February 23, 2020

निवाले

सूखे हुए निवाले


ग़ज़ल-ओंकार सिंह विवेक
काम    हमारे    रोज़   उन्होंने   अय्यारी   से   टाले   थे,
जिनसे   रक्खी   आस   कहाँ  वो  यार भरोसे वाले  थे।

जब   मोती   पाने   के  सपने   इन  आँखों  में पाले  थे,
गहरे   जाकर  नदिया , सागर  हमने  ख़ूब  खँगाले  थे।

जिनकी वजह से सबको मयस्सर आज यहाँ चुपड़ी रोटी,
उनके   हाथों    में   देखा   तो   सूखे   चंद  निवाले   थे।

दाद  मिली  महफ़िल  में  थोड़ी  तो  ऐसा महसूस हुआ,
ग़ज़लों  में  हमने  भी  शायद   अच्छे  शेर  निकाले  थे।

जंग   भले   ही  जीती हमने  पर यह भी महसूस किया,
जंग   जो  हारे  थे  हमसे  वे  भी  सब  हिम्मत वाले थे।

                                  --------ओंकार सिंह विवेक
                                         (सर्वाधिकार सुरक्षित)         

February 22, 2020

काश!हमारा बचपन लौटे

यह मेरे छोटे भाई एडवोकेट आर.पी.एस.सैनी की जुड़वाँ बेटियों का छाया चित्र है जो मुझे परिवार में किसी अवसर पर या अनायास ही लिए गए छाया चित्रों में सबसे अधिक प्रिय है।अपना पसंदीदा होने के कारण इस फोटो को मैंने आठ वर्ष पूर्व फेसबुक पर साझा किया था।आज फेसबुक ने स्मरण कराया  तो इस फोटो के साथ जुड़ी भावनाओं के साथ कुछ लिख कर फिर से इसे साझा करने का मन हुआ।
इस छाया चित्र में बच्चियों के मुख पर खिली मुस्कान,मासूमियत और शरारत में जो निर्दोषता और स्वाभाविकता  छुपी हुई है उससे बहुत कुछ सीखा जा सकता है।हम जैसे जैसे बड़े होते जाते हैं वैसे वैसे स्वाभाविकता और मासूमियत जैसे आकर्षक भाव हमारे अंदर और बाहर  से कम होते जाते हैं।हम चेहरे और आंतरिक भावों से अधिक से अधिक बनावटी होते जाते हैं,यहाँ तक की फोटो खिंचवाते वक़्त भी हमारे चेहरों पर स्वाभाविक भाव नहीं झलक पाते।काश!हम बच्चों जैसा स्वाभाविक व्यवहार करना सीख  सकें जिसमें किसी से बात करने से पहले सौ सौ बार यह न सोचना पड़े की अपने स्वार्थ और द्वेष को साधने के लिए हमें क्या बात करनी है और क्या नहीं।हमें किसी से बात करते समय चेहरे पर झूठी मुस्कान या बनावटी ग़ुस्सा न सजाना पड़े।चेहरे पर ग़ुस्से या ख़ुशी का जो भी भाव हो वह स्वाभाविक हो।इस ख़ूबी  के लिए हमें फिर से बच्चों से ही बहुत कुछ सीखने की ज़रूरत है।बच्चे अगर रूठते हैं तो भी नेचुरल रूप से और अगर खिलखिलाते हैं और ख़ुश होते हैं तो भी नेचुरल रूप से  ही। फिर हम बड़ों को क्या हो जाता है जो हम धीरे धीरे मासूमियत,निष्कलुषता और निर्दोषता से दूर होते चले जाते हैं?
सोचिए----सोचिए---सोचिए   और ख़ूब सोचिए कि हम कहने को तो बड़े होते जा  रहे हैं पर सोच और स्वभाव में आख़िर क्यों इतने छोटे होते चले जा रहे हैं?
ये मासूम बेटियाँ अब बड़ी होकर  लगभग 13 वर्ष की हो चुकी हैं तथा 7th स्टैंडर्ड में पढ़ रही हैं पर इनकी इस तस्वीर नें मुझे आज यह सब लिखने को प्रेरित किया जिसे आप सब के साथ साझा कर रहा हूँ।
          ----- ओंकार सिंह विवेक
                सर्वाधिकार सुरक्षित

December 30, 2019

अटल रही पहचान




कुछ दोहे अटल जी
 की स्मृति में
नैतिक मूल्यों का  किया, सदा मान सम्मान।
दिया अटल जी ने नहीं,ओछा कभी बयान।।

विश्व मंच  पर  शान से , अपना  सीना तान।
अटल बिहारी ने  किया,हिंदी का यश गान।।

राजनीति   में   आपने , ऐसे   किए  कमाल।
जिनकी देते आज भी, जग में लोग मिसाल।।

सारा जग करता रहे, शत शत  तुम्हें  प्रणाम।
अटल बिहारी जी रहे, अमर  तुम्हारा  नाम।।
                     ----------ओंकार सिंह विवेक
                                 सर्वाधिकार सुरक्षित

December 29, 2019

ठिठुरन से बेहाल

                          चित्र:गूगल से साभार

December 13, 2019

अपनी कहन

चंद अशआर---
शिकायत कुछ नहीं है ज़िन्दगी  से,
मिला जितना मुझे हूँ ख़ुश उसी से।

ज़रा    कीजे   अँधेरों    से   लड़ाई,
तभी  होगा  तआरुफ़   रौशनी   से।

न  छोड़ेगा  जो उम्मीदों  का दामन,
वो होगा आशना इक दिन ख़ुशी से।

रखें  उजला  सदा किरदार अपना,
सबक़  लेंगे ये बच्चे  आप   ही से।

उसे  अफ़सोस  है अपने किए पर,
पता चलता है आँखों की नमी से।
          -------ओंकार सिंह विवेक
                   रामपुर-उ0प्र0
              मोबाइल 9897214710
              (सर्वाधिकार सुरक्षित)
शीघ्र प्रकाशित होने वाले ग़ज़ल संग्रह"अहसास"से


December 4, 2019

आख़िर कब तक ???????

आख़िर कब तक?????

हैदराबाद मैं महिला पशु चिकित्सक के साथ हुई मानवता को शर्मसार करने वाली घटना के बाद फिर यही सवाल लोगों के दिमाग़ में आ रहा है की आख़िर  यह कब तक---आख़िर यह कब तक-----????।लेकिन  इस  प्रश्न का सही  जवाब अगर  किसी के पास भी नहीं है तो इसका एक बहुत बड़ा कारण यह है कि परिवार,समाज और शासन के स्तर पर  ऐसी  घटनाओं को रोकने के लिए दृढ़ इच्छा  शक्ति का  अभाव  है। यदि  दृढ़ इच्छा शक्ति दिखाते  हुए  सार्थक  और  सुसंगत  प्रयत्न  एवं  उपाय किए जायें  तो कोई  कारण नहीं कि ऐसे घटनाओं को नियंत्रित न किया जा सके।यदि  परिवार के स्तर पर प्रारम्भ से ही बच्चों को नैतिकता ,सभ्य-संतुलित  आचरण और संस्कारों के  महत्व   को  समझाया  जाए  तो  निश्चित  ही  अमर्यादित आचरण एवम  कृत्यों पर अंकुश लगेगा।सत्संग और प्रवचनों में  जाना  तथा  अच्छे  साहित्य  का  पठन  पाठन  भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।अकेले सरकार या किसी  प्रभावित परिवार का ही  इस तरह की घटनाओं को रोकने का दायित्व  नहीं  हो  सकता । इसमें  समाज  की  भी बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी बनती है ।अक्सर देखने में  आता है  कि कुछ लोग अचानक ही अपराधियों की पैरवी और बचाव में आ खड़े होते हैं।ऐसे में पीड़ित और उसके परिवार पर क्या गुज़रती है कोई नहीं  समझता । ऐसी  घटनाओं  के  नियंत्रण हेतु सबसे बड़ा दायित्व शासन का है जिस पर आज फिर से चिंतन और मनन की ज़रूरत है।जिस तरह से इस प्रकार की घटनाओं में लिप्त लोगों  को  सज़ा  देने  में देरी की जाती है वह किसी भी तरह उचित  नहीं कही जा सकती।अपराधियों के ट्रायल इतने लंबे खिंचते हैं कि लोगों की अपराधियों के प्रति सहानुभूति उमड़ने लगती है और अपराध करने वालों के हौसले जस के तस बने रहते हैं।  जघन्य अपराधों के मामलों में विलंब से दिया जाने वाला  फ़ैसला  किसी  भी  तरह  न्याय  संगत नहीं  कहा जा सकता।अपराधियों के हाथों किसी मासूम की जान तो जा ही चुकी  होती  है परंतु बाद में  न्याय प्रक्रिया के लंबा खिंचने से पीड़ित के परिवारों का तिल तिल  मरना कितनी बड़ी त्रासदी है इस पर विचार करने की ज़रूरत है। सरकार को आज इस सन्दर्भ में   क़ानूनों की  समीक्षा  करने  की ज़रूरत  है। कोई त्वरित  न्याय प्रणाली और सख़्त क़ानूनअमल  में लाना बहुत ज़रूरी है वरना ऐसी वीभत्स घटनाओं पर लगाम नहीं लगाई जा सकती।इस तरह की घटनाओं के लिए कुछ मुस्लिम देशों में लागू सख़्त क़ानूनों की महत्ता को यहाँ अनदेखा नहीं किया जा सकता।
चित्र:गूगल से साभार
इन देशों में इस  प्रकार के अमानवीय और घृणित कृत्य करने वालों को सरेआम फाँसी देना,गोली मारना और  इसी प्रकार के  अन्य  कठोर  प्रावधान हैं  जिससे  लोगों में यह भय पैदा होता  है कि इंसानियत को शर्मसार करने वाले  कृत्य करने पर उनका  क्या अंजाम होगा। इन देशों  में  ऐसे सख़्त क़ानूनों की वजह से इस प्रकार के अपराध लगभग ना के  बराबर ही होते हैं। सरकार की तरफ से एक पहल यह भी    की जा सकती है कि देश के सभी नागरिकों के लिए निःशुल्क  कम से कम एक घंटे की नैतिक शिक्षा की कक्षा में जाने की व्यवस्था की जाए।इन कक्षाओं में  हर नागरिक का  जाना अनिवार्य किया जाना चाहिए। यह  व्यवस्था  देश  के  प्रत्येक नागरिक के मानसिक स्वास्थ्य को सुधारने में बड़ी भूमिका निभा सकती है।अगर देश के प्रत्येक नागरिक का मानसिक और आत्मिक स्वास्थ्य ठीक रहेगा तो निश्चित  ही इस प्रकार  के अमानवीय कृत्यों में कमी आयेगी।अंत में अपने एक दोहे के साथ मैं अपनी बात समाप्त करता हूँ

नैतिक  मूल्यों  का  पतन, क़ानूनों  की  खोट।
क्यों अब ये करते नहीं, सबके दिल पर चोट।।
                           -------ओंकार सिंह विवेक

November 26, 2019

सूखे हुए निवाले


ग़ज़ल-ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल 9897214710
काम   हमारे   रोज़  उन्होंने   अय्यारी   से  टाले   थे,
जिनसे  रक्खी  आस  कहाँ  वो  यार भरोसे वाले थे।

जब   मोती   पाने  के  सपने   इन  आँखों  में  पाले थे,
गहरे   जाकर  नदिया , सागर  हमने  ख़ूब  खँगाले  थे।

जिनकी वजह से सबको मयस्सर आज यहाँ चुपड़ी रोटी,
उनके   हाथों    में    देखा   तो   सूखे   चंद  निवाले  थे।

दाद  मिली  महफ़िल में  थोड़ी  तो  ऐसा  महसूस हुआ,
ग़ज़लों  में  हमने  भी   शायद  अच्छे  शेर  निकाले  थे।

जंग  भले  ही  जीती हमने पर यह भी महसूस किया,
जंग  जो  हारे  थे  हमसे  वे  भी सब हिम्मत वाले थे।
                                  --------ओंकार सिंह विवेक
                                         (सर्वाधिकार सुरक्षित)         


November 22, 2019

कभी सोचा नहीं


ग़ज़ल---ओंकार सिंह विवेक
आप  में  ही  आगे  बढ़ने  का  ज़रा  जज़्बा  नहीं,
बेसबब   कहते   हो ,  कोई   रासता   देता   नहीं।

ख़्वाब  तो  बेताब   थे  आँखें   सजाने   के  लिए,
मैं  ही  लेकिन  दो  घड़ी  को  चैन  से सोया नहीं।

हो गए क्यों लीक पर चलकर ही तुम भी मुत्मइन,
क्यों   नए   रस्ते   बनाने   का  कभी  सोचा  नहीं।

फ़र्क  है  गर  कोई  तो  है  आदमी  की  सोच का,
काम   कोई   भी  कभी  छोटा  बड़ा  होता  नहीं।

आज  सब राज़ी हैं तो तुम यह भरम मत पालना,
तुमसे  कल  को  भी  यहाँ कोई ख़फ़ा होगा नहीं।
                                 -----ओंकार सिंह विवेक
                               
    (सर्वाधिकार सुरक्षित)

November 20, 2019

कुछ अपना अंदाज़

कुछ  दोहे
हर  पल  की  गंभीरता ,   कर   देगी   बीमार।
हँसी ठिठोली भी कभी, किया करो तुम यार।।

 उठते  हैं  उनके  लिए , सदा  दुआ  में  हाथ।
 जो  ख़ुशियाँ  हैं बाँटते, दीन  हीन  के साथ।।

अपनी  क्षमता  का किया , जब  पूरा उपयोग।
पहुँच  गए  तब  अर्श पर , यहाँ फ़र्श से लोग।।

मन  बहलाने  के  सभी,  साधन जिनके पास।
उनको  ही  देखा   गया, मन  से बड़ा उदास।।

यों  तो  सबसे  तेज़ थी ,  उसकी  ही  रफ़्तार।
मगर  संतुलन  के बिना, दौड़  गया वह हार।।

अनुशासन में बाँध ली, जिसने  मन की डोर।
उसे सफलता का मिला, बड़ा  सुहाना भोर।।
                      ---------ओंकार सिंह विवेक
                             (सर्वाधिकार सुरक्षित)

November 10, 2019

मन नहीं है

ग़ज़ल-ओंकार सिंह विवेक
अगरचे  उनसे कुछ अनबन नहीं है,
मिलें  उनसे ,ये फिर भी मन नहीं है।

समझते  हो  इसे जितना सरल तुम,
सरल  इतना भी यह जीवन नहीं है।

बताओ  झूठ  यह  बोलोगे कब तक,
कि तुमको कोई भी उलझन नहीं है।

हैं  क़ायम आपसी रिश्ते तो अब भी,
मगर   इनमें  वो  अपनापन  नहीं है।

बढ़ाता है  ये मेरे फ़िक्र-ओ-फ़न को,
बुरा हरगिज़ सुख़न का फ़न नहीं है।

तो  फिर  यह  फैसलों  में  देर कैसी,
विचारों  में  अगर  भटकन  नहीं  है।
          -----------ओंकार सिंह विवेक

November 4, 2019

मन के भाव



दोहे
💐💐💐💐💐💐💐💐
चिन्तन का जब भी हुआ,मन में तेज़ बहाव।
आसानी से ढल गए , कविता में सब भाव।।
💐💐💐💐💐💐💐💐
यह अपनों का साथ है,यह अपनों का प्यार।
जो जीवन में दे रहा, मुझको  ख़ुशी अपार।।
💐💐💐💐💐💐💐💐
                      --------ओंकार सिंह विवेक
                             (सर्वाधिकार सुरक्षित)

November 2, 2019

फूल और काँटे


यहाँ सफ़र सबका किया, काँटों ने प्रतिकूल।
नहीं  किसी  को राह में,मिले फूल ही फूल।।
                       -------ओंकार सिंह विवेक
                            (सर्वाधिकार सुरक्षित)
               

October 31, 2019

नेकियाँ


ग़ज़ल-ओंकार  सिंह विवेक
मोबाइल 9897214710
किसी  के  ग़म को  हमें अपना ग़म बनाने में,
बड़ा    सुकून   मिला   नेकियाँ   कमाने   में।

उसी  का  हाथ  था  मेरी  शिकस्त  के  पीछे,
लगा  रहा  में  जिसे  रात - दिन  जिताने  में।

शदीद  दर्द  -  घुटन  -  रंज   और   नाकामी,
इन्हीं   से   जूझना   हैं   ज़िन्दगी   चलाने  में।

नहीं  है  आज  किसी को  भी रूह की चिन्ता,
लगे  हैं  लोग  फ़क़त  जिस्म  को  सजाने  में।

किसी की छीन ली रोज़ी, किसी का हक़ मारा,
लगे   रहे   वो   मुसलसल   बदी   कमाने   में।

कभी  था  नाज़  हमें  जिन  हसीन रिश्तों  पर,
उन्हीं   को   तोड़   दिया  आज  आज़माने  में।
                       --------- ओंकार सिंह विवेक
                             (सर्वाधिकार सुरक्षित)

October 27, 2019

दीवाली

 


अन्न  उगाने  वालों  के  ही ,  संमुख  है  रीती थाली,
लेकिन शासक बता रहे हैं, भारत  में  है  ख़ुशहाली।
मन के भीतर तमस छुपाकर, लोग जलाते हैं दीपक,
समझ नहीं आता है कुछ भी , है यह कैसी दीवाली।
                                --------ओंकार सिंह विवेक
                                       (सर्वाधिकार सुरक्षित)

October 26, 2019

दीपावली

 

     दोहे : दीपावली

खील-बताशे-फुलझड़ी  , दीपों  सजी  क़तार।
मिलती इनको देखकर,मन को ख़ुशी अपार।।

दीवाली   के   दीप  हों ,  या   होली  के  रंग।
इनका आकर्षण तभी,जब हों प्रियतम संग।।

हो  जाये   संसार  में ,   निर्धन  भी  धनवान।
लक्ष्मी  माता दीजिए  , कुछ  ऐसा  वरदान।।

हो  जाये    संसार  में ,  अँधियारे   की   हार।
कर  दे  यह  दीपावली,  उजियारा  हर द्वार।।

निर्धन को  देें वस्त्र-धन , खील  और मिष्ठान।
उसके मुख पर भी सजे, दीपों  सी मुस्कान।।                  -
                          -----ओंकार सिंह विवेक
                              (सर्वाधिकार सुरक्षित)
                       चित्र:गूगल से साभार

October 17, 2019

करवा चौथ



         

                     चित्र:गूगल से साभार
दोहे:करवा चौथ
💥
पति की  लम्बी उम्र की  ,  मन में इच्छा धार।
पत्नी करवा  चौथ का , व्रत रखती हर बार।।
💥
छलनी  में  से चाँद का  ,  करने  को   दीदार।
छत पर सभी सुहागिनें ,नभ को रहीं निहार।।
💥
निर्जल व्रत  की  देखिए , महिमा  अपरंपार ।
पति-पत्नी में बढ़ रहा , सतत आपसी प्यार।।
💥
घर  की  सभी सुहागिनें ,  कर सोलह शृंगार।
मिलजुल करवा चौथ का ,मना रहीं त्योहार।।
💥
पति भी पत्नी के लिए , रखे  अगर  उपवास।
तो  दोनों  में प्यार का  ,  और  बढ़े एहसास।।                   
💥
                      --------ओंकार सिंह विवेक
                             (सर्वाधिकार सुरक्षित)


October 13, 2019

कवि गोष्ठी व शेरी नशिस्त

आज दिनाँक13 अक्टूबर,2019 को शायर इफ़्तेख़ार ताहिर के पीला तालाब स्थिति आवास पर गंगा जमुनी तहज़ीब को रेखांकित करती कवि गोष्ठी  व शेरी नशिस्त का आयोजन पल्लव काव्य मंच के तत्वावधान में किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ शमा रौशन करने के उपरांत शायर कँवल नोमानी की नात और शिव कुमार चंदन की सरस्वती वंदना से हुआ।
 सभी कवियों और शायरों ने वर्तमान सामाजिक विसंगतियों,आपसी प्रेम और भाईचारे तथा मानव मूल्यों के निरंतर होते क्षरण एवं देशप्रेम आदि पर अपनी प्रभावशाली रचनाओं का पाठ करके कार्यक्रम को जीवंतता प्रदान की।कार्यक्रम में जिन शायरों और कवियों ने रचना पाठ किया उनके नाम इस प्रकार हैं:
ओंकार सिंह विवेक, मेज़बान शायर इफ़्तेख़ार ताहिर,शिव कुमार चंदन,डॉक्टर रघुवीर शरण शर्मा,सचिन सिंह, कँवल नोमानी तथा आले अहमद सुरूर व अशफ़ाक़ ज़ैदी।कार्यक्रम की सदारत डॉक्टर रघुवीर शरण शर्मा तथा संचालन शिव कुमार शर्मा चंदन द्वारा किया गया।

October 11, 2019

आसमान पर

ग़ज़ल-ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल9897214710
है  आदमी  का  इतना  दख़ल आसमान पर,
जाने   से   डर   रहे   हैं  परिन्दे  उड़ान  पर।

बदलें  हैं लोग रोज़  ही जब बेझिझक बयाँ,
फिर कैसे हो यक़ीन किसी की ज़ुबान पर।

उस  शख़्स  ने छुआ है  बुलन्दी का जो निशाँ,
पहुँचा नहीं  है कोई  अभी  उस  निशान पर।

मछली  की  आँख  ख्वाब  में  ही भेदता रहा,
रक्खा  कभी  न तीर  को  उसने कमान पर।

बस्ती  के  आम    लोग  ही  सैलाब  में घिरे,
बैठे  रहे  जो  ख़ास  थे  ऊँची  मचान   पर।
                            ---ओंकार सिंह विवेके

(सर्वाधिकार सुरक्षित)

                      चित्र:गूगल से साभार

October 8, 2019

दशहरा



कुटिल चाल से झूठ की,क्यों होना भयभीत,
जब  होनी  हर  हाल में, सच्चाई  की जीत।
           ----------------ओंकार सिंह विवेक               
                       चित्र:गूगल से साभार

October 3, 2019

ईमान




जब घिरा छल फरेबों के तूफ़ान में,
मैंने  रक्खा  यकीं  अपने ईमान में।
      -------ओंकार सिंह विवेक

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मज़दूर दिवस

आज मज़दूर दिवस है। प्रतीकात्मक रुप से इस दिन दीन-हीन को लेकर ख़ूब वार्ताएं और गोष्ठियां आयोजित की जाएंगी। श्रम  क़ानूनों पर व्याख्यान होंगे।...