हौसलो से उड़ान होती है
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आज मैं विपरीत परिस्थितियों से संघर्ष करते हुए सफलता की सीढियां चढ़ रहे जिस व्यक्ति के बारे में आपसे बातचीत करने जा रहा हूं उसके हौसले और संघर्ष को देखकर मुझे दो मशहूर साहित्यकारों के ये शेर याद आ रहे हैं :
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए।
दुष्यंत कुमार
हज़ार बर्क़ गिरे लाख आँधियाँ उट्ठें,
वो फूल खिलके रहेंगे जो खिलने वाले हैं।
साहिर लुधियानवी
जी हां, मैं बात कर रहा हूं अंकुर मोटर्स के स्वामी सुनील सैनी के बारे में जिनकी संघर्ष-गाथा तमाम लोगों,ख़ासतौर से अभावों में जी रहे नौजवानों के लिए, एक प्रेरणा-पुंज कही जा सकती है।
रामपुर (उoप्रo)ज़िले की स्वार तहसील के एक छोटे से गांव सीतारामपुर से संबंध रखने वाले सुनील ने विपरीत आर्थिक परिस्थितियों के अभावग्रस्त जीवन और माता-पिता की विवशता को देखते हुए 12 वर्ष की उम्र में कुछ कर गुज़रने की ललक में जब घर छोड़ा तो फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
(सुनील सैनी अपनी धर्मपत्नी के साथ)
घर से निकलकर छोटी-मोटी मज़दूरी की,रंग फैक्ट्री और कोल्हू आदि पर काम किया,पेपर मिल में १२-१२ घंटे तक लेबर के रूप में काम किया। ग़रज़ यह कि घर की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए जो भी,जैसा भी काम मिला वो पूरी ज़िम्मेदारी के साथ किया।इस चुनौती का सामना करने में उन्हें पढ़ाई तक बीच में ही छोड़नी पड़ी।हर चीज़ को गहराई और गंभीरता से सीखने की ललक के कारण लेबर के काम से हटकर तमाम तरह के टेक्निकल काम भी सुनील ने जल्दी ही सीख लिए।इस हुनर ने उन्हें शीघ्र ही अपने मालिकों का विश्वासपात्र बना दिया। अदभुत कार्यक्षमता,लगन तथा औरों से हटकर कुछ करने की इच्छा ने सुनील की आगे की राहें बहुत आसान कर दीं।
काशीपुर-उत्तराखंड और उसके आस-पास तमाम जगह ईमानदारी से कई तरह के काम करके सुनील ने धीरे-धीरे अपनी योग्यता और क्षमता का विकास किया तथा अपने दो बड़े भाईयों के साथ मिलकर स्वतंत्र रूप से शटरिंग ग्रीस तथा मोबिल आदि का काम शुरू कर दिया। साफ़ नीयत और ईमानदारी से अपना सौ प्रतिशत देते रहने के कारण उनका यह काम धीरे-धीरे चल निकला। इस कारण घर की आर्थिक स्थिति में भी थोड़ा सुधार आ गया।
भविष्य की संभावनाओं को देखते हुए उत्तर प्रदेश से आकर अब उनका पूरा परिवार स्थाई रूप से उत्तराखंड राज्य के लालकुआं के समीप हल्दूचौड़(बेरीपड़ाव) में बस गया है जहां उनका कारोबार फल-फूल रहा है।
प्रतिस्पर्धा के इस युग में निरंतर बढ़ रही चुनौतियों को देखते हुए अपने कारोबार को diversify करते हुए यहां सुनील ने लगभग ७ वर्ष पूर्व अंकुर मोटर्स के नाम से हल्द्वानी-बरेली रोड पर अपनी कार मरम्मत/सर्विस आदि की वर्कशॉप भी शुरू कर दी।
अपनी उच्चकोटि की त्वरित पारदर्शी सेवाओं के कारण यह वर्कशॉप उत्तराखंड की श्रेष्ठ कार मरम्मत वर्कशॉप्स में गिनी जाने लगी है।आप आसानी से इसे गूगल पर भी सर्च कर सकते हैं।सुनील सैनी के पास 10 से 12 कुशल कर्मचारियों की एक टीम है।टीम के लोग अपने काम में बहुत ही दक्ष और मृदुभाषी हैं। दुर्घटनाओं में क्षतिग्रस्त हुई बहुत गंभीर हालत में आई कारों को भी इस वर्कशॉप से मैंने बिल्कुल फिट होकर जाते देखा है।ऊपर दिए गए चित्र से आप इस बात को भली भांति समझ सकते हैं।
आमतौर पर जब हम कार की सर्विस कराने जाते हैं तो यदि डेटिंग और पेंटिंग जैसा कोई काम होता है तो उसे अलग से कराने के लिए दूसरी जगह गाड़ी को भेजना पड़ता है जिसमें अधिक समय लगता है परंतु अंकुर मोटर्स में सारी सुविधाएं एक ही छत के नीचे उपलब्ध हो जाती हैं।यहां कार की सर्विस के साथ ही उसकी डेंटिंग/पेंटिंग की भी सुविधा है और ओरिजिनल स्पेयर पार्ट्स/एक्सेसरीज़ आदि भी मुनासिब दामों में उपलब्ध हैं जो किसी भी ग्राहक के लिए राहत की बात हो सकती है।
मैंने वर्कशॉप में अपनी गाड़ियां ठीक कराने आए कई ग्राहकों से भी बातचीत की।सभी ने अंकुर मोटर्स की अच्छी सेवाओं की जमकर तारीफ़ की।
मेरा अनुरोध है कि यदि आप अंकुर मोटर्स के आसपास की लोकेशंस में रहते हैं या उधर से गुज़रते हैं तो आवश्यकता पड़ने पर अपनी कार की सर्विस/मरम्मत आदि के लिए इस वर्कशॉप की सेवाएं अवश्य लें।
सुनील सैनी से मैंने जब उनके काम के सिलसिले में बात की तो उन्होंने कहा कि वह कम मार्जिन पर पूरी ईमानदारी के साथ अपने सम्मानित ग्राहकों को बेहतर सेवा प्रदान करने के उद्देश्य के साथ ही काम को आगे बढ़ाने में विश्वास रखते हैं।
अपने धंधे में ईमानदारी और उसूलों को महत्व देने वाले सुनील के पास आज अपनी मेहनत के दम पर मकान,गाड़ी और ज़रूरत की लगभग सभी चीज़ें उपलब्ध हैं।इसके लिए वह बार-बार अपने माता-पिता और ईश्वर का धन्यवाद करते हैं।उनका बड़ा बेटा आज गोवा यूनिवर्सिटी से समुद्र विज्ञान में उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहा है और छोटा बेटा बी बी ए कर रहा है तथा कारोबार में उनका हाथ बंटाता है।मैं सुनील सैनी जी के घर-परिवार और कारोबार में उत्तरोत्तर प्रगति की कामना करता हूं।
--- ओंकार सिंह विवेक
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (02-11-2022) को "जंगल कंकरीटों के" (चर्चा अंक-4600) पर भी होगी।
ReplyDelete--
कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार आदरणीय, ज़रूर हाज़िर होऊंगा 🙏
Deleteबहुत सुन्दर सृजन ।
ReplyDeleteआभार आदरणीया 🙏🙏🌹🌹
Deleteप्रेरणादायक
ReplyDeleteअतिशय आभार 🌹🌹
Deleteप्रेरणादायी जीवन गाथा, शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteआभार आदरणीया 🌹🌹🙏🙏
Deleteश्रमेव जयते
ReplyDeleteजी आदरणीया, सत्य वचन।
DeleteSach kaha aapne.mehant se hi sab kuchh milta hai
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका।
Deleteसभी रचनाएं अपने आप में अद्वितीय हैं अभिनंदन ।
ReplyDeleteअतिशय आभार आपका।
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