धनी और निर्धन ,ऊंच नीच और जाति-पांति का भेद समाज में युगों-युगों से चला आ रहा है। इसके प्रभावों पर बहुत कुछ कहा और लिखा जाता रहा है।इस वर्ग भेद को समाज से पूरी तरह मिटाया तो नहीं मिटाया जा सकता परंतु संवेदनशील बने रहकर इसको विकृत होने से तो बचाया ही जा सकता है।
अक्सर देखने में आया है कि उल्लिखित विभेदों के चलते धनी निर्धन से, उच्च जाति के लोग निम्न जाति के लोगों से और मालिक नौकर से अप्रिय तथा अमानवीय व्यवहार करते हैं। परंतु इसके अपवाद भी हैं।कुछ लोग अपने अधीनस्थों/मातहतों से बहुत अच्छी तरह भी पेश आते हैं।
कई बार मैंने देखा है कि घर या दुकान आदि में लोगों द्वारा लेबर और नौकरों से काम लेते समय मानवीयता के पहलू को नज़रअंदाज़ करते हुए बहुत अप्रिय और कठोर व्यवहार किया जाता है जो बिल्कुल भी उचित नहीं है। मज़दूर या वर्कर से काम लेते हुए मालिक को यह नहीं भूलना चाहिए कि नौकर भी एक इंसान है और उसकी भी अन्य लोगों की भांति स्वाभाविक क्रियाएं और ज़रूरतें होती हैं जिनका वांछित समय पर उचित निस्तारण अपरिहार्य है। यदि थोड़ी बहुत देर विश्राम देकर उन्हें मानसिक बल प्रदान करेंगे तो इससे उनकी कार्यक्षमता में वृद्धि होगी जिसका अच्छा असर काम पर भी दिखाई देगा। यदि हम इस बात को ध्यान में रखकर उनसे काम लेंगे तब ही सही अर्थ में/इंसान कहलाने के हक़दार होंगे अन्यथा नहीं।
कुछ दिन पहले ऐसी ही एक घटना मैंने देखी जिसका नाम और प्रसंग सहित उल्लेख करना ठीक नहीं है।परंतु उसे देखकर यह कवि मन उद्वेलित हुआ और एक कुंडलिया छंद का सृजन हुआ जो आप सब सुधी मित्रों के सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूं, कृपया अपनी टिप्पणियों से अवश्य ही अवगत कराइए :
कुंडलियां
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खाना खाकर सेठ जी, गए चैन से लेट,
नौकर धोता ही रहा, बर्तन ख़ाली पेट।
बर्तन ख़ाली पेट, निरंतर भूख सताए,
कैसे पर यह बात, सेठ जी को समझाए।
है 'विवेक' सब काम,उसे पहले निपटाना,
होगा तभी नसीब,कहीं थोड़ा-सा खाना।
-- ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
सौ प्रतिशत सही है, हमें किसी के भी साथ अनुचित व्यवहार नहीं करना चाहिए, सबके भीतर एक ही ईश्वर का वास है
ReplyDeleteमेरे विचार से सहमत होने के लिए आभार आदरणीया 🙏🙏
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