अभी इंसानियत ज़िंदा है
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सोमवार दिनाँक 28 मार्च,2022 को अपने शहर रामपुर-उ0प्र0 से लगभग 15 किलोमीटर दूर तहसील सदर के एक गाँव खजुरिया में एक समारोह में निमंत्रण पर जाना हुआ।मेरे साथ मेरी माता जी और पत्नी भी थीं।मैं कार अभी ठीक से नहीं चला पाता हूँ।लोकल में थोड़ी-बहुत कोशिश कर लेता हूँ पर अभ्यास में कमी के चलते वो कॉन्फिडेंस नहीं आ पाया है जो होना चाहिए इसे मैं अपनी कमी ही मानता हूँ।कहीं बाहर जाना होता है तो एक विश्वसनीय नौजवान भाई विशाल शर्मा को कार ड्राइविंग के लिए साथ ले जाता हूँ।
कार्यक्रम के मुताबिक़ मैंने एक दिन पहले ही विशाल को फोन किया कि भाई कल सुब्ह 10 बजे खजुरिया चलना है जहाँ से शाम तक वापस लौट आएँगे।विशाल ने कहा सर कल तो मुझे किन्हीं अन्य सज्जन के साथ ज़रूरी काम से कहीं और जाना है इसलिए मुश्किल होगा आपके साथ चलना। साथ ही विशाल ने यह भी कहा कि खजुरिया बहुत दूर नहीं है आप स्वयं ही ड्राइव करके जाओ इससे आपका कॉन्फिडेंस बढ़ेगा और धीरे-धीरे मुझ पर निर्भरता भी कम हो जाएगी।मैं फोन पर आपसे संपर्क में रहूँगा।शाम को वापसी में कोई दिक़्क़त होगी तो मैं पहुँच जाऊँगा क्योंकि मेरा काम 3 बजे समाप्त हो जाएगा।विशाल इतने पर ही नहीं रुका उसने एक बुज़ुर्ग की तरह महत्वपूर्ण बात मुझे बताई की सर फ़र्ज़ करो मेरे शहर से बाहर होने पर कभी किसी इमरजेंसी में गाड़ी निकालनी पड़ी तो क्या होगा?इसलिए आपको दिल पर लेकर कभी-कभार गाड़ी अकेले भी निकालनी चाहिए ताकि ड्राइविंग का अभ्यास हो जाए और आपके कॉन्फिडेंस में भी वृद्धि हो।विशाल ने बात सो टके की कही थी।उसके हिम्मत बढ़ाने पर उस दिन मैंने स्वयं ही गाड़ी ड्राइव करके गाँव जाने का निश्चय किया।
शहर से धीरे-धीरे लगभग लर्निंग मोड में कार चलाकर अंततः मैं हाइवे के उस मुक़ाम तक पहुँच गया जहाँ से मुझे कार गाँव के रास्ते की तरफ़ सिंगल रुट पर मोड़नी थी। लेकिन यह क्या--मुझे हाइवे पर मुड़ने के लिए कोई कट दिखाई नहीं दिया जिससे मैं थोड़ा परेशान-सा हुआ और हाइवे पर इस उम्मीद से आगे बढ़ने लगा कि हो सकता है शायद आगे कहीं मुड़ने के लिए कट मिल जाए। आगे चलकर भी कोई प्रॉपर कट तो मुझे दिखाई नहीं दिया परंतु एक स्थान पर दैनिक आवागमन के लिए आस-पास के लोगों द्वारा बनाया हुआ एक कट-सा नज़र आया जहाँ से मैं गाड़ी काटकर दूसरी तरफ मोड़ने का प्रयास करने लगा ।पर यह क्या-- बार-बार कोशिश के बाद भी गाड़ी मुड़कर पास होने की बजाय बंद होने लगी।मैं पुनः स्टार्ट करके कोशिश करता और गाड़ी फिर बंद हो जाती।मुझे यह देखकर पसीना आ गया और बार-बार ऐसा सोचकर परेशान होने लगा कि गाड़ी आगे बढ़ने की बजाए बंद क्यों हो रही है। कार में बैठी हुई मेरी माता जी और पत्नी भी यह देखकर परेशान होने लगीं।
हाइवे पर तेज़ी से दो पहिया और चार पहिया वाहन गुज़रे चले जा रहे थे --मुझे जेम/जाम लगने का भी डर सताने लगा था क्योंकि मेरे बार- बार गाड़ी हाइवे पर आगे पीछे करने से मार्ग अवरुद्ध होने का भी डर था।
उसी दौरान तेज़ी से हाइवे पर स्कूटर से जा रहा एक व्यक्ति मुझे परेशान देखकर रुक गया।उसने स्कूटर किनारे खड़ा किया और मेरे पास आकर बोला, भाई साहब!आप जहाँ से गाड़ी चढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं वहाँ ऊँची मुँडेर बनी हुई है इसलिए आपकी गाड़ी बार-बार बंद हो रही है।आप गाड़ी बैक करिए और घुमाकर इस मुँड़ेर से बचाकर काटिए फिर आपकी गाड़ी आसानी से मुड़ जाएगी।मैंने नीचे उतरकर देखा तो वास्तव में मुझे ऊँची मुँडेर दिखाई दी जिस पर मैं गाड़ी चढ़ाने का असफल प्रयास कर रहा था और न जाने कब तक करता ही रहता यदि वह सज्जन व्यक्ति मुझे सही बात न बताता।उस व्यक्ति ने मेरी गाड़ी को पास कराने में भरपूर मदद की और आगे मेरे गंतव्य तक जाने का सही मार्ग भी समझा दिया।माताजी,पत्नी और मैंने उस व्यक्ति का ह्रदय से आभार प्रकट किया और गंतव्य की और रवाना हुए। मैं उस व्यक्ति की सह्रदयता और दूसरों की मदद करने के भावना से बहुत अधिक प्रभावित हुआ और मन में यही भाव प्रस्फुटित हुआ कि लोगों में इंसानियत और परोपकार का भाव अभी ज़िंदा है।
अंत में अपनी ग़ज़ल के एक शेर से बात को समाप्त करता हूँ--
नज़र से एक ही देखो न सबको,
बुरे कुछ लोग हैं सारे नहीं हैं।
--ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
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