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दिल तो दर्पण है टूट जाएगा !!!!!!
ग़ज़ल -- ओंकार सिंह विवेक
संग नफ़रत के सह न पाएगा, संग - पत्थर
दिल तो दर्पण है टूट जाएगा।
टूटकर मिलना आपका हमसे,
वक्ते-रुख़सत बहुत रुलाएगा।
(वक्ते-रुख़सत- जुदाई के समय)
दिल को हर पल ये आस रहती है,
एक दिन वो ज़रूर आएगा।
जब कदूरत दिलों पे हो हावी, कदूरत - दुर्भाव
कौन किसको गले लगाएगा?
राह भटका हुआ हो जो ख़ुद ही,
क्या हमें रास्ता दिखाएगा?
होगा हासिल फ़क़त उसे मंसब, मंसब - पद
उनकी हाँ में जो हाँ मिलाएगा।
और कब तक 'विवेक' यूँ इंसाँ,
ज़ुल्म जंगल,नदी पे ढाएगा।
ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
(विशेष : मेरी पुस्तक का मूल्य एक सौ पचास रुपए है।यदि ग़ज़ल के शौक़ीन साथी चाहें तो मोबाइल संख्या 9897214710 पर इस धनराशि का पे टी एम करके पुस्तक मंगा सकते हैं।पुस्तक पंजीकृत डाक द्वारा आपको भेज दी जाएगी। पंजीकृत डाक व्यय जो लगभग पचास रुपया होगा, मेरे द्वारा वहन किया जायेगा।)
आइए अब कुछ अपनी धर्मपत्नी श्रीमती रेखा सैनी जी के शौक़ के बारे में बताता हूं।इस ग़ज़ल के संदर्भ में उनका ज़िक्र करना यहां प्रासंगिक भी हो गया है। पत्नी जी ने वोकल म्यूजिक में प्रभाकर तक शिक्षा प्राप्त की है।शादी के बाद पारिवारिक दायित्वों के चलते वह अपने शौक़ को तो जैसे भूल ही बैठी थीं। मैंने तथा बच्चों ने निरंतर प्रोत्साहित किया है तो फिर से अपने पैशन को फॉलो करने की तरफ़ ध्यान गया है।इधर अपने यहां रामपुर आल इंडिया रेडियो पर भी मैंने उनका ऑडिशन कराया था जिसमें वह पास भी हो गई हैं। वहाँ लोकगीत कार्यक्रम में उनको शायद अब जल्दी ही नियमित अंतराल पर बुलाया जाने लगेगा। मेरा तो यही मानना है कि आदमी को अपने अच्छे पैशन को हमेशा ज़िंदा रखना चाहिए।
प्रोत्साहित करने पर श्रीमती जी ने मेरी उल्लिखित ग़ज़ल को गाने का प्रयास किया है। वह कहाँ तक सफल हो पाई हैं यह तो आपकी प्रतिक्रिया से ही पता चलेगा।मेरा आग्रह है कि नीचे दिए गए लिंक पर जाकर उनके प्रयास को अवश्य देखिए। आपके कॉमेंट्स से उन्हें/हमें प्रोत्साहन मिलेगा।यदि चैनल पर आप पहली बार जा रहे हैं तो चैनल पर दाईं ओर दिखाई दे रहे Subscribe ऑप्शन को दबाकर इसे सब्सक्राइब करना न भूलें 🙏🙏
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