October 17, 2022

दिल तो दर्पण है टूट जाएगा !!!!!!

 नमस्कार साथियो🙏🙏🌹🌹

आज इस ब्लॉग पोस्ट में मंच पर काव्य पाठ की दो शैलियों के बारे में कुछ चर्चा करते हैं। जहाँ तक कविता का प्रश्न है शिल्प और भाव के साथ गेयता भी उसकी प्रमुख शर्तों में से एक होती है। यहाँ तक कि अतुकांत कविता में भी एक प्रवाह विद्यमान रहता है।
काव्य पाठ की दो शैलियाँ तहत और तरन्नुम हैं।तहत में काव्य पाठ का अर्थ है सीधे-सीधे अपनी रचना को बिना गाए हुए श्रोताओं के सम्मुख प्रस्तुत करना और तरन्नुम में पढ़ने का अर्थ है रचना को गाकर प्रस्तुत करना। मंच पर लोग अक्सर दोनों ही तरह से अपनी अपनी रचनाएँ प्रस्तुत करते हैं।यह बिल्कुल ठीक बात है कि गायन शैली में रचना प्रस्तुति का अपना एक अलग प्रभाव होता है परंतु तहत में रचना पाठ भी अपने ढंग से श्रोताओं पर असर छोड़ता है।
हाँ,यह बात सही है कि यदि किसी रचनाकार के पास अच्छी कविता के साथ साथ अच्छा गला भी है तो सोने में सुहागा हो जाता है।तरन्नुम में रचना पढ़ने का एक फ़ायदा यह भी होता है कि एक या दो रचनाएँ पढ़ने में ही अच्छा समय निकल जाता है जबकि तहत में रचना पढ़ने में इतना समय नहीं लगता इसलिए रचनाकार को कई रचनाएँ पढ़नी पड़ती हैं।बहरहाल, रचना पाठ की दोनों शैलियों का अपना महत्त्व है।आज मंचों पर कई कवि/कवयित्रियाँ यदि अपने तरन्नुम के लिए जाने जाते हैं तो कई सीधे-सीधे संवाद करते हुए अपने तहत में काव्य पाठ के लिए भी जाने जाते हैं।
      मैं भी अक्सर मंचों पर जाता हूं। मैं हमेशा तहत में ही काव्य पाठ करना पसंद करता हूं क्योंकि तरन्नुम में कभी मैं अपने आपको सहज महसूस नहीं करता। हाँ,कभी-कभार दोहे ज़रूर तरन्नुम में पढ़ने का प्रयास कर लेता हूं।मेरा मानना है कि कवि को जिसमें सहजता महसूस हो उसी शैली में रचना पाठ करके अपना स्टाइल विकसित करना चाहिए ।किसी की नकल बिल्कुल नहीं करनी चाहिए।

वर्ष २०२१ में मेरा ग़ज़ल संग्रह "दर्द का एहसास" छपा था, जिसमें एक ग़ज़ल थी "संग नफ़रत के सह न पाएगा" उस समय इस ग़ज़ल में सिर्फ़ पांच शेर थे। 
हाल ही में मैंने इस ग़ज़ल में कुछ परिमार्जन के साथ दो शेर और बढ़ाए हैं सो पूरी ग़ज़ल यहां पुन: प्रस्तुत कर रहा हूं:

2   1    2   2 1   2  1  2 2 2                                 

ग़ज़ल -- ओंकार सिंह विवेक

संग  नफ़रत  के  सह  न पाएगा,      संग - पत्थर
दिल  तो  दर्पण  है  टूट जाएगा।     

टूटकर  मिलना   आपका  हमसे,
वक्ते-रुख़सत   बहुत   रुलाएगा।
 

(वक्ते-रुख़सत- जुदाई के समय)

दिल को हर पल ये आस रहती है,  
एक   दिन   वो    ज़रूर  आएगा।   

जब  कदूरत  दिलों  पे  हो  हावी,       कदूरत - दुर्भाव 
कौन   किसको   गले   लगाएगा?

राह  भटका  हुआ हो जो ख़ुद ही,  
क्या    हमें    रास्ता    दिखाएगा?

होगा  हासिल   फ़क़त  उसे  मंसब,       मंसब - पद
उनकी  हाँ  में  जो   हाँ  मिलाएगा।

और  कब  तक  'विवेक'  यूँ  इंसाँ, 
ज़ुल्म   जंगल,नदी    पे    ढाएगा।
                  ओंकार सिंह विवेक  

                 (सर्वाधिकार सुरक्षित)

(विशेष : मेरी पुस्तक का मूल्य एक सौ पचास रुपए है।यदि ग़ज़ल के शौक़ीन साथी चाहें तो मोबाइल संख्या 9897214710 पर इस धनराशि का पे टी एम करके पुस्तक मंगा सकते हैं।पुस्तक पंजीकृत डाक द्वारा आपको भेज दी जाएगी। पंजीकृत डाक व्यय जो लगभग पचास रुपया होगा, मेरे द्वारा वहन किया जायेगा।)

आइए अब कुछ अपनी धर्मपत्नी श्रीमती रेखा सैनी जी के शौक़ के बारे में बताता हूं।इस ग़ज़ल के संदर्भ में उनका ज़िक्र करना यहां प्रासंगिक भी हो गया है। पत्नी जी ने वोकल म्यूजिक में प्रभाकर तक शिक्षा प्राप्त की है।शादी के बाद पारिवारिक दायित्वों के चलते वह अपने शौक़ को तो जैसे भूल ही बैठी थीं। मैंने तथा बच्चों ने निरंतर प्रोत्साहित किया है तो फिर से अपने पैशन को फॉलो करने की तरफ़ ध्यान गया है।इधर अपने यहां रामपुर आल इंडिया रेडियो पर भी मैंने उनका ऑडिशन कराया था जिसमें वह पास भी हो गई हैं। वहाँ लोकगीत कार्यक्रम में उनको शायद अब जल्दी ही नियमित अंतराल पर बुलाया जाने लगेगा। मेरा तो यही मानना है कि आदमी को अपने अच्छे पैशन को हमेशा ज़िंदा रखना चाहिए।

प्रोत्साहित करने पर श्रीमती जी ने मेरी उल्लिखित ग़ज़ल को गाने का प्रयास किया है। वह कहाँ तक सफल हो पाई हैं यह तो आपकी प्रतिक्रिया से ही पता चलेगा।मेरा आग्रह है कि नीचे दिए गए लिंक पर जाकर उनके प्रयास को अवश्य देखिए। आपके कॉमेंट्स से उन्हें/हमें प्रोत्साहन मिलेगा।यदि चैनल पर आप पहली बार जा रहे हैं तो चैनल पर दाईं ओर दिखाई दे रहे Subscribe ऑप्शन को दबाकर इसे  सब्सक्राइब करना न भूलें 🙏🙏

दिल तो दर्पण है टूट जाएगा 👈



6 comments:

  1. सृजनशीलता के लिए आप दोनों को बहुत बहुत बधाई !

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    1. अतिशय आभार आदरणीया 🌹🌹🙏🙏

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  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (18-10-22} को "यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:"(चर्चा अंक-4585) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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    कामिनी सिन्हा

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    1. आभार आदरणीया। ज़रूर हाज़िर रहूंगा 🙏🙏

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  3. बहुत ही सुन्दर सार्थक सृजन

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    1. हार्दिक आभार आदरणीया।

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