October 11, 2022

ग़ज़ल और इसके मूल रुक्न

शुभ प्रभात मित्रो🙏🙏🌹🌹


(यह चित्र २अक्टूबर,२०२२ को रामपुर के पल्लव काव्य मंच द्वारा आयोजित कराए गए कवि सम्मेलन/पुस्तक लोकार्पण/साहित्यकार सम्मान समारोह के अवसर पर लिया गया था।चित्र में दाएं से बाएं : साहित्यकार श्री राजेश डोभाल जी, मैं ओंकार सिंह विवेक,श्री शिव कुमार चंदन जी और आदरणीय बाबा कल्पनेश जी)

काव्य की हर विधा का अपना निश्चित विधान होता है। व्याकरण, वाक्य विन्यास आदि महत्वपूर्ण पहलुओं के साथ विधा के अनुशासन में बंधकर ही कोई रचना पूरा निखार पाती है। ग़ज़ल विधा का अपना अनुशासन है जिसमें उसके रुक्न बहुत महत्वपूर्ण कड़ी होते हैं। रुकनों से ही लयखण्ड बनते हैं जो ग़ज़ल को रवानी प्रदान करते हैं।
ग़ज़ल के आठ प्रमुख मूल रुकन निम्न प्रकार हैं :
     रुक्न                 हिंदी मात्रा-क्रम 
    फ़ऊलुन              १ २ २
    मफ़ाईलुन           १ २ २ २
     फ़ाइलुन             २ १ २
     फ़ाइलातुन          २ १ २ २
   मुस्तफ़इलुन          २ २ १ २
    मुफ़ाइलतुन          १ २ १ १ २
    मुतफ़ाइलुन          १  १ २ १ २
      मफ़ऊलातु          २ २ २ १
 इन्हीं रुक्नों की आवृत्ति से बहरों का निर्माण होता है। किसी भी बहर में चार, छः या आठ आदि अरकान(रुक्न का बहुवचन) हो सकते हैं।
ऐसी ग़ज़ल भी कही जा सकती है जिसके एक मिसरे में केवल कोई एक ही रुक्न हो अर्थात दोनों मिसरों/पंक्तियों में केवल दो ही रुक्न हों।ऐसी ग़ज़ल को एक रुकनी ग़ज़ल कहा जा सकता है।
एक रुकनी ग़ज़ल कहना/लिखना अपेक्षाकृत मुश्किल होता है क्योंकि ऐसी दशा में अपनी पूरी बात बहुत कम शब्दों में कहने की बाध्यता हो जाती है।बहुत ही कम शब्दों में शिल्प ,कथ्य और भाव को बिना किसी व्याकरणीय त्रुटि के कुशलता से संप्रेषित करना वास्तव में एक कठिन काम तो है ही।
पटना,बिहार के श्री रमेश कंवल साहब एक उम्दा शायर और बेहतरीन इंसान हैं।वर्ष २०२१ में उन्होंने "इक्कीसवीं सदी के इक्कीसवें साल की बेहतरीन ग़ज़लें" शीर्षक से एक साझा ग़ज़ल संग्रह निकाला था जिसमें हिंदुस्तान भर के अच्छे शायरों की ग़ज़लें संकलित की गईं थीं। मुझे भी इस किताब का हिस्सा बनने का सौभाग्य मिला था।इस किताब की संक्षिप्त समीक्षा भी मैंने आप सब के लिए अपने इस ब्लॉग पर पोस्ट की थी।
                          (श्री रमेश कंवल साहब)
अब श्री रमेश कंवल साहब ने एक रुकनी ग़ज़लों का संग्रह निकालने की योजना बनाई है। उन्होंने तमाम शायरों से एक रुकनी ग़ज़लें इस संकलन के लिए आमंत्रित की हैं ।उनकी इस अनूठी पहल का हिस्सा बनने के लिए मैंने भी कुछ एक रुकनी ग़ज़लें कहीं जिनमें से एक आपकी प्रतिक्रिया हेतु यहां साझा कर रहा हूं।
आशा है आप ब्लॉग को फॉलो  करके रचना पर टिप्पणी अवश्य अंकित करेंगे।

एक रुकनी ग़ज़ल
**************
 --- ओंकार सिंह विवेक 
फ़ाइलातुन
2  1  2   2
ज़ीस्त क्या है,
बुलबुला   है।

क्या हो कल को,
क्या    पता   है।

हम   भले   तो,
जग   भला  है।

शायरी      भी,
इक   नशा  है।

ठीक    समझे,
सच   बड़ा  है।

श्रम का सबको,
फल  मिला  है।

जाग,    सूरज-
चढ़   गया  है।
--  ©️ ओंकार सिंह विवेक

 (
ऊपर दिया गया सम्मान पत्र काव्यानंद साहित्यिक पटल कासगंज, उ०प्र०से प्राप्त हुआ है।यह एक प्रतिष्ठित साहित्यिक पटल है जिससे बहुत अच्छे साहित्यकार जुड़े हुए हैं। मैं इस पटल से लगभग इसकी स्थापना के समय से ही जुड़ा हुआ हूं।समय मिलने पर यहां अपनी रचनाएँ पोस्ट करने के साथ-साथ अक्सर पटल-संस्थापक के आग्रह पर ग़ज़लों पर समीक्षात्मक टिप्पणियां भी कर देता हूं जिसे पटल से जुड़े सभी लोग सह्रदयता से लेते हैं। वरिष्ठ साहित्यकार और पटल के संस्थापक श्री भ्रमर जी पटल को बहुत अनुशासित ढंग से इसे चला रहे हैं। मैं पटल की उत्तरोत्तर प्रगति की कामना करता हूं।
           --ओंकार सिंह विवेक
      ग़ज़लकार/समीक्षक/ स्वतंत्र विचारक/ब्लॉगर
(ब्लॉगर की गोपनीयता पॉलिसी के तहत सर्वाधिकार सुरक्षित)

No comments:

Post a Comment

Featured Post

आज एक सामयिक नवगीत !

सुप्रभात आदरणीय मित्रो 🌹 🌹 🙏🙏 धीरे-धीरे सर्दी ने अपने तेवर दिखाने प्रारंभ कर दिए हैं। मौसम के अनुसार चिंतन ने उड़ान भरी तो एक नवगीत का स...