अच्छे लोगों में जो उठना-बैठना हो जाएगा,
फिर कुशादा सोच का भी दायरा हो जाएगा।
क्या पता था हिंदू-ओ-मुस्लिम की बढ़ती भीड़ में,
एक दिन इंसान ऐसे लापता हो जाएगा।
और बढ़ जाएगी फिर मंज़िल को पाने की ललक,
मुश्किलों का मुस्तक़र जब रास्ता हो जाएगा।
सुन रहे हैं कब से उनको बस यही कहते हुए,
मुफ़लिसी का मुल्क से अब ख़ातिमा हो जाएगा।
कर लिया करते थे पहले शौक़िया बस शायरी,
क्या पता था इस क़दर इसका नशा हो जाएगा।
आओ सबका दर्द बाँटें,सबसे रिश्ता जोड़ लें,
इस तरह इंसानियत का हक़ अदा हो जाएगा।
फिर ही जाएँगे यक़ीनन दश्त के भी दिन 'विवेक',
अब्र का जिस रोज़ थोड़ा दिल बड़ा हो जाएगा।
©️ Onkar Singh 'Vivek'
Behtreen ghazal kahi hai, badhai
ReplyDeleteहार्दिक आभार
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