January 6, 2025

हाय रे सर्दी !!!

मित्रो प्रणाम 🙏🙏 


इस हाड़ कंपाती ठंड में लीजिए प्रस्तुत है एक कुंडलिया छंद :

कुंडलिया

*******

        ----ओंकार सिंह विवेक

सर्दी  से  यह  ज़िंदगी , जंग  रही   है   हार।

हे भगवन!अब धूप का,खोलो थोड़ा  द्वार।।

खोलो   थोड़ा   द्वार, ठिठुरते   हैं  नर-नारी।

जाने  कैसी   ठंड , जमी  हैं  नदियाँ   सारी।

बैठे  हैं  सब   लोग ,पहन  कर   ऊनी  वर्दी।

फिर भी रही न छोड़,बदन को निष्ठुर सर्दी।।

           ---ओंकार सिंह विवेक


   (चित्र : गूगल से साभार) 


धमाका ग़ज़ल का 🌺🌺👈👈


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