साहित्य में भक्ति-परंपरा के संवाहक कवि शिवकुमार चंदन
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आलेख ---साहित्यकार ओंकार सिंह विवेक
हिंदी साहित्य में भक्ति-कवियों की बात करें तो कबीरदास, तुलसीदास तथा सूरदास से लेकर रसखान और रहीम आदि तक एक लंबी शृंखला है कवियों की।इनमें यदि हम कृष्ण भक्ति परंपरा के कवियों की बात करें तो सूर,रसखान ,रहीम और मीराबाई को कौन नहीं जानता। इन महान सहित्यकारों नें अपने आराध्य की स्तुति में जो काव्य सर्जन किया है वो प्रणम्य है।
रामपुर के वरिष्ठ साहित्यकार श्री शिवकुमार चंदन जी भी अपने काव्य सर्जन से मुझे भक्ति साहित्य की इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए नज़र आते हैं। 18 जून,1951 को बरेली में जन्मे कवि श्री चंदन जी नौकरी से सेवानिवृत्त होकर जनपद रामपुर में स्थायी रूप से बस गए हैं।बहुत सादा दिल और विनम्र इंसान चंदन जी लोकभाषा में अपने भावों को बहुत ही सहज अभिव्यक्ति प्रदान करते हैं। मुझे उनके सर्जन में ब्रज भाषा का पुट बहुत अच्छा लगता है।काव्य वही असरकारी होता है जो बिना किसी बनावट या बंधन के ह्रदय से निःसृत हो। यह विशेषता चंदन जी के सर्जन में विद्यमान है।उनके अधिकांश गीत और दोहे आदि भक्ति प्रधान ही हैं।विद्या की देवी सरस्वती को लेकर उनके पास सरस्वती वंदनाओं का अनमोल ख़ज़ाना है। चंदन जी पल्लव काव्य मंच के नाम से एक साहित्यिक व्हाट्सएप्प ग्रुप भी चलाते हैं जिससे देशभर के नामी-गिरामी साहित्य साधक जुड़े हुए हैं।इस पटल पर प्रतिदिन किसी न किसी विधा जैसे गीत ,ग़ज़ल,दोहा, कुंडलिया आदि को लेकर कार्यशाला भी आयोजित की जाती है।जिसमें प्रतिदिन नियत विधा में रचनाकार अपनी रचनाएँ पोस्ट करते हैं जिनकी समीक्षकों द्वारा समीक्षा करके सुधार हेतु आवश्यक सुझाव भी दिए जाते हैं।इस प्रकार यह मंच सीखने-सिखाने का एक अच्छा माध्यम बना हुआ है।इस पटल पर चंदन जी बड़े ही विनत भाव से प्रतिदिन प्रातःकाल अपनी नई सरस्वती वंदना पोस्ट करके पटल की गतिविधियों का शुभारंभ करते हैं।चंदन जी द्वारा संचालित पल्लव काव्य मंच कई बड़े साहित्यिक आयोजन कर चुका है। ऐसे आयोजनों में देश भर भर के चुनिंदा साहित्यकारों को अनेक बार सम्मानित किया जा चुका है और यह क्रम निरन्तर जारी है।
चंदन जी के अब तक कई काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं जिनमें कुछ प्रमुख निम्नवत हैं--
"चंदन की सुगंध" काव्य-संग्रह
"शुभमस्तु" काव्य-संग्रह
"स्वर अंतर्मन के" गीत-संग्रह
"गीत गूँजते घर आँगन" गीत-संग्रह
"मन ने भरी उड़ान" काव्य-संग्रह
"तू ही प्राणाधार" कुंडलिया-संग्रह
मुझे चंदन जी के अधिकांश काव्य संकलन पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ है, कुछ की समीक्षा करने का सुअवसर भी मिला है।सभी कृतियों में उनकी अभिव्यक्ति की सरलता ,सहजता और भक्ति-भाव प्रधान चिंतन के दर्शन होते हैं।
चंदन जी के काव्य-संग्रह "मन ने भारी उड़ान" में उनकी अपने आराध्य श्रीकृष्ण को लेकर बड़ी मार्मिक अभिव्यक्ति के दर्शन होते है--
कृष्ण रंग में रँगें, तब केशव का भान हो,
मन माँहि मथुरा,औ' तन ब्रजधाम हो।
नीरस कथाएँ लगें,बिन कृष्ण साँवरे की,
चंदन को प्यारी लागी कृष्ण मनुहार है।
उड़े रंग औ'अबीर भए दृश्य अभिराम,
कुंज-कुंज केसरिया,रंग रँगों श्याम है।
कुछ पंक्तियाँ उनके गीत-संग्रह "गीत गूँजते घर आंगन में" से देखें---
हमको जो भी मिला,वही जग को दे जाएँगे,
सुख-दुख में गीतों को हम सब मिलकर गाएँगे।
राष्ट्रभक्ति की भरे भावना,राष्ट्र वंदना हो।
विश्व पूज्य भारत वसुधा यह,दिव्य कंचना हो।।
सुन लो करुण पुकार मीत!मन टेर रहा कब से,
तोड़ दिए कटुता के बंधन,सबके सब तबसे।
चंदन जी मूलतः भावना को प्रधानता देने वाले गीत कवि हैं।उनके गीतों की भाषा बहुत ही सहज और प्रभावपूर्ण है।यों तो चंदन जी को भक्ति रस का कवि कहा जा सकता है परंतु आधुनिक जीवन के पहलू व पर्यावरण चिंता और राष्ट्र चेतना जैसे सभी विषय चंदन जी की रचनाओं में देखने को मिल जाएँगे।
चंदन जी के हाल ही में प्रकाशित कुंडलिया संग्रह "तू ही प्राणाधार" से भारत वर्ष की ऋषि परंपरा,भक्ति-धर्म तथा अध्यात्म पर यह भावपूर्ण छंद देखें :
भारत के शुभ कृत्य का, प्रकृति करे गुणगान।
ऋषि-संतों के देश की, अद्भुत है पहचान।।
अद्भुत है पहचान, देवता भी हर्षाते।
अवधपुरी के राम, सभी के मन को भाते।
भक्ति-शक्ति सब ताप, सदा ही रही निवारत।
कण-कण पावन धाम,सतत मन मोहे भारत।।
मेरी यही कामना है कि चंदन जी दीर्घायु हों और इसी तरह साहित्य सर्जन से समाज को दिशा देते रहें।
अंत में किसी महान साहित्यकार की ये पंक्तियाँ आदरणीय चन्दन जी को समर्पित करते हुए अपनी वाणी को विराम देता हूँ---
गीत में जो दर्द गाते हैं उन्हें मेरा नमन,
दर्द में जो मुस्कुराते हैं उन्हें मेरा नमन।
-ओंकार सिंह विवेक
ग़ज़लकार/समीक्षक/कंटेंट राइटर/ब्लॉगर
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
ReplyDeleteभाव सुमन की वृष्टि से, पूजित कर निष्काम।
'चंदन' वाणी वंदना, करते नित्य ललाम।
करते नित्य ललाम, मंच को सफल बनाते।
साधक होते सिद्ध, जोड़कर माँ से नाते।
कहँ 'निष्पक्ष' विचार, दृष्टि अनुपम श्री मन की।
करते नित-नित नई, वृष्टि निज भाव सुमन की।
प्रिय 'विवेक ' जी, आदरणीय 'चंदन ' जी पर इतना सुंदर और सटीक विवेचना पूर्ण आलेख, जो वास्तव में उन्हें भक्ति काल के समकक्ष स्थापित करता है, श्लाघनीय है,
मैं आपको भी इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए बहुत बहुत साधुवाद प्रेषित करता हूँ।
भवदीय
हिमांशु श्रोत्रिय 'निष्पक्ष'
बरेली (उत्तर प्रदेश)
आदरणीय उत्साहवर्धन करने हेतु अतिशय आभार🙏🙏🌷🌷
Deleteलेखक को मैं शत शत प्रणाम करता हूं lआपकी लेखनी के माध्यम से आदरणीय शिवकुमार चंदन जी के कृतित्व पर जो प्रकाश डाला है वह प्रशंसा योग्य है ,मुझे सूचना मिली थी कि आदरणीय के जीवन पर पीएचडी भी की जा चुकी है या आप के साहित्य पर । आपका यह गद्य हम सब युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत रहेगा और असीम ऊर्जा भरेगा धन्यवाद
ReplyDeleteभाई जी हार्दिक आभार प्रकट करता हूँ आपका उत्साहवर्धन हेतु🙏🙏🌷🌷
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