July 6, 2022

अनकहे शब्द


                  अनकहे शब्द
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                      ----ओंकार सिंह विवेक 
आजकल फेसबुक और व्हाट्सएप आदि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर असंख्य साहित्यिक ग्रुप्स चल रहे हैं। यों तो ऐसी ऑनलाइन साहित्यिक गतिविधियां पहले से ही चली आ रही हैं परंतु कोरोना काल में ऑफलाइन कार्यक्रमों पर रोक लगने के बाद ऐसे पटलों/मंचों की संख्या तेज़ी से बढ़ी।इससे साहित्यकारों और समाज दोनों को फ़ायदा हुआ।जहाँ ऑनलाइन/सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से नए और पुराने साहित्यकारों को और अधिक एक्सपोज़र मिला वहीं समाज को भी सृजनात्मक साहित्य से रूबरू होने के अधिक अवसर प्राप्त हुए।

इस दौरान जो साहित्यिक मंच/पटल स्तरीय साहित्यिक सामग्री उपलब्ध कराने में असफल रहे वे सब जितनी तेज़ी से अस्तित्व में आए उतनी ही जल्दी बंद भी हो गए।कुछ साहित्यिक मंचों ने प्रारंभ से ही सृजन के कड़े मानकों और अनुशासन का पालन करते हुए साहित्यिक स्तर को बनाए रखा है।फेसबुक पर ऐसा ही एक अदबी ग्रुप है "अनकहे शब्द" जिसकी संस्थापक आदरणीया रेखा नायक रानो जी,प्रबंधक श्री मनोज बेताब जी और संरक्षक सीनियर उस्ताद शायर श्री मुख़्तार तिलहरी साहब हैं।ग्रुप के एडमिन/संचालन समूह में अन्य विद्वान और समर्पित साहित्यकारों के साथ बहुत ही मुख़लिस शायर श्री सईद अहमद तरब साहब भी हैं।

इस समूह से जुड़े हुए मुझे काफ़ी समय हो चुका है। इस मंच की नियमित रूप से आयोजित होने वाली ग़ज़ल प्रतियोगिता में अक्सर हिस्सेदारी करता रहता हूं।कई बार सम्मान पत्र भी प्राप्त हुए हैं जिसके लिए मैं मंच और ख़ास तौर पर विद्वान समीक्षक श्री मुख़्तार तिलहरी साहब का दिल की गहराइयों से शुक्रिया अदा करता हूं।
मुख़्तार तिलहरी साहब ने प्रतियोगिता में पुरस्कार हेतु ग़ज़लों के चयन के लिए जो उच्च मानक तय किए हैं वे नि:संदेह स्तरीय साहित्य सृजन की प्रेरणा देते हैं।अक्सर अपने वीडियोज़ के माध्यम से मुहतरम तिलहरी साहब ग़ज़ल के मीटर के साथ-साथ ऐब-ए- 
तनाफुर और तक़ाबुल-ए-रदीफ़ जैसे दोषों के प्रति बार-बार 
ग़ज़लकारों को आगाह करते हैं वह उनके स्तरीय साहित्य सृजन के प्रति अनुराग को दर्शाता है।आदरणीय मुख़्तार तिलहरी साहब जिस शिद्दत और जज़्बे से अपना अमूल्य समय इस काम के लिए निकालते हैं उसकी मिसाल मिलना नामुमकिन है। मैं उनकी 
सलाहियतों और अदबी जुनून को सलाम करता हूं।
मेरी दुआ है कि मुहतरम तिलहरी साहब दीर्घायु हों और यूं ही अदब की  ख़िदमत करते रहें।
"अनकहे शब्द" मंच की उत्तरोत्तर प्रगति की कामना के साथ पेश है मेरी वह ग़ज़ल जिसे मंच की ग़ज़ल प्रतियोगिता-93 में सम्मान हेतु चयनित किया गया था:

ग़ज़ल -----ओंकार सिंह विवेक 
🌹      
अगर  कुछ   सरगिरानी  दे  रही है,
ख़ुशी   भी  ज़िंदगानी  दे   रही  है।
🌹
चलो  मस्ती  करें , ख़ुशियाँ  मनाएँ,
सदा  ये   ऋतु   सुहानी  दे  रही है।
🌹
बुढ़ापे  की   है  दस्तक  होने वाली,
ख़बर  ढलती  जवानी  दे   रही  है।
🌹
गुज़र आराम  से  हो  पाये, इतना-
कहाँ  खेती-किसानी   दे   रही  है।
🌹
फलें-फूलें न क्यों नफ़रत की  बेलें,
सियासत  खाद-पानी   दे  रही है।
🌹
सदा  सच्चाई  के  रस्ते  पे  चलना,
सबक़ बच्चों  को  नानी  दे रही है।
🌹
तख़य्युल की है बस परवाज़ ये तो,
जो  ग़ज़लों  को  रवानी दे  रही है।  
 🌹   ---ओंकार सिंह विवेक
       (सर्वाधिकार सुरक्षित)
                





  


6 comments:

  1. बहुत सुन्दर

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 07 जुलाई 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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    Replies
    1. आभार यादव जी।अवश्य हाज़िर रहूंगा।

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  3. बहुत खूब .... बेहतरीन ग़ज़ल .

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