December 7, 2024

हाज़िरी नई ग़ज़ल के साथ

मित्रो ! सादर प्रणाम 🙏🙏 

आज काफ़ी दिनों बाद आप सुधी साथियों के साथ अपनी ताज़ा ग़ज़ल साझा कर रहा हूं।उम्मीद है अपना स्नेह यथावत बनाए रखेंगे तथा मेरे ब्लॉग को follow करके उत्साहवर्धन भी करेंगे --

(यह छाया चित्र हमारी पुत्री के हाल ही में संपन्न हुए विवाह संस्कार के उपरांत आयोजित अभिनंदन समारोह का है)

पुत्री कोआशीर्वाद देने हेतु रामपुर नगर (उत्तर प्रदेश) के कई प्रसिद्ध कविगण तथा शा'इर उपस्थित हुए।सभी का मैं हृदय से आभार प्रकट करता हूं 🌹🌹🙏🙏


लीजिए पेश है मेरी नई ग़ज़ल 

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©️ 

 जो मुखौटा     कहीं   उतर   जाए,

आज का शख़्स ख़ुद  से डर जाए।


उसका  जीना  भी  कोई  जीना  है,

जिस  बशर  का ज़मीर  मर  जाए।


पाए   मोहन  भी    रोज़गार   यहाँ,

और  अहमद भी  काम  पर  जाए।


ये जो  मुझ पर है शा'इरी का नशा,

कोई    सूरत    नहीं, उतर    जाए।


सब  में  कमियाँ   निकालने   वाले,

तेरी  ख़ुद पर  भी  तो  नज़र जाए।


कितनों की आज भी ये ख़्वाहिश है,

तीरगी    से     चराग़    डर    जाए।


भीड़    हर   सू   है  चालबाज़ों  की,

साफ़-दिल   आदमी   किधर  जाए।

              ©️ ओंकार सिंह विवेक 


लड़ेगा हवा से दिया जानते हैं 🌹🌹👈👈


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