दोस्तो नमस्कार 🌹🌹🙏🙏
मैं ग़ज़ल संबंधी अपनी पिछली पोस्टों में भी ग़ज़ल कहने में तरही मिसरे के चलन और उसकी अहमियत के बारे में अक्सर लिखता रहा हूं।तरही मुशायरों के आयोजन में शायर विशेष की ग़ज़ल के किसी शेर का सानी मिसरा दे दिया जाता है और शायरों को उस पर ऊला मिसरा लगाकर गिरह का शेर मुकम्मल करना होता है तथा उसी बहर तथा रदीफ़, क़ाफियों में पूरी ग़ज़ल भी कहनी होती है।
प्रतिष्ठित साहित्यिक मंच बज़्म-ए-अंदाज़-ए-बयां द्वारा भी अपने पटल पर इसी प्रकार का एक आयोजन किया गया है जिसमें मेरी ग़ज़ल का एक मिसरा दिया गया है। मैं मंच के इस स्नेह के लिए हार्दिक आभार प्रकट करता हूं।
इस आयोजन की पूरी पोस्ट में हूबहू पटल से साभार लेकर यहां पोस्ट कर रहा हूं ताकि इस प्रकार के आयोजन और तरही मिसरे की रिवायत के बारे में विस्तार से जानकारी हो सके।
ओंकार सिंह विवेक
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🌹बज़्म-ए-अंदाज़-ए-बयाँ 🌹
(अखिल भारतीय साहित्यिक एवं सांस्कृतिक मंच)
के समस्त क़लमकारों को सादर प्रणाम, आदाब, सत श्रीअकाल
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🌻🌻दि०:09/07/2022🌻🌻
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बज़्म-ए-अंदाज़-ए-बयाँ में है अजब ही रौनक़,
ऐसी रौनक़ सरे-बाज़ार कहाँ मिलती है।।
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🌻🌻फ़िलबदीह सं0-( 102 )🌻🌻
👉दिनांक-- 09- 07 - 2022 से दिनांक -- 10- 07 - 2022 तक
👉दिन-- शनिवार व रविवार
🌷बज़्म-ए-अंदाज़-ए-बयाँ 🌷
समूह स्वागत करता है आप सभी
मित्रों का ...
स्वागतम् सुख़नवरो, स्वागतम् सुख़नवरो।
आइये सुनाइये शायरी नयी-नयी॥
🌷 दोस्तो, आज आपके प्रिय "बज़्म-ए-अंदाज़-ए-बयाँ" की 102 वीं फ़िलबदीह है और इस मुबारक मौके पर हम आपके लिए लाए हैं एक बहुत ही ख़ूबसूरत दो दिवसीय कार्यक्रम जिसका नाम है --
🌹फ़िलबदीह मुशायरा 🌹
🌷 दोस्तो आज से शुरू होने वाले इस अज़ीमुशान दो दिवसीय ऑनलाइन तरही मुशायरे का ज़बरदस्त मिसर'अ रचा है हमारे देश के मशहूर व बेहतरीन शायर आ० ओंकार सिंह " विवेक " जी ने.... तो लीजिए दोस्तो हाज़िर है आज का लाजवाब मिसर'अ 👇👇
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👇👇 इस फ़िलबदीह का ज़बरदस्त मिसर'अ है
❤️❤️ कुछ आपसे भी घर को सँभाला नहीं गया ❤️❤️
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🌺 वज़्न : 221 - 2121 - 1221 - 212
🌺 अरकान- म़फ़ऊलु फ़ाइलातु मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
🌺 बह्र का नाम :-़ बह्रे-मज़ारिअ मुसमन अख़रब मकफूफ़ मकफूफ़ महज़ूफ़
🌻🌻क़ाफ़िया : सँभाला ( आला की बंदिश)
🌻🌻रदीफ:- नहीं गया
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क़वाफ़ी के उदाहरण-
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पाला,टाला, निकाला, उजाला,काला,छाला,जाला,डाला, निवाला, ढाला, नाला (आर्तनाद), भाला, दुशाला, निराला , मसाला, रिसाला, दिवाला आदि
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नोट- आप सभी से गुज़ारिश है कि अलग-अलग शेर कहने के बाद कमेन्ट बाक्स में अपनी मुकम्मल ग़ज़ल अवश्य प्रेषित करें।
👉 तीन बेहतरीन ग़ज़लों को ऑनलाइन सम्मान पत्र प्रदान किया जाएगा।
👉 चयन में वहीं ग़ज़लें शामिल होंगी जिनमें तज़मीन (गिरह) के साथ कम से कम 7 शे'र अवश्य हों।
👉 तज़मीन/गिरह केवल शेर में कहें, मतल'अ में नहीं कहना है।
👉 चयन प्रक्रिया में अध्यक्ष,साहिब-ए-मिसर'अ तथा कार्यक्रम प्रभारी की ग़ज़ल शामिल नहीं की जाएगी।
👉 बज़्म-ए-अंदाज़-ए-बयाँ कुटुम्ब एप पर भी उपलब्ध है।आप यहाँ के साथ वहाँ भी अपनी ग़ज़ल पोस्ट कर सकते हैं। सादर
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👇👇इस बह्र पर गीत गुनगुनाने के लिए है 👇👇
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🌹🌹1.यूँ ज़िन्दगी की राह में मज़बूर हो गये
🌹🌹2. मिलती है ज़िन्दगी में मुहब्बत कभी-कभी
🌹🌹3. लग जा गले के फ़िर ये हसीं रात हो न हो
🌹🌹4.मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया
🌹🌹5. हम लाये हैं तूफ़ान से कश्ती निकाल के
🌹🌹6. दिल ढूँढता है फिर वही फ़ुरसत के रात-दिन
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🏵️🏵️ तो आइये दोस्तों हम सब अपनी अपनी बेहतरीन शायरी के माध्यम से चार चाँद लगाते हैं इस फ़िलबदीह के बज़्मे-मुशायरा में और एक दूसरे को पढ़कर हौसला अफ़ज़ाई भी करते रहें ।
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यदि आप कोई सुझाव देना चाहते हैं तो चीफ़ एडमिन #अश्क_चिरैयाकोटी_जी चिरैयाकोटी के मैसेंजर पर प्रेषित कर सकते हैं।
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🌺धन्यवाद🌺
संस्थापक/राष्ट्रीय अध्यक्ष: आ० अश्क चिरैयाकोटी
कार्यक्रम प्रभारी--
आ० प्रदीप राजपूत " माहिर "
आयोजक- बज़्म-ए-अंदाज़-ए-बयाँ
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बज़्म-ए-अंदाज़-ए-बयां की वॉल से साभार
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प्रस्तुतकर्ता : ओंकार सिंह विवेक
यह हमारा सौभाग्य है कि आपके मिसरे हमें सहजता से सुलभ हैं।
ReplyDeleteभाई जी ज़र्रानवाज़ी है यह आपकी।
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