May 30, 2023

कला की पराकाष्ठा

प्रणाम मित्रो 🌹🌹🙏🙏

व्यक्तिगत कारणों से पिछले दिनों कर्नाटक राज्य की राजधानी बैंगलुरू जाना हुआ। बेंगलुरू को भारत की सिलिकॉन वैली भी कहा जाता है।अंतरराष्ट्रीय स्तर की सभी बड़ी टेक्नोलॉजी और सॉफ्टवेयर कंपनियां यहां बड़ा कारोबार करती हैं।देश और विदेश के तमाम लोगों को इस शहर ने रोज़गार प्रदान किया है।
अपनी बैंगलुरू यात्रा में यों तो हमने कई स्थानीय दर्शनीय स्थल देखे परंतु यहां के बोटनिकल गार्डन ने मन को सबसे अधिक लुभाया।इस पूरे गार्डन पर तो मैं विस्तार से अलग एक पोस्ट लिखूंगा ,फिलहाल एक पुराने आम के पेड़ पर की गई कलाकारी और कारीगरी से आपको रूबरू कराना चाहता हूं।
      (बोटेनिकल गार्डन बैंगलुरू में आम के पेड़ पर उकेरी गई          कलाकृतियां )
Mother Nature Wood 250 साल पुराने आम के पेड़ पर जो आकर्षक आकृतियां कलाकार द्वारा उकेरी गई हैं आप उन्हें देखकर दंग रह जाएंगे। सभी कलाकृतियां जीवंत भाव भंगिमाओं का अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करती हैं।इससे यह पता चलता है कि हमारे यहां कला का क्षेत्र कितना विस्तृत और विकसित रहा है।
पार्क में इस तरह की कोई एक आकृति पेड़ पर नहीं उकेरी गई है अपितु भिन्न-भिन्न मुद्राओं में कलाकारी के ऐसे दर्जनों नमूने देखने मिल जाएंगे।
अपने देश के ऐसे श्रेष्ठ कलाकारों और ऐसी कला का संरक्षण तथा संवर्धन करने वालों को शत-शत नमन और वंदन।
             --- ओंकार सिंह विवेक 

May 27, 2023

मुलाक़ात हसीन लोगों से

इन दिनों हम पति-पत्नी अपनी छोटी पुत्री सीoएo आस्था सैनी के पास कर्नाटक राज्य की राजधानी बैंगलुरू, जिसे सिलिकॉन वैली के नाम से जाना जाता है,आए हुए हैं।बेटी आस्था ने हाल ही में सीoएo की फाइनल परीक्षा उत्तीर्ण करके भारतीय मूल की मल्टी नेशनल कंपनी विप्रो में सीनियर एक्जीक्यूटिव फाइनेंस के रूप में ज्वाइन किया है। आज convocation में Institute of chartered accountants of India द्वारा यहां एक भव्य समारोह में अन्य बच्चों के साथ आस्था को भी सीoएo की डिग्री प्रदान की जाएगी। यह हमारे लिए गौरव की बात है कि हमें भी इस अवसर का साक्षी होने का सौभाग्य प्राप्त होगा।
इस प्रवास के दौरान एक वरिष्ठ साहित्यकार(मंझे हुए ग़ज़लकार)श्री एमo श्रीराम जी से मिलने उनके घर भी जाना हुआ।पत्नी,बेटी और मैं आदरणीय एमoश्रीराम जी और उनके परिजनों की आत्मीयता देखकर गदगद हो गए।उन लोगों से मिलकर लगा ही नहीं कि  हम उनसे पहली बार मिले हों।इस विशुद्ध दक्षिण भारतीय परिवार के धारा प्रवाह हिंदी वार्तालाप से हम लोग बहुत प्रभावित हुए।आदरणीय श्री एमo श्रीराम जी मूल रूप से आंध्र प्रदेश के रहने वाले हैं तथा डिफेंस विभाग से सेवानिवृत्ति के उपरांत कर्नाटक राज्य की राजधानी बैंगलुरू में स्थाई रूप से रहने लगे हैं।आप एक अच्छे योगा ट्रेनर भी हैं और कॉल्स पर विभिन्न विभागों और कंपनियों में योग की क्लासेज़ लेते हैं।पारिवारिक और साहित्यिक विमर्श के साथ ही मैंने उन्हें अपने ग़ज़ल संग्रह "दर्द का अहसास" की प्रति भी भेंट की।मेरे इसरार/आग्रह पर उन्होंने अपनी एक ताज़ा ग़ज़ल भी सुनाई। मैंने आदरणीय श्री एमo श्रीराम जी से उनकी साहित्यिक गतिविधियों पर कुछ वार्तालाप करके उनके ग़ज़ल पाठ का वीडियो भी रिकॉर्ड किया जिसे अपने यूट्यूब चैनल पर शीघ्र ही अपलोड करके आपके साथ साझा करूंगा।
प्रस्तुतकर्ता : ओंकार सिंह विवेक



May 23, 2023

कैसी - कैसी ने'मत हमको जंगल देते हैं

दोस्तो शुभ प्रभात 🌹🌹🙏🙏

आज फिर मेरे नवीन ग़ज़ल संग्रह में प्रकाशित होने जा रही जदीद ग़ज़ल का आनंद लीजिए :

नई ग़ज़ल -- -- ©️ ओंकार सिंह विवेक 
©️ 
शीशम  साखू   महुआ   चंदन  पीपल   देते हैं,
कैसी-कैसी  ने'मत   हमको   जंगल   देते   हैं।

वर्ना सब  होते  हैं  सुख  के   ही  संगी -साथी,
दुनिया में  बस  कुछ  विपदा  में संबल देते हैं।

रस्ता  ही भटकाते  आए  हैं  वो  तो अब तक,
लोग  न  जाने  क्यों  उनके  पीछे  चल देते हैं।
©️ 
आज बना  है मानव  उनकी ही जाँ का दुश्मन,
जीवन  भर  जो  पेड़  उसे  मीठे  फल  देते हैं।

मिलती है  कितनी  तस्कीन तुम्हें क्या बतलाएँ,
आँगन  के  प्यासे पौधों  को  जब  जल देते हैं।

कब तक सब्र का बाँध न टूटे प्यासी फसलों के,
धोखा   रह-रहकर   ये   निष्ठुर  बादल  देते  हैं।

किस  दर्जा  मे'यार  गिरा  बैठे  कुछ  व्यापारी,
ब्रांड  बड़ा  बतलाकर  चीज़ें   लोकल  देते  हैं।
                       ---©️ ओंकार सिंह विवेक

May 19, 2023

उनको हमसे यही शिकायत है

मित्रो प्रणाम 🌹🌹🙏🙏

आजकल अपने दूसरे ग़ज़ल संग्रह के प्रकाशन की तैयारी में लगा हुआ हूं।पांडुलिपि लगभग तैयार है।एक-दो शीर्षक भी सोच लिए हैं।कुछ मशवरे के बाद उनमें से एक फाइनल कर लिया जाएगा।१२० पृष्ठ की किताब छपवाने का विचार है जिसमें ८० से लेकर ९० ग़ज़लें हो सकती हैं। रचनाओं में सुधार की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है।आजकल संकलन के लिए "अपनी बात" लिखने के साथ-साथ छपने वाली रचनाओं को फाइनल लुक भी दे रहा हूं।इस दौरान कई ग़ज़लें संशोधित भी की हैं।कुछ ग़ज़लों में केवल पाँच-पाँच शेर ही थे।एकरूपता के लिए सभी में सात-सात शेर किए हैं।
यदि परिस्थितियां अनुकूल रहीं तो आपके आशीर्वाद से इस साल ही मेरा दूसरा ग़ज़ल संग्रह मूल्यांकन हेतु आपके सम्मुख आ जाएगा।
लीजिए इस संकलन में छपने वाली एक और ग़ज़ल का आनंद लीजिए :

ग़ज़ल -- ओंकार सिंह विवेक
©️
फ़ाइलातुन् मुफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन 

हर   तरफ़  जंग  की  अलामत  है,
अम्न  पर  ख़ौफ़-सा  मुसल्लत है।

क्या करें उनसे कुछ गिला-शिकवा,
तंज़  करना  तो  उनकी  आदत है।

मुजरिमों  को   नहीं  है   डर   कोई,
ख़ौफ़  में  अब  फ़क़त अदालत है।

हमने ज़ुल्मत  को  रौशनी  न कहा,
उनको  हमसे  यही   शिकायत  है।

पूछ   लेते    हैं  ख़ैरियत जो  कभी,
दोस्तों    की    बड़ी    इनायत   है।

बात   करते    हैं,  फूल   झरते   हैं,
उनके लहजे में  क्या  नफ़ासत  है।

जंग  से   मसअले  का  हल  होगा,
ये   भरम   पालना    हिमाक़त  है।
    --- ©️ओंकार सिंह विवेक 

मुसल्लत ---  हावी, ग़ालिब

May 16, 2023

मातृ दिवस पर काव्यधारा का साहित्यिक आयोजन

आध्यात्मिक साहित्यिक संस्था रामपुर- उत्तर प्रदेश के बारे में पहले भी मैं कई ब्लॉग पोस्ट्स लिख चुका हूं।यह संस्था पिछले कई वर्ष से अपनी साहित्यिक गतिविधियों के माध्यम से हिंदी भाषा और कविता के संरक्षण,संवर्धन और विकास का कार्य कर रही है।
       संस्था ने अनवरत जारी अपने साहित्यिक क्रियाकलापों की कड़ी में  दिनांक १४-०५-२०२३ को अंतर्राष्ट्रीय मातृ दिवस के अवसर पर कवि सम्मेलन /साहित्यकार सम्मान/काव्य संकलन के लोकार्पण समारोह का रामपुर में भव्य आयोजन किया।

 कार्यक्रम में हिंदी की सेवा के लिए चौबीस काव्यकारों को उत्तरीय, सम्मान पत्र एवं माल्यार्पण द्वारा सम्मानित किया गया तथा "गीत गीतिका ग़ज़ल" काव्य संकलन का लोकार्पण भी किया गया।

 इस अवसर पर आयोजित कवि सम्मेलन में काव्यपाठ प्रस्तुत करते हुए  डॉ ० गीता मिश्रा 'गीत' ने देशभक्ति से ओतप्रोत रचना का पाठ किया -
"ओ! देशभक्त दे दे रक्त,
सींच राष्ट्र भूमि को ओ! आर्य पुत्र !"

ग़ज़लकार ओंकार सिंह 'विवेक' (रामपुर) ने वर्तमान राजनीति पर व्यंग्य करते हुए कहा ----
"लुत्फ़ क्या आयेगा शराफत में,
आप अब आ गये सियासत में ।"
सुबोध कुमार शर्मा 'शेरकोटी'  जी की प्रस्तुति -
"यह मेरी माँ का आँचल है,
जहाँ पर प्यार मिलता है ।"

   पुष्पा जोशी 'प्राकाम्य' ने मातृ शक्ति को समर्पित रचना प्रस्तुत की --  
"प्रबल सूर्य के तेज किरण सी है चमकीली माँ, 
माँ एक मूरत है प्यार और ममता की ।"

  कवि राम किशोर वर्मा ने माँ के प्रति अपने उद्गार कुछ यों व्यक्त किए --
"अपनी तो चिंता नहीं, बच्चों की हर बार ।
प्रभु से ही बस लगन थी, कर इनका उद्धार ।।"

  संस्था अध्यक्ष जितेन्द्र कमल आनंद ने  माँ को समर्पित गीत प्रस्तुत किया-
"माँ तो माँ ही होती है,
बच्चों का कल्मष धोती है ।
पूर्व सुलाए वह बच्चों को,
किंतु बाद में वह सोती है।"'
 
 प्रीति चौधरी (गजरौला) ने माँ को समर्पित रचना प्रस्तुत की --
"माँ की ममता प्यार सब,
दुनिया में अनमोल ।
कोई पाया है भला, उसे कभी क्या तोल ।।"
 
  राजीव 'प्रखर' (मुरादाबाद) ने कहा-
"जारी रखने के लिए, प्रेम भरे वह सत्र ।
चल दोनों मिलकर पढ़ें, आज पुराने पत्र ।"

  कमलेश्वर सिंह कमलेश वरिष्ठ कवि (फरीदपुर-बरेली) ने रचना प्रस्तुत की-
"भोर के उगते हुए सूरज,
तुम्हें मेरा नमन ।
न जाने कब कहाँ, 
जिंदगी की शाम हो जाए।'
  इनके अतिरिक्त सत्य पाल सिंह 'सजग', राम रतन यादव, कृष्ण कुमार पाठक, रश्मि चौधरी, राज बाला 'धैर्य', डॉ ० संजीव सारस्वत 'तपन' , फैसल मुमता, सुरेन्द्र अश्क रामपुरी, बलवीर सिंह, धीरेन्द्र सक्सेना, सोहन लाल भारती, महाराज किशोर 'महाराज', नयना कक्कड़ गुप्ता, उदय प्रकाश सक्सेना, शोभित गुप्ता, रमेश चन्द्र जैन 'सेठी', पंकज शर्मा, विवेक बादल बाजपुरी, शिव प्रकाश सक्सेना ने भी अपनी रचनाओं से श्रोताओं को मंत्र मुग्ध किये रखा ।
   अंत में संस्थापक-अध्यक्ष जितेन्द्र कमल आनंद ने सभी रचनाकारों की प्रशंसा करते हुए आभार ज्ञापित किया ।
   कार्यक्रम संचालन महासचिव राम किशोर वर्मा ने किया।
कार्यक्रम की समाचार पत्रों द्वारा सुंदर कवरेज की गई।
             ---- ओंकार सिंह विवेक 

 

May 12, 2023

प्रोत्साहन प्रतिसाद

प्रणाम मित्रो 🌹🌹🙏🙏



रचनाकर दिल्ली १ साहित्यिक पटल से साभार👎👎
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*रचनाकार दिल्ली 1*

*पंजीयन क्रमांक 2434/2018*

*एक कदम साहित्यिक उत्कृष्टता की ओर*

*संवेदना सृजन सम्मान के साथ*

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*पटल परिणाम*

दिनांक -- 9/5/2023

दिन -- मंगलवार
 
मिसरा -- कभी फूल पढ़ना कभी खार पढ़ना

विधा -- गजल

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*दैनिक सम्मान*
1- दैनिक सर्वश्रेष्ठ रचनाकार
आ० ओंकार सिंह विवेक जी

2 - दैनिक सर्वश्रेष्ठ समीक्षक
आ० धर्मराज देशराज जी

3 -- दैनिक सर्वश्रेष्ठ समीक्षक
आ० सरफराज हुसैन फराज जी

4 -- दैनिक सर्वश्रेष्ठ संचालक
आ० प्रभात पटेल जी


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सभी चयनित साहित्यसाधको को हार्दिक बधाई 
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*एक किरण विश्वास की*
*सबके साथ विकास की* 

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प्रशासक मंडल
रचनाकार

इस अनुशासित और स्तरीय साहित्यिक राष्ट्रीय पटल के बारे में पहले भी मैं ब्लॉग पोस्ट साझा कर चुका हूं। काव्य सृजन सीखने और सिखाने के लिए यह बहुत ही अच्छा पटल है।साहित्यकारों से मैं अनुरोध करूंगा कि इस पटल से जुड़कर अवश्य ही लाभान्वित हों। मै आभारी हूं मंच का कि यहां से मुझे अक्सर ही कभी समीक्षक के रूप में और कभी रचनाकार के रूप में प्रोत्साहन प्रतिसाद प्राप्त होता रहता है।
यदि सृजनकार को उसके रचना कर्म के लिए प्रोत्साहन/प्रशस्ति प्राप्त होती है तो उसमें नई ऊर्जा का संचार होने लगता है।उसे कुछ और अच्छा सृजन करने के दायित्व का बोध होने लगता है। सृजन में सुधार के लिए यह सिलसिला बना रहना चाहिए।सीखने और सिखाने की प्रक्रिया जीवन पर्यंत चलती है।हमें जूनियर और सीनियर के आधार पर कोई भेद या ईगो न रखते हुए जिससे जो भी ज्ञानवर्धक जानकारी मिले उसे आभार प्रकट करते हुए ग्रहण करते रहना चाहिए।किसी भी प्रकार की मानसिक संकीर्णता या ईगो हमारी प्रगति के मार्ग के बहुत बड़े बाधक होते हैं।कविता की जहां तक बात है यह व्यक्ति के ह्रदय से स्वत: प्रस्फुटित होने वाला भाव है।कविता को किसी पाठशाला में नहीं सिखाया था सकता।हां उसके शिल्प और कथ्य आदि को लेकर अवश्य कुछ राय/मशवरा दिया जा सकता है ताकि उसमें ओर निखार आ सके।कविता में शिल्प के साथ- साथ लक्षणा/व्यंजना/उपमा और प्रतीकों आदि का प्रयोग धीरे-धीरे अभ्यास और बड़ों के मार्गदर्शन से निखरता रहता है।परंतु कविता के मूल भाव स्वत: ही व्यक्ति के मन में आते हैं।
तो आईए इन्हीं कुछ बातों को ध्यान में रखकर हम अपने सृजन को निखारते हुए साहित्य की सेवा करते रहें।
         --- ओंकार सिंह विवेक 

May 6, 2023

रामायण कालीन पौराणिक स्थल बिठूर

प्रणाम मित्रो 🌹🌹🙏🙏

ऐतिहासिक और पौराणिक स्थलों की यात्रा के क्रम में आज  आपका परिचय रामायण काल से भी अधिक प्राचीन नगर बिठूर (ज़िला कानपुर)से करवाते हैं।
एक विवाह समारोह में सम्मिलित होने हेतु हाल ही में कानपुर जाना हुआ। कानपुर से कुछ किलोमीटर पहले एक नगर में प्रवेश करते समय यह बोर्ड देखा "पौराणिक नगरी बिठूर में आपका स्वागत है।" बोर्ड देखकर इस नगर के बारे में जानने की इच्छा तीव्र हुई।पता चला कि यह स्थान राजा ध्रुव और वाल्मीकि आश्रम जैसी महान और दुर्लभ पौराणिक विरासत का गवाह रहा है। मैंने निश्चय किया कि विवाह समारोह से लौटते समय इस पौराणिक नगर में रुककर इन महत्वपूर्ण स्थानों का दर्शन अवश्य करूंगा। 
वहां जो कुछ देखा और महसूस किया वह आपके साथ साझा कर रहा हूं और आपसे यह अनुरोध भी कर रहा हूं कि यदि कभी इधर से होकर निकलें तो इन पौराणिक धरोहरों को अवश्य देखें।मेरी तरह आपको भी ये सब चीज़ें देखकर गर्व की अनुभूति होगी।

प्राचीन मान्यता के अनुसार बिठूर के गंगा घाट पर ही ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी। माना जाता है कि ब्रह्मा जी ने अपनी खड़ाऊं की एक कील यहां गाड़ दी थी।पौराणिक मान्यता के अनुसार इस स्थान को प्रथ्वी का केंद्र बिंदु माना जाता है। इस मंदिर में ब्रह्म जी के चरणों की पूजा की जाती है।

        (गंगा घाट पर ब्रह्म्मवर्त तीर्थ)

बिठूर की भूमि वीरों का ठिकाना रही है इसलिए इसे बिठूर कहा जाता है। जहां कभी वीर योद्धा नाना राव पेशवा जी का प्रसिद्ध महल था वहां अब उनका स्मारक और संग्रहालय बना हुआ है। मराठा राजा पेशवा नाना राव जी ने बिठूर को अपनी राजधानी बनाया था। यहीं झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अपने बचपन में घुड़सवारी और सैन्य कौशल में दक्षता हासिल की थी।

बिठूर में ही रामायण कालीन वाल्मीकि आश्रम तथा लव-कुश आश्रम स्थित हैं।यहीं वाल्मीकि जी ने रामायण की रचना की थी। श्रीराम जी द्वारा सीता माता को त्यागने पर लक्ष्मण जी ने उनको यहीं छोड़ा था। इसी स्थान पर सीता माता ने लव-कुश को जन्म दिया था यहीं उनका लालन-पालन और शिक्षा-दीक्षा आदि हुई थी। यहां सीता जी की रसोई के नाम से भी एक स्थान संरक्षित किया गया है। माना जाता है कि सीता मैया इसी स्थान पर रसोई में लव-कुश तथा वाल्मीकि जी के लिए भोजन बनाती थीं।
श्री राम जी के अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े को भी लव और कुश द्वारा इसी क्षेत्र में रोका गया था।
बिठूर का वाल्मीकि आश्रम
 (वाल्मीकि आश्रम का भीतरी भाग)

 (वाल्मीकि आश्रम में हमें बाबा जी ने इस स्थान के महत्व के बारे में विस्तार से जानकारी दी) 

एक स्थान पर सीता कुंड का शिला पट लगा हुआ था।बाबा जी ने बताया कि इसी स्थान पर सीता जी ने पाताल लोक में प्रवेश किया था। इस स्थान पर मूल रामायण का कुछ अंश भी पत्थरों पर उकेरा गया है।
                       (सीता कुंड)

 मान्यता है कि  जिस स्थान पर खड़े होकर राजा उत्तानपाद के पुत्र ध्रुव ने तपस्या की थी, उसे ध्रुव टीला कहते हैं।इस स्थान पर अब कोई ख़ास प्राचीन अवशेष तो दिखाई नहीं देते परंतु यहां एक आश्रम अवश्य दिखाई दिया।टीले के नीचे की ओर हनुमान जी का प्राचीन मंदिर भी है जिसमें हनुमान जी तथा माता अंजनी की प्रतिमाएं हैं।

इस टीले और उसके आस-पास के स्थान का  बारीकी से निरीक्षण किया तो इस स्थान के पौराणिक महत्व का आभास हुआ।यहां पहुंचकर गर्व के साथ मानसिक शांति का भी अनुभव हुआ।
--- प्रस्तुत कर्ता : ओंकार सिंह विवेक 


May 1, 2023

आईए जानें अंबेडकर पार्क रामपुर के बारे में

प्रणाम मित्रो🌹🌹🙏🙏

पिछली कई ब्लॉग पोस्ट में मैंने आपको अपने नगर रामपुर 
(उo प्रo)के कई दर्शनीय स्थलों जैसे गांधी समाधि और चाकू चौराहा आदि से परिचित कराया है। इसी क्रम में आज बात करते हैं रामपुर के अंबेडकर पार्क की।

अंबेडकर पार्क दिल्ली लखनऊ राज मार्ग पर रामपुर के सिविल लाइंस क्षेत्र की प्राइम लोकेशन पर स्थित है।यहां से नगर के रेलवे स्टेशन और रोडवेज बस स्टैंड बहुत नज़दीक हैं।पार्क के सामने ही निरीक्षण भवन,बराबर में बाबा साहब भीमराव अंबेडकर संग्रहालय और पुस्तकालय स्थिति है।
पार्क में प्रवेश करते ही बाबा साहब की विशाल प्रतिमा के दर्शन होते हैं।बाबा साहब के व्यक्तित्व और कृतित्व से हम सब भली भांति परिचित हैं।आप एक महान चिंतक,समाज सुधारक और संविधान सभा के अध्यक्ष थे।भारत के संविधान के निर्माण में आपकी महती भूमिका रही।

 पार्क में भांति भांति के सुंदर पेड़ पौधे लगे हुए हैं जिनकी समय समय पर कटिंग करके सुंदर आकार दिया जाता है।पार्क में हर ओर हरियाली ही हरियाली दिखाई देती है।पार्क की पूरी लंबाई में किनारे किनारे घुमावदार नहर बनाई गई है जिसमें बत्तखें तैरती रहती हैं तथा बच्चों को बोटिंग आदि भी कराई जाती है।
आजकल नहर में पानी इतना नहीं है अत बोटिंग आदि नहीं होती है।पार्क के अंदर छोटी छोटी कुछ झोपड़ियां जैसी भी बनी हुई हैं जिनमें बेंचों पर लोग बैठकर सुकून का अनुभव करते हैं। पार्क के अंदर घुमावदार रास्ता बना हुआ है जिस पर लोग मॉर्निंग तथा इवनिंग वॉक करते हैं। पार्क के एक कोने में पत्थरों। को जोड़कर एक पहाड़ की टॉप जैसी आकृति बनाई गई हैं जिस पर चढ़कर लोग सेल्फी आदि लेते हैं।
पार्क में झूले आदि भी लगे हुए है जिनका बच्चे ख़ूब आनंद उठाते हैं। पार्क में भरपूर स्थान हैं सो अक्सर ही यहां सामाजिक और अन्य संगठन अपनी बैठकों आदि का आयोजन आदि भी करते रहते हैं।
स्थानीय लोगों के सैर सपाटे के लिए यह एक अच्छा स्थान है।
यदि आपका भी सड़क के रास्ते कभी इधर से गुज़रना हो तो कुछ देर रुककर यहां थकान उतार सकते हैं।
 ----- ओंकार सिंह विवेक 


April 25, 2023

मियाँ ! शायरी ख़ुद असरदार होगी

प्रणाम मित्रो 🌹🌹🙏🙏

 अस्वस्थ्य होने के कारण काफ़ी दिन से कोई पोस्ट साझा नहीं कर सका।आज एक पुरानी ग़ज़ल में कई संशोधन करके उसे नया रूप दिया है।आपकी प्रतिक्रिया हेतु यहां प्रस्तुत कर रहा हूं

ग़ज़ल--- ओंकार सिंह विवेक
©️
ज़रा  भी   अगर  फ़िक्र  में  धार  होगी,
मियाँ!शायरी   ख़ुद   असरदार   होगी।

सफ़र  का  सभी   लुत्फ़  जाता  रहेगा,
रह-ए-ज़िंदगी   ग़र   न   दुश्वार   होगी।

भले   ही   परेशान  हो  जाए  वो  कुछ,
मगर  हार  सच  को  न  स्वीकार होगी।
©️
मिलेंगे  नहीं   फ़स्ल  के   दाम  वाजिब,
किसानों पे  मौसम  की  भी मार होगी।

ख़ुशी से  भी है  रूबरू  होना  लाज़िम,
अगर  ज़िंदगी  ग़म  से  दो-चार  होगी।

जो   होगा   फ़रेबी, दग़ाबाज़   जितना,
सियासत में  उतनी  ही  जयकार होगी।

'विवेक' अपना ग़म ख़ुद उठाना पड़ेगा,
ये  दुनिया  न  हरगिज़  मददगार होगी।
            --  ©️ ओंकार सिंह विवेक 

April 20, 2023

साहित्यिक सरगर्मियां

दोस्तो नमस्कार 🌹🌹🙏🙏


आज केवल कुछ साहित्यिक सरगर्मियां ही आपके साथ साझा करने का मन है





April 17, 2023

कई दिन बाद

प्रणाम मित्रो 🌹🌹🙏🙏

रचनाकर्म में मैंने यह अनुभव किया है कि कभी-कभी शारदे की कृपा होती है तो अचानक ही बहुत सार्थक सृजन हो जाता है और कभी-कभी तमाम प्रयासों के बाद भी कई-कई दिन तक अच्छा सृजन नहीं हो पाता।साहित्यकार इन्हीं सब अनुभवों से गुज़रते हुए अपनी लेखनी को धार देने का प्रयत्न करता रहता है।कई साल पहले मुझसे एक ग़ज़ल हुई थी जिसके कई शेर मुझे भी बहुत पसंद हैं क्योंकि वे मेरे दिल के बहुत नज़दीक हैं।इस ग़ज़ल को मंचों और सोशल मीडिया तथा मेरे यूट्यूब चैनल पर साहित्य प्रेमियों ने बहुत पसंद किया।

उस ग़ज़ल को आपकी अदालत में प्रस्तुत कर रहा हूं। प्रतिक्रिया से अवश्य ही अवगत कराएं :
ग़ज़ल : ओंकार सिंह विवेक
 (सर्वाधिकार सुरक्षित) 
हँसते - हँसते   तय    रस्ते   पथरीले    करने   हैं,
 हमको    बाधाओं   के    तेवर    ढीले  करने  हैं।

 कैसे   कह  दूँ  बोझ   नहीं  अब  ज़िम्मेदारी  का,
 बेटी  के  भी  हाथ   अभी   तो   पीले   करने  हैं।

 ये   जो   बैठ  गए   हो  यादों   का  बक्सा  लेकर,
 क्या  फिर  तुमको  अपने   नैना   गीले  करने  हैं।
 
 फ़िक्र नहीं  है  आज  किसी  को  रूह सजाने की,
 सबको  एक  ही  धुन  है ,जिस्म सजीले करने हैं।

 होते   हैं  तो  हो  जाएँ   लोगों   के   दिल  घायल,
 उनको   तो   शब्दों   के   तीर   नुकीले  करने  हैं।
 
 तुम तो ख़ुद ही  मुँह  की  खाकर लौटे  हो हज़रत,
 कहते   थे   दुश्मन   के   तेवर   ढीले   करने   हैं।

जैसे  भी  संभव   हो  पाए , प्यार   की  धरती  से,
ध्वस्त  हमें  मिलकर   नफ़रत  के  टीले  करने  हैं।
           --- ओंकार सिंह विवेक 
               (सर्वाधिकार सुरक्षित)
      (एक साहित्यिक समारोह में सम्मान प्राप्त करते हुए)
                                  

April 12, 2023

जीत ही लेंगे बाज़ी वो हारी हुई

प्रणाम मित्रो 🌹🌹🙏🙏

हाल ही में रामपुर (उत्तर प्रदेश) की साहित्यिक संस्था काव्यधारा की उत्तराखंड इकाई की अध्यक्ष आदरणीया गीता मिश्रा गीत जी के आमंत्रण पर हल्द्वानी जाना हुआ। गीत जी और उनकी टीम के कुशल संयोजन में बहुत भव्य कवि सम्मेलन और साहित्यकार सम्मान समारोह संपन्न हुआ।कार्यक्रम में उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के काव्यकारों को सम्मानित किया गया तथा कवियों द्वारा समसामयिक विषयों को लेकर अपनी प्रभावशाली प्रस्तुतियां दी गईं।इस कार्यक्रम की एक विशेषता यह भी रही कि इसमें पड़ोसी मित्र देश नेपाल से आए दो कवियों हरीश जोशी जी और लक्ष्मी प्रसाद भट्ट जी ने भी काव्य पाठ किया।दोनों मेहमान कवियों को संस्था द्वारा सम्मानित भी किया गया।
                        (कार्यक्रम में मेरी प्रस्तुति)
इस कार्यक्रम पर विस्तार से मैं अगली पोस्ट में लिखूंगा।अभी इन मेहमान कवियों के बारे में कुछ बात करना चाहता हूं।नेपाली कवि मित्रों के व्यवहार में बहुत ही आत्मीयता थी। काफ़ी देर तक इन लोगों से हिंदी और नेपाली साहित्य को लेकर चर्चा हुई।मुझे यह कहने में ज़रा भी संकोच नहीं हो रहा है  कि उन लोगों का नेपाली भाषा में काव्य पाठ तो उच्च स्तरीय था ही वे लोग हिंदी भी हमसे कहीं अधिक अच्छी बोल रहे थे।

                   (काव्य पाठ करते हुए नेपाली कवि  )
दोनों नेपाली कवियों ने हिंदी और नेपाली दोनों ही भाषाओं में काव्य पाठ किया।नेपाली भाषा में किए गए काव्य पाठ का उन्होंने हिंदी अनुवाद भी प्रस्तुत किया।सभी उनकी प्रस्तुति और हिंदी के प्रति इतना अनुराग देखकर बहुत प्रसन्न हुए।उनमें से एक कवि मित्र ने बांसुरी बजाकर नेपाली भाषा के गीत की मधुर धुन भी प्रस्तुत की तथा बाद में उस गीत का सुमधुर पाठ भी किया।
मैंने अपने ग़ज़ल संग्रह "दर्द का अहसास" की प्रतियां भी इन मेहमान साहित्यकारों को भेंट कीं।

इस साहित्यिक आयोजन वृतांत के साथ मेरी नई ग़ज़ल का भी आनंद लीजिए :
ग़ज़ल--ओंकार सिंह विवेक
  दिनांक 12.04.2023
©️
सूचना  क्या  इलक्शन   की  जारी  हुई,
धुर  विरोधी  दलों   में   भी   यारी  हुई।

दीन-दुनिया से बिल्कुल ही अनजान थे,
घर  से  निकले तो कुछ जानकारी हुई।

आज  निर्धन  हुआ  और   निर्धन  यहाँ,
जेब   धनवान   की    और   भारी  हुई।
  
मुझ पे होगा भी  कैसे  बला  का  असर,
माँ   ने    मेरी   नज़र   है   उतारी   हुई।
©️
ये  अलग  बात,   गतिरोध   टूटा   नहीं,
बात    उनसे    निरंतर    हमारी     हुई।

रात की नींद और चैन दिन  का  छिना,
सर  पे  बनिए  की  इतनी  उधारी हुई।

हौसला  देखकर  लग  रहा  है 'विवेक',
जीत   ही   लेंगे  बाज़ी   वो  हारी  हुई।
©️ ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)





April 6, 2023

टूटा जब छप्पर होता है

प्रणाम मित्रो 🙏🙏

अचानक कोई वस्तु/घटना या चित्र मन को प्रभावित करता है तो कल्पना अनायास ही उड़ान भरने लगती है और कविता का जन्म हो जाता है।कुछ दिनों पहले नगर में एक झुग्गी बस्ती की तरफ़ से गुज़रना हुआ तो बड़ा मार्मिक दृश्य दिखाई दिया।किसी झुग्गी पर फटी हुई पन्नी पड़ी हुई थी,किसी पर टाट पड़ा हुआ था और किसी झुग्गी पर छत के नाम पर टूटा हुआ छप्पर पड़ा था।इन झुग्गियों में रहने वाले कैसे जीवन गुज़ारते होंगे यह समझते देर न लगी।टूटे छप्पर की छत ने जब मन को उद्वेलित किया तो एक शेर हो गया। काफ़ी दिन तक यह शेर तनहा ही रहा फिर धीरे-धीरे और कई विषयों पर शेर हुए और आख़िरकार ग़ज़ल मुकम्मल हुई जो आपकी प्रतिक्रिया हेतु प्रस्तुत है :

नई ग़ज़ल 
*******
हां,  जीवन   नश्वर   होता   है,
मौत का फिर भी डर होता है।

शेर   नहीं   होते   हफ़्तों  तक,
ऐसा   भी   अक्सर  होता  है।

बारिश  लगती   है  दुश्मन-सी,
टूटा   जब   छप्पर   होता   है।

उनका  लहजा  बस  यूँ  समझें,
जैसे   इक   नश्तर    होता   है।

जो   घर   के    आदाब  चलेंगे,
दफ़्तर   कोई    घर   होता   है।

'कोरोना'  के  डर  से  अब  तो,
घर   में   ही   दफ़्तर  होता  है।

देख लिया अब सबने,क्या-क्या-
संसद    के    अंदर    होता   है।
    --- ©️ओंकार सिंह विवेक

April 3, 2023

अखिल भारतीय काव्यधारा की मासिक काव्य गोष्ठी


काव्यधारा की मासिक काव्य गोष्ठी
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कविता जीवन से जुड़ी हुई चीज़ है।कविता और जीवन के अंतर्संबंध को इसी बात से समझा जा सकता है कि कविता में भी लय होती है और जीवन में भी।कविता युगों-युगों से समाज के यथार्थ का चित्रण करके उसे दिशा देने का काम करती आ रही है। हम सभी जानते हैं कि भारत को अंग्रेज़ों से आज़ाद कराने में भी कवियों और पत्रकारों के क्रांतिकारी विचारों का बहुत बड़ा योगदान रहा। क्रांतिकारी ख़बरों और कविताओं को पढ़कर लोगों के दिल में देशप्रेम का जो जज़्बा जगा उसने अंग्रेज़ों की सत्ता को उखाड़ फेंकने में अहम रोल अदा किया।आज भी क़लमकार कविता के माध्यम से अपनी-अपनी क्षमता के अनुसार समाज को जागृत करने का काम निरंतर कर रहे है। अनवरत ऑनलाइन तथा ऑफलाइन  साहित्यिक आयोजन हो रहे हैं जो अच्छा संकेत है।
रामपुर (उत्तर प्रदेश) की साहित्यिक संस्था काव्यधारा एक ऐसी ही संस्था है जो निरंतर अपने साहित्यिक आयोजनों से साहित्य और समाज की सेवा द्वारा मातृभाषा हिंदी को समृद्ध करती आ रही है।
रविवार दिनांक २ अप्रैल,२०२३ को संस्था के अध्यक्ष जितेन्द्र कमल आनंद जी के आवास पर संस्था की मासिक काव्य गोष्ठी आयोजित की गई जिसमें कवियों ने समसामयिक विषयों पर अपनी मौलिक रचनाओं का पाठ करके श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया।कार्यक्रम में कई नए रचनाकारों ने भी प्रस्तुति देकर अपने अंदर विद्यमान साहित्यिक क्षमताओं का परिचय दिया।
कवयित्री संध्या निगम "भूषण "के सौजन्य से आयोजित काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता संस्था के संस्थापक अध्यक्ष जितेंद्र कमल आनंद ने की। कार्यक्रम में ओंकार सिंह विवेक मुख्य अतिथि तथा रश्मि चौधरी विशिष्ट अतिथि के तौर पर उपस्थित रहे।संध्या निगम भूषण ने सरस्वती वंदना से गोष्ठी का शुभारंभ किया--
  लगा लो चरणों में ध्यान अपना, 
‌  वो‌ मात वीणा बजा रही है। 

ग़ज़लकार ओंकार सिंह विवेक ने कहा--
   मुस्काते हैं असली भाव छुपाकर चेहरे के,
   उन लोगों  का हँसना-मुस्काना बेमानी है।
   
   कवि राम किशोर वर्मा ने कहा--
यू- टयूब जब खोलिए, तब सुनियेगा‌ आप। 
किसने कैसा क्या लिखा, किसका कैसा भाव।।

‌शिव प्रकाश सक्सेना कड़क ने कहा--
  कैसी ऋतु आई है तात! 
  कभी जाड़ा तो कभी बरसात!! 

शायर अश्क रामपुरी ने अपने विचार कुछ यों अभिव्यक्त किए --
ख़लाओं में बिखरने लग गए हैं,
मेरे ग़म अब  सँवरने लग गए हैं।
  
 अध्यक्ष जितेंद्र कमल आनंद ने  गीतिका सुनाई--
  प्रभु की चाहत से यह चंदन जैसा मन हो जायेगा,
जितना चाहो उतना खर्चो, ऐसा धन हो जायेगा।
  इन रचनाकारों के अतिरिक्त कवयित्री रश्मि चौधरी व प्रियंका सक्सेना, राम प्रसाद आदि ने भी अपनी रचनाओं से श्रोताओं को आत्मविभोर किया। 
अंत में अध्यक्ष जितेंद्र कमल आनंद ने सभी का हार्दिक आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का संचालन कवि रामकिशोर वर्मा द्वारा किया गया।
इस कार्यक्रम की स्थानीय समाचार पत्रों द्वारा अच्छी कवरेज की गई।




अपनी ग़ज़ल के मतले के साथ इस ब्लॉग पोस्ट को समाप्त करता हूं :
  तीर  से  मतलब न  कुछ तलवार से,
  हमको मतलब है क़लम की धार से।
 --- ओंकार सिंह विवेक
ब्लॉग पर जाकर कमेंट्स के माध्यम से अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराएंगे तो हमें प्रसन्नता होगी 🌹🌹🙏🙏

ग़ज़ल कार/समीक्षक/कॉन्टेंट राइटर/ ब्लॉगर 

March 31, 2023

विश्व प्रसिद्ध रामपुरी चाकू (चाकू चौराहा)

मित्रो प्रणाम 🌹🌹🙏🙏

"जानी यह रामपुरी है, लग जाए तो ख़ून निकल आता है" आपने मशहूर अभिनेता स्मृतिशेष राजकुमार साहब को फिल्म में यह डायलॉग बोलते हुए ज़रूर सुना होगा।जब वह अपने ख़ास स्टाइल में यह डायलॉग बोला करते थे तो पिक्चर हॉल में तालियों की गड़गड़ाहट और सीटियों के अलावा कुछ सुनाई नहीं देता था। प्रसंगवश आज में उसी रामपुरी चाकू के बारे में आपसे कुछ बात करना चाहता हूं।
संयोग से मैं भी उसी रामपुर शहर (उत्तर प्रदेश) का निवासी हूं जिस शहर के चाकू की बात हो रही है। नवाबी दौर में रामपुरी चाकू उद्योग बहुत विकसित हुआ करता था।यहां एक चाकू बाज़ार भी है।रामपुर के बने चाकू दुनिया भर में पहचाने  जाते थे।इस उद्योग में अच्छे खासे लोगों को रोज़गार मिला हुआ था।समय और परिस्थितियां बदलने के साथ इस कारोबार में मंदी आती गई। कुछ तो काग़ज़ी खानापूरी जैसे लाइसेंस आदि मिलने में दिक्कत और कुछ मांग में कमी के चलते रामपुर का यह विश्व प्रसिद्ध उद्योग दम तोड़ने लगा। 
नए सिरे से रामपुरी चाकू को पहचान दिलाने के लिए शासन और प्रशासन ने फिर से इस उद्योग को प्रोत्साहित करना प्रारंभ किया है जिससे चाकू उद्योग से जुड़े लोगों में एक नई आस जगी है।
इसी कड़ी में रामपुरी चाकू के प्रचार-प्रसार के लिए रामपुर शहर की उत्तरी सीमा पर एक चौराहे का नाम "चाकू चौराहा" रखा गया है। नैनीताल रोड रामपुर पर 20 मार्च,2023 को इस चाकू चौराहे का भव्य लोकार्पण हुआ। चाकू तो आपने बहुत देखे होंगे पर इतना बड़ा चाकू कभी नहीं देखा होगा जितना बड़ा चाकू इस चौराहे पर लगाया गया है।यह चाकू 6.10 मीटर लंबा और लगभग 3 फिट चौड़ा है। इसके दुनिया का सबसे बड़ा चाकू होने का दावा भी किया जा रहा है।चाकू चौराहे की कुल लागत लगभग 52.52 लाख रुपए है जिसमें अकेले इस चाकू की लागत ही लगभग्र 29 लाख रुपए है।निश्चित तौर पर यह चौराहा पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बनेगा।इस चाकू चौराहे का निर्माण रामपुर विकास प्राधिकरण द्वारा कराया गया है। यहां स्थापित किया गया चाकू बहुत सुंदर है और इसे बनाने में लगभग आठ माह का समय लगा है। चौराहे पर लगे चाकू को पीतल,स्टील और लोहा धातुओं से बनाया गया है तथा इसका भार लगभग 8.5 क्विंटल है।
रामपुर के चाकू चौराहे से पर्यटन स्थल नैनीताल की दूरी लगभग 100 किलोमीटर है और झुमके वाले शहर बरेली की दूरी लगभग 60 किलोमीटर है।यहां से विश्व प्रसिद्ध ब्रास सिटी मुरादाबाद लगभग 30 किलोमीटर है तथा भारत की राजधानी दिल्ली की दूरी लगभग 185 किलोमीटर है।
यहां लोगों की ख़ूब भीड़ लग रही है।बच्चे,वृद्ध और जवान सभी विश्व के सबसे बड़े चाकू को देखने के लिए जुट रहे हैं और चाकू के साथ अपनी सेल्फी ले रहे हैं जिससे चौराहे की रौनक देखते ही बन रही है।हम भी श्रीमती जी के साथ इसे देखने पहुंचे तो इसके साथ फोटो खिंचवाने का लोभ संवरण न कर सके।

आपका भी जब कभी इधर से गुज़रना हो या नैनीताल जाना हो तो इस चौराहे पर रुककर रामपुरी चाकू की सुंदरता को अवश्य निहारिए और हां रामपुरी के साथ  सेल्फी लेना मत भूलिए। 
मुझे विश्वास है कि सेल्फी लेते समय आपको राजकुमार साहब का यह डायलॉग ज़रूर याद आ जाएगा "जानी यह रामपुरी है, लग जाए तो------------ "
           ओंकार सिंह विवेक 


March 25, 2023

कौन पूछेगा हमें दरबार में ???????

दोस्तो नमस्कार 🌹🌹🙏🙏
कई दिन बाद मेरी एक बिल्कुल ताज़ा ग़ज़ल हाज़िर है। आप सभी सम्मानितों की प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा

ग़ज़ल : ओंकार सिंह विवेक 
 ©️ 
आजिज़ी  तो   है  नहीं  गुफ़्तार  में,
कौन    पूछेगा    हमें   दरबार    में।

 नफ़्सियाती   नुक़्स   है  दो-चार में,
 वरना है  सबका  अक़ीदा  प्यार में।

संग  रखता  है  उसे  जो  ये  गुलाब,
कुछ तो देखा होगा आख़िर ख़ार में।

बारहा  रोता   है   दिल  ये  सोचकर,
वन   कटेगा   शह्र   के   विस्तार  में।
©️ 
पूछने    आए    थे    मेरी    ख़ैरियत,
दे   गए   ग़म   और  वो   उपहार  में।

मीर, ग़ालिब, ज़ौक़  सबका  शुक्रिया,
रंग  क्या-क्या  भर  गए  अशआर में।

बैठा  है  परदेस  में   लख़्त-ए-जिगर,
क्या  ख़ुशी  माँ  को  मिले त्योहार में।
           -  ©️ ओंकार सिंह विवेक  
आजिज़ी ------  लाचारी,दीनता
गुफ़्तार ----         बोली,   बातचीत
नफ़्सियाती नुक़्स --- मानसिक कमी 
अक़ीदा    -----         श्रद्धा,भरोसा
ख़ार      -------.      कांटा 
बारहा   ----            बार-बार 
अशआर    -----      शेर का बहुवचन
लख़्त-ए-जिगर ----- जिगर का टुकड़ा अर्थात बेटा
 

 Onkar Singh Vivek
(All rights reserved)






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