December 14, 2024

यादों के झरोखों से -- स्मृतिशेष आनंद कुमार गौरव जी


यादों के झरोखों से (स्मृतिशेष आनंद कुमार गौरव जी)

 ******************************************

स्मृतिशेष आनंद कुमार गौरव जी से मेरा परिचय प्रथमा बैंक(अब प्रथमा यू पी ग्रामीण बैंक) में सेवारत रहते हुए हुआ था। वैसे तो गौरव जी प्रथमा बैंक के रामपुर क्षेत्र की एक ग्रामीण शाखा में भी कार्यरत रहे परंतु मेरा उनसे प्रगाढ़ परिचय बैंक के रामगंगा विहार मुरादाबाद स्थित मुख्य कार्यालय में तैनाती के दौरान ही हुआ। गौरव जी मुख्यालय के वसूली विभाग में कार्यरत थे तथा मैं योजना एवं विकास विभाग में तैनात था। उस दौरान बैंकिंग कार्यों से इतर उनसे लंबी साहित्यिक वार्ताएं भी होती थीं।गौरव जी अपने उपन्यासों से साहित्य की गद्य विधा में जहाँ अपना लोहा मनवा चुके थे वहीं उन्होंने श्रेष्ठ गीतों और कविताओं के माध्यम से काव्य के क्षेत्र में भी अपनी अलग पहचान बनाई। स्मृतिशेष गौरव जी बहुत सुघड़ व्यक्तित्व के स्वामी थे।मैं उनके ड्रेसिंग सेंस आदि से ख़ासा प्रभावित रहता था। किसी को भी पहली बार में ही अपनी बातचीत से प्रभावित कर लेने का उनमें अद्भुत कौशल था। अपनी-अपनी साहित्यिक अभिरुचियों के कारण हम लोग बैंक की गृह पत्रिका 'बुलंदियाँ' से जुड़े हुए थे। पत्रिका के प्रकाशन से पूर्व आयोजित होने वाली सम्पादक मंडल की बैठकों में उनसे ख़ूब बातचीत होती थी।बात चाहे बैंकिंग कार्यों की हो अथवा साहित्य सृजन की,गौरव जी लीक से हटकर ख़ास अंदाज़ से कार्य संपादन करने में विश्वास रखने वाले व्यक्ति थे।

    (आनंद कुमार गौरव जी का माल्यार्पण द्वारा स्वागत करते हुए मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर जी)

कुछ दिनों जब मैंने 'बुलंदियाँ' का संपादन किया था तो उनकी एक कविता उनसे आग्रह पूर्वक लेकर पत्रिका में छापी थी जो यहाँ साझा कर रहा हूँ : 

कौन लेकर चलेगा

कथित सभ्य समाज की

सभ्यता की लाशें 

इस सभ्य समाज से बाहर 

जो अब सड़ांध दे रही हैं 

जो ख़तरा बन गई हैं 

समाज के स्वास्थ्य के लिए 

जो छिपाकर रखी हैं 

समाज के ठेकेदारों ने 

कई आवरणों के पीछे 

ये लाशें बोल नहीं पातीं

पर इनकी दुर्गंध 

संभवत: यही पूछती है

क्या हमें मिलेगा 

चिता में जलने का अधिकार?

आनंद कुमार गौरव जी का जन्म ज़िला बिजनौर के ग्राम भगवानपुर में हुआ था। गौरव जी का निधन लंबी बीमारी के उपरांत 18 अप्रैल,2024 को मुरादाबाद में हुआ।उनका पहला गीत-संग्रह ‘मेरा हिन्दुस्तान कहां है’ काफ़ी चर्चित रहा था।वर्ष 2008 में उनका कविता-संग्रह ‘शून्य के मुखौटे’ और वर्ष 2015 में दूसरा गीत-संग्रह ‘सांझी-सांझ’ आया। उनकी इन कृतियों को भी साहित्य जगत में ख़ूब मान मिला।

उनके एक गीत की यह मार्मिक पंक्तियां देखिए :

पते पर नहीं जो पहुँची, उस चिट्ठी जैसा मन है, 

रिक्त अंजुरी-सा मन है।

उनके भाव विभोर करने वाले एक और गीत की पंक्तियाँ देखें :

आज प्रिय आलिंगन को यूं, मृदुतम अनुबंधों के स्वर दो,

 निज आँसू अवसाद पीर सब, मेरे रोम-रोम में भर दो।

उनके उपन्यास ‘आंसुओं के उस पार’ व ‘थका-हारा सुख’ भी साहित्य-जगत में बहुत चर्चित हुए।

आज स्मृतिशेष आनंद कुमार गौरव जी की कमी बहुत खल रही है।मैं दिल की गहराईयों से उन्हें श्रद्धा-सुमन अर्पित करता हूँ

🌹 🌹 🙏🙏


-- साहित्यकार ओंकार सिंह विवेक 

रामपुर (उत्तर प्रदेश) 


2 comments:

Featured Post

आज एक सामयिक नवगीत !

सुप्रभात आदरणीय मित्रो 🌹 🌹 🙏🙏 धीरे-धीरे सर्दी ने अपने तेवर दिखाने प्रारंभ कर दिए हैं। मौसम के अनुसार चिंतन ने उड़ान भरी तो एक नवगीत का स...