November 28, 2024

काश!ऐसा दयार आ जाए

नमस्कार मित्रो🌹🌹🙏

हाज़िर है एक ताज़ा ग़ज़ल 

तरही ग़ज़ल

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२१२     २   १  २ १ २ २ २/११ २

 ©️ ग़ज़ल -- ओंकार सिंह विवेक

काश! ऐसा    दयार   आ   जाए,

गुलशनों  की  क़तार  आ  जाए।

क्या  मज़ा  कश्तियाँ चलाने  का,   

जब  नदी  में   उतार  आ   जाए।     

अब  ये  मज़लूम  जाग  उट्ठे  हैं, 

होश   में    ताजदार   आ   जाए।

मश्क़  से  जी चुरा के ये ख़्वाहिश,  

शायरी   में    निखार   आ   जाए।

 ©️

ख़्वाब  में  भी   अगर  दिखे  पानी,  

प्यास  को  कुछ  क़रार  आ  जाए।

जीतने  का   जुनूँ  न   कम   होगा,     

लाख   हिस्से   में  हार  आ   जाए।

आप  जैसे   बड़ों   की  महफ़िल में,

क्या   भला   ख़ाकसार  आ   जाए।

अम्न  का  काश!अब  किसी  सूरत,

जंग   पर     इख़्तियार  आ  जाए।

ख़ैरियत   उनकी   जो   मिले  कोई,

"मेरे  दिल  को  क़रार   आ  जाए।"  

      ©️ ओंकार सिंह विवेक 



ग़ज़ल के हवाले से 🌹🌹🙏🙏👈👈

    


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