इक्कीसवीं सदी के इक्कीसवें साल की बेहतरीन ग़ज़लें
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जनाब रमेश 'कँवल' बिहार एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस में जॉइंट सेक्रेटरी के ओहदे से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं जो अपने उस्ताद मरहूम जनाब हफ़ीज़ बनारसी साहब की याद में स्थापित की गई संस्था "बज़्मे- हफ़ीज़ बनारसी" के चेयर पर्सन हैं और एक उम्दा शायर होने के साथ-साथ बहुत नेक दिल इंसान भी हैं।अपने अदबी जोशो-जुनून और सलाहियतों से रूबरू कराते हुए उन्होनें "2020 की नुमाइंदा ग़ज़लें" शीर्षक से साझा ग़ज़ल-संकलन निकाला था जो ग़ज़ल में दिलचस्पी रखने वालों में बहुत मक़बूल हुआ।
अब पुनः कँवल साहब के संपादन में "इक्कीसवीं सदी के इक्कीसवें साल की बेहतरीन ग़ज़लें" शीर्षक से हिंदी देवनागरी लिपि में देश के चुनिंदा शायरों की ग़ज़लों की पुस्तक Any book Publication द्वारा छापी गई है। मुहतरम कँवल साहब की मुहब्बत के सबब मेरी ग़ज़लों को भी इस किताब में स्थान मिला है।इस पुस्तक का हिस्सा बनकर मुझे गर्व की अनुभूति हो रही है।
यह पुस्तक मुझे कल ही डाक द्वारा प्राप्त हुई।बहुत आकर्षक मुखपृष्ठ के साथ रचनाकारों और उनकी पत्नियों के रंगीन छायाचित्रों से सजा यह ग़ज़ल-संकलन बहुत सुंदर बन पड़ा है।
आदरणीय कँवल जी की धर्म और संकृति में कितनी गहरी आस्था है यह इस बात से पता चलता कि उन्होंने किताब का प्रारम्भ गायत्री मंत्र से एवं समापन महामृत्युंजय मंत्र से किया है।पुस्तक की बहुत ही प्रभावशाली प्रस्तावना मशहूर शायर डॉ0 कृष्णकुमार नाज़ द्वारा लिखी गई है।
आदरणीय कँवल साहब ने पुस्तक में शु'अरा और शाइरात की केवल ग़ज़ले ही नहीं छापी हैं बल्कि उनकी जन्म तिथि,विवाह की तिथि और युगल फोटो भी छापे हैं जो एक नई बात है। पुस्तक में संकलित की गई इस जानकारी के आधार पर शायर और अदीब एक दूसरे को मुबारकबाद देकर अपने ह्र्दय के उद्गार व्यक्त कर सकते हैं।कँवल साहब ने रचनाकारों से आग्रहपूर्वक अपनी पत्नी/पति के प्रति उद्गार स्वरूप दोहे या शेर के रूप में कुछ पंक्तियाँ भी रचवाई हैं।इससे पता चलता है कि कँवल साहब जीवन की हर छोटी-बड़ी घटना को सेलेब्रेट करके जीवन के प्रति उत्साहित और प्रफुल्लित बने रहने में विश्वास रखने वाले व्यक्ति हैं।।उनकी यह ख़ूबी उन्हें तमाम लोगों से अलग करती है।
किताब में जिन शायरों को स्थान मिला है उन सब की ही ग़ज़लें तग़ज़्ज़ुल् से भरपूर हैं तथा हर ख़ास-ओ-आम की ज़िंदगी से वाबस्ता मफ़हूमों से सजी हुई हैं। किसी भी एक शायर की तख़लीक़ को दूसरे की तख़लीक़ से कमतर नहीं कहा जा सकता । मैं संदर्भ के रूप में कुछ रचनाकारों के अपनी पसंद के चंद अशआर यहाँ कोट करना चाहता हूँ जिससे आपको शायरों की फ़िक्र की उड़ान का आसानी से अंदाज़ा हो जाएगा --
तुमसे शुहरत मिली ज़माने में,
वर्ना क्या था मेरे फ़साने में।
--हफ़ीज़ बनारसी
मानते वो न भले, बात तो सुन ली जाती,
कम से कम इतनी इजाज़त तो मुझे दी जाती।
--रमेश कँवल
अँधेरों की तहरीर पढ़ ग़ौर से तू,
कि आख़िर में उसके उजाला लिखा है।
--डॉ0 कृष्णकुमार नाज़
दर्द,ग़म या ख़ुशी कुछ ठहरता नहीं,
ज़िंदगी बह रही है नदी की तरह।
---डॉ0 ब्रह्मजीत गौतम
हँसते-हँसते तय रस्ते पथरीले करने हैं,
हमको बाधाओं के तेवर ढीले करने हैं।
--ओंकार सिंह विवेक
हवा के रुख़ बदलने की ख़बर उड़ने से पहले ही,
वो अपना रुख़ बदलने के लिए तैयार मिलता है।
--ओमप्रकाश नदीम
जो दिल की ज़ुबां बाँच सकते नहीं हैं,
वे अश्कों को आँखों का पानी कहेंगे।
--अशोक अंजुम
ग़ैर का हो गया देखते-देखते,
मैं दुआ में जिसे माँगता रह गया।
--मीना भट्ट
सहन,नीड़, पंछी सभी थे रुआँसे,
उधर उनकी ज़िद थी शजर काटना था।
--के पी अनमोल
नहीं है अरे ये बग़ावत नहीं है,
मुझे सर झुकाने की आदत नहीं है।
--नीरज गोस्वामी
वो तब तक दरिया न हुआ,
मैं जब तक सहरा न हुआ।
---विज्ञान व्रत
जिनसे मिलकर ख़ुशी का न एहसास हो,
जोड़कर हाथ उनसे क्षमा माँग लें।
---आनंद पाण्डेय तनहा
आज के युग में जहाँ इस प्रकार के साझा संकलन परस्पर आर्थिक सहयोग के आधार पर ही छपवाना संभव हो पा रहा है वहाँ श्री कँवल साहब ने ऐसा बिल्कुल नहीं किया है।उन्होंने किसी शायर /कवि से कोई सहयोग राशि नहीं ली है बल्कि रचनाकार की प्रति भी अपने ख़र्च से ही उस तक पहुँचाने की व्यवस्था की है।
मैं कँवल जी की ख़ुश अख़लाक़ी और अदब नवाज़ी को सलाम करते हुए उनकी लंबी उम्र की कामना करता हूँ ताकि वह यूँ ही जोश और जज़्बे के साथ अदब की ख़िदमत करते रहें।
ग़ज़ल में दिलचस्पी रखने वालों से अनुरोध है कि बेहतरीन ग़ज़लों के इस नायाब संकलन को मँगवाकर अवश्य पढ़ें।हमेशा अच्छी ग़ज़लों की तलब रखने वालों के लिए यह किताब निश्चित ही एक अमूल्य भेंट है ऐसा मेरा मानना है।
पुस्तक मँगाने का अमेज़न लिंक--
https://amzn.to/3tPHXSE
--ओंकार सिंह विवेक
ग़ज़लकार/कंटेंट राइटर/समीक्षक तथा ब्लॉगर
ऐसे सुपावन कार्य का हिस्सा बनने के लिए बधाई एवं शुभकामनाएं!
ReplyDeleteहार्दिक आभार माहिर साहब🙏🙏
Deleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (06-04-2022) को चर्चा मंच "अट्टहास करता बाजार" (चर्चा अंक-4392) पर भी होगी!
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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मुहतरम आपकी मुहब्बतों का शुक्रिया🙏🙏
Deleteसुंदर समीक्षा, एक नायाब संकलन
ReplyDeleteआभार आदरणीया
Deleteबहुत अच्छी समीक्षा। निश्चय ही एक बड़ा, श्रम साध्य एवं ऐतिहासिक काम हुआ है। श्री रमेश कँवल जी द्वारा संपादित इस संकलन का हिस्सा बनने के लिए बधाई।
ReplyDeleteमुहतरम मैं बेहद शुक्रगुज़ार हूँ कि आप ब्लॉग पर आए और मेरा उत्साहवर्धन किया🙏🙏🌷🌷
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