December 31, 2023

🌹🌹नव वर्ष,2024 मंगलमय हो🌷🌷

साथियो नमस्कार 🌹🌹🙏🙏


यह वर्ष भी अपनी पूरी रफ़्तार से पंख लगाकर गुज़र गया।पारिवारिक,सामाजिक,राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कितनी ही गतिविधियों/घटनाओं के हम साक्षी बने। इस वर्ष दुनिया में कुछ सुखद परिवर्तन भी हमने देखे तो ऐसे घटनाक्रम भी नज़र से गुज़रे जो अंदर तक झकझोर गए।

दुनिया के देशों ने जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिग को लेकर जो चिंता प्रकट की वह एक अच्छा संकेत कहा जा सकता है। उम्मीद है इस पर जल्द ही सामूहिक प्रयासों के परिणाम दिखाई देंगे। राष्ट्रीय स्तर पर अच्छे घटनाक्रमों की बात की जाए तो भारत के मिशन चंद्रयान 3 की अभूतपूर्व सफलता का दुनिया ने लोहा माना।यह हमारे लिए गौरव की बात है।
इस वर्ष दुनिया ने जो तबाही का मंज़र देखा उसने सबके रौंगटे खड़े कर दिए।बात चाहे रूस यूक्रेन युद्ध की हो या फिर इसराइल और हमास की जंग की। दुनिया में  चल रहे इन युद्धों में जान और माल की जितनी हानि हुई है उसका ठीक ठीक अनुमान लगाना बहुत मुश्किल है।इंसानी वहशीपन की इस चरम सीमा की जितनी भी भर्त्सना की जाए वह कम है।काश! लोगों की संवेदनाएं जागें और इंसानियत का जज़्बा ज़ोर मारे ताकि फिर कभी ऐसी तबाही की पुनरावृत्ति न हो।
इतिहास गवाह है कि युद्ध के माध्यम से न कभी किसी समस्या का हल निकला है और न ही कभी निकलेगा।ज़रूरत बातचीत और स्वस्थ्य विचारधारा को पल्लवित और पोषित करने की है। डंडे और ताक़त के ज़ोर पर किसी समस्या को दबाया तो जा सकता है परंतु उसका स्थाई हल विचारधाराओं में बदलाव और सामंजस्य से ही खोजा जा सकता है।
आशा करते हैं कि आने वाले साल में दुनिया से नफ़रत और द्वेष के बादल  छंटेंगे और मुहब्बत की नई रौशनी फैलेगी।
इन्हीं कामनाओं के साथ नए साल के स्वागत में एक नई ग़ज़ल आप सब की मुहब्बतों के हवाले करता हूं, प्रतिक्रिया से अवश्य अवगत कराएं :

आने वाले साल से उम्मीद बाँधे हुए एक ग़ज़ल

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     -- ओंकार सिंह विवेक

©️

गए साल  जैसा  न  फिर  हाल  होगा,

तवक़्क़ो है अच्छा  नया  साल  होगा।


मुहब्बत   के    हर   सू   परिंदे  उड़ेंगे,

बिछा नफ़रतों का न अब जाल होगा।


बढ़ेगी  न  केवल  अमीरों की  दौलत,

ग़रीबों का तबक़ा भी ख़ुशहाल होगा।


सुगम होंगी सबके ही जीवन की राहें,

न भारी  किसी  पर  नया साल होगा।


सलामत   रहेगी  उजाले   की  हस्ती,

अँधेरा   जहाँ  भी  है  पामाल  होगा।


उठाएँगे   ज़िल्लत   यहाँ   झूठ  वाले,

बुलंदी  पे  सच्चों  का  इक़बाल होगा।


न  होगा  फ़क़त  फ़ाइलों-काग़ज़ों  में,

हक़ीक़त में भी मुल्क ख़ुशहाल होगा।

          ---©️ ओंकार सिंह विवेक

                    रामपुर-उoप्रo 

 (सर्वाधिकार सुरक्षित) 

December 29, 2023

ग़ज़ल का बदलता स्वरूप

दोस्तो नमस्कार🌹🙏

अरबी, फ़ारसी और उर्दू भाषाओं से होते हुए ग़ज़ल हिंदी और अन्य भाषाओं में आई और अत्यंत  लोकप्रिय हुई।आज ग़ज़ल का जादू लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा है।हिंदी ग़ज़लकारों के साथ-साथ तमाम शायरों के दीवान भी आज हिंदी देवनागरी में प्रकाशित होकर सफलता के नए आयाम स्थापित कर रहे हैं।किसी ज़माने में औरतों से गुफ़्तगू और लब-ओ-रुख़सार की बात करना ही ग़ज़ल के कथ्य हुआ करते थे पर अब ग़ज़ल एक तवील रास्ता तय कर चुकी है।आज ग़ज़ल में जनसरोकार और ज़िंदगी से जुड़े तमाम दीगर पहलुओं को बड़ी ख़ूबसूरती के साथ पिरोकर लोगों की संवेदनाओं को जागृत करने का काम किया जा रहा है।दो पंक्तियों/शेर में एक बड़े महत्वपूर्ण विषय और कथ्य को ढालकर जब श्रोता के सम्मुख प्रस्तुत किया जाता है तो वह आह या वाह किए बिना नहीं रह पाता।यही शेर/ग़ज़ल की कामयाबी कही जाती है।
आज फिर एक ग़ज़ल आप सम्मानित साथियों की अदालत में प्रतिक्रिया की अपेक्षा के साथ पेश है:

ग़ज़ल --- ओंकार सिंह 'विवेक'     
©️
ज़हीनों की  महफ़िल में गर यार पढ़ना,
ग़ज़ल  कोई  अपनी  असरदार  पढ़ना।

अगर जानना  हो  तग़ज़्ज़ुल का मा'नी,
कभी  मीर-ग़ालिब के अशआर पढ़ना।

हमें  झील-सी  नीली आँखों में  उनकी,
लगा अच्छा चाहत  का  संसार पढ़ना।
©️
कोई ओज  पढ़ता है और  हास्य कोई,
किसी  को  सुहाता  है   शृंगार  पढ़ना।

बहुत  याद  आता  है  घर में  सभी को,
पिता जी का वो सुब्ह अख़बार पढ़ना।

किया ख़ूब  करते  हो तनक़ीद सब पर,
कभी आप अपना भी  किरदार पढ़ना।

'विवेक' इतनी आसान तहरीर कब थी,
पड़ा  उनके  ख़त को  कई  बार पढ़ना।
              ©️ओंकार सिंह विवेक 

ज़हीन -- बुद्धिमान
तग़ज़्ज़ुल-- लाक्षणिक/अलंकारिक 
तनक़ीद -- आलोचना,परीक्षण/छानबीन

December 27, 2023

अम्न पर खौफ़-सा मुसल्लत है

प्रख्यात शायर आदरणीय ओमप्रकाश नूर साहब की मेहरबानी के चलते कोलकता से प्रकाशित होने वाले प्रतिष्ठित अख़बार "सदीनामा" में अक्सर मेरी ग़ज़लें प्रकाशित होती रहती हैं। हाल ही में अख़बार में प्रकाशित हुई एक ग़ज़ल आप सम्मानित साथियों की अदालत में पेश है।
यदि प्रतिक्रिया से अवगत कराएंगे तो मुझे ख़ुशी होगी।

December 19, 2023

अलसाई - सी धूप


आज एक नवगीत : सर्दी के नाम

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      --  ©️ओंकार सिंह विवेक

छत पर आकर बैठ गई है,

अलसाई-सी धूप।

सर्द हवा खिड़की से आकर,

मचा रही है शोर।

काँप रहा थर-थर कुहरे के,

डर से प्रतिपल भोर।

दाँत बजाते घूम रहे हैं,

काका रामसरूप।

अम्मा देखो कितनी जल्दी,

आज गई हैं जाग।

चौके में बैठी सरसों का,

घोट रही हैं साग।

दादी छत पर  ले आई हैं,

नाज फटकने सूप।

आए थे पानी पीने को,

चलकर मीलों-मील।

देखा तो जाड़े के मारे,

जमी हुई थी झील।

करते भी क्या,लौट पड़े फिर,

प्यासे वन के भूप।

    ---  ©️ओंकार सिंह विवेक

(चित्र : गूगल से साभार) 

नदी को हम यही समझा रहे हैं 👈👈

December 15, 2023

लुत्फ़-ए-ग़ज़ल

दोस्तो नमस्कार 🌹🌹🙏🙏

कई दिन बाद फिर एक नई ग़ज़ल आपकी अदालत में पेश है।दो मिसरों में पूरा कथ्य बयान कर देना यों तो बहुत मुश्किल होता है परंतु ग़ज़ल का व्याकरण जब मेहनत करने की प्रेरणा देता है तो ग़ज़ल आख़िर मुकम्मल हो ही जाती है।पिछले हफ़्ते कई साहित्यिक ग्रुप्स में कई तरही मिसरे दिए गए ग़ज़ल कहने के लिए।एक मिसरे पर ज़ेहन बना और मेहनत आपके सामने है।

एक ताज़ा ग़ज़ल आपकी समा'अतों के हवाले
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🌸 अर्कान-- 
मफ़ऊलु - फ़ाइलातु - मफ़ाईलु - फ़ाइलुन
@
महफ़िल में सबको अपना परस्तार कर दिया,
शीरीं  ज़ुबां  से   उसने  चमत्कार  कर  दिया।

हम  जैसों  में  कहाँ  थी भला  ये  सलाहियत,
सोहबत ने शायरों की सुख़न-कार कर दिया।

ख़बरों में  सच की पहले-सी ख़ुशबू नहीं रही,  
सो बंद  हमने  आज  से  अख़बार कर दिया।
@
जो   अब   करें   उमीद   कोई   हुक्मरान  से,
पहले ही उसने  कौनसा उपकार  कर  दिया।

रखते  हैं  अब   हरेक  क़दम   देख-भालकर, 
इतना  तो  ठोकरों  ने  समझदार  कर  दिया।

क़ायम  रहे   हमारी   किताबों    से    दोस्ती,
इसने  ग़रीब  फ़िक्र  को  ज़रदार  कर  दिया।

आती   है  शर्म  आज   बताते  हुए  'विवेक', 
लोगों  ने  राजनीति  को  व्यापार  कर दिया।
            @ओंकार सिंह विवेक
परस्तार -- भक्त, प्रशंसक
शीरीं -- मीठी, मीठा 
सलाहियत -- योग्यता
सुख़न-कार --- कवि/शायर
हुक्मरान --- शासक,राजा
फ़िक्र -- चिंतन
ज़रदार -- मालदार ,धनी

December 10, 2023

सर्दी वाले दोहे

विषयगत दोहे

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 दिसंबर , रजाई , अलाव , चाय , धूप 

@ओंकार सिंह विवेक 

दिसंबर

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माह दिसंबर  आ  गया,ठंड  हुई   विकराल।

ऊपर  से  करने  लगा,सूरज  भी  हड़ताल।।

रजाई

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हाड़   कँपाती  ठंड  से,करके   दो-दो  हाथ।

स्वार्थ  बिना  देती रही,नित्य  रजाई  साथ।।

अलाव

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चौराहे  के  मोड़  पर,जलता  हुआ  अलाव।

नित्य विफल करता रहा,सर्दी का हर दाव।।

चाय

***

खाँसी और ज़ुकाम  का,करके  काम तमाम।

अदरक वाली  चाय  ने, ख़ूब कमाया  नाम।।

धूप

***

कल  कुहरे  का देखकर,दिन-भर घातक  रूप।

कुछ पल ही छत पर रुकी,सहमी-सहमी धूप।।

                    @ओंकार सिंह विवेक 

(सर्वाधिकार सुरक्षित)


अपनी बात 🌹🌹👈👈



December 2, 2023

नई ग़ज़ल!!! नई ग़ज़ल!!!नई ग़ज़ल!!!

कल कुछ साहित्यिक मित्रों के साथ गपशप हो रही थी। कुछ हास्य-विनोद और मस्ती के बाद चर्चा का रुख़ गंभीर हो गया।किसी महफ़िल में कवि और शायर इकट्ठे हों तो घूम-फिरकर बात कविता पर तो आनी ही होती है।
यही हुआ भी - बात काव्य/शायरी में सपाट बयानी और कलात्मकता को लेकर होने लगी।कविता में प्रतीकों और अलंकारिक भाषा को लेकर भी अच्छी बहस हुई।सभी इस बात पर एक राय थे कि कविता में प्रतीकों और बिंबों के प्रयोग की बात ही कुछ और है। इससे कविता में जो धार पैदा होती है उसका श्रोता भी लोहा मानते हैं और ऐसी कविता को अधिक पसंद करते हैं।फूल,तितली,चमन, मयख़ाना, शैख़,ब्राह्मण, तीरगी,रौशनी आदि इन तमाम प्रतीकों के माध्यम से कवि/शायर ऐसी गहरी बातें कह देते हैं जो पाठक/श्रोता के मन पर गहरा प्रभाव छोड़ देती हैं।
उस वार्तालाप के बाद ज़ेहन बना और एक मतला' हो गया।मतले के साथ ही आज ग़ज़ल भी मुकम्मल हो गई जो आपकी प्रतिक्रिया हेतु प्रस्तुत है:

December 1, 2023

अभी तीरगी के निशां और भी हैं

नमस्कार मित्रो 🌹🙏
एक मतला' और एक शेर समाअत कीजिए :

@
अभी  तीरगी  के निशाँ और भी  हैं,
उजाले  तेरे  इम्तिहाँ  और   भी  हैं।

अभी रंजो-ग़म कुछ उठाने हैं बाक़ी,
अभी तो  मेरे  मेहरबाँ  और  भी  हैं।
     @ओंकार सिंह विवेक 
 



November 27, 2023

इज़हारे-ख़याल : एक तरही ग़ज़ल

शुभ प्रभात मित्रो 🌹🌹🙏🙏

कई दिनों बाद एक तरही ग़ज़ल सृजित हुई है।आपकी प्रतिक्रियाओं हेतु प्रस्तुत कर रहा हूं:

मिसरा'-ए-तरह 👉 मैनें खुद से भी दोस्ती की है
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ग़ज़ल -- ओंकार सिंह विवेक 
@
सब  ख़ता  इसमें  आदमी की है,
साँस उखड़ी जो  ये  नदी  की है।

वो जो  सच  की  दुहाई  देता था,
झूठ   की   उसने  पैरवी  की  है।

धूप का  क्यों  न  ख़ैर मक़्दम हो,   
ठंड  भी  तो  ये  जनवरी  की  है। 
@
ताड़  तिल  का  बना  के  छोड़ेगा,
जैसी फ़ितरत उस आदमी की है।

हौसले  को  सलाम  है   गुल   के,
एक   पत्थर   से   दोस्ती  की  है।      

फूल-फल  ही  नहीं  दिए  केवल,
छाँव  भी   पेड़  ने   घनी  की है।

जो  ग़ज़ल  हम  सुना रहे हैं तुम्हें,
बस मुकम्मल अभी-अभी की है।
          @ओंकार सिंह विवेक

November 23, 2023

पल्लव काव्य मंच रामपुर (उoप्रo)का शारदीय काव्य महोत्सव

नमस्कार मित्रो 🌹🙏

साहित्यकार अपने सृजन से समाज,देश और दुनिया को जोड़ने की बात करता है। साहित्यकार का ज़ात-बिरादरी और देशों की सीमाबंदियों से कोई सरोकार नहीं होता। वह अपने विराट चिंतन और जन कल्याणकारी सृजन से देश और दुनिया को दिशा देने का पुनीत कार्य करता है।कुछ ऐसा ही विश्वव्यापी सद्भावना का संदेश लेकर विराटनगर नेपाल से दो वरिष्ठ साहित्यकार अपनी धर्म पत्नियों के साथ रामपुर पधारे।
नेपाली तथा हिंदी भाषाओं के इन वरिष्ठ साहित्यकारों डॉक्टर घनश्याम परिश्रमी जी तथा डॉक्टर देवी पंथी जी के सम्मान में पल्लव काव्य मंच रामपुर द्वारा शानदार शारदीय काव्य महोत्सव का आयोजन किया गया।२२ नवंबर,२०२३ को माया देवी धर्मशाला रामपुर में आयोजित इस कार्यक्रम में विदेशी तथा स्थानीय साहित्यकारों के साथ पड़ोस के नगरों संभल और बहजोई के साहित्यकारों ने भी सहभागिता की।
कार्यक्रम के पहले चरण का शुभारंभ पूर्व में त्रिभुवन विश्वविद्यालय काठमाण्डू, नेपाल में सेवारत रह चुके इन दो साहित्यकारों के सम्मान में शानदार कवि सम्मेलन
से हुआ।
कविता पाठ करते हुए सम्भल से पधारे व्यंग्य कवि अतुल शर्मा ने कहा- भ्रष्टाचारी दम भरते हैं सत्ता के प्रभावों में/लोकतंत्र फिर बिक जाता है औने-पौने भावों में।
राजीव शर्मा ने कहा- रामपुर की खास निशानी चाकू मेरा नाम/इसी शहर में बनता हूँ मैं यही मेरी पहचान। 
कविता पाठ करते हुए पँवासा के ज्ञानप्रकाश उपाध्याय ने कहा- खून की हर बूँद से लिख देंगे हिंदुस्तान/तुझपे समर्पित मेरा दिल मेरी जान। 
पल्लव काव्य मंच के उपाध्यक्ष ग़ज़लकार ओंकार सिंह विवेक ने तंज कसते हुए कहा- लुत्फ़ क्या आएगा शराफ़त में/आप अब आ गये सियासत में। 
अध्यक्ष शिव कुमार चन्दन ने कहा-चल पड़ी अनवरत फिर चली हर नदी/पहले गन्तव्य से कब रुकी हर नदी। 
बहजोई से कवि दीपक गोस्वामी चिराग ने बेटियों को नसीहत करते हुए कहा- मात-पिता के प्रेम का रख गौरैया मोल/धरती के भगवान हैं मात-पिता अनमोल। 
रश्मि चौधरी ने कहा- कुछ बोझ दिल से उतारा जाए/उसे एक बार फिर पुकारा जाए। 
शायर प्रदीप राजपूत माहिर ने कहा- आपका साथ ही जब मयस्सर नहीं/ये मुक़द्दर तो कोई मुक़द्दर नहीं। 
कवि सचिन सार्थक ने कहा-प्यार खामोशियाँ प्यार है बोलना/प्यार काँधों पे सिर रख के है डोलना। 
शायर अश्क रामपुरी ने फरमाया- आँधियों का का दम निकाला जाएगा/ अब दिए में ख़ून डाला जाएगा। 
विनोद शर्मा ने मानवता के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा-जहाँ इंसानियत की रौशनी हो/वहीं काबा है अपना सर झुका लो।  
अनमोल रागिनी ने कहा- मत देना कर्तव्य है मतदाता अधिकार/मत देने से ही बने लोकतंत्र सरकार। 
डॉo प्रीति अग्रवाल ने कहा- पैसा है बहुमूल्य रखना इसका मान/बिन पैसे पाता नहीं कोई भी सम्मान।
विराटनगर नेपाल से आये डॉ देवी पंथी ने कहा- झूम के सावन आया देखो तो/बादल ने पानी बरसाया देखो तो।
 लुम्बिनी प्रदेश नेपाल से डॉ घनश्याम परिश्रमी ने कहा- कविता अरुणोदय की लाली/कविता बनती पूजन थाली।
 डॉ देवी पंथी ने नेपाल में ग़ज़ल के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालते हुए वहां इस विधा के तेज़ी से लोकप्रिय होने का भी ज़िक्र किया।
 डॉ घनश्याम परिश्रमी ने नेपाल में हिन्दी और नेपाली भाषा के सह-अस्तित्व और विकास से अवगत कराया।
नेपाल से ही आयीं राधिका पंथी और राधा न्यौपाने ने भी अपना काव्यपाठ प्रस्तुत किया। 
कार्यक्रम के अंत में नेपाल एवं बाहर से आये साहित्यकारों को शॉल, प्रशस्ति पत्र तथा स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया गया।
इस अवसर पर सीताराम शर्मा, हरीश सक्सेना, गोविंद शर्मा, सुनील वैश्य, रामसागर शर्मा, जावेद रहीम, नवीन पाण्डे, राजवीर सिंह राज़, अशोक सक्सेना, हरीश सक्सेना आदि उपस्थित रहे। संचालन महासचिव प्रदीप राजपूत माहिर ने किया।
कार्यक्रम की स्थानीय समाचार पत्रों द्वारा सुंदर कवरेज के लिए पल्लव काव्य मंच रामपुर उनका हार्दिक आभार प्रकट करता है।

प्रस्तुति : ओंकार सिंह विवेक
ग़ज़लकार/समीक्षक/कंटेंट राइटर/ब्लॉगर

November 15, 2023

त्योहार के बहाने

नमस्कार मित्रो 🌹🌹🙏🙏

हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी दीपों का त्योहार दीपावली आया और चला गया। कुछ बस्तियों में ख़ूब धूम-धड़ाका हुआ।कुछ घरों में हज़ारों की आतिशबाज़ी आई और स्वाहा कर दी गई। अमीरों के यहाँ मिठाइयों/ड्राई फ्रूट्स और गिफ्ट्स के जमकर आदान-प्रदान हुए।
.        (चित्र : गूगल से साभार) 
दूसरी तरफ़ कुछ बस्तियों में वो धूम-धड़ाका या उत्साह का माहौल देखने को नहीं मिला जो होना चाहिए था। निर्धन फुटपाथ पर फड़ लगाकर सामान ही बेचते रहे ताकि दो वक्त की रोटी का जुगाड़ कर सकें।
समाज में इस आर्थिक क्षमता या परचेसिंग पॉवर में हद दर्जे की असमानता/असंतुलन को देखकर ह्रदय बहुत व्यथित हुआ।इसके पीछे संसाधनों का असमान वितरण/अभाव, सामाजिक स्तर/सामाजिक विसंगति या अर्थशास्त्र के तमाम तर्क हो सकते हैं जिन पर बुद्धिजीवी लंबी बहसें कर सकते हैं।
.      (चित्र : गूगल से साभार)
तथ्य और कारण कोई भी हों परंतु दीपावली पर जब एक तरफ़ भरपूर मस्ती और एक तरफ़ मायूसी देखी तो कवि मन से दो दोहे सृजित हुए जो आप सभी के साथ साझा कर रहा हूं :
@
महलों में ही बँट गया,सब का  सब उजियार।
झोपड़ियों में रह गया,फिर वह ही अँधियार।।

सजने  दो  जिनके  लिए, सजें हाट - बाज़ार।
अपनी  तो  है  जेब  पर, भारी  हर  त्योहार।।
               @ओंकार सिंह विवेक 

November 7, 2023

हिंदुस्तानी भाषा अकादमी दिल्ली का काव्य प्रतिभा सम्मान समारोह ,2023

नमस्कार मित्रो 🌹🌹🙏🙏


हिंदुस्तानी भाषा अकादमी दिल्ली का पुस्तक विमोचन और 
ग़ज़लकार सम्मान समारोह,2023
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 स्व वित्तपोषित संस्था हिंदुस्तानी भाषा अकादमी दिल्ली द्वारा 5 नवंबर, 2023 को दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय युवा केंद्र में ग़ज़ल संग्रह "गुलदस्ता-ए-ग़ज़ल" का विमोचन, ग़ज़लकार सम्मान तथा पुस्तक में चयनित ग़ज़लकारों के ग़ज़ल पाठ का एक शानदार कार्यक्रम आयोजित किया गया।
मशहूर उस्ताद शायर सीमाब सुल्तानपुरी जी ने इस कार्यक्रम की अध्यक्षता की और 'गुलदस्ता-ए-गज़ल' साझा ग़ज़ल-संग्रह को मूर्त रूप देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले ग़ज़ल-गुरु श्री देवेंद्र मांझी जी मुख्य अतिथि के रूप में मंचासीन रहे। विशेष अतिथि के रूप में सर्वभाषा ट्रस्ट के निदेशक डॉ. केशव मोहन पांडे इस समारोह में शामिल थे।
बताते चलें कि ग़ज़ल संग्रह हेतु लगभग 170 से 175 ग़ज़लकारों ने अपनी रचनाएँ प्रेषित की थीं जिनमें से 50 ग़ज़लकारों की दो-दो श्रेष्ठ ग़ज़लों का चयन किया गया था।सौभाग्य से मुझे भी इस संग्रह में छपने का अवसर प्राप्त हुआ।
समारोह में मेरठ के वरिष्ठ साहित्यकार श्री बृजराज किशोर 'राहगीर' को हिंदुस्तानी भाषा काव्य प्रतिभा सम्मान -2023 प्रदान करने के साथ ही पुस्तक में छपे अन्य श्रेष्ठ ग़ज़लकारों को भी  सम्मानित किया गया।यह सम्मान उन्हें ग़ज़ल विधा के उस्ताद शायर श्री देवेंद्र मांझी एवं सीमाब  सुल्तानपुरी जी द्वारा प्रदान किए गए। 
सभी चयनित रचनाकारों को मिले सम्मान विशेष है क्योंकि यह एक पारदर्शी और पूर्ण निष्पक्ष प्रक्रिया के बाद प्रदान किए गए हैं।
 अकादमी द्वारा इससे पूर्व में साहित्य की गीत विधा पर यह सम्मान दिया गया था। 
 कार्यक्रम में अकादमी के अध्यक्ष श्री सुधाकर पाठक ने अकादमी की कार्यपद्धति और इसकी भावी योजनाओं के संबंध में विस्तार से जानकारी दी। कार्यक्रम का सफल संचालन संस्था की कार्यकारिणी के सदस्य- सुश्री संजय गरिमा, डा.सोनिया अरोड़ा और समन्वयक विनोद पाराशर जी ने किया।
भारतीय भाषाओं के उन्नयन एवं संवर्धन को समर्पित संस्था 'हिंदुस्तानी भाषा अकादमी के इस पुनीत कार्य की जितनी भी प्रशंसा की जाए वह कम है।समारोह में देश भर से आए हुए श्रेष्ठ ग़ज़लकारों से मिलने का अनुभव बहुत सुखद रहा।
कार्यक्रम में आमंत्रित तथा सम्मानित करने के लिए मैं अकादमी के प्रमुख श्री सुधाकर पाठक जी तथा श्री विनोद पाराशर जी का ह्रदय से आभार प्रकट करता हूं 🙏🙏
 --- ओंकार सिंह विवेक
ग़ज़लकार/समीक्षक/कंटेंट राइटर/ब्लॉगर





November 1, 2023

(यादगार लमहे)भाई प्रदीप पचौरी का सेवा निवृत्ति समारोह

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३० अक्टूबर,२०२३ को रात लगभग आठ बजे भाई प्रदीप पचौरी जी का फोन आया कि कल मैं बैंक-सेवा से निवृत्ति प्राप्त कर रहा हूं।इस अवसर पर मैंने बैंक के साथियों के लिए डिनर पार्टी का आयोजन किया है जिसमें आप सादर आमंत्रित हैं। मैंने उन्हें जीवन की अगली पारी के लिए शुभकामना देते हुए सहर्ष आने की स्वीकृति दी।
अगले दिन दोपहर में पुन: भाई पचौरी जी और प्रथमा यू पी ग्रामीण बैंक की मुख्य शाखा के क्षेत्राधिकारी प्रिय प्रिंस कुमार का फोन आया कि सर आपको कार्यक्रम कंडक्ट भी करना है।मुझे ख़ुशी हुई कि बैंक से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति प्राप्त करने के चार साल बाद भी वर्तमान बैंक कर्मी मुझे उतना ही स्नेह देते हैं।मुझे बैंक सेवा में बिताए अपने वे पुराने दिन याद आ गए जब मैं अपने सहकर्मियों के साथ प्रथमा बैंक क्षेत्रीय कार्यालय में ऐसे तमाम कार्यक्रम सफलता पूर्वक कंडक्ट किया करता था।बैंक के मुख्य कार्यालय मुरादाबाद के ट्रेनिंग सेंटर का एसोशिएट डायरेक्टर रहते हुए भी ऐसे तमाम कार्यक्रम कंडक्ट करने का अवसर प्राप्त होता रहता था जिसके प्रतिफल में अपने उच्चाधिकारियों से प्रशंसा भी प्राप्त होती थी।
अब और अधिक विषयांतर न करते हुए मुद्दे पर आता हूं।३१ अक्टूबर,२०२३ को शाम लगभग साढ़े सात बजे बैंक की मुख्य शाखा रामपुर में भाई प्रदीप पचौरी जी की विदाई पार्टी का आयोजन किया गया।

मंच पर कार्यक्रम के मुख्य आकर्षण भाई प्रदीप पचौरी जी के साथ क्षेत्रीय प्रबंधक संजय जौहरी जी,वरिष्ठ प्रबंधक हरनंदन गंगवार जी तथा मुख्य शाखा के वरिष्ठ प्रबंधक सौरभ कुमार अमरनानी जी विराजमान रहे। सर्वप्रथम मंचासीन महानुभावों द्वारा बुके तथा फूल मालाओं से भाई प्रदीप पचौरी जी का स्वागत किया गया।उसके बाद कार्यक्रम में उपस्थित अन्य सभी बैंक कर्मियों तथा पचौरी जी के परिजनों एवं रिश्तेदारों द्वारा मालाएं पहनाकर उनका स्वागत किया गया।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए मैंने पचौरी जी के ३७ वर्ष २ माह के कार्यकाल पर सूक्ष्म प्रकाश डालते हुए वक्ताओं को अवसर के अनुकूल विचार व्यक्त करने के लिए मंच पर आमंत्रित किया। हरनंदन गंगवार , प्रदीप यादव तथा प्रिंस कुमार आदि ने इस अवसर पर बोलते हुए बैंक स्टाफ के साथ पचौरी जी के सरल व्यवहार और सहयोग को लेकर प्रशंसा करते हुए उन्हें अपनी शुभकामनाएं दीं।
मुख्य शाखा रामपुर के प्रबंधक सौरभ जी ने रामपुर शाखा में पचौरी जी के सूक्ष्म कार्यकाल की प्रशंसा करते हुए उन्हें शुभकामनाएं दीं।रामपुर क्षेत्र के क्षेत्रीय प्रबंधक संजय जौहरी साहब ने पचौरी जी से अपने पुराने जुड़ाव को लेकर कई संस्मरण सुनाए तथा उनकी क्रिकेट में रुचि और इसमें उनकी उपलब्धियों के बारे में विस्तार से बताया।जौहरी साहब ने बैंक की ओर से भविष्य में भी पचौरी जी को हर प्रकार के सहयोग का आश्वासन दिया।
पचौरी जी के परिजनों और रिश्तेदारों द्वारा भी इस अवसर पर पचौरी जी के साथ जुड़े कई संस्मरण और अनुभव साझा करते हुए उनके आत्मीयतापूर्ण व्यवहार की प्रशंसा की गई।इस अवसर पर सभी लोग काफ़ी भावुक नज़र आए जो स्वाभाविक भी है।अपने भावुक संबोधन में सेवानिवृत्ति प्राप्त कर रहे भाई प्रदीप पचौरी ने कहा कि मैंने अपनी सामर्थ्य के अनुसार बैंक को अपना सौ प्रतिशत देने का पूरा प्रयास किया।कुछ परेशानियां भी आईं और कटु अनुभव भी हुए परंतु उनको कार्य का अंग मानते हुए स्वीकार किया ।उन्होंने सभी से मिले सहयोग के लिए आभार प्रकट किया।अंत में बैंक की ओर से क्षेत्रीय प्रबंधक,शाखा प्रबंधक तथा अन्य बैंक स्टाफ द्वारा पचौरी जी को मोमेंटो, शॉल और गिफ्ट आदि प्रदान किए गए।शाखा प्रबंधक द्वारा सभी का आभार प्रकट करते हुए कार्यक्रम समापन की घोषणा की गई।
शाखा से विदाई के बाद भाई प्रदीप पचौरी जी द्वारा सब के लिए सूर्या बैंक्वेट हॉल में एक शानदार डिनर पार्टी का आयोजन किया गया।इस पार्टी में पुराने तमाम साथियों से भेंट करके मन को प्रसन्नता हुई। ऐसे आयोजनों में सम्मिलित होने का एक फ़ायदा यह भी होता है कि जिन लोगों से पारिवारिक व्यस्तताओं के चलते व्यक्तिगत रूप से मिलना नहीं हो पाता उनसे भेंट हो जाती है और घर-परिवार में सबकी  ख़ैरियत भी पता चल जाती है।इस दृष्टि से यह अवसर उपलब्ध कराने के लिए भाई प्रदीप पचौरी का अतिरिक्त हार्दिक आभार प्रकट करना बनता है।
नीचे इस अवसर पर साथियों के साथ लिए गए कुछ छायाचित्र प्रस्तुत हैं :


अंत में अपने इस दोहे के माध्यम से पचौरी जी को जीवन की अगली पारी के लिए शुभकामना देते हुए उनके दीर्घायु होने की कामना करता हूं :

     हर विपदा-बाधा मिटे,हो जीवन  ख़ुशहाल।
     मित्र पचौरी है दुआ,आप  जिएं सौ  साल।।
              @ ओंकार सिंह विवेक 
प्रस्तुति :
ओंकार सिंह विवेक
ग़ज़लकार/समीक्षक/कंटेंट राइटर/ब्लॉगर

विशेष :
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October 27, 2023

रस सिद्ध शायर देवी प्रसाद गौड़ 'मस्त' की 110 वीं जयंती

नमस्कार मित्रो 🌹🌹🙏🙏
     
        (मंच पर अतिथि के रूप में साहित्यकारों एवम् रणधीर प्रसाद गौड़ धीर जी के परिजनों के साथ सुखद पल)
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बरेली के वरिष्ठ शायर और कवि आदरणीय रणधीर प्रसाद गौड़ धीर साहब का लगभग एक माह पूर्व फोन आया था कि हमारे पिताश्री मशहूर शायर और कवि पंडित देवी प्रसाद गौड़ मस्त जी की ११० वीं जयंती पर आयोजित होने वाले कवि सम्मेलन और साहित्यकार सम्मान समारोह में आप सादर आमंत्रित हैं। 
आदरणीय धीर साहब का स्नेह मुझे अक्सर ही साहित्यिक कार्यक्रमों में मिलता रहा है। यह भी एक सुखद संयोग है कि उनका प्रारंभिक जीवन मेरे गृह नगर रामपुर में ही बीता है सो अक्सर रामपुर से जुड़ी  पुरानी यादों को लेकर उनसे फोन पर बात होती रहती है।
 आदरणीय गौड़ साहब की मुहब्बतों के चलते
 २६ अक्टूबर ,२०२३ को रामपुर के वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय शिव कुमार चंदन जी के साथ उक्त कार्यक्रम में जाना हुआ।        
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि साहित्य भूषण सुरेश बाबू मिश्रा एवं विशिष्ट अतिथिगण रामपुर से पधारे शिवकुमार चंदन एव ओंकार सिंह विवेक रहे।अध्यक्षता वरिष्ठ शायर विनय सागर जायसवाल ने की।कार्यक्रम बरेली कवि गोष्ठी आयोजन समिति के तत्वावधान में संपन्न हुआ।कार्यक्रम में सर्वप्रथम अतिथियों द्वारा आदरणीय धीर साहब के ग़ज़ल संग्रह "सलाम-ए-इश्क़" का विमोचन किया गया।
     (रणधीर प्रसाद गौड़ धीर जी के ग़ज़ल संग्रह 
       सलाम-ए-इश्क़ का विमोचन)

 दूसरे चरण में साहित्यकार  शिव कुमार चंदन, ओंकार सिंह विवेक शायर असद मिनाई, असरार नसीमी, नईम खान शबाव कासगंजबी एवं किच्छा के नबी अहमद मंसूरी  को  साहित्यिक क्षेत्र में अविस्मरणीय योगदान के लिए 'पं.देवी प्रसाद गौड़ मस्त साहित्य सम्मान' प्रदान किया गया।सम्मान स्वरूप शॉल, प्रशस्ति पत्र एवं प्रतीक चिन्ह संस्था के अध्यक्ष/ कार्यक्रम संयोजक रणधीर प्रसाद गौड़ धीर, महासचिव बृजेंद्र तिवारी तथा संस्था सचिव उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट ने प्रदान किए।
     (कार्यक्रम में मेज़बान रणधीर प्रसाद गौड़ धीर तथा मंचासीन अतिथियों से 'पंडित देवी प्रसाद गौड़ मस्त साहित्य सम्मान' ग्रहण करते हुए)

 तृतीय सत्र में कवि सम्मेलन/ मुशायरा हुआ जिसमें कवियों/शायरों ने ने अपने समसामयिक काव्य पाठ से श्रोताओं को अंत तक बांधे रखा।कार्यक्रम में मंच पर आसीन कवियों के अतिरिक्त शिवरक्षा पांडेय, ज्ञान देवी वर्मा सत्यम्,वेद प्रकाश शर्मा अंगार,दीपक मुखर्जी, रामधनी निर्मल,रामकुमार भारद्वाज अफरोज, प्रकाश निर्मल, इंद्रदेव त्रिवेदी, निर्भय सक्सेना,डॉ शिव नरेश शुक्ल, एस.ए.हुदा,मिलन कुमार मिलन, राम कृष्ण शर्मा,सत्यवती सिंह सत्या, मिथिलेश गौड़ ,रामकुमार कोली, डॉ राजेश शर्मा ककरेली, उमेश अद्भुत,यदुवीर प्रसाद गौड़,ओमवीर सिंह, स्नेहा सिंह, सुरेंद्र बीनू सिंहा,मुजम्मिल हुसैन,अशोक कुमार व राजकुमार अग्रवाल आदि ने भी काव्य पाठ किया। कार्यक्रम का सफल संचालन मनोज दीक्षित टिंकू ने किया।
               (कार्यक्रम में काव्य पाठ करते हुए)
    
(साहित्यकार बंधुओं उपमेंद्र सक्सैना तथा टिंकू जी के साथ)
              (कार्यक्रम में उपस्थित कवि एवं श्रोतागण)

     (कार्यक्रम में वरि० साहित्यकार चंदन जी के साथ)
 (काव्य पाठ करते हुए मेज़बान वरिष्ठ शायर/कवि रणधीर प्रसाद गौड़ धीर साहब)

अंत में जलपान के बाद धीर साहब ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कार्यक्रम समाप्ति की घोषणा की।
कार्यक्रम में आदरणीय रणधीर प्रसाद गौड़ धीर साहब के परिजनों ने जिस आत्मीयता और आतिथ्य भाव से आगंतुकों की आवभगत की उसकी जितनी भी प्रशंसा की जाए वह कम है। कार्यक्रम की आयोजन व्यवस्था में संस्था के सचिव प्रिय भाई उपमेंद्र सक्सैना जी की सक्रियता ने भी बहुत प्रभावित किया।
पंडित देवी प्रसाद गौड़ मस्त जी को स्मृतियों को नमन करते हुए अपनी इन चार पंक्तियों के साथ पोस्ट को समाप्त करता हूं :
             महफ़िलों   का   नूर  थे   शृंगार  थे,
             सबकी चाहत थे सभी का प्यार थे।
             'मस्त' था जिनका तख़ल्लुस दोस्तो,
             वो अदब के  इक बड़े फ़नकार  थे।
                           @ ओंकार सिंह विवेक 

कार्यक्रम की स्थानीय समाचार पत्रों द्वारा शानदार कवरेज की कुछ झलकियाँ 👇👇
         
ओंकार सिंह विवेक
 -- ग़ज़लकार/समीक्षक/कंटेंट राइटर/ब्लॉगर

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