साहित्य में अध्यात्म व मानवीय संवेदनाओं
के कुशल चितेरे कवि जितेंद्र कमल आनंद
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जब हम आध्यात्मिकता की बात करते हैं तो निश्चित रूप से यह जीवन के आंतरिक पहलू से संबंधित बात होती है। भौतिकता से परे ईश्वरीय आनंद की अनुभूति करना ही अध्यात्म है।अध्यात्म हमें आत्म विश्लेषण और आत्म विवेचन करने में समर्थ बनाता है।सोचिए अध्यात्म की यही गूढ़ बातें यदि किसी साहित्यकार के सर्जन में परिलक्षित हों तो उसका चिन्तन किस स्तर का होगा।मैं रामपुर के एक ऐसे ही वरिष्ठ साहित्यकार श्री जितेंद्र कमल आनंद जी की बात कर रहा हूँ जिनके काव्य-सर्जन में अध्यात्म और मानवीय संवेदनाओं का अनूठा संगम देखने को मिलता है।
श्री जितेंद्र कमल आनंद जी का जन्म 5 अगस्त,1951 को बरेली-उ0प्र0 में हुआ था। आनंद जी शिक्षक/प्रधानाचार्य पद से सेवानिवृत्ति पाकर जनपद रामपुर में स्थायी रूप से बस गए हैं।श्री आनंद जी का अधिकांश साहित्य पढ़ने का अवसर मुझे प्राप्त रहा है।हिंदी काव्य साहित्य की लगभग सभी विधाओं में शिल्प ,भाव और कथ्य की दृष्टि से श्रेष्ठ सर्जन उन्होंने किया है। आनंद जी की कुछ प्रमुख काव्य कृतियाँ निम्नवत हैं--
आनन्द प्रवाह
जय बाला जी
हनुमत उपासना
गीत आनंद के
राजयोग महागीता (घनाक्षरी-संग्रह) आदि
आनंद जी की पुस्तकों के नामों से ही अध्यात्म और धर्म के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का भान हो जाता है।
उनके हस्तलिखित गीत-संग्रह "गीत आनंद के" से कुछ पँक्तियाँ देखें:
अपने ही पग देख धरा के आँगन में
सारंगों के नयन आज फिर भर आए।
कामनाओं के सजे शत-शत कलश फिर स्वर्ण के,
साधना को पर मिलें,अंबर मिले सुख-शांति का।
घन अगर गरजें,न कम हो दामिनी किलकारियों से,
हो उजाला ज़िंदगी में, दूर हो तम भ्रांति का।
परमब्रह्म ही परमगुरु हैं, परमलक्ष्य हितकारी,
भक्ति-भाव से भिगो रही है, रंगों की पिचकारी।
आनंद जी की पुस्तक "राजयोग महागीता" की कुछ पंक्तियाँ देखें :
अनवरत तापहीन आत्मरूप को कमल,
विदग्ध कर सकता न कोई संतप्त है।
यदि चख लिया जिसने भी स्वाद अमृत का,
वह रह सकता न कभी भी अतृप्त है।
उपरोक्त सभी रचनाओं से कवि की संवेदनाओं और चिन्तन की गहराई का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।
हिंदी साहित्य की निःस्वार्थ भाव से सेवा कर रहे आनंद जी
आध्यात्मिक साहित्यिक संष्था काव्यधारा तथा अखिल भारतीय काव्यधारा रामपुर उ प्र संस्थाओं के क्रमशः राष्ट्रीय महासचिव तथा अध्यक्ष हैं।इसके अतिरिक्त फेसबुक तथा व्हाट्सएप्प पर भी काव्यधारा संस्था के नाम से कई ग्रुप्स चलाते हैं और सीखने में रुचि रखने वाले साहित्यकारों को विभिन्न छंद बड़ी तन्मयता से सिखाते हैं।आनंद जी की साहित्यिक संस्था द्वारा प्रांतीय स्तर के साथ-साथ पड़ोसी राज्य उत्तराखंड में भी अक्सर बड़े साहित्यिक आयोजन करके साहित्यकारों को सम्मानित किया जाता रहा है और यह सिलसिला निरंतर जारी है।आनंद जी का हिंदी के सर्जनात्मक साहित्य के प्रति यह समर्पण-भाव वंदनीय है।
मेरी यही कामना है कि श्री आनंद जी दीर्घायु हों और यों ही अनवरत अपनी साहित्य-साधना से समाज को दिशा प्रदान करते रहें तथा नए साहित्यकारों का मार्गदर्शन करते रहें।किसी मशहूर शायर का यह शेर आनंद जी को समर्पित करते हुए मैं अपनी बात समाप्त करता हूँ :
विरासत सूर-तुलसी की,नफ़ासत मीर-ग़ालिब की,
मेरे एहसास में बहता हुआ गंगा का पानी है।
-ओंकार सिंह विवेक
ग़ज़लकार/समीक्षक/कंटेंट राइटर/ब्लॉगर
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
साहित्यनिष्ठ गीतकार सर्वश्री परम आदरणीय आनन्द जी को सादर नमन और उत्तम समीक्षा के लिए बहुत बहुत बधाई आपको
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया🙏🙏
Deleteपरमआदरणीय गुरुदेव श्री जितेंद्र कुमार आनंद जी का का व्यक्तित्व निश्चित रूप से जन्मजात और अर्जित प्रतिभाओं के मिश्रण से ही तैयार है।अध्यात्म, दर्शन,धर्म के साथ-साथ काव्य-प्रतिभा,संस्कृत भाषा -साहित्य में सृजन गुरुदेव के प्रकाण्ड विद्वता को को प्रदर्शित करता है। हम ऐसे मनीषी विद्वान् साहित्यकार को गुरु के रूप में पाकर धन्य है। वन्दनीय अभी नंदिनी प्रणम्य व्यक्तित्व को हमारा सादर प्रणाम हैं।
Deleteआदरणीय सर ओमकार विवेक जी! आपको भी सार्थक - सारगर्भित सटीक समीक्षा हेतु हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।
उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आपका 🙏🙏
Deleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (09-04-2022) को चर्चा मंच "हे कवि! तुमने कुछ नहीं देखा?" (चर्चा अंक-4395) पर भी होगी!
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हार्दिक आभार मान्यवर🙏🙏
Deleteउत्तम समीक्षा
ReplyDeleteहार्दिक आभार मान्यवर
Deleteउम्दा समीक्षा ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार मान्यवर
Deleteशानदार समीक्षा, शुभकामनाएं, आदरणीय सर को सादर अभिवादन
ReplyDeleteअतिशय आभार आदरणीया
Deleteजन्मजात और अर्जित प्रतिभाओं के मिश्रण से जो व्यक्तित्व तैयार हुआ वह आदरणीय श्री जितेन्द्र कमल आनन्द जी गुरुदेव का है।
ReplyDeleteअध्यात्म, दर्शन,धर्म के साथ-साथ काव्य-प्रतिभा,संस्कृत भाषा -साहित्य में सृजन गुरुदेव के प्रकाण्ड ज्ञान को उजागार करता है। हम ऐसे मनीषी विद्वान् साहित्यकार को वन्दन नमन् करो हैं
शत-प्रतिशत सही कहा आपने आदरणीया!!!
Deleteआदरणीय श्री विवेक जी को सटीक सुन्दर सार्थक समीक्षा
ReplyDeleteके लिए बधाई व शुभकामनाएँ
आभार आदरणीया🙏🙏
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