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April 19, 2022
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अपनी बात ग़ज़ल के साथ
मिसरा -- दिल किसी का दुखा नहीं सकते ।
2122 1212 22 /112 फ़ाइलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन
ग़ज़ल : ओंकार सिंह विवेक
©️
ख़ुद को गर आज़मा नहीं सकते,
तय है,मंज़िल भी पा नहीं सकते।
जानते हैं जो वक़्त की क़ीमत,
एक पल भी गँवा नहीं सकते।
हमको ही बख़्श देंगे ये नेमत,
पेड़ फल ख़ुद तो खा नहीं सकते।
©️
कितनी मतलब परस्त है दुनिया,
आपको कुछ बता नहीं सकते।
इस तरह तो हमें न भटकाओ,
राह गर तुम दिखा नहीं सकते।
फिर तो उम्मीद छोड़ दें सुख की,
दुख अगर कुछ उठा नहीं सकते।
जिनका संवेदना से रिश्ता है,
"दिल किसी का दुखा नहीं सकते"।
एक मज़लूम की सदा को 'विवेक',
आप अब यूँ दबा नहीं सकते।
©️ ओंकार सिंह विवेक
ओंकार सिंह विवेक
--ग़ज़लकार/समीक्षक/कंटेंट राइटर
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अपनी तहज़ीब ही भुला बैठे
ग़ज़ल--ओंकार सिंह विवेक
©️
दोस्तों को जो आज़मा बैठे,
अपनी ही मुश्किलें बढ़ा बैठे।
कब सज़ा होगी उन अमीरों को,
हक़ ग़रीबों का जो दबा बैठे।
आपको कैसे हुक्मरानी दें,
आप तो साख ही गँवा बैठे।
©️
यार हमने तो दिल-लगी की थी,
आप दिल से उसे लगा बैठे।
क्या हुआ दौर-ए- नौ के बच्चों को,
अपनी तहज़ीब ही भुला बैठे।
वज़्न ही कुछ न दें जो औरों को,
ऐसे लोगों में कोई क्या बैठे।
कितने ही पंछियों का डेरा था,
आप जिस पेड़ को गिरा बैठे।
--- ©️ ओंकार सिंह विवेक
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