November 26, 2019

सूखे हुए निवाले


ग़ज़ल-ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल 9897214710
काम   हमारे   रोज़  उन्होंने   अय्यारी   से  टाले   थे,
जिनसे  रक्खी  आस  कहाँ  वो  यार भरोसे वाले थे।

जब   मोती   पाने  के  सपने   इन  आँखों  में  पाले थे,
गहरे   जाकर  नदिया , सागर  हमने  ख़ूब  खँगाले  थे।

जिनकी वजह से सबको मयस्सर आज यहाँ चुपड़ी रोटी,
उनके   हाथों    में    देखा   तो   सूखे   चंद  निवाले  थे।

दाद  मिली  महफ़िल में  थोड़ी  तो  ऐसा  महसूस हुआ,
ग़ज़लों  में  हमने  भी   शायद  अच्छे  शेर  निकाले  थे।

जंग  भले  ही  जीती हमने पर यह भी महसूस किया,
जंग  जो  हारे  थे  हमसे  वे  भी सब हिम्मत वाले थे।
                                  --------ओंकार सिंह विवेक
                                         (सर्वाधिकार सुरक्षित)         


1 comment:

Featured Post

सामाजिक सरोकारों की शायरी

कवि/शायर अपने आसपास जो देखता और महसूस करता है उसे ही अपने चिंतन की उड़ान और शिल्प कौशल के माध्यम से कविता या शायरी में ढालकर प्र...