आधी जुलाई भी बीत गई पर अभी तक सावन के बादल जैसे हमारा मुंह ही चिड़ा रहे हैं। देश के कुछ हिस्सों में बाढ़ का कहर टूट रहा है परंतु इधर हमारे इलाक़े (रामपुर - उ ०प्र ०) में तो भयानक उमस और सूखे जैसे हालात बने हुए हैं। साधनसंपन्न किसान तो धान की रोपाई ट्यूबवेल आदि से कर चुके हैं परंतु साधारण किसान तो आज भी बारिश की बाट ही जोह रहा है।अभी एक दिन पहले ही अखबार में पढ़ रहा था कि अब तक जितनी बारिश होनी चाहिए थी उसका केवल तीस से चालीस प्रतिशत ही बारिश हुई है। वास्तव में यह स्थिति बहुत चिंताजनक और विचारणीय है।इसके पीछे पर्यावरण असंतुलन और प्रकृति के स्वरूप से अनावश्यक छेड़ छाड़ जैसे अनेक कारण हैं जिन पर गंभीरता से विचार करते हुए मानव को प्रकृति के साथ तदनुसार आचरण करना होगा तभी हमारा अस्तित्व सुरक्षित रह पाएगा।
ईश्वर से यही प्रार्थना है कि जल्द ही रिमझिम बारिश की फुहारें धरती और समस्त जड़ चेतन की प्यास बुझाएं।
इसी के साथ पेश है मेरी एक ग़ज़ल आपकी प्रतिक्रिया की अपेक्षा के साथ
ग़ज़ल
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--ओंकार सिंह विवेक
कुछ मीठा कुछ खारापन है,
क्या-क्या स्वाद लिए जीवन है।
कैसे आँख मिलाकर बोले,
साफ़ नहीं जब उसका मन है।
शिकवे भी उनसे ही होंगे,
जिनसे थोड़ा अपनापन है।
धन-ही-धन है इक तबक़े पर,
इक तबक़ा बेहद निर्धन है।
सूखा है तो बाढ़ कहीं पर,
बरसा यह कैसा सावन है?
कल निश्चित ही काम बनेंगे,
आज भले ही कुछ अड़चन है।
दिल का है वह साफ़,भले ही,
लहजे में कुछ कड़वापन है।
ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
कल निश्चित ही काम बनेंगे,
ReplyDeleteआज भले ही कुछ अड़चन है ।
सकारात्मक सोच लिए अत्यंत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ।
आभार आदरणीया
Deleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteअतिशय आभार आपका
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ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 20 जुलाई 2022 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
अथ स्वागतम शुभ स्वागतम।
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पुन: भेंट होगी...
अतिशय आभार आपका।ज़रूर हाज़िरी रहेगी।
Deleteबहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
ReplyDeleteसच को कहती खूबसूरत ग़ज़ल ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया !!!!
Deleteउम्दा लेखन
ReplyDeleteअतिशय आभार आपका!!!
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