शुभ संध्या मित्रो 🌹 🌹 🙏🙏
आज अपनों के मध्य जिस तरह कटुता बढ़ रही है, उसे देखकर मन बहुत दुखी होता है।पहले संयुक्त परिवारों में कैसे लोग मिल-जुलकर रहते थे।परिवार की एकता की शक्ति सामने वाले पर बहुत भारी पड़ती थी। परंतु आज स्थिति भिन्न हो गई है।संयुक्त परिवारों की अवधारणा ही जैसे समाप्त सी हो गई है। सगे भाइयों के बीच भी झूठे अहम, ईगो और स्वार्थ के कारण मन मुटाव देखने को मिल रहे हैं। अपने ही अपनों पर व्यंग्य वाण चलाने से नहीं चूकते।
यह देखकर मन में जो विचार उमड़े उसे कुंडलिया छंद के माध्यम से अभिव्यक्त करने का प्रयास किया है।आप अपनी प्रतिक्रियाओं से अवगत कराएंगे तो हार्दिक प्रसन्नता होगी! 🙏🙏
कुंडलिया छंद
************
©️
आहत कैसे हो नहीं, यह दिल बारंबार।
अपने ही जब नित करें,घातक शब्द-प्रहार।।
घातक शब्द-प्रहार, हुआ है मुश्किल जीना।
जीवन का सुख-चैन,आज अपनों ने छीना।
करो कृपा हे ईश! तनिक हो जाए राहत।
अपनों के कटु शब्द,करें अब और न आहत।।
©️ ओंकार सिंह विवेक
Foundation year celebration of Rampur Raza Library and Museum 👈👈
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर शुक्रवार 6 दिसंबर 2024 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
हार्दिक आभार आपका 🙏
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteजी शुक्रिया आपका 🙏
Deleteवाक़ई, आज परिवार बिखर रहे हैं, अज्ञान और अहंकार के कारण
ReplyDeleteजी आदरणीया, आभार आपका 🙏
Deleteबहुत खूबसूरत रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Delete