February 23, 2020

निवाले

सूखे हुए निवाले


ग़ज़ल-ओंकार सिंह विवेक
काम    हमारे    रोज़   उन्होंने   अय्यारी   से   टाले   थे,
जिनसे   रक्खी   आस   कहाँ  वो  यार भरोसे वाले  थे।

जब   मोती   पाने   के  सपने   इन  आँखों  में पाले  थे,
गहरे   जाकर  नदिया , सागर  हमने  ख़ूब  खँगाले  थे।

जिनकी वजह से सबको मयस्सर आज यहाँ चुपड़ी रोटी,
उनके   हाथों    में   देखा   तो   सूखे   चंद  निवाले   थे।

दाद  मिली  महफ़िल  में  थोड़ी  तो  ऐसा महसूस हुआ,
ग़ज़लों  में  हमने  भी  शायद   अच्छे  शेर  निकाले  थे।

जंग   भले   ही  जीती हमने  पर यह भी महसूस किया,
जंग   जो  हारे  थे  हमसे  वे  भी  सब  हिम्मत वाले थे।

                                  --------ओंकार सिंह विवेक
                                         (सर्वाधिकार सुरक्षित)         

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