October 27, 2022

नई तस्वीरें , नई ग़ज़ल

 नमस्कार  !! शुभ प्रभात 🙏🙏🌹🌹

हाल ही में कुछ अलग अंदाज़ की एक ग़ज़ल मुकम्मल हुई।इसे फेसबुक और अन्य माध्यमों के द्वारा मित्रों के साथ साझा किया।बहुत अच्छी प्रतिक्रियाएं आईं जिनके लिए मैं सभी का दिल से शुक्रिया अदा करता हूं।इस ग़ज़ल में कुछ शेर 
थोड़ा-सा निराशा का भाव लिए हुए भी हो गए।इन अशआर को पढ़कर एक बहुत ही अच्छे मित्र की प्रतिक्रिया आई कि विवेक जी यदि आप ही इतने निराश हो जाएंगे तो कैसे काम चलेगा। मैं अपने दोस्त की भावनाओं को समझ सकता हूं।उनका नज़रिया एक तरह से ठीक भी है परंतु मैंने जब विनम्रता से इसके पीछे की बात बताई तो वह मुझसे सहमत भी दिखे।
मित्रो एक साहित्यकार अपने सृजन में कभी आप बीती तो कभी जग बीती को अभिव्यक्ति देता है और कभी वह न आप बीती कहता है और न जग बीती बल्कि कुछ आशावादी सोच के साथ ऐसा कहता है जो सबके लिए हितकर होता है और समाज को राह दिखाने का काम करता है। साहित्य या अदब का एक पक्ष यह भी है कि यह समाज का दर्पण कहा जाता है।समाज में जो घटित होता है उसकी अभिव्यक्ति करके रचनाकार समाज को आईना भी दिखाता है। कभी-कभी आदमी के दिल और दिमाग़ की ऐसी कैफियत भी हो जाती है जैसी यहां मैंने अपने शेरो र्में बयान की है। अत: स्वाभाविक रूप से ऐसी चीज़ें भी कवि के सृजन का हिस्सा बन जाती हैं।

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दोस्तो कुछ तस्वीरों के साथ आनंद लीजिए मेरी उस नई ग़ज़ल का जिसके बहाने आपसे यह बातचीत हो सकी :
©️
बैठता  है  दिल  घुटन  से  क्या  करें,
अश्रु  झरते  हैं  नयन  से  क्या  करें।   

आप    ही   बतलाइए   मुँह-ज़ोर  ये,
बात हम-से कम-सुख़न  से क्या करें।

आए  थे  जिनके  लिए, वो  ही  नहीं,
ख़ुश  हमारे  आगमन   से  क्या करें। 

साथ   जाना   ही   नहीं  है जब इसे,
इस क़दर फिर मोह धन से क्या करें।

काम ही  उसका जलाना है तो फिर,
हम गिला कोई अगन  से  क्या करें।

बस   बुझाने  आते  हैं   दीपक  उसे,
और  हम आशा  पवन  से क्या करें।

ज़ेहन  को  भी है  तलब  आराम की,
चूर  है  तन भी थकन  से  क्या  करें। 

आजकल सौगंध खाकर  भी 'विवेक', 
लोग  फिरते  हैं  वचन  से  क्या  करें।
         ---©️ओंकार सिंह विवेक 
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(विभिन्न साहित्यिक आयोजनों के अवसर पर लिए गए चित्र एक कोलाज के रूप में) 
(भारत विकास परिषद रामपुर शाखा की एक पारिवारिक बैठक का दृश्य)

                (मेरी धर्मपत्नी और मैं)

         (दीपावली के शुभ अवसर पर दीपों की थाली लिए                   मेरी धर्मपत्नी) 

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9 comments:

  1. सुंदर चित्र व सृजन, दीपोत्सव की शुभकामनाएँ

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    Replies
    1. आभार आदरणीया 🙏🙏 आपको भी पर्व की अशेष शुभकामनाएं।

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  2. Vahi, sundar prastuti

    ReplyDelete
  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (29-10-2022) को "अज्ञान के तम को भगाओ" (चर्चा अंक-4595) पर भी होगी।
    --
    कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीय 🙏🙏

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  4. 'आजकल सौगंध खाकर भी 'विवेक',
    लोग फिरते हैं वचन से क्या करें।'... सही व सटीक अभिव्यक्ति!

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