December 10, 2022

यादों के झरोखों से (कड़ी - ६)

मित्रो नमस्कार 🙏🙏🌹🌹

पुरानी एल्बम में आज कुछ दुर्लभ छाया चित्र हाथ लगे।इन्हें देखकर ख़ुशी और ग़म दोनों का ही एहसास हुआ। ख़ुशी इसलिए हुई की ख़ुद को बड़े-बड़े साहित्यकारों के साथ मंच साझा करते और रचना पाठ करते हुए देखा।दुख इसलिए हुआ की उनमें से कई अब हमारे बीच नहीं रहे। मैं उन सभी की स्मृतियों को शत-शत नमन करता हूं।
          (काव्य पाठ करते हए मैं ओंकार सिंह विवेक)
ऊपर प्रथमा बैंक के स्थापना दिवस २ अक्टूबर,२०१२ के अवसर पर मिड टाउन क्लब मुरादाबाद में आयोजित कराए गए मुशायरे/कवि सम्मेलन की तस्वीर है। प्रथमा बैंक में मैंने लगभग ३५ वर्ष सेवा करके मार्च,२०१९ में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति प्राप्त की थी।
तस्वीर में मंच पर उत्तर प्रदेश सरकार से यशभारती सम्मान प्राप्त प्रसिद्ध नवगीतकार दादा माहेश्वर तिवारी जी तथा अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शायर मुहतरम मंसूर उस्मानी साहब तशरीफ़ रखते हैं जिनकी  सदारत में मुझे भी कलाम पेश करने का मौक़ा मिला था। उन दिनों मैं प्रथमा बैंक के मुख्य कार्यालय मुरादाबाद में तैनात था। हमारे बैंक के अध्यक्ष महोदय भी कविता/शायरी में ख़ूब दिलचस्पी रखते थे।प्रत्येक वर्ष बैंक के स्थापना दिवस के अवसर पर साहित्य में रुचि रखने वाले हम कुछ बैंक कर्मचारी जिनमें मुख्य रूप से श्री एन यू खान साहब, क़मर भाई और मैं तथा कुछ अन्य वरिष्ठ साथी कवि सम्मेलन/मुशायरे का आयोजन करा लिया करते थे।उन कार्यक्रमों में मुरादाबाद और रामपुर के प्रसिद्ध कवि और साहित्यकारों को आमंत्रित करके अवसर को एक शानदार यादगार बना लिया जाता था।अब वे शानदार दिन बहुत याद आते हैं। 
 जो मूर्धन्य साहित्यकार ऊपर की तस्वीर में दिखाई दे रहे हैं उनकी रचनाधर्मिता से परिचय कराना तो बनता ही है। तो लीजिए दुनिया भर में अपने नवगीतों का लोहा मनवाने वाले दादा माहेश्वर तिवारी जी और शायरी के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने वाले शायर श्री मंसूर उस्मानी साहब की रचनाओं की कुछ पंक्तियां यहां प्रस्तुत कर रहा हूं :  
     सच पूछिये तो उनको भी हैं बेशुमार ग़म,
      जो सब से कह रहे हैं कि हम खैरियत से हैं।
               --- मंसूर उस्मानी
आज तक हम हैं किराए के मकानों में,
यह सचाई और खलती है थकानों में।
            रात हल्के पांव जाती है गुज़र ख़ामोश,
            स्वप्न हैं ऐसे कहीं दुबके हुए खरगोश।
नाम अपना हो भले शामिल महानों में।
           --- माहेश्वर तिवारी
उक्त कार्यक्रम में पढ़े गए मेरे भी कुछ शेर देखिए :
            वक्त के सांचे में ढल मत कर गिला सदमात से,
             ज़िंदगी प्यारी है तो लड़ गर्दिश-ए-हालात से। 

            बेसबब ही आपकी तारीफ़ जो करने लगें,
            फा़सला रक्खा करें कुछ आप उन हज़रात से।
                      --- ओंकार सिंह विवेक 
पुरानी एल्बम से लगभग बीस साल (सही वर्ष याद नहीं)पुराना ऊपर साझा किया गया एक और फोटो हाथ लगा।इसमें रामपुर जनपद की चार साहित्यिक विभूतियां मंच पर विराजमान हैं।
बाईं और से दाईं ओर को :
१. स्मृतिशेष साहित्यकार श्री हीरा लाल किरण जी को शॉल पहनाकर सम्मानित करते हुए मैं।
२. रामपुर के मशहूर उपन्यासकार स्मृतिशेष प्रोफेसर ईश्वर शरण सिंघल साहब।
३. रामपुर के मशहूर शायर और मेरे उस्ताद रहे स्मृतिशेष श्री शब्बीर अली ख़ान तरब ज़ियाई साहब।
४.रामपुर के प्रसिद्ध साहित्यकार स्मृतिशेष श्री जगदीश वियोगी जी।
स्मृतिशेष हीरा लाल किरण जी हिंदी साहित्य को समर्पित बहुत ही विनम्र और सादा स्वभाव के व्यक्ति थे।वे गुंजन साहित्यिक मंच भी चलाया करते थे।नए और पुराने साहित्यकारों को मंच से जोड़ना और निरंतर काव्य गोष्ठियां कराते रहना उनके जैसे सौम्य,विनम्र और धैर्यवान व्यक्ति के लिए ही संभव था।अपने जीवन काल में नए रचनाकारों को भी उन्होंने बहुत प्रोत्साहित किया।उनकी कुछ रचनाओं की पंक्तियां देखिए :
---प्रीत मन की वह लहर हूँ,बस गया इसमें नगर है।
      पथ नए खुलते दिखे हैं,जुड़ गया सारा शहर है।

---दर्पण में जब-जब मैंने, मन में रख अंतर देखा।
      जो चित्र बने थे उर में,उनकी उभरी थी रेखा।
            ---स्मृतिशेष हीरालाल किरण
स्मृतिशेष प्रोफेसर ईश्वर शरण सिंघल साहब एक जाने माने उपन्यासकार थे जिनका उपन्यास ' जीवन के मोड़' बहुत प्रसिद्ध हुआ। आप कुशल वक्ता और विचारक थे।आपके सुपुत्र डॉक्टर आलोक सिंघल साहब रामपुर जनपद ही नहीं वरन मंडल के जाने माने कार्डियोलॉजिस्ट हैं।
मरहूम हकीम शब्बीर अली खान तरब ज़ियाई साहब रामपुर के मशहूर शायर थे और अच्छे हकीम भी थे। मैंने आपसे ग़ज़ल की बहुत-सी बारीकियां सीखीं।आप दरबार-ए-अदब नाम की एक अदबी संस्था भी चलाते थे ।इस बज़्म की और से शहर में हर महीने तरही नशस्तें भी हुआ करती थीं। तरब साहब बहुत ही नेकदिल और खुद्दार इंसान थे।आपके कुछ अशआर मुझे याद आ रहे हैं:
          उसने जब लहजा बदलकर बात की,
          लुट गई दुनिया मेरे जज़्बात की।  

           ये भी क्या जो जी में आया कह दिया,
           तुक हुआ करती है कोई बात की।
                     --- तरब ज़ियाई
स्मृतिशेष श्री जगदीश वियोगी जी बहुत ही सहज और सरल व्यक्तित्व के धनी कवि थे।आपका कंठ भी बहुत अच्छा था।जब गोष्ठियों में तरन्नुम से कविता पाठ करते थे तो लोग मंत्र मुग्ध हो जाते थे। वियोगी जी की कुछ पंक्तियां देखिए :
             पीर ह्रदय की कंठ पार कर,
             आ पाई कब मुक्त स्वरों तक।
              सोच   रहा   कैसे   पहुंचेंगे,
               मेरे स्वर कंपित अधरों तक।
                   -- जगदीश शरण सक्सैना वियोगी
 इन पुरानी तस्वीरों को देखकर मन स्मृतियों के सागर में जैसे डूब-सा गया।
आप लोगों को यह प्रस्तुति कैसी लगी,टिप्पणियों के माध्यम से अवश्य अवगत कराएं।
       
प्रस्तुतकर्ता--- साहित्यकार ओंकार सिंह विवेक
                     रामपुर-उत्तर प्रदेश 
                    (सर्वाधिकार सुरक्षित)

2 comments:

  1. बहुत अच्छा लगा! पूरा संस्मरण पढ़ कर बहुत अच्छा लगा।

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