April 28, 2022

नीयत नेकी की

    नीयत नेकी की
    ***********
        वृतांत : ओंकार सिंह विवेक
क्या मरने के बाद इंसान कर्मों के अनुसार  स्वर्ग या नर्क में जगह पाता है?आत्मा क्या है ? शरीर की मृत्यु के साथ आत्मा की भी मृत्यु हो जाती है अथवा यह अजर-अमर है?--मानव जीवन से जुड़े ऐसे तमाम सवाल आज तक  वैज्ञानिकों, दार्शनिकों और आध्यात्मिक गुरुओं  के लिए शोध का विषय बने हुए हैं।ये बहुत गूढ़ विषय हैं जिनकी गहराई में जाना मेरे बस की बात नहीं पर प्रसंगवश इन विषयों का उल्लेख अनायास वृतांत का हिस्सा बन गया है।
मृत्यु के बाद व्यक्ति को कर्मों के अनुसार स्वर्ग-नर्क की प्राप्ति होती है अथवा नहीं इस बहस में न पड़कर मैं अनुभव के आधार पर इतना अवश्य कह सकता हूँ कि अपने सोच,नीयत और कर्मों के आधार पर व्यक्ति को स्वर्ग अथवा नर्क के दर्शन अपने जीते जी संसार में ही हो जाते हैं।यह अकाट्य सत्य है कि अपने कर्मों के आधार पर जीवन में ही व्यक्ति को कामयाबी,नाकामयाबी और सुख-दुख की प्राप्ति होती रहती है।जो लोग इस सत्य को झुठलाने की नाकाम कोशिश करते हुए निरंतर गुनाह और अनैतिक आचरण में लिप्त रहते हैं उन्हें इस जीवन में ही कठिनाइयों या यों कह लीजिए नर्क के समान दुश्वारियों का अनुभव हो जाता है और जो व्यक्ति नेकी और ईमानदारी के साथ जीवन की राहें तय करते हुए अपने और परिवार के साथ देश और समाज के लिए कुछ करते रहते हैं निःसंदेह उनका जीवन आसान हो जाता है और उन्हें यहीं स्वर्ग का आभास हो जाता है।नेकियों की राह पर चलने का बीड़ा उठाये हुए बिना किसी प्रचार और दिखावे के अपना काम कर रहे ऐसे ही एक व्यक्ति श्री अनिल सारस्वत जी के साथ एक दिन(27 अप्रैल,2022) गुज़ारा तो मेरे चिंतन और सोच को एक नई दिशा मिली।

         मैं और श्री अनिल सारस्वत जी

24 मार्च,2022 को मैं रामपुर के दो वरिष्ठ साहित्यकारों के साथ टैक्सी द्वारा एक साहित्यिक कार्यक्रम में सहभागिता हेतु लखनऊ जा रहा था।रास्ते में सहपाठी साहित्यकार के फोन पर एक कॉल आई कि अपने शहर के किसी ऐसे परिवार के बारे में जानकारी देकर सहयोग करें जिससे कोई सेना में देश की सेवा करते हुए शहीद हुआ हो,मैं उन्हें सम्मानित करना चाहता हूँ। सहपाठी साहित्यकार ने फोन मुझे दे दिया कि आप ही भाई साहब की कोई मदद कीजिए।मैंने बात की तो फोन करने वाले सज्जन ने कहा कि मैं काशीपुर-उत्तराखंड से ओज कवि अनिल सारस्वत बोल रहा हूँ।भाई साहब!इस संबंध में मेरी मदद कीजिए। मैंने उनसे कहा कि अभी तो मुझे नहीं मालूम लेकिन आपको एक घंटे में अवश्य ही पता करके कुछ बताता हूँ।मुझे प्रयास करने से सफलता भी मिल गई। मैंने उन्हें बताया कि जनपद रामपुर-उ0प्र0 मुख्यालय से लगभग 15 किलोमीटर दूर एक गाँव अलीपुरा में बारामूला में कुछ वर्ष पूर्व देश-सेवा करते हुए शहीद हुए एक सैनिक रंजीत सिंह का परिवार रहता है।वह बहुत ख़ुश हुए और कहा कि मैं 27 अप्रैल को रेडियो स्टेशन रामपुर काव्य-पाठ की रिकॉर्डिंग के लिए आऊँगा।रिकॉर्डिंग कार्य समापन के बाद अलीपुरा जाकर शहीद सैनिक के परिजनों से मिलने का कार्यक्रम है आप भी हमारे साथ चलिए।मैंने ऐसे नेक कार्य में सहभागिता हेतु सहर्ष स्वीकृति दे दी।
उस दिन नियत समय पर मैं आकाशवाणी रामपुर श्री अनिल जी से मिलने पहुँच गया।उनकी रिकॉर्डिंग के बाद गाँव अलीपुरा जाने का कार्यक्रम तय हुआ ।उसी समय रौबीले व्यक्तित्व के एक स्मार्ट-से सज्जन बड़ी गर्मजोशी से आकर भाई अनिल सारस्वत जी से मिले।अनिल जी ने उनसे मेरा परिचय कराते हुए कहा कि यह शहीद मेजर ख़ावर सईद के भाई सरोश सईद साहब हैं ,इनके परिवार को भी मैं सम्मानित कर चुका हूँ।एक शहीद सेना अधिकारी के भाई से मिलकर मुझे गर्व की अनुभूति हुई।भाई सरोश जी अपनी चार पहियों की बड़ी गाड़ी लेकर आए थे और उनका आग्रह था कि इसी गाड़ी से हम  लोगों को गाँव अलीपुरा लेकर जाएँगे ताकि वह भी ऐसे नेक काम का हिस्सा बन सकें। चिलचिलाती धूप में एक रोज़ेदार का हमसे यह कहना कि मुझे भी आपके साथ चलना है ,उनके जज़्बा-ए-इंसानियत को बताने के लिए काफ़ी है।हम उनकी श्रेष्ठ भावनाओं, आत्मीयता और सदाशयता से बँधे गाड़ी में बैठकर चल दिए।रास्ते में उनसे और तफ़सील से तआरुफ़ हुआ तो उन्होंने कहा "मैंने आपको यहाँ रामपुर में ही शायद किसी महफ़िल या कार्यक्रम में पहले भी कहीं देखा है।" मैंने कहा कि मुझे शेरो-शायरी का शौक़ है और अक्सर नशिस्तों और मुशायरों/कवि सम्मेलनों में आया-जाया करता हूँ,आपने शायद ऐसी ही किसी महफ़िल में देखा होगा।उन्होंने इस बात की ताईद की।फिर तो रास्ते भर उनसे बहुत बे-तकल्लुफ़ाना गुफ़्तगू होती रही।शेरो-शायरी और कविता का दौर भी चला जिसमें श्री अनिल सारस्वत जी की भी सक्रिय भागीदारी रही।श्री सरोश जी से समाज के वर्तमान हालात,बिगड़ते सामाजिक ताने-बाने और साम्प्रदायिक सौहार्द को लेकर काफ़ी बातें हुईं।मैं उनके सुलझे हुए प्रगतिशील विचारों से बहुत प्रभावित हुआ।जो लोग सामाजिक समरसता के माहौल को बिगाड़ने पर तुले हुए हैं उनको लेकर मेरी ही तरह सरोश जी भी बहुत फ़िक्रमंद नज़र आए।इस पसमंज़र में मैंने उन्हें अपने ये शेर भी सुनाए :
             ©️ 
           वरना  हिंदू  और  मुसलमां में  तो  कोई  फ़र्क़ नहीं,
           सिर्फ़ सियासत लड़वाती है राघव को रमज़ानी से।
                              *******
            न ख़ुशियां ईद की कम हों, न होली-रंग हो फीका,
            रहे भारत  के  माथे पर  इसी  तहज़ीब का टीका।
                                ----  ©️ ओंकार सिंह विवेक
      श्री सरोश सईद साहब, मैं और श्री अनिल सारस्वत जी

बातचीत करते हुए कब हम गाँव अलीपुरा पहुँच गए कुछ पता ही नहीं चला।गंतव्य पर  पहुँचे तो गाँव के लाडले बेटे शहीद सिपाही रंजीत के पिताजी श्री सत्यपाल सिंह जी हमारे स्वागत के लिए तैयार खड़े थे।गाँव के बड़े हवेलीनुमा घर के आँगन में पेड़ के नीचे बैठकर उनसे काफ़ी बातें कीं।उन्होंने अपने बेटे की वीरता के दिल में जोश भरने वाले कई क़िस्से सुनाए।श्री सत्यपाल सिंह जी यह बताना भी नहीं भूले कि अब सरकार शहीद सैनिकों के परिजनों के सम्मान में अक्सर कार्यक्रम आयोजित करती रहती है जो एक अच्छी बात है।श्री सत्यपाल सिंह जी ने हमें शहीद सिपाही रंजीत सिंह का स्मारक भी दिखाया जो उनके घर के सामने ही बना हुआ है।हमनें वीर सिपाही के स्मारक को नमन किया।इस बीच श्री अनिल सारस्वत जी ने अपने नेक मिशन के तहत,जिसे वह पिछले लगभग पिछले साढ़े तीन साल से भी अधिक समय से करते आ रहे हैं,शहीद सैनिक के पिता श्री सत्यपाल सिंह जी को सम्मानपत्र, अंगवस्त्र तथा रु2100.00 की धनराशि देकर उनके प्रति सम्मान प्रकट किया।यह बहुत भावुक करने वाला दृश्य था।श्री सत्यपाल सिंह जी ने बार-बार अनिल जी का आभार प्रकट करते हुए हमें सजल नेत्रों से विदा किया।

              अलीपुरा में गौरव के कुछ पल
श्री अनिल सारस्वत जी से उनके इस नेक काम और मिशन के बारे में विस्तार से जानने की इच्छा हुई तो उन्होंने बताया कि वह बिना किसी पब्लिसिटी के पिछले कुछ समय में चालीस शहीदों के परिवारों का पता लगाकर उनको सम्मानित कर चुके हैं और उनका यह काम जीवन पर्यन्त जारी रहेगा।उनके इंसानियत के जज़्बे और नेक भावना को सुन और देखकर उनके प्रति दिल श्रद्धा से भर उठा।ईश्वर भाई श्री अनिल सारस्वत जी के इस जोश-जज़्बे और नेकी के जुनून को यूँ ही क़ायम रखे ताकि वह लोगों को इंसानियत का पैग़ाम देते रहें।मैं उनके दीर्घायु होने की कामना करते हुए अपने इस शेर के साथ वाणी को विराम देता हूँ--
                 हमवार कर ही लेंगे वो रस्ते को एक दिन,
                 मंज़िल पे पहुँचने की जिन्हें धुन सवार है।
                                  ---ओंकार सिंह विवेक
  -- ©️ ओंकार सिंह विवेक
 --ग़ज़लकार/समीक्षक/कंटेंट राइटर/ब्लॉगर
(ब्लॉगर की पॉलिसी के तहत सर्वाधिकार सुरक्षित)
                 

          











4 comments:

Featured Post

ग़ज़ल/कविता/काव्य के बहाने

सभी साहित्य मनीषियों को सादर प्रणाम 🌷🌷🙏🙏******************************************* आज फिर विधा विशेष (ग़ज़ल) के बहाने आपसे से संवाद की ...