July 25, 2022

एक नशा ऐसा भी



         एक नशा ऐसा भी
         **************
                 ---- ओंकार सिंह विवेक
यों तो नशा शब्द एक नकारात्मक भाव दर्शाता है।नशे का ज़िक्र आते ही मादक पदार्थों के सेवन आदि से संबंधित बातें सबके मस्तिष्क में आने लगती है और एक स्वत:स्फूर्त भाव या विचार मन में आता है कि हमें नशे से दूर रहना चाहिए। परंतु एक नशा ऐसा भी है जिसकी धुन/लत उस ख़ास नशे को करने वाले और समाज दोनों के लिए लाभकारी साबित होती है।जी हां, ठीक समझा आपने मैं साहित्य सृजन के नशे की बात कर रहा हूं।यदि साहित्य सृजन के साथ नशा शब्द को जोड़कर देखा जाए तो यहां इसका अर्थ होगा 'किसी चीज़ की ऐसी धुन/लत जो और सब कुछ भुला दे'। अत: हम यह कह सकते हैं कि साहित्य सृजन के नशे के संदर्भ में नशा शब्द एक सकारात्मक भाव प्रकट करता है।
अच्छे साहित्य-सृजन का नशा एक तरफ़ सृजनकार की मानसिक और बौद्धिक क्षमताओं को बढ़ाता है तो दूसरी तरफ़ समाज को भी सार्थक सन्देश के साथ राह दिखाने का कार्य करता है।
साहित्य सृजन का नशा रखने वाले कुछ साधकों का एक सफल आयोजन साहियिक संस्था अखिल भारतीय काव्य धारा रामपुर- उत्तर प्रदेश की उत्तराखंड इकाई के सौजन्य से रुद्रपुर उत्तराखंड में संपन्न हुआ जिसमें उत्तर प्रदेश तथा उत्तराखंड के कई मूर्धन्य और उदीयमान काव्यकारों ने सहभागिता की।
कार्यक्रम के कुछ छाया चित्रों सहित चुनिंदा साहित्यकारों की रचनाओं की चंद पंक्तियां आपके रसास्वादन हेतु यहां प्रस्तुत कर रहा हूं : 
रामपुर से संस्था के संस्थापक श्री जितेन्द्र कमल आनंद जी ने सावन पर गीत प्रस्तुत करते हुए कहा --
घुमड़-घुमड़ घन छाये नभ के सावन में
सारंगों के नयन आज फिर भर आये ।

खटीमा-उत्तराखंड से कवि रतन यादव जी की सामाजिक समरसता का संदेश देती पंक्तियां :
देश अपना बहुत ही प्यारा है,
सारी दुनिया से भी तो न्यारा है।
सभी मिलजुल के साथ रहते यहांँ,
गंगा-जमुना की बहती धारा है ।।

रामपुर - उ०प्र० से ग़ज़लकार ओंकार सिंह 'विवक' ने कुछ यूं कहा ---

यक-ब-यक अपने लिए इतनी मुहब्बत देखकर,
लग रहा है डर हमें उनकी इनायत देखकर। 

एक दो की बात हो तो हम बताएं भी तुम्हें,
जाने कितनों के डिगे ईमान दौलत देखकर।


     बरेली - उत्तर परदेश के कवि डॉ० महेश मधुकर जी :
गांँव-नगर के द्वारे-द्वारे, सत की अलख जगाता चल ।
ढाई आखर की परिभाषा, जन-जन को बतलाता चल ।।
     लालकुआं - उत्तराखंड की  कवयित्री श्रीमती आशा शैली जी की अर्थदर्शी प्रस्तुति --
क्यों विधाता ने धरा पर,सृष्टि की रचना रची ।
क्यों रची फिर प्रीत, जिससे सृष्टि में हलचल मची ।।
     बरेली के वरिष्ठ कवि रणधीर प्रसाद गौड़ 'धीर' जी की सशक्त प्रस्तुति देखिए -
अध्यात्म एक आवश्यकता, अब अधिक जरूरी लगती है ।
अध्यात्म बिना इस भारत की, संस्कृति अधूरी लगती है ।।
 पंतनगर-उत्तराखंड के शायर के ० पी० सिंह 'विकल बहराईची' --
अश्क, तड़पन,बेवसी, तन्हाइयाँ
ज़िन्दगी इसके सिवा कुछ भी नहीं ।

रामपुर  की प्रतिभावान कवयित्री श्रीमती अनमोल रागिनी चुनमुन ने  सावन का स्वागत करते हुए कहा --
कंगन पायल गा रहे, कजरी गीत मल्हार ।
खुशियां लेकर आ गए, सावन के त्यौहार ।।
     
 रुद्रपुर -उ०खं० के वरिष्ठ शायर डॉ० उमाशंकर "साहिल कानपुरी" जी की यथार्थपूर्ण अभिव्यक्ति--
ज़ुदा न होगा कभी राम नाम साँसों से 
घुला है राम नाम हिन्द की फ़िज़ओं में ।
     रामपुर - उ०प्र० से वरिष्ठ साहित्यकार राम किशोर वर्मा जी ने देश के वर्तमान परिदृश्य पर कहा --
समय बहुत प्रतिकूल हुआ है, रास नहीं कुछ आ सकता ।
हवा हुई ज़हरीली अब तो, गीत नहीं मैं गा सकता ।।
  आगरा  - उ०प्र०) से वीर रस की कवयित्री श्रीमती अंशु छौंकर 'अवनि' ने कहा --
सोने की चिड़िया को षडयंत्रों से ना तोड़ देना 
एकजुट होकर इसे ऊँची सी उड़ान दो ।
 हल्द्वानी से उत्तराखंड इकाई रुद्रपुर की अध्यक्षा डॉ ० गीता मिश्रा 'गीत' जी ने सस्वर प्रस्तुति दी --
भैया! ॠतु सावन की आई
अम्बर पर बदली है छाई ।     
गदरपुर - उ०खं० के वरिष्ठ कवि श्री सुबोध कुमार शर्मा 'शेरकोटी' --
हुए जो देश के दुश्मन, उन्हें कैसे मिटाओगे ?
देशभक्ति तेरी कैसी, उन्हें कैसे बताओगे ?
 हल्द्वानी से समाज सेविका श्रीमती विद्या महतोलिया
 जी  --
ज़िन्दगी अब खूबसूरत लगने लगी है
क्योकि अब मेरी फितरत बदलने लगी है ।
  बरेली के गीतकार श्री उपमेन्द्र सक्सेना ने देशभक्तिपूर्ण प्रस्तुति दी--
आज़ादी की मर्यादा में, तन-मन खूब उछलता है ।
घर-घर फहरे आज तिरंगा, ऐसा भाव मचलता है ।।
 फिरोजाबाद - उ०प्र० के कवि डॉ ० संजीव सारस्वत 'तपन' जी  --
कल रात चढ़ते हुए एक पुल की सीढ़ियां ।
चिथड़ों में लिपटी देखीं आगे की पीढ़ियां ।।
कुछ इस तरह बिखरे थे इस देश के वारिस ।
पी करके फेंक दी हों किसी ने बीड़ियां ।।
 लालकुआं के कवि श्री सत्यपाल सिंह 'सजग' --
मेला मोकू भी घुमाय दे इस बार 
चलेंगे मोटरसाइकिल से ।
मेला घूम-घूम के सीखेंगे खेती की बातें
फसल चौगुनी होगी अच्छे होंगे दिन और रातें
खुशी से महकेगा घर-संसार ।
चलेंगे मोटरसाइकिल से ।   
हल्द्वानी से हश्रीमती बीना भट्ट बड़़शिलिया 'लक्ष्मी'  
सावन में प्रिय तुम! आ जाते इक बार ।
असीम प्रेम से भीगते, संग मेघ-मल्हार ।।
चपल होते आर्द्र नयन ये,
छंट जाता धुंध विषाद ।
 इनके अतिरिक्त सुश्री पुष्पा जोशी 'प्राकाम्य' ,शक्ति फार्म - उत्तराखंड, श्री चन्द्र भूषण तिवारी 'चन्द्र' ,प्रयागराज- उ०प्र० आदि ने भी अपनी रचनाएं प्रस्तुत कीं ।
     
कार्यक्रम मैं १५ कवि-कवयित्रियों को सम्मान पत्र, प्रतीक चिन्ह और शॉल ओढ़ाकर सम्मानित भी किया गया ।
कार्यक्रम का संचालन सुश्री पुष्पा जोशी 'प्राकाम्य' तथा आभार ज्ञापित  डॉ ० गीता मिश्रा' गीत' द्वारा किया गया ।
           प्रस्तुतकर्ता : ओंकार सिंह विवेक 

17 comments:

  1. आपकी दमदार लेखनी ने समपूर्ण आयोजन का सुन्दर विवरण प्रस्तुत कर दिया सादर वन्दन🙏🌹

    ReplyDelete
    Replies
    1. आभार आदरणीया 🙏🙏

      Delete
    2. धन्यवाद आपका🙏🌻🌹

      Delete
  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (26-7-22} को गीत "वीरों की गाथाओं से" (चर्चा अंक 4502)
    पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    ------------
    कामिनी सिन्हा

    ReplyDelete
    Replies
    1. आभार आदरणीया। ज़रूर हाज़िर रहूंगा।

      Delete
  3. खूबसूरत संकलन... आनन्द आ गया...सभी को एक साथ पढ़ कर...👏👏👏

    ReplyDelete
    Replies
    1. अतिशय आभार आपका 🙏🙏

      Delete
  4. खूबसूरत संकलन...सभी को एक साथ पढ़ कर आनन्द आ गया...👏👏👏

    ReplyDelete
  5. साहित्य सृजन की धारा ऐसे ही बहती रहे, सुंदर प्रस्तुति!

    ReplyDelete
  6. सभी प्रस्तुतियाँ सुन्दर थीं, किन्तु 'यक-ब-यक अपने लिए इतनी मुहब्बत देखकर,
    लग रहा है डर हमें उनकी इनायत देखकर।
    एक दो की बात हो तो हम बताएं भी तुम्हें,
    जाने कितनों के डिगे ईमान दौलत देखकर।' -इस प्रस्तुति ने अधिक प्रभावित किया। हो सकता है इसलिए कि इसका कथ्य मेरे दिल के अधिक नज़दीक है।

    ReplyDelete
  7. शानदार संकलन, अच्छी काव्य पंक्तियांँ सभी कवियों की।
    सुंदर।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार आपका।

      Delete

Featured Post

साहित्यिक सरगर्मियां

प्रणाम मित्रो 🌹🌹🙏🙏 साहित्यिक कार्यक्रमों में जल्दी-जल्दी हिस्सेदारी करते रहने का एक फ़ायदा यह होता है कि कुछ नए सृजन का ज़ेहन बना रहता ह...