प्राचीन मान्यता के अनुसार बिठूर के गंगा घाट पर ही ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी। माना जाता है कि ब्रह्मा जी ने अपनी खड़ाऊं की एक कील यहां गाड़ दी थी।पौराणिक मान्यता के अनुसार इस स्थान को प्रथ्वी का केंद्र बिंदु माना जाता है। इस मंदिर में ब्रह्म जी के चरणों की पूजा की जाती है।
(गंगा घाट पर ब्रह्म्मवर्त तीर्थ)बिठूर की भूमि वीरों का ठिकाना रही है इसलिए इसे बिठूर कहा जाता है। जहां कभी वीर योद्धा नाना राव पेशवा जी का प्रसिद्ध महल था वहां अब उनका स्मारक और संग्रहालय बना हुआ है। मराठा राजा पेशवा नाना राव जी ने बिठूर को अपनी राजधानी बनाया था। यहीं झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अपने बचपन में घुड़सवारी और सैन्य कौशल में दक्षता हासिल की थी।
मान्यता है कि जिस स्थान पर खड़े होकर राजा उत्तानपाद के पुत्र ध्रुव ने तपस्या की थी, उसे ध्रुव टीला कहते हैं।इस स्थान पर अब कोई ख़ास प्राचीन अवशेष तो दिखाई नहीं देते परंतु यहां एक आश्रम अवश्य दिखाई दिया।टीले के नीचे की ओर हनुमान जी का प्राचीन मंदिर भी है जिसमें हनुमान जी तथा माता अंजनी की प्रतिमाएं हैं।