December 31, 2024

सदीनामा अख़बार में इस साल के अंत में छपी ग़ज़ल मुलाहिज़ा फरमाएँ

वर्ष,2024 को अलविदा कहते हुए सभी स्नेही मित्रों को सादर प्रणाम 🌹🌹🙏🙏

आशा है आगे भी ब्लॉग को इसी तरह आपका भरपूर प्यार मिलता रहेगा। कोलकता से निकलने वाले प्रतिष्ठित समाचार पत्र 'सदीनामा' में इस साल के अंत में छपी ग़ज़ल आपकी अदालत में पेश है। प्रतिक्रिया से अवश्य अवगत कराएं।मेरे साथ ही जनाब शकूर अनवर साहब की भी ग़ज़ल छपी है।मैं उन्हें भी एक अच्छी ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद पेश करता हूं 🌹🌹
-- ओंकार सिंह विवेक 


December 30, 2024

वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य को लेकर कुछ दोहे


आजकल दिल्ली विधान सभा चुनाव से पहले दिल्ली में जो कुछ चल रहा है उसको लेकर जो मनस्थिति बनी उसमें कुछ दोहों का सृजन हुआ। दोहे आपकी 'अदालत में पेश हैं :

कुछ दोहे वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य को लेकर
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©️ 
कहने  को  कहते  रहें,कुछ भी  आप जनाब।
'गठबंधन'  की  गाँठ  है,खुलने  को   बेताब।।

'झाड़ू'  को  खलने   लगा,'पंजे'  का   व्यवहार।
आख़िर कब तक हो नहीं,आपस में तकरार।।

'पंजे'  से   तो   हैं  बहुत, 'दीदी'   भी   नाराज़।
फिर  कैसे  सुर  में  बजे,'गठबंधन' का साज़।।

'झाड़ू', 'पंजे'  में    अगर,नहीं    बनेगी    बात।
चढ़  पाएगी   किस  तरह,दिल्ली  में  बारात।।
                         ©️ ओंकार सिंह विवेक 

(चित्र गूगल से साभार)



December 24, 2024

अपने शहर के बहाने कुछ बातें कुछ शे'र

सुप्रभात मित्रो 🌹🌹🙏🙏

कल शाम को अपने घर से बाहर जब चौराहे की तरफ़ टहलने के लिए निकला तो दूधिया रंग की रौशनी में  नहाए हुए चौराहे की अलग ही शोभा दिखाई दी। इस ख़ुशरंग नज़ारे को देखकर आपके साथ यह पोस्ट साझा करने का लोभ संवरण न कर सका।
हमारे घर से चंद मीटर दूर ही सिविल लाइंस का स्टार चौराहा है।चौराहे से एक सड़क सीधी रोडवेज और रेलवे स्टेशन की तरफ़ दिल्ली-लखनऊ हाइवे से मिल जाती है।दूसरी सड़क एक शॉर्टकट के रास्ते मुरादाबाद की तरफ़ चली जाती है।  तीसरी सड़क ऐतिहासिक गाँधी समाधि होते हुए नगर के भीतर जाती है तथा चौथी सड़क भी डायमंड सिनेमा रोड होते हुए शहर की तरफ़ चली जाती है।
स्टार चौराहे से गाँधी समाधि होते हुए जो सड़क शहर के अंदर जाती है पहले उसे राह-ए-रज़ा (रामपुर रियासत के तत्कालीन नवाब रज़ा अली ख़ान के नाम पर)के नाम से जाना जाता था।अब इसका नाम बदलकर मौलाना मोहम्मद अली जौहर(आज़ादी की लड़ाई में योगदान करने वाले मोहम्मद अली तथा शौकत अली भाईयों में से एक भाई मोहम्मद अली के नाम पर) रोड कर दिया गया है।स्टार चौराहे पर ऊपर दिखाई दे रहा होटल बॉम्बे पैलेस है जो यात्रियों के ठहरने का एक अच्छा स्थान है।स्टार चौराहे पर ही सबसे ऊपर दिखाई दे रहा ईडन पैलेस नाम से एक बड़ा बारात घर है जहाँ आए दिन शादी-पार्टी आदि के आयोजन होते रहते हैं।चौराहे के एक और कुछ और मध्यम स्तर के होटल जैसे होटल डिलाइट तथा होटल लॉर्ड्स आदि स्थित हैं।कुल मिलकर यह एक अच्छा स्थान बन गया है।रात्रि में भव्य रौशनी होने पर यहाँ की शोभा देखते ही बनती है।
कल मैं इवनिंग वॉक के बाद काफ़ी देर तक स्टार चौराहे की शोभा को निहारता रहा और अपने नगर में हो रहे विकास पर गर्व करता रहा।मूड बना तो अपनी ग़ज़ल के कुछ अशआर और बातचीत को मिलाकर फटाफट एक वीडियो भी बनाया जो नीचे साझा कर रहा हूँ।इस वीडियो पर भी चैनल के कॉमेंट बॉक्स में जाकर अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दीजिए 🙏🙏
वह ग़ज़ल यहाँ भी पेश कर रहा हूँ :
©️ 
जब  घिरा  छल फ़रेबों  के तूफ़ान में,
मैंने  रक्खा  यक़ीं   अपने  ईमान  में।

दूसरों  को  नसीहत  से   पहले  ज़रा,
झांकिए  आप   अपने   गरीबान  में।

इतनी जल्दी तो अहबाब मिलते नहीं,
वक़्त लगता है लोगों  की पहचान में।

चापलूसों  ने  उसको  न  जीने  दिया,
साफ़गोई  का  जज़्बा था  नादान में।

है  बुराई  का  पुतला  ये  माना मगर,
कुछ तो  अच्छाईयां भी  हैं इंसान में।

ये  जो  अशआर  मैंने  सुनाए  अभी,
छप  चुके   हैं  मेरे   एक  दीवान  में।
                  ©️ ओंकार सिंह विवेक 
(मेरे पहले ग़ज़ल संग्रह 'दर्द का एहसास' से)



December 20, 2024

आज एक सामयिक नवगीत !


सुप्रभात आदरणीय मित्रो 🌹 🌹 🙏🙏

धीरे-धीरे सर्दी ने अपने तेवर दिखाने प्रारंभ कर दिए हैं।
मौसम के अनुसार चिंतन ने उड़ान भरी तो एक नवगीत का सृजन हुआ था इन्हीं दिनों पिछले वर्ष।आपकी प्रतिक्रिया हेतु प्रस्तुत है वह गीत :

आज एक नवगीत : सर्दी के नाम

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      --  ©️ओंकार सिंह विवेक

छत पर आकर बैठ गई है,

अलसाई-सी धूप।

सर्द हवा खिड़की से आकर,

मचा रही है शोर।

काँप रहा थर-थर कुहरे के,

डर से प्रतिपल भोर।

दाँत बजाते घूम रहे हैं,

काका रामसरूप।

अम्मा देखो कितनी जल्दी,

आज गई हैं जाग।

चौके में बैठी सरसों का,

घोट रही हैं साग।

दादी छत पर  ले आई हैं,

नाज फटकने सूप।

आए थे पानी पीने को,

चलकर मीलों-मील।

देखा तो जाड़े के मारे,

जमी हुई थी झील।

करते भी क्या,लौट पड़े फिर,

प्यासे वन के भूप।

    ---  ©️ओंकार सिंह विवेक



December 17, 2024

ग़ज़ल कुंभ,2023 की यादें

ग़ज़ल कुंभ 2023 ( हरिद्वार) में प्रस्तुत की गई ग़ज़लों का संकलन प्रतिष्ठित ग़ज़लकार एवं ग़ज़ल कुंभ के संयोजक श्री दीक्षित दनकौरी जी के संपादन में प्रकाशित हुआ है। प्रतिभागी होने के नाते मेरी ग़ज़ल को भी इस संकलन में स्थान मिला है। उल्लेखनीय है कि हर साल श्री दीक्षित दनकौरी जी के संयोजन में दो दिनों के ग़ज़ल कुंभ का आयोजन देश के विभिन्न शहरों में पिछले 17-18 सालों से होता आ रहा है। इसमें देश के तमाम ख्यातिलब्ध एवं उदीयमान ग़ज़लकार ग़ज़ल पाठ करते हैं।प्रस्तुत की गई ग़ज़लों का एक संकलन भी तैयार होता है जो उसके बाद के ग़ज़ल कुंभ में प्रतिभागियों को भेंट किया जाता है।
पुस्तक में छपी अपनी ग़ज़ल आप सुधी जनों के साथ साझा कर रहा हूं :

December 16, 2024

दोहों के कुछ वीर

भारतीय भाषाओं के प्रचार-प्रसार और संवर्धन को समर्पित संस्था हिन्दुस्तानी भाषा अकादमी दिल्ली द्वारा 'हिन्दुस्तानी भाषा काव्य प्रतिभा सम्मान' एवं 'नाविक के तीर' निःशुल्क पुस्तक प्रकाशन योजना में मेरे दोहों का चयन करने के लिए मैं अकादमी का हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ।
यह संस्था प्रतिवर्ष दिल्ली में एक भव्य कार्यक्रम आयोजित करके चयनित रचनाकारों को सम्मानित ( कुछ अन्य संस्थाओं की भांति बिना कोई पंजीकरण राशि वसूले) करने के साथ ही पुस्तक की निःशुल्क प्रति भी प्रदान करती है।आज के दौर में, जब चंद लोगों ने साहित्य को व्यवसाय का रूप दे दिया है, संस्था की यह नि:स्वार्थ साहित्य सेवा प्रणम्य  है 🙏🙏

कह न सका है आज तक,कोई दोहा-वीर।
दोहों में  जो  कह गए, बातें  संत  कबीर।।
                      ©️ ओंकार सिंह विवेक 
प्रस्तुति : ओंकार सिंह विवेक 


December 14, 2024

यादों के झरोखों से -- स्मृतिशेष आनंद कुमार गौरव जी


यादों के झरोखों से (स्मृतिशेष आनंद कुमार गौरव जी)

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स्मृतिशेष आनंद कुमार गौरव जी से मेरा परिचय प्रथमा बैंक(अब प्रथमा यू पी ग्रामीण बैंक) में सेवारत रहते हुए हुआ था। वैसे तो गौरव जी प्रथमा बैंक के रामपुर क्षेत्र की एक ग्रामीण शाखा में भी कार्यरत रहे परंतु मेरा उनसे प्रगाढ़ परिचय बैंक के रामगंगा विहार मुरादाबाद स्थित मुख्य कार्यालय में तैनाती के दौरान ही हुआ। गौरव जी मुख्यालय के वसूली विभाग में कार्यरत थे तथा मैं योजना एवं विकास विभाग में तैनात था। उस दौरान बैंकिंग कार्यों से इतर उनसे लंबी साहित्यिक वार्ताएं भी होती थीं।गौरव जी अपने उपन्यासों से साहित्य की गद्य विधा में जहाँ अपना लोहा मनवा चुके थे वहीं उन्होंने श्रेष्ठ गीतों और कविताओं के माध्यम से काव्य के क्षेत्र में भी अपनी अलग पहचान बनाई। स्मृतिशेष गौरव जी बहुत सुघड़ व्यक्तित्व के स्वामी थे।मैं उनके ड्रेसिंग सेंस आदि से ख़ासा प्रभावित रहता था। किसी को भी पहली बार में ही अपनी बातचीत से प्रभावित कर लेने का उनमें अद्भुत कौशल था। अपनी-अपनी साहित्यिक अभिरुचियों के कारण हम लोग बैंक की गृह पत्रिका 'बुलंदियाँ' से जुड़े हुए थे। पत्रिका के प्रकाशन से पूर्व आयोजित होने वाली सम्पादक मंडल की बैठकों में उनसे ख़ूब बातचीत होती थी।बात चाहे बैंकिंग कार्यों की हो अथवा साहित्य सृजन की,गौरव जी लीक से हटकर ख़ास अंदाज़ से कार्य संपादन करने में विश्वास रखने वाले व्यक्ति थे।

    (आनंद कुमार गौरव जी का माल्यार्पण द्वारा स्वागत करते हुए मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर जी)

कुछ दिनों जब मैंने 'बुलंदियाँ' का संपादन किया था तो उनकी एक कविता उनसे आग्रह पूर्वक लेकर पत्रिका में छापी थी जो यहाँ साझा कर रहा हूँ : 

कौन लेकर चलेगा

कथित सभ्य समाज की

सभ्यता की लाशें 

इस सभ्य समाज से बाहर 

जो अब सड़ांध दे रही हैं 

जो ख़तरा बन गई हैं 

समाज के स्वास्थ्य के लिए 

जो छिपाकर रखी हैं 

समाज के ठेकेदारों ने 

कई आवरणों के पीछे 

ये लाशें बोल नहीं पातीं

पर इनकी दुर्गंध 

संभवत: यही पूछती है

क्या हमें मिलेगा 

चिता में जलने का अधिकार?

आनंद कुमार गौरव जी का जन्म ज़िला बिजनौर के ग्राम भगवानपुर में हुआ था। गौरव जी का निधन लंबी बीमारी के उपरांत 18 अप्रैल,2024 को मुरादाबाद में हुआ।उनका पहला गीत-संग्रह ‘मेरा हिन्दुस्तान कहां है’ काफ़ी चर्चित रहा था।वर्ष 2008 में उनका कविता-संग्रह ‘शून्य के मुखौटे’ और वर्ष 2015 में दूसरा गीत-संग्रह ‘सांझी-सांझ’ आया। उनकी इन कृतियों को भी साहित्य जगत में ख़ूब मान मिला।

उनके एक गीत की यह मार्मिक पंक्तियां देखिए :

पते पर नहीं जो पहुँची, उस चिट्ठी जैसा मन है, 

रिक्त अंजुरी-सा मन है।

उनके भाव विभोर करने वाले एक और गीत की पंक्तियाँ देखें :

आज प्रिय आलिंगन को यूं, मृदुतम अनुबंधों के स्वर दो,

 निज आँसू अवसाद पीर सब, मेरे रोम-रोम में भर दो।

उनके उपन्यास ‘आंसुओं के उस पार’ व ‘थका-हारा सुख’ भी साहित्य-जगत में बहुत चर्चित हुए।

आज स्मृतिशेष आनंद कुमार गौरव जी की कमी बहुत खल रही है।मैं दिल की गहराईयों से उन्हें श्रद्धा-सुमन अर्पित करता हूँ

🌹 🌹 🙏🙏


-- साहित्यकार ओंकार सिंह विवेक 

रामपुर (उत्तर प्रदेश) 


December 11, 2024

ज्ञान 'गीता' का


अगर व्यक्ति को हताशा, निराशा और आत्मबल में कमी का आभास हो तो पवित्र ग्रंथ 'गीता' का पाठ अवश्य करना चाहिए। गीता में जीवन में आने वाली तमाम परेशानियों और दुविधाओं का हल बहुत ही व्यवहारिक ढंग से समझाया गया है। इसमें सत्य मार्ग पर चलते हुए बिना फल की इच्छा किए कर्म करते रहने की शिक्षा दी गई है। सांसारिक बंधनों में जकड़ा व्यक्ति जब दुविधाओं के भंवर में फंसता है तो यह पवित्र ग्रंथ उसे रास्ता दिखाता है।गीता हमें अधर्म और अनीति छोड़कर सत्य के साथ नीति मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है।हम सब जानते हैं कि कुरुक्षेत्र के मैदान में अपनों को सामने देखकर अर्जुन को युद्ध से विरक्ति उत्पन्न हुई थी तो योगेश्वर श्री कृष्ण के गीता में दिए गए दिव्य ज्ञान ने ही उन्हें कर्तव्य का बोध कराया था। प्रसंगवश मुझे अपनी एक ग़ज़ल का यह शेर याद आ गया :
   'गीता'  के उपदेशों  ने वो  संशय  दूर किया,
   रोक रहा था जो अर्जुन को वाण चलाने से।
                           ©️ ओंकार सिंह विवेक 
हाल ही में मेरी एक ताज़ा ग़ज़ल कोलकता से प्रकाशित होने वाले प्रतिष्ठित अख़बार 'सदीनामा' में छपी।आप भी उसका आनंद लीजिए।मेरे साथ ही आदरणीय गिरीश अश्क साहब की भी उम्दा ग़ज़ल छपी है। मैं उनको भी एक अच्छी ग़ज़ल के लिए तहे दिल से मुबारकबाद देता हूं।

December 7, 2024

हाज़िरी नई ग़ज़ल के साथ

मित्रो ! सादर प्रणाम 🙏🙏 

आज काफ़ी दिनों बाद आप सुधी साथियों के साथ अपनी ताज़ा ग़ज़ल साझा कर रहा हूं।उम्मीद है अपना स्नेह यथावत बनाए रखेंगे तथा मेरे ब्लॉग को follow करके उत्साहवर्धन भी करेंगे --

(यह छाया चित्र हमारी पुत्री के हाल ही में संपन्न हुए विवाह संस्कार के उपरांत आयोजित अभिनंदन समारोह का है)

पुत्री कोआशीर्वाद देने हेतु रामपुर नगर (उत्तर प्रदेश) के कई प्रसिद्ध कविगण तथा शा'इर उपस्थित हुए।सभी का मैं हृदय से आभार प्रकट करता हूं 🌹🌹🙏🙏


लीजिए पेश है मेरी नई ग़ज़ल 

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©️ 

 जो मुखौटा     कहीं   उतर   जाए,

आज का शख़्स ख़ुद  से डर जाए।


उसका  जीना  भी  कोई  जीना  है,

जिस  बशर  का ज़मीर  मर  जाए।


पाए   मोहन  भी    रोज़गार   यहाँ,

और  अहमद भी  काम  पर  जाए।


ये जो  मुझ पर है शा'इरी का नशा,

कोई    सूरत    नहीं, उतर    जाए।


सब  में  कमियाँ   निकालने   वाले,

तेरी  ख़ुद पर  भी  तो  नज़र जाए।


कितनों की आज भी ये ख़्वाहिश है,

तीरगी    से     चराग़    डर    जाए।


भीड़    हर   सू   है  चालबाज़ों  की,

साफ़-दिल   आदमी   किधर  जाए।

              ©️ ओंकार सिंह विवेक 


लड़ेगा हवा से दिया जानते हैं 🌹🌹👈👈


December 5, 2024

अपनों के बहाने !

शुभ संध्या मित्रो 🌹 🌹 🙏🙏

आज अपनों के मध्य जिस तरह कटुता बढ़ रही है, उसे देखकर मन बहुत दुखी होता है।पहले संयुक्त परिवारों में कैसे लोग मिल-जुलकर रहते थे।परिवार की एकता की शक्ति सामने वाले पर बहुत भारी पड़ती थी। परंतु आज स्थिति भिन्न हो गई है।संयुक्त परिवारों की अवधारणा ही जैसे समाप्त सी हो गई है। सगे भाइयों के बीच भी झूठे अहम, ईगो और स्वार्थ के कारण मन मुटाव देखने को मिल रहे हैं। अपने ही अपनों पर व्यंग्य वाण चलाने से नहीं चूकते।

   (रामपुर के विश्व विख्यात शायर ताहिर फ़राज़ तथा नईम नज्मी जी के साथ)
 
यह देखकर मन में जो विचार उमड़े उसे कुंडलिया छंद के माध्यम से अभिव्यक्त करने का प्रयास किया है।आप अपनी प्रतिक्रियाओं से अवगत कराएंगे तो हार्दिक प्रसन्नता होगी! 🙏🙏

कुंडलिया छंद 

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©️ 

आहत   कैसे    हो   नहीं, यह   दिल   बारंबार।

अपने ही  जब  नित करें,घातक  शब्द-प्रहार।।

घातक  शब्द-प्रहार, हुआ  है  मुश्किल  जीना।

जीवन  का  सुख-चैन,आज अपनों  ने  छीना।  

करो  कृपा  हे  ईश! तनिक  हो   जाए   राहत।

अपनों के कटु शब्द,करें अब और न आहत।।

     ©️ ओंकार सिंह विवेक 


Foundation year celebration of Rampur Raza Library and Museum 👈👈

November 28, 2024

काश!ऐसा दयार आ जाए

नमस्कार मित्रो🌹🌹🙏

हाज़िर है एक ताज़ा ग़ज़ल 

तरही ग़ज़ल

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 ©️ ग़ज़ल -- ओंकार सिंह विवेक

काश! ऐसा    दयार   आ   जाए,

गुलशनों  की  क़तार  आ  जाए।

क्या  मज़ा  कश्तियाँ चलाने  का,   

जब  नदी  में   उतार  आ   जाए।     

अब  ये  मज़लूम  जाग  उट्ठे  हैं, 

होश   में    ताजदार   आ   जाए।

मश्क़  से  जी चुरा के ये ख़्वाहिश,  

शायरी   में    निखार   आ   जाए।

 ©️

ख़्वाब  में  भी   अगर  दिखे  पानी,  

प्यास  को  कुछ  क़रार  आ  जाए।

जीतने  का   जुनूँ  न   कम   होगा,     

लाख   हिस्से   में  हार  आ   जाए।

आप  जैसे   बड़ों   की  महफ़िल में,

क्या   भला   ख़ाकसार  आ   जाए।

अम्न  का  काश!अब  किसी  सूरत,

जंग   पर     इख़्तियार  आ  जाए।

ख़ैरियत   उनकी   जो   मिले  कोई,

"मेरे  दिल  को  क़रार   आ  जाए।"  

      ©️ ओंकार सिंह विवेक 



ग़ज़ल के हवाले से 🌹🌹🙏🙏👈👈

    


November 27, 2024

अच्छे लोगों में जो उठना-बैठना हो जाएगा

मित्रो सादर प्रणाम🙏🙏
 
पारिवारिक व्यस्तताओं के चलते आज काफ़ी दिन बाद एक ग़ज़ल के माध्यम से आपसे संवाद हो रहा है।यह ग़ज़ल मैंने कुछ समय पहले एक साहित्यिक ग्रुप में दिए गए 'तरही' मिसरे पर कही थी।
इस ग़ज़ल को प्रकाशित करने के लिए मैं कोलकता से प्रकाशित होने वाले प्रतिष्ठित अख़बार 'सदीनामा' के संपादक मंडल का हृदय से आभार प्रकट करता हूं।यह ग़ज़ल मेरे हाल ही में प्रकाशित हुए ग़ज़ल संग्रह 'कुछ मीठा कुछ खारा' में भी सम्मिलित है। मेरी ग़ज़ल के साथ ही जनाब शकूर अनवर साहब की बेहतरीन ग़ज़ल भी छपी है। मैं उनको भी मुबारकबाद पेश करता हूं।

           अच्छे लोगों  में   जो  उठना-बैठना  हो  जाएगा,

           फिर  कुशादा  सोच  का भी दायरा  हो जाएगा।


          क्या पता था हिंदू-ओ-मुस्लिम की बढ़ती भीड़ में,

          एक   दिन   इंसान   ऐसे  लापता   हो   जाएगा।


         और बढ़ जाएगी फिर मंज़िल को पाने की ललक,

         मुश्किलों  का  मुस्तक़र जब  रास्ता  हो  जाएगा।


          सुन रहे  हैं कब  से  उनको  बस  यही कहते हुए,

         मुफ़लिसी का मुल्क से अब ख़ातिमा हो जाएगा।


         कर  लिया करते  थे पहले शौक़िया बस शायरी,

         क्या पता था इस क़दर इसका नशा हो जाएगा।

             

           आओ  सबका  दर्द  बाँटें,सबसे  रिश्ता जोड़ लें,

            इस तरह इंसानियत का हक़  अदा हो जाएगा।


          फिर ही जाएँगे यक़ीनन दश्त के भी दिन 'विवेक', 

         अब्र का  जिस रोज़ थोड़ा  दिल  बड़ा हो जाएगा।

             ©️ Onkar Singh 'Vivek'


 sad ghazal dhamaka 😢😢👈👈




November 21, 2024

नया ग़ज़ल-संग्रह Out now






आदरणीय मित्रो सादर प्रणाम 🌹 🌹 🙏 🙏 
आपको बताते हुए प्रसन्नता हो रही है कि मेरा नया  ग़ज़ल-संग्रह 'कुछ मीठा कुछ खारा' प्रकाशित होकर आ चुका है।

इस ग़ज़ल संग्रह की विभिन्न ग़ज़लों के कुछ अशआर देखिए -----
डूबता है दिल घुटन से क्या करें,
अश्रु झरते हैं नयन से क्या करें।
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खेतों की जो हरियाली है,
रघु के चेहरे की लाली है।
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लुत्फ़ क्या आएगा शराफ़त में,
आप अब आ गए सियासत में।
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रौशनी का यही निशाना है,
तीरगी को मज़ा चखाना है।
   ©️ ओंकार सिंह विवेक 


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November 10, 2024

शीघ्र आ रहा है

मित्रो प्रणाम 🙏🙏 

 आपको यह बताते हुए हर्ष की अनुभूति हो रही है कि अंजुमन प्रकाशन गृह प्रयागराज द्वारा प्रेषित सूचना के अनुसार मेरा नया ग़ज़ल-संग्रह 'कुछ मीठा कुछ खारा' शीघ्र ही प्रकाशित होकर आ रहा है।
उचित समय पर इसके लोकार्पण आदि की प्रक्रिया पूर्ण करके विस्तृत ख़बर आप सभी शुभचिंतकों के साथ साझा करूंगा।

आज अपनी अलग-अलग ग़ज़लों के कुछ शेर आपकी अदालत में पेश कर रहा हूं :

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जब से मुजरिम पकड़के लाए हैं,
फ़ोन   थाने    के   घनघनाए  हैं।
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शिकायत  कुछ नहीं  है  ज़िंदगी से,
मिला जितना मुझे हूं ख़ुश उसी से।
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हौसले  जिनके  जगमगाते हैं,
ग़म कहाँ उनको तोड़ पाते हैं।

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हो अगर साहस तो संकट हार जाते हैं सभी,
रुक नहीं  पाते हैं  कंकर तेज़ बहती धार में।
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---- ©️ ग़ज़लकार ओंकार सिंह विवेक 

November 4, 2024

नई ग़ज़ल

पटना के मशहूर शायर जनाब रमेश कँवल साहब के स्नेह हेतु हार्दिक आभार कि उनके सहयोग के चलते 
जहानाबाद,बिहार के "अरवल टाइम्स" अख़बार में वरिष्ठ साहित्यकारों के साथ मेरी ग़ज़ल भी प्रकाशित हुई।मैं ग़ज़ल प्रकाशित करने के लिए श्री संतोष श्रीवास्तव,संपादक महोदय का हृदय आभार व्यक्त करता हूं 🌹🌹🙏🙏



November 2, 2024

रौशनी के नाम

नमस्कार मित्रो 🌷🌷🙏🙏


सम्मानित अख़बार "सदीनामा" में छपी मेरी नई ग़ज़ल का आनंद लीजिए। मैं धन्य समझता हूं स्वयं को कि मेरी ग़ज़ल मशहूर ग़ज़लकार श्री हरीश दरवेश साहब के साथ छपी है। श्री दरवेश साहब को भी उनकी ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद 🌷🌷
मैं एक बार फिर शुक्रगुज़ार हूं टीम "सदीनामा" का 🙏🙏

-----  ओंकार सिंह विवेक 


October 31, 2024

🪔🪔प्यार के दीप जलाएँ कि अब दिवाली है🪔🪔

सभी साथियों तथा शुभचिंतकों को दीपोत्सव की हार्दिक मंगलकामनाएं एवं बधाई 🎁🎁🌹🌹🙏🙏

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दीपावली का पर्व सबके जीवन में सुख-समृद्धि और प्रकाश लेकर आए।हम सब दीप से दीप जलाने की मुहिम को आगे बढ़ाएं।जो साधन संपन्न नहीं हैं उनकी त्योहार मनाने में जो भी बन पड़े, मदद करें। यही मानवता का सच्चा सन्देश होगा।
मुझे गत वर्ष दीपावली पर कही गई अपनी ग़ज़ल का मतला' याद आ रहा है :
    तम को नफ़रत के मिटाएँ कि अब दिवाली है,
    प्यार  के  दीप  जलाएँ  कि  अब  दिवाली  है।
                                ©️ ओंकार सिंह विवेक 
आज ही मुकम्मल हुई ताज़ा ग़ज़ल भी आपकी प्रतिक्रिया हेतु प्रस्तुत कर रहा हूं :

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©️ 
जो   मुखौटा    कहीं    उतर    जाए,
आज  का  शख़्स ख़ुद  से डर जाए।

उसका  जीना  भी   कोई  जीना  है,
जिस  बशर  का  ज़मीर  मर  जाए।

पाए   मोहन    भी    रोज़गार   यहाँ,
और  अहमद  भी  काम  पर  जाए।

ये  जो  मुझ पर  है शा'इरी का नशा,
कोई     सूरत     नहीं, उतर    जाए।

सब   में   कमियाँ   निकालने   वाले,
तेरी  ख़ुद  पर  भी   तो  नज़र जाए।

है ये कितनों की आज भी ख़्वाहिश,
तीरगी     से     चराग़    डर    जाए।

भीड़    हर    सू   है  चालबाज़ों  की,
साफ़-दिल   आदमी   किधर  जाए।
              ©️ ओंकार सिंह विवेक 

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October 25, 2024

साहित्यकार महेश राही जयंती समारोह



महफ़िलों का नूर थे शृंगार थे

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साहित्यकार महेश राही जी की 90 वीं जयंती पर हुआ भव्य कवि सम्मेलन एवं सम्मान समारोह

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    बिछड़ा कुछ इस अदा से कि ऋतु ही बदल गई,
     इक शख़्स  सारे  शहर  को  वीरान  कर गया।
किसी मशहूर शायर का यह शेर स्मृतिशेष साहित्यकार महेश राही जी के व्यक्तित्व पर बिल्कुल सटीक बैठता है। राही जी के चले जाने से सचमुच रामपुर की साहित्यिक बैठकें और अदबी महफ़िलें जैसे वीरान सी हो गई हैं। रामपुर के साहित्यकारों को उनकी कमी बहुत खलती है।
उल्लेखनीय है कि स्मृतिशेष महेश राही जी के कथा संग्रह 'धुंध और धूल', 'कारगिल के फूल' तथा 'आख़िरी जवाब' बहुत चर्चित रहे थे।इसी प्रकार उनका उपन्यास 'तपस' भी ख़ासा चर्चित रहा। अपने जीवन काल में आप तमाम साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े रहे और लघु पत्रिका आंदोलनों में राष्ट्रीय स्तर तक सहभागिता करते रहे।
राही जी की 90 वीं जयंती पर उनकी स्मृतियों को ताज़ा रखने के लिए ज्ञान मंदिर पुस्तकालय रामपुर में परिजनों द्वारा भव्य कवि सम्मेलन एवं सम्मान समारोह का आयोजन कराया गया।कार्यक्रम में देर रात तक कवियों ने राही जी को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए रचना पाठ किया।

कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती के पूजन तथा स्मृति शेष राही जी की छवि के समक्ष पुष्प अर्पित करने के उपरांत डॉo प्रीति अग्रवाल की सरस्वती वंदना से हुआ।

कवि ओंकार सिंह विवेक ने राही जी को अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए कहा--


        महफ़िलों   का   नूर  थे, शृंगार  थे,

        सबकी चाहत थे सभी का प्यार थे।

        जानते  हैं  जिनको 'राही' नाम  से,

         वो अदब के इक बड़े फ़नकार थे।

प्रदीप माहिर ने अपनी भावपूर्ण अभिव्यक्ति कुछ इस तरह दी--

धूप में दिन भर जली है,

तब कहीं कोशिश फली है।

भेड़िए सब एकजुट हैं, 

सामने एक लाडली है।

राजवीर सिंह राज़ ने कहा --

 साथ में चल रही है दुआ आपकी,

 मुस्तक़िल फल रही है दुआ आपकी।

डॉo निलय सक्सैना ने अपनी भाव अभिव्यक्ति कुछ यों दी --

      बह चलूंगी बांसुरी की तान बनकर,

      तुम कभी जो सांस का आधार दोगे।

 सुरेन्द्र अश्क रामपुरी ने कहा :

कज़ा अब हर किसी की सेज पर है,

ये दुनिया आख़िरी स्टेज पर है।

 सचिन सार्थक ने कहा :

    अभी एकांत एकाकी कहां है, 

   अभी तो देह मेरा स्वर यहीं हैं।

   प्रवासी था पखेरू उड़ गया है, 

     मगर टूटे हुए कुछ पर यहीं हैं।

कवि शिवकुमार चन्दन ने कहा 

अंजनी दुलारे लाल करैं नित्य प्रतिपाल,

राम नाम के रसिक आनंद लुटाते हैं ।

 इनके अतिरिक्त अनमोल रागिनी चुनमुन, सुधाकर सिंह, डॉo प्रीति अग्रवाल, पतराम सिंह, सुमित सिंह, पूनम दीक्षित, रवि प्रकाश, रामकिशोर वर्मा, धीरेन्द्र सक्सैना, जितेन्द्र नंदा तथा विनोद शर्मा आदि कवियों ने भी अपनी सुंदर और सामयिक रचनाओं के माध्यम से देर रात तक श्रोताओं को बांधे रखा।


साहित्यकार रवि प्रकाश ने 'सहकारी युग' समाचार पत्र में छपे उनके उपन्यास 'डोलती नैया' के बारे में विस्तार से बताया।नीलम गुप्ता ने कहा कि राही जी एक साहित्यकार होने के साथ ही सबके सुख-दुःख में काम आने वाले नेक इंसान थे। महर्षि विद्या मंदिर इंटर कॉलेज की रिटायर्ड प्रिंसिपल जय हिंद आर्य ने कहा कि राही जी उनके संरक्षक और एक सच्चे मार्गदर्शक थे।


श्री दिनेश चंद्र शर्मा ने कहा कि जब मैंने ज़िला बाल विज्ञान कांग्रेस समन्वयक के तौर पर रामपुर में कार्य शुरू किया था तो राही जी ने ही उस काम को आगे बढ़ाने में मेरी मदद की थी।


राही जी के सुपुत्रों अक्षय रस्तौगी तथा संजय रस्तौगी ने अपने पिता को याद करते हुए कहा कि पिताजी ने हमें सदैव ईमानदारी के पथ पर चलते हुए जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। संजय रस्तौगी ने अपने पिता श्री की पुस्तक के एक अंश का पाठ भी किया।


कार्यक्रम की अध्यक्षता ज्ञान मंदिर पुस्तकालय के अध्यक्ष सुरेश चंद्र अग्रवाल ने की तथा मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार शिव कुमार चन्दन जी रहे। प्रवेश रस्तौगी जी तथा भारत विकास परिषद के अध्यक्ष रविन्द्र गुप्ता जी कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे।मंचासीन सभी अतिथियों ने राही जी का स्मरण करते हुए उनके साहित्यिक अवदान की भूरि-भूरि प्रशंसा की। कार्यक्रम के अंत में मंचासीन अतिथियों द्वारा साहित्यकारों तथा अन्य मेहमानों को स्मृति चिह्न तथा उपहार आदि देकर सम्मानित किया गया।



अंत में कार्यक्रम के आयोजक संजय रस्तौगी ने सभी के प्रति अपना आभार व्यक्त किया। 



कार्यक्रम में भारत विकास परिषद के जगन्नाथ चावला,माधव गुप्ता ,विकास पांडे, सतीश भटिया, प्रशांत गुप्ता आदि के साथ परिजनों सहित राजीव कुमार अग्रवाल, मुकेश आर्य ,नवीन पाण्डे, दिनेश रस्तौगी , दिलीप रस्तौगी, सुरेश रस्तौगी तथा अनमोल कुमार अनुज आदि प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।


कार्यक्रम का सफल संचालन साहित्यकार ओंकार सिंह विवेक द्वारा किया गया।

इस कार्यक्रम की प्रतिष्ठित समाचार पत्रों द्वारा सुंदर कवरेज की गई जिसके लिए उनका हार्दिक साधुवाद एवं आभार 🌹🌹🙏🙏



प्रस्तुतकर्ता : ओंकार सिंह विवेक 

ग़ज़लकार/साहित्य समीक्षक/कॉन्टेंट राइटर/टेक्स्ट ब्लॉगर


October 23, 2024

कथाकार/उपन्यासकार स्मृतिशेष महेश राही जी

कथाकार/उपन्यासकार स्मृतिशेष महेश 'राही' जी 

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बिछड़ा कुछ इस अदा से कि ऋतु ही बदल गई,

 इक  शख़्स  सारे शहर  को   वीरान  कर गया।

प्रसिद्ध शायर ख़ालिद शरीफ़ साहब का ऊपर कोट किया हुआ शेर स्मृतिशेष साहित्यकार महेश राही जी की शख़्सियत को बख़ूबी बयान करता है। रामपुर की साहित्यिक सभाएँ,अदब की तमाम महफ़िलें तथा प्रसिद्द ज्ञान मंदिर पुस्तकालय आदि सभी में राही जी के न होने से आज एक ख़ालीपन-सा महसूस होता है।उन दिनों रामपुर में होने वाले लगभग सभी साहित्यिक आयोजनों में राही जी की सक्रिय सहभागिता होती थी।नए लोगों को प्रोत्साहित करना, हर एक से आत्मीयता से मिलना और सबको साथ लेकर चलना राही जी की विशेषता थी। यही कारण है कि वे साहित्य जगत में सबके प्रिय रहे।


महेश चंद्र रस्तौगी उर्फ़ महेश राही जी एक सिद्धहस्त कहानीकार तथा उपन्यासकार थे।आपका जन्म 24 अक्टूबर,1934 को जनपद बदायूँ (उत्तर प्रदेश) में हुआ था।आप जनपद रामपुर के कलेक्ट्रेट से वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी पद से वर्ष 1994 में सेवा निवृत्त हुए तथा 14 नवंबर,2015 को आपने इस नश्वर संसार से विदा ली।

स्मृतिशेष महेश राही जी के कहानी संग्रहों 'धुंध और धूल', 'आख़िरी जवाब' तथा 'कारगिल के फूल' ने साहित्य जगत में उनकी ख़ूब पहचान बनाई। उनके कहानी संग्रह 'कारगिल के फूल' को पढ़कर राष्ट्र प्रेम की भावना हृदय में बलवती होती है। राही जी के कहानी संग्रह 'आख़िरी जवाब' ने उन्हें रातों-रात साहित्य जगत में चर्चित कर दिया था। आपातकाल के दौरान उनका यह कहानी संग्रह काफ़ी विवादों में रहा।उनके उपन्यास 'तपस' में राष्ट्रीय सरोकार और सामाजिक चेतना की झलक देखने को मिलती है।यों तो राही जी मूल रूप से एक कहानीकार/उपन्यासकार थे परंतु उन्होंने कुछ कविताएं भी लिखीं जो 'स्वर' काव्य संकलन के रूप में प्रकाशित हुईं।राही जी देश भर में चले लघु पत्रिका आंदोलनों में बहुत सक्रिय रहे।

रामपुर के प्रतिष्ठित पत्रकार स्मृति शेष महेंद्र प्रसाद गुप्त जी के समाचार पत्र 'सहकारी युग' में आपका उपन्यास "डोलती नैया" सिलसिलेवार प्रकाशित हुआ।आपकी कहानियां राष्ट्रीय स्तर की पत्रिका 'सारिका' तथा 'अमर उजाला' एवं 'दैनिक जागरण' आदि समाचार पत्रों में अक्सर छपती रहती थीं।स्वर्गीय महेश राही जी ने स्क्रीन प्ले राइटिंग में भी हाथ आज़माया। प्रसिद्ध साहित्यकार श्री मूल चंद गौतम जी द्वारा निकाली जाने वाली प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका  "परिवेश" का सह संपादन भी राही जी ने किया। राही जी रामपुर के प्रसिद्ध साहित्यकार स्मृतिशेष डॉक्टर छोटे लाल शर्मा नागेंद्र जी द्वारा निकाली जाने वाली साहित्यिक पत्रिका "विश्वास" के संरक्षक भी रहे। 


निःसंदेह राही जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी साहित्यकार थे। साहित्यकार/अदीब कभी मरता नहीं है।वह अपनी रचनाओं के माध्यम से सदैव समाज में ज़िंदा रहता है। राही जी अपनी श्रेष्ठ साहित्यिक कृतियों के माध्यम से आज भी हम सबके बीच विद्यमान हैं।

मेरा 1990 के दशक में स्मृतिशेष राही जी से काफ़ी संपर्क रहा।कई बार गोष्ठियों/साहित्यिक कार्यक्रमों में उनके साथ सहभागिता की। काफ़ी समय तक मैं परिवार सहित रामपुर सिविल लाइंस की एकता विहार कॉलोनी में रहा जहां राही जी अपने छोटे पुत्र अक्षय रस्तौगी के साथ रहा करते थे।उनके साथ कई बार मॉर्निंग वॉक पर जाते हुए साहित्यिक परिचर्चा होती रहती थी।वहां उन्होंने अपने घर कवि गोष्ठी भी आयोजित की थी जिसकी स्मृतियां मेरे मस्तिष्क में आज भी ताज़ा हैं।


राही जी की 90 वीं जयंती पर उनकी स्मृतियों को ताज़ा करने के लिए उनके सुपुत्र श्री संजय रस्तौगी तथा अक्षय रस्तौगी एक साहित्यिक परिचर्चा तथा कवि गोष्ठी का आयोजन कर रहे हैं जो गौरव और हर्ष का विषय है। मैं इस अवसर पर स्मृतिशेष राही जी को विनम्र श्रद्धांजलि 🌹 🌹 🙏🙏अर्पित करते हुए एक मशहूर शायर के इस शेर के साथ अपनी बात समाप्त करता हूं :

    मौत उसकी है ज़माना करे जिसका अफ़सोस,

     यूँ  तो  दुनिया में सभी आए हैं मरने के लिए।

प्रस्तुतकर्ता :  ओंकार सिंह विवेक 

साहित्यकार/समीक्षक/कंटेंट राइटर/टैक्स्ट ब्लॉगर 

राही जी की स्मृति में उनके सुपुत्र श्री संजय रस्तौगी जी द्वारा कराए गए भव्य साहित्यिक कार्यक्रम की सम्मानित समाचार पत्रों द्वारा व्यापक कवरेज की गई।हम सम्मानित अख़बारों का दिल से आभार प्रकट करते हैं।


महेश राही जयंती समारोह 🥀🥀👈👈

बिल्कुल ताज़ा ग़ज़ल का आनंद लें 🌹🌹👈👈

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