हिंदी और उर्दू साहित्य जगत में मुंशी प्रेमचंद जी की शख़्सियत किसी परिचय की मोहताज नहीं है।अपनी कहानियों और उपन्यासों में तत्कालीन समाज को लेकर मुंशी जी ने जो किरदार गढ़े वे आज के समाज में भी हमारे आस पास ही दिखाई देते हैं।इससे मुंशी जी की गहरी अंतर्दृष्टि का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।ईदगाह, कफ़न और नमक का दारोग़ा जैसी कहानियाँ हों या फिर ग़बन या गोदान जैसे उपन्यास,सभी में समाज की दशा का यथार्थ चित्रण मौजूद है। आज महानगरों के वातानुकूलित कमरों में बैठकर लिखने वाले कभी भी सर्वहारा वर्ग की समस्याओं और जद्दोजहद का वह चित्रण नहीं कर सकते जो एक ऐसे साहित्यकार द्वारा किया है सकता है जो उन परिस्थितियों से स्वयं दो चार हुआ हो।यही कारण है कि आज आभिजात्य वर्ग के साहित्यकार के लेखन में बनावट सी महसूस होती है।लेखन वही होता है जिसमें पाठक की संवेदना को झकझोरने की शक्ति विद्यमान हो और हर आम और ख़ास व्यक्ति अपने को उससे सीधे जुड़ा हुआ महसूस करने लगे।मुंशी जी के सृजन की यही ख़ूबी उन्हें साहित्य जगत में एक आला मुक़ाम दिलाती है। मुंशी प्रेमचंद जी की जयंती पर उनकी स्मृतियों को शत शत नमन!!!!!!!🙏🙏💐🌷
मुंशी प्रेमचंद जी की स्मृति में कुछ दोहे
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-----ओंकार सिंह विवेक
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लिखकर सदा समाज का, सीधा-सच्चा हाल।
मुंशी जी की लेखनी , करती रही कमाल।।
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पढ़ते हैं हम जब कभी , 'ग़बन' और 'गोदान'।
आ जाता है सामने , असली हिंदुस्तान।।
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हल्कू, बुधिया से सरल , होरी से लाचार।
हैं समाज में आज भी, कितने ही किरदार।।
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कवि-लेखक-शायर सभी,लेकर प्रभु का नाम।
मुंशी जी की याद को,शत शत करें प्रणाम।।
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----ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
चित्र गूगल से साभार
चित्र गूगल से साभार
उत्कृष्ट दोहे सृजित किये हैं आपने आदरणीय !🙏
ReplyDeleteअतिशय आभार आदरणीया 🙏🙏
Deleteजितने सरल प्रेमचन्द जी थे उतने ही सहज और लेखनी के धनी आप भी हैं
ReplyDeleteAabhar aadarneeya🙏🙏
Deleteमुंशी प्रेमचंद जी का लेखन युगों तक उस युग की याद दिलाता रहेगा, सुंदर दोहे!
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