ज़ल-संग्रह हमें पढ़ने को मिलें।
--- ओंकार सिंह विवेक
बढ़िया गजल संग्रह ..अच्छी समीक्षा ..बधाई ..
ReplyDeleteरवि प्रकाश, बाजार सर्राफा ,रामपुर उत्तर प्रदेश मोबाइल 99976 15451
हार्दिक आभार आपका।
DeleteBahut badhiya sameeksha
ReplyDeleteDhanywaad
DeleteSundar vah
ReplyDeleteआभार
Deleteअप्रतिम सृजन
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार आपका 🌹🌹
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