October 4, 2022

पल्लव काव्य मंच का पुस्तक लोकार्पण,कवि सम्मेलन तथा साहित्यकार सम्मान समारोह,२०२२

मित्रो प्रणाम🌹🌹🙏🙏

कवि समाज में जो कुछ घटित हो रहा होता है उसे अपनी सूक्ष्म दृष्टि से देखकर अपने चिंतन की उड़ान के माध्यम से कविता में ढालता है।जब सामाजिक विसंगतियां और विद्रूपताएं उसे उद्वेलित करती हैं तो वह अपने काव्य सृजन द्वारा उन्हें समाप्त करने का संदेश भी देता है। इस प्रकार एक साहित्यकार काव्य सृजन के माध्यम से समाज-निर्माण के कार्य में बढ़ चढ़कर अपनी भागीदारी सुनिश्चित करता है।  इसलिए कवि को केवल युग दृष्टा ही नहीं अपितु युग सृष्टा भी कहा जाता है।

काव्य साहित्य साधना में निमग्न ऐसे ही साहित्यकारों को पल्लव काव्य मंच से जोड़कर रामपुर के वरिष्ठ साहित्यकार श्री शिवकुमार चंदन जी निरंतर हिंदी साहित्य के संवर्धन द्वारा  समाज की सेवा कर रहे हैं। चंदन जी द्वारा संचालित पल्लव काव्य मंच,रामपुर -उ०प्र०द्वारा२ अक्टूबर,२०२२ को गांधी जी तथा लालबहादुर शास्त्री जी की जयंती के अवसर पर माया देवी धर्मशाला, ज्वालानगर रामपुर में पुस्तक लोकार्पण, कवि सम्मेलन तथा साहित्यकार सम्मान समारोह का एक शानदार कार्यक्रम संपन्न हुआ।
कार्यक्रम में स्थानीय कवियों और आमंत्रित अतिथियों के साथ-साथ बरेली,खटीमा, बिसौली, बहजोई, संभल,गाजियाबाद,अलीगढ़ ,देहरादून और ऋषिकेश आदि सुदूर स्थानों से पधारे साहित्यकारों ने सहभागिता की।
यह विशाल आयोजन दो चरणों में संपन्न हुआ।कार्यक्रम के पहले सत्र में ११बजे से अपराह्न २बजे तक कवि सम्मेलन हुआ । जिसमें मंच व्यवस्था इस प्रकार रही :

अध्यक्ष : वरिष्ठ कवि रणधीर प्रसाद गौड धीर,बरेली 
मुख्य अतिथि: वरिष्ठ कवि बाबा कल्पनेश,ऋषिकेश
विशिष्ठ अतिथिद्वय : वरिष्ठ साहित्यकार रूपकिशोर गुप्ता
                                         बहजोई
                             : वरिष्ठ साहित्यकार गाफिल स्वामी
                                   इगलास,अलीगढ़
इस सत्र का संचालन करने का अवसर मुझे प्राप्त हुआ।

कवि सम्मेलन में मां शारदे के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन के उपरांत रागिनी गर्ग द्वारा सरस्वती वंदना प्रस्तुत की गई। इसके बाद कवियों द्वारा विधिवत काव्य पाठ किया गया।सभी ने देश-काल के अनुसार अपनी श्रेष्ठ सामयिक प्रस्तुतियों से आमंत्रित श्रोताओं की ख़ूब तालियाँ बटोरीं। 

      काव्य पाठ करते हुए  प्रदीप राजपूत माहिर 

      काव्य पाठ करते हुए रामरतन यादव रतन
भोजन अवकाश के उपरांत दूसरा सत्र विधिवत प्रारंभ हुआ, जिसका कुशल संचालन प्रदीप राजपूत माहिर जी द्वारा किया गया। इस सत्र में सर्वप्रथम मंच के अध्यक्ष श्री शिव कुमार चंदन जी की काव्य कृति 'शारदे स्तवन' का  मंच-अतिथियों
द्वारा लोकार्पण किया गया।
इसके पश्चात डॉक्टर अरुण कुमार,डॉक्टर प्रीति अग्रवाल,श्री रूपकिशोर गुप्ता और श्री अतुल कुमार शर्मा द्वारा पुस्तक की समीक्षा प्रस्तुत की गई।
समीक्षकों द्वारा कवि चंदन की 'शारदे स्तवन' कृति में विद्यमान भक्ति भाव की मुक्त कंठ से प्रशंसा की कई।सभी ने उनकी वंदनाओं में भाव पक्ष को बहुत प्रबल बताया।स्मरण रहे कि श्री चंदन जी की इस कृति में सभी रचनाएं मां सरस्वती को समर्पित हैं।
कार्यक्रम में पटल के संरक्षक वरिष्ठ साहित्यकार डाक्टर रघुवीर शरण शर्मा जी की कृति 'देखें तनिक विचार'  का भी लोकार्पण किया गया।
(मेहमान कवियों श्री बाबा कल्पनेश जी तथा श्री राजेश डोभाल जी के साथ श्री शिवकुमार चंदन जी और मैं) 

कार्यक्रम के अंतिम चरण में इस पटल के विभिन्न विधाओं के समीक्षकों सहित अनेक स्थानीय तथा मेहमान साहित्यकारों को अंग वस्त्र,प्रशस्ति पत्र तथा स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया गया।मुझे भी इस पटल के ग़ज़ल विधा के समीक्षक के रूप में 'कवि जे के रतन स्मृति सम्मान' देकर सम्मानित किया गया, इसके लिए मैं पटल के अध्यक्ष श्री शिवकुमार चंदन जी का हार्दिक आभार प्रकट करता हूं।यह सम्मान आदरणीय श्री कमल रतन जी ने अपने पिता स्मृतिशेष कवि श्री जे के रतन जी की स्मृति में शुरू कराया है।
अंत में मंच के अध्यक्ष श्री शिव कुमार चंदन द्वारा सभी का आभार व्यक्त करते हुए कार्यक्रम समापन की घोषणा की।
पटल के मीडिया प्रभारी प्रिय नवीन पाण्डे द्वारा अखबारों में कार्यक्रम की बहुत सुंदर रिपोर्टिंग की गई जिसके लिए वह अतिरिक्त धन्यवाद और बधाई के पात्र हैं।
कार्यक्रम में मंच के पदाधिकारियों भाई विनोद शर्मा जी, आशीष पांडे जी और वरिष्ठ उपाध्यक्ष श्री सीताराम शर्मा जी का विशेष सहयोग रहा। पटल के पदाधिकारी डॉक्टर अरविंद गौतम जी,प्रधानाचार्य हामिद इंटर कॉलेज रामपुर सहित अन्य गणमान्य व्यक्ति भी समारोह में उपस्थित रहे।भोजन व्यवस्था का श्री प्रवीण भांडा जी द्वारा उत्तम प्रबंध किया गया।
         प्रस्तुतकर्ता : ओंकार सिंह विवेक 

October 3, 2022

यादों के झरोखों से (कड़ी -२)

नमस्कार मित्रो🌹🌹🙏🙏

यादों के झरोखों से (कड़ी -१) के अंतर्गत मैंने रामपुर के 'पल्लव काव्य मंच' द्वारा कुछ वर्ष पूर्व आयोजित की गई एक काव्य गोष्ठी के संस्मरण आपके साथ साझा किए थे। इस सिलसिले की दूसरी कड़ी में आज प्रस्तुत है २ अक्टूबर,२०१९ को वरिष्ठ नागरिक संघ ,एकता विहार कॉलोनी रामपुर-उ०प्र० द्वारा आयोजित कराई गई एक स्थानीय कवि गोष्ठी का रोचक संस्मरण।

मैं रामपुर नगर की जिस सत्याविहार कॉलोनी में रहता हूं उससे कुछ ही दूरी पर सड़क के दूसरी और एकता विहार कॉलोनी स्थित है।१८ -१९ वर्ष पूर्व जब मैंने अपना घर नहीं बनाया था तब मैं कई साल तक उसी कॉलोनी में श्री वर्मा जी, जो अब नहर विभाग से सेवा निवृत्त हो चुके हैं,के मकान में रहा था।इस तरह मेरा उस कॉलोनी से थोड़ा भावनात्मक जुड़ाव भी रहा है।इस कॉलोनी के लोगों में आपसी मेल जोल और आत्मीयता का जो रिश्ता है वह दिल को बहुत प्रभावित करता है।कॉलोनी के लोग आपसी सहयोग के आधार पर मूलभूत संसाधनों का प्रबंधन करके सभी तीज-त्योहार पूरे आनंद और उत्साह के साथ मनाते हैं।इस कॉलोनी के संभ्रांत वरिष्ठ नागरिकों ने मिलकर 'वरिष्ठ नागरिक संघ' बना रखा है। इस संघ के गठन में श्री सीताराम शर्मा, श्री अनिल कुमार सक्सैना,श्री राजीव कुमार शर्मा और श्री कमल रतन शर्मा जी जी जैसे कई वरिष्ठ भद्रजनों का बहुत बड़ा योगदान है।
जिन लोगों का मैंने ऊपर उल्लेख किया है यदि मैं आपको उनके व्यक्तित्व की खूबियों से परिचित न कराऊं तो यह पोस्ट अधूरी कही जाएगी।
श्री सीताराम शर्मा जी अध्यापन कार्य से जुड़े रहे हैं अत: अनुशासन और प्रबंधन जैसे गुण उनके व्यक्तित्व को सुशोभित करते हैं।बहुत ही मृदुभाषी और मिलनसार हैं। उनका सामाजिक क्षेत्र बहुत व्यापक है। सामाजिक आयोजनों के लंबे अनुभव के कारण उन्हें किसी भी समारोह के प्रबंधन में कभी कोई कठिनाई नहीं होती। श्री सीताराम शर्मा जी के सभी बच्चे सैटल्ड हैं। अब यह दंपति अपने ढंग से  अच्छा जीवन व्यतीत कर रहा है। दंपति के दीर्घ आयु होने की कामना है।
        (श्री सीताराम शर्मा जी और उनकी धर्मपत्नी)

श्री अनिल कुमार सक्सैना जी को मैं अपने बैंक-कार्यकाल से ही जानता हूं। मैं प्रथमा बैंक में कार्यरत था और श्री सक्सैना जी यू पी स्टेट एग्रो कारपोरेशन में कार्यरत थे।उस संस्था का करेंट अकाउंट हमारे बैंक की रामपुर शाखा में था।इस कारण सक्सैना जी का लगभग रोज़ ही बैंक में आना-जाना होता था।सक्सैना जी बहुत ही मस्तमौला स्वभाव के व्यक्ति हैं।उनसे मिलकर हमेशा ही अपनेपन का एहसास होता है।श्री सक्सैना दंपति भी अपने दोनों बच्चों के सैटल होने के बाद आनंददायक जीवन गुज़ार रहा है। ईश्वर आपको लंबी उम्र प्रदान करें।
   (श्री अनिल कुमार सक्सैना जी तथा उनकी धर्मपत्नी)

कॉलोनी के तीसरे वरिष्ठ नागरिक श्री राजीव कुमार शर्मा जी भी सरकारी सेवा में रह चुके हैं। शर्मा जी बेलाग बात कहने और अपने ढंग से जीने में यक़ीन रखने वाले व्यक्ति हैं। अस्वस्थ्य रहने के बावजूद भी हमेशा ऊर्जावान रहते हैं।साहित्य में गहरी रुचि और अपने अलग तेवर के लिए जाने जाते हैं। शर्मा जी भी अपने परिवार के साथ जीवन की चुनौतियों का सामना करते हुए सुखी जीवन व्यतीत कर रहे हैं। ईश्वर इनको शतायु करें।
                        ( श्री राजीव कुमार शर्मा )
श्री कमल रतन शर्मा जी भी अध्यापन कार्य से जुड़े रहे, आप बहुत ही विनम्र स्वभाव के व्यक्ति हैं। आप सेवानिवृत्ति के बाद सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं।साहित्यिक गतिविधियों में रुचि आपको विरासत में मिली है।आपके पिता जी स्मृतिशेष श्री जयकृष्ण रतन जी एक योग्य शिक्षक  होने के साथ-साथ बहुत अच्छे कवि भी थे। श्री कमल रतन जी ने हाल ही में अपने पिता जी की स्मृति में पल्लव काव्य मंच रामपुर के माध्यम से "जे के रतन स्मृति सम्मान" भी शुरू कराया है। श्री कमल रतन जी भी जीवन की इस पारी का भरपूर आनंद ले रहे हैं।ईश्वर आपको भी लंबी आयु प्रदान करें।
      
   (श्री कमल रतन शर्मा जी को सम्मान प्रदान करने का अवसर प्राप्त हुआ)

इन वरिष्ठ जनों के अतिरिक्त भी कॉलोनी के कई लोगों से मेरी घनिष्ठता है। अच्छे ग़ज़लकार भाई प्रदीप राजपूत, अध्यापक और अच्छे कवि भाई विनोद शर्मा जी जैसे मेरे शुभचिंतक  इसी कॉलोनी में निवास करते हैं।
मेरे बैंक में सहकर्मी रहे सुनील कुमार वैश्य,दीपक शुक्ला,राजीव मित्तल,श्रीमती अनीता शर्मा आदि के परिवार भी इसी कॉलोनी में रहते हैं।

एकता विहार कॉलोनी के लोग 'वरिष्ठ नागरिक संघ' के बैनर तले विभिन्न कार्यक्रम आयोजित करते रहते हैं।इसी श्रंखला में २ अक्टूबर ,२०१९ को राष्ट्रीय एकता को लेकर एक कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया था।जिसके कुछ चित्र नीचे साझा किए जा रहे हैं। 

गोष्ठी की अध्यक्षता पशु चिकित्सा अधिकारी श्रीमती मोनिका शर्मा द्वारा और कुशल संचालन श्री सीताराम शर्मा एवम श्री कमल रतन शर्मा जी द्वारा किया गया था।श्री सीताराम शर्मा जी स्वयं कवि तो नहीं हैं परंतु कविता और शायरी में अच्छी दिलचस्पी रखते हैं।अपने इस शौक़ का वह किसी कार्यक्रम के संचालन में बहुत अच्छा उपयोग करते हैं।
यही खूबी श्री कमल रतन शर्मा जी को भी अन्य लोगों से अलग गरिमा प्रदान करती है।
सब कवियों की पंक्तियां तो इस समय मुझे याद नहीं आ रहीं परंतु कुछ कवियों के रचना पाठ की कुछ पंक्तियां आपके रसास्वादन हेतु यहां प्रस्तुत कर रहा हूं:

कवि गोष्ठी में कवि शिवकुमार चंदन
मन के मयूर झूमें कारे कारे मेघ देख
प्रकृति ने चहुं ओर मधु छंद गाए हैं
हरे भरे तरुवर झूमते पवन संग
नदी,ताल,पोखर के जल मन भाए हैं 

सैयद इफ्तेखार ताहिर, 
अपना गम ख़ुद उठाना पड़ता है,
कौन करता है कुछ किसी के लिए।

अशफ़ाक़ ज़ैदी
दीवानगी ए इश्क़ बड़ा काम कर गई,
कच्चे घड़े पे बैठ के दरिया उतर गई।

ओंकार सिंह विवेक
 न खुशियाँ ईद की कम हों न होली रंग हो फीका,
  रहे भारत के माथे पर इसी तहज़ीब का टीका।

डाक्टर रघुवीर शरण शर्मा,
   ' मेरी बात बुरी लगती हो तो तुम इसे मुझे लौटा दो '

प्रदीप राजपूत 
एक नहीं, सौ बार नहीं,
शायद हमसे प्यार नहीं। 
किसकी ग़ज़लें गाते हो,
मेरे तो अशआर नहीं। 
इनके अतिरिक्त राजीव कुमार शर्मा, विनोद कुमार शर्मा, अनीता शर्मा आदि द्वारा भी कॉलोनी वासियों के सम्मुख  बहुत ही जीवंत काव्य पाठ प्रस्तुत किया गया था। 
इस तरह के आयोजनों का अपना अलग ही आनंद है।मेरी यही कामना है कि यह सिलसिला यूं ही चलता रहे और लोग कविता/शायरी का आनंद लेते हुए एक-दूसरे का हाल-चाल पूछते और जानते रहें।
इन सुखद यादों को आपके साथ साझा करके बहुत अच्छा लगा।
इस सिलसिले की तीसरी कड़ी लेकर शीघ्र ही आपके सम्मुख उपस्थित होऊंगा तब तक के लिए
 नमस्कार🙏🙏



September 30, 2022

यादों के झरोखों से (कड़ी-१)

प्रणाम मित्रो 🙏🙏🌹🌹
अक्सर कहा जाता है कि आदमी को वर्तमान में ही जीना चाहिए।न तो अतीत की बुरी यादों में खोकर दिल को भारी करना चाहिए और न ही भविष्य की सोचकर चिंता में डूबना चाहिए। मन की शांति के लिए यह बात कुछ ठीक-सी भी लगती है परंतु ऐसी आदर्श स्थिति किसी भी आदमी के जीवन में कम ही देखने को मिलती है।
हर व्यक्ति के स्मृति पटल पर गाहे-बगाहे अतीत की स्मृतियां भी आती हैं और भविष्य को लेकर चिंता भी सताती है। 
यदि अतीत की स्मृतियां सुखद हों तो उनका बार-बार मस्तिष्क में आना अच्छा लगता हैं क्योंकि वह आनंद की अनुभूति कराता है। हां !अतीत के ख़राब अनुभव और स्मृतियां ज़रूर विचलित करती हैं। 
इन बातों पर विचार करते हुए मेरा मन हुआ कि अपनी कुछ सुखद और सकारात्मक स्मृतियां आपके के साथ सिलसिलेवार साझा करूं।निश्चित तौर पर ऐसी चीज़ों से जीवन के प्रति सकारात्मकता और उत्साह बना रहता है।सो इस सिलसिले की पहली कड़ी प्रस्तुत कर रहा हूं :

यह तस्वीर १३अक्टूबर,२०१९ की है जब पल्लव काव्य मंच के संस्थापक/अध्यक्ष श्री शिवकुमार चंदन के निवास ज्वाला नगर, रामपुर-उ०प्र० पर मंच की और से एक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया था।

        (गोष्ठी में काव्य पाठ करते हुए मैं)
 
गोष्ठी में श्री शिवकुमार शर्मा चंदन,शायर इफ्तिखार ताहिर,शायर नोमानी साहब और डॉक्टर रघुवीर शरण शर्मा जी तथा मेरे द्वारा सहभागिता की गई थी।

मुझे ध्यान आ रहा है कि ऊपर चित्र में दिखाई दे रहे कवियों में वरिष्ठ कवि डाक्टर रघुवीर शरण शर्मा (बीच में) द्वारा कवि गोष्ठी की अध्यक्षता की गई थी और संचालन मंच के संस्थापक श्री चंदन जी द्वारा किया गया था।डॉक्टर रघुवीर शरण लगभग अस्सी साल के हैं। आज भी बहुत ही आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी, धर्म और अध्यात्म में गहरी आस्था रखने वाले व्यक्ति हैं। यों तो आप अपनी कविताओं में हास्य की पैनी धार से गुदगुदाने के लिए जाने जाते हैं परंतु आपकी रचनाओं का गांभीर्य भी कुछ सोचने को विवश करता है :

ढोते-ढोते कभी थकूं ना 
जीवन के इस भार को,
सदा सहेजूं अपना मानूं
 सबके प्यार दुलार को।

मंच के संस्थापक श्री चंदन जी भक्ति प्रधान साहित्य सृजन के लिए जाने जाते हैं :
प्रिय तेरे सानिध्य को पाकर,
मगन हुआ है मन-मधुकर।
क़दम बढ़ाया भक्ति पंथ पर,
तब दर्शन का हुआ असर।

शायर नोमानी साहब ज़मीन से जुड़ी सच्ची और अच्छी शायरी के लिए जाने जाते हैं।उनका तरन्नुम भी ग़ज़ब का है।उनके अशआर इस वक्त मुझे याद नहीं आ रहे हैं।फिर किसी वक्त उनका पुख़्ता कलाम ज़रूर साझा करूंगा।
एक उम्दा शायर सैय्यद इफ्तिखार ताहिर साहब दुर्भाग्य से अब हमारे बीच नहीं हैं परंतु अपनी शायरी के माध्यम से आज भी सबके दिलों में बसते हैं ।उनका एक शेर मुझे याद आता है :

हर क़दम देखभाल कर रखना,
अपनी इज़्ज़त सँभाल कर रखना।

ऐसे आयोजनों का अपना अलग ही महत्व और आनंद होता है।न कोई बड़ा तामझाम और न ही किसी बड़े खाने/ठहरने आदि के इंतज़ाम की चिंता। सात-आठ साहित्यकार इकट्ठा हुए और किसी एक के घर बैठकर एक दूसरे का हाल-चाल जान लिया और फिर बिल्कुल अनौपचारिक माहौल में एक दूसरे की रचनाएँ का आनंद ले लिया --- और बस हो गईं मानसिक क्षुधा शांत।श्रोता के रूप में घर-परिवार के सदस्यों की उत्साहवर्धक हिस्सेदारी  ---- परिवार के सदस्यों द्वारा बड़े प्रेम से जलपान आदि का प्रबंध करना और बीच-बीच में वाह वाह वाह!के द्वारा कवियों/शायरों का उत्साहवर्धन करना ---- बहुत मज़ा आता है ऐसे अनौपचारिक आयोजनों में।आजकल सोशल मीडिया/ऑनलाइन गोष्ठियों के चलन या अन्य कारणों से ऐसे आयोजनों की गति थोड़ी धीमी ज़रूर पड़ी है परंतु समाप्त नहीं हुई है। ऐसे आयोजन अब फिर से गति पकड़ रहे हैं।सोशल मीडिया पर ऑनलाइन गोष्ठियां भले ही कितनी भी हो जाएं परंतु इन ऑन द स्पॉट गोष्ठियों की जगह नहीं ले सकतीं।
बड़ी प्रसन्नता का विषय है कि प्रबुद्ध वर्ग बड़े साहित्यिक आयोजनों के साथ-साथ ऐसी गोष्ठियों के आयोजन और प्रोत्साहन को लेकर पुन: गंभीर नज़र आ रहा है। ऐसे आयोजन साहित्य साधकों को निरंतर साहित्य सृजन की प्रेरणा देते हैं।
अंत में अपना एक शेर  पेश करके इजाज़त चाहता हूं।जल्द ही इस सिलसिले की दूसरी कड़ी के साथ आपके सम्मुख फिर हाज़िर होऊंगा :
अच्छे लोगों में जो उठना-बैठना हो जाएगा,
फिर कुशादा सोच का भी दायरा हो जाएगा।
--ओंकार सिंह विवेक
(इस ब्लॉग का कोई भी कॉन्टेंट कॉपी या साझा करने से पूर्व कृप्या ब्लॉगर की गोपनीयता पॉलिसी को अवश्य पढ़ें)



























September 28, 2022

समीक्षा : एक विमर्श

मैं सोशल मीडिया पर कई साहित्यिक मंचों से जुड़ा हुआ हूं। काव्य सृजन विशेष तौर पर ग़ज़ल विधा में रुचि होने के कारण अक्सर उन पटलों पर अपनी रचनाएँ भी पोस्ट करता रहता हूं।कई मंचों पर ग़ज़ल विधा की रचनाओं की समीक्षा का कार्य करने का अवसर भी प्राप्त होता है।इस कार्य के निष्पादन में काफ़ी खट्टे - मीठे अनुभव भी होते हैं।

कल समीक्षा कार्य को लेकर एक वरिष्ठ साहित्यकार ने एक पटल (साहित्यकार और पटल के नामों का उल्लेख करना ठीक नहीं होगा) पर अपने विचार रखे थे। उनके विचारों को पढ़कर विषय विशेष पर विमर्श का रास्ता खुला तो मैंने भी  अपने विचार पटल पर रखे जिन्हें ज्यों का त्यों आप सुधी साथियों के साथ साझा कर रहा हूं:

समीक्षा : एक विमर्श
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प्रणाम मित्रो🌹🌹🙏🙏

आज मैं तो अति व्यस्त्तता के कारण दिए गए मिसरे पर कोई ग़ज़ल पोस्ट नहीं कर पाया लेकिन सभी रचनाकारों की अच्छी रचनाएँ पढ़ने को मिलीं।समीक्षकद्वय द्वारा भी बहुत अच्छी समीक्षाएँ प्रस्तुत की गईं।सभी को हार्दिक बधाई!!!!

आज पटल पर विषय काल समाप्त होने के बाद मेरी भी समीक्षा-कार्य जैसे महत्वपूर्ण विषय पर अपने विचार रखने की इच्छा हुई। कविता या शायरी तो हम सब पोस्ट करते ही हैं पटल पर लेकिन काव्य सृजन और समीक्षा आदि को लेकर साहित्यकारों द्वारा अपने विचार भी रखे जाने चाहिए।इससे सभी का ज्ञानवर्धन होता है और सृजन में सुधार की संभावनाएं बढ़ती हैं तथा स्वस्थ विमर्श के रास्ते खुलते हैं।

चूंकि रचनाएँ सार्वजनिक रूप से समीक्षा हेतु पटल पर प्रस्तुत की जाती हैं अत: उनकी समीक्षा भी सार्वजनिक रूप से ही पटल पर प्रस्तुत की जाती है। हां,यह बात ठीक है कि सार्वजनिक मंच पर जितना भी हो सके समीक्षात्मक टिप्पणियों को अपेक्षाकृत अधिक शालीनता से अंकित किया जाना चाहिए। समीक्षक द्वारा शालीन और मर्यादित टिप्पणी किया जाना जितना ज़रूरी है उतना ही ज़रूरी रचनाकार द्वारा टिप्पणी को सहृदयता और सद्भावना से लिया जाना भी है। यदि कुछेक अपवादों को छोड़ दिया जाए तो इस पटल पर ऐसा ही देखने में आता भी है कि सभी योग्य समीक्षक रचनाओं पर अपने अनुभव और ज्ञान के आधार पर शालीन टिप्पणियां ही अंकित करते हैं और रचनाकार भी प्रतिउत्तर में उन्हें धन्यवाद ज्ञापित करते हैं।यही स्वस्थ्य परंपरा सीखने और सिखाने में सहायक भी होती है।समीक्षक भी एक रचनाकार ही है,उसकी टिप्पणी में विधा विशेष के ज्ञान के साथ-साथ उसके अपने चिंतन तथा कहन की शैली के रंग भी सम्मिलित होते हैं जिसके आधार पर वह एक मशवरा देता है।वह किसी रचनाकार पर अपनी बात थोपता नहीं है बल्कि विनम्रतापूर्वक अपने सुझाव प्रस्तुत करता है।यदि रचनाकर को सुझाव पसंद न हों  तो वह भी बिना किसी वाद-विवाद के विनम्रता से अपनी असहमति व्यक्त करते हुए बात को ख़त्म कर सकता है।

समीक्षा का शाब्दिक अर्थ है परीक्षण,गुण दोष-विवेचन या समालोचन।यदि गंभीरता से विचार करें तो समीक्षा शब्द का अर्थ इस्लाह शब्द के अर्थ से कहीं अधिक विस्तृत और व्यापक है।यह संभव नहीं है कि समीक्षक रचना के केवल शिल्पगत गुणदोष का विवेचन करे ,उसके भाव और कहन की समालोचना न करे। शिल्प यदि कविता की आत्मा है तो भाव और कहन उसका शरीर।दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं।समीक्षक आत्मा की सुरक्षा के उपाय बताए और शरीर को सजाने सँवारने के बारे में कोई राय न दे तो शायद यह उचित नहीं होगा। यदि समीक्षक भाव और कहन पक्ष की समीक्षा को यह कहकर छोड़ दे कि यह तो अनुभव से स्वत: आ जाएगा तो फिर अनुभव और ज्ञान से आदमी कविता का शिल्प भी सीख ही लेगा।
आइए अब ग़ज़ल की बात करते हैं। शेर को शेर उसकी कहन अर्थात निराले ढंग से कहने की कला ही बनाती है।यह ग़ज़ल के मूलभूत तत्वों में से एक है।मेरे विचार से समीक्षा में समीक्षक को यह भी देखना चाहिए कि रचनाकार द्वारा ग़ज़ल में शिल्प की शर्तों को पूरा करने के साथ-साथ भाषा को किस रूप में सँवारा गया है। बेहर/मापनी पूरी करने के साथ-साथ वाक्य विन्यास और व्याकरण आदि पर कितना ध्यान दिया गया है।सिर्फ़ बेहर पूरी करके रचनाकर रचना के और पहलुओं के प्रति कहीं केजुअल तो नहीं हो गया है आदि आदि -----।
एक आदर्श समीक्षा कभी एक्सक्लूसिव नहीं हो सकती वह हमेशा इंकलूसिव ही होगी।समग्रता ही समीक्षा का प्राण तत्व है मैं ऐसा मानता हूं।

यह बात सही है कि अदब के आसमान में मीर,ग़ालिब या फ़िराक़ जैसे दैदीप्यमान सितारों जितनी ऊंचाई तक कोई नहीं पहुंच सकता परंतु उनसे प्रेरणा लेकर सामर्थ्य के अनुसार अपनी रचनाधर्मिता को निरंतर बेहतर करने का प्रयास तो किया ही जा सकता है।यह भी तभी संभव है जब कोई समीक्षक या उस्ताद किसी रचनाकार के कलाम को पढ़कर उसकी बेहतरी के बारे में शालीनता के साथ कोई सुझाव दे और रचनाकार उसे सद्भावना के साथ ग्रहण करे।
अक्सर देखने में यह आता है कि समीक्षक जब किसी रचनाकार की रचना में किसी दोष की और इंगित करते हैं तो कुछ लोग(सब नहीं) तुरंत ही किसी बड़े रचनाकार की कोई ऐसी रचना कोट कर देते हैं जिसमें इस तरह का दोष रहा हो।ऐसा करके अपनी रचना के दोष को कवरअप करना कहां तक उचित है? बड़े उस्ताद शायर या कवि भी मानव ही हैं या थे।उनसे भी त्रुटियां हुई होंगी। अच्छा तो यह है कि हम उनकी त्रुटियों की आड़ न लें बल्कि उनके श्रेष्ठ कलाम से प्रेरणा लेकर कुछ बेहतर कहने की कोशिश करें।
जहां तक दूसरी भाषाओं के शब्दों यथा शहर, ज़ेहर,अम्न आदि के वज़्न और उच्चारण का प्रश्न है इसको लेकर अब कोई इतना रिज़िड नहीं है।लोग अपने ढंग से प्रयोग कर रहे हैं और देवनागरी में उसे स्वीकार्यता भी मिल रही है।यह अब कोई बड़ा मुद्दा नहीं रह गया है।यहां फिर मैं एक बात कहूंगा कि यह रचनाकार विशेष के सोच पर निर्भर करता है कि वह अन्य भाषा के शब्द को उस मूल भाषा के उच्चारण और वज़्न के अनुसार प्रयुक्त करता है अथवा किसी और ढंग से।
अंग्रेज़ी भाषा का एक शब्द है रिपोर्ट इसे हिंदी शब्दकोश में रपट के रूप में भी स्वीकार किया गया है और ग्रामीण अंचल में लोग बहुतायत में रिपोर्ट के स्थान पर रपट शब्द ही प्रयोग करते हैं जो स्वीकार्य है।जैसे थाने में रपट लिखाना,रपट करना आदि। लेकिन जो व्यक्ति अंग्रेज़ी भाषा का थोड़ा-बहुत भी जानकार है वह रपट के स्थान पर देवनागरी में भी रिपोर्ट ही लिखना पसंद करता है।

तमाम साहित्यकार बंधु मुझसे भिन्न मत भी रखते होंगे।उन सभी की असहमति का भी हार्दिक स्वागत है।

सादर
ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)

September 26, 2022

धीर और गंभीर : कवि/शायर रणधीर




एक धीर-गंभीर कवि और शायर रणधीर प्रसाद गौड़ 'धीर'
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जी हां, मैं बात कर रहा हूं बरेली-उ०प्र० में जन्मे प्रसिद्ध कवि और शायर श्री रणधीर प्रसाद गौड़ 'धीर' जी की। धीर जी को कविता और शायरी का फ़न विरासत में मिला है।आपके पिता स्मृतिशेष श्री देवीप्रसाद गौड़ 'मस्त' बरेलवी साहब अपने ज़माने के जाने माने शायर थे। श्री रणधीर प्रसाद गौड़ धीर साहब रेलवे के सीनियर सैक्शन इंजीनियर के पद से सेवा निवृत्ति प्राप्त करके आजकल स्वतंत्र साहित्य सृजन और समाज सेवा के कार्यों में निमग्न हैं।
'धीर' साहब से मेरा परिचय रामपुर की दो साहित्यिक संस्थाओं पल्लव काव्य मंच तथा आध्यात्मिक साहित्यिक संस्था काव्य धारा के माध्यम से हुआ।ये दोनों साहित्यिक मंच किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। इन मंचों के माध्यम से अक्सर ही रामपुर और बरेली जनपदों में साहित्यिक कार्यक्रम आयोजित होते रहते हैं।मेरी ऐसे ही आयोजनों में श्री धीर साहब से रामपुर और बरेली में कई मुलाक़ातें हो चुकी हैं।इसे मैं अपनी ख़ुश-क़िस्मती ही कहूंगा कि एक कार्यक्रम में उनके कुशल संचालन में मुझे काव्य पाठ का अवसर भी प्राप्त हो चुका है।
श्री रणधीर प्रसाद गौड़ धीर जी में ७५-७६ वर्ष की आयु में भी ग़ज़ब की सक्रियता और ऊर्जा है। मेरा जब-जब भी उनसे मिलना होता है मैं उन्हें पहले से अधिक सक्रिय, ऊर्जावान और साहित्यिक सरोकारों के प्रति चिंतनशील पाता हूं। गौड़ साहब के व्यवहार में निहित सद्भावना और विनम्रता दिल को छू जाती है।रेलवे में अपनी नौकरी के दौरान धीर साहब एक अच्छे खिलाड़ी रहे और विभाग के रचनात्मक कार्यों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते रहे। श्री गौड़ साहब बरेली में काव्य गोष्ठी आयोजन समिति के अध्यक्ष हैं। बरेली में साहित्यिक प्रतिभाओं को निखारने,प्रोत्साहित करने और अदबी सरगर्मियों को परवान चढ़ाने में धीर साहब का बड़ा योगदान रहा है।
(विशेष : सभी छायाचित्र  भारतीय पत्रकारिता संस्थान बरेली की त्रैमासिक पत्रिका 'विविध संवाद' के अगस्त- अक्टूबर,2022 अंक से साभार प्राप्त किए गए हैं।यह पत्रिका मुझे स्वयं श्री रणधीर प्रसाद गौड़ धीर जी द्वारा भेंट की गई थी।उल्लेखनीय है कि पत्रकारिता संस्थान द्वारा श्री धीर जी के ७५ वर्ष का होने पर उनके सम्मान में पत्रिका का विशेषांक निकाला गया था)

धीर साहब उर्दू और हिंदी पर समान अधिकार रखते हैं। दोनों ही भाषाओं में भाव,कथ्य और शिल्प के स्तर पर उनकी रचनाएँ उत्कृष्ट हैं।उनके गीत और ग़ज़लों में प्रेम,दर्शन,अध्यात्म और जनसरोकार सभी की बानगी देखने को मिल जायेगी।धीर साहब गीत,ग़ज़ल,ख़याल, ख़मसा,मुक्तक और दोहा आदि सभी विधाओं के सिद्धहस्त रचनाकार हैं।
श्री धीर साहब की अब तक छह पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।ग़ज़ल संग्रह कल्याण काव्य कौमुदी,बज़्म-ए-इश्क़, इश्क़- का दर्द,तथा गीत संग्रह अनुभूति से अभिव्यक्ति, जब याद तुम्हारी आती है आदि उनकी प्रमुख काव्य कृतियां हैं। कवि या शायर के पास श्रेष्ठ काव्य सृजन क्षमता के साथ यदि मधुर कंठ भी हो तो सोने में सुहागा हो जाता है।धीर जी इस मामले में सौभाग्यशाली हैं। मां सरस्वती ने उन्हें सुरीले कंठ से भी नवाज़ा है।आप मंचों पर तहत में तो अपनी प्रभावशाली प्रस्तुति देते ही हैं आपका तरन्नुम भी लाजवाब है।जब आप किसी महफ़िल में सस्वर रचना पाठ करते हैं तो लोग मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।
धीर साहब की विभिन्न रचनाओं की चुनिंदा पंक्तियां बानगी के तौर पर प्रस्तुत कर रहा हूं जिससे आपको उनकी कविता/शायरी की गहराई का अंदाज़ा बा-आसानी हो जाएगा :

द्वेष रहित जीवन जीने की की सीख देती ये पंक्तियां देखिए :
        अपना हर कर्तव्य दृढ़ता से निभाना चाहिए,
        छल कपट और द्वेष से आँचल बचाना चाहिए।
        अन्य की त्रुटियां निकालें, अपने गुण पर गर्व हो,
        ऐसे लोगों को हमें दर्पण दिखाना चाहिए।

बज़्म-ए-इश्क़ ग़ज़ल संग्रह से
         रहबरी भी देख ली और रहनुमाई देख ली,
         बे-वफ़ा दुनिया की हमने बे-वफ़ाई देख ली।
         अपनी क़िस्मत में कहां हैं आपकी नज़रों के जाम,
         हमको ख़ाली ही मिली शीशा-सुराही देख ली।

धीर साहब के कुछ और अशआर जो मुझे पसंद हैं :

           इश्क़ हर तौर ही इंसां को मज़ा देता है,
           दर्द देता है मगर ख़ुद ही दवा देता है।

चोर से कहें चोरी कर,शाह से कहें जागना,
आज रहनुमाओं की ये ही रहनुमाई है।

शिकवा ही रहा है कि फ़क़त आपने हमें,
बस दिल से खेलने का ही सामान बनाया।

हम बड़े शौक़ से ग़म उठाते रहे,
चोट खाते रहे,मुस्कुराते रहे।

धीर जी एक स्थान पर अपने नगर बरेली के बारे में कहते हैं :

         यह तो नाथों की नगरी है, इसकी हर छटा निराली है,
       शिव और शंकर के संगम से इस नगरी में ख़ुशहाली है।

धीर जी की काव्य चेतना का एक और सकारात्मक भक्तिमय रूप देखिए :

      मां ऐसी शक्ति प्रदान करो,
      पालन में अपना धर्म करूं।
      उपकार करूं हर मानव का,
      अनुभव ना इसमें धर्म करूं।
    
अपने एक गीत में आप कहते हैं : 

       आज गगन में काले बादल छाए हैं,
       तुम पूनम की याद दिलाना मत साथी।
       'धीर' भरत का भारत संकटग्रस्त हुआ,
       तुम अतीत की याद दिलाना मत साथी।

कविता या शायरी वही कामयाब कही जाती है जो श्रोता/पाठक को आह! या वाह! करने को मजबूर करे,उसके दिल के तारों को झंकृत कर दे।धीर साहब की कविता/शायरी में यह तासीर मौजूद है।उनकी कविता की एक-एक पंक्ति आम जन से सीधा संवाद करती हुई प्रतीत होती है।
मेरी यही कामना है की धीर साहब शतायु हों और इसी तरह इल्म-ओ-अदब के चराग़ रौशन करते रहें।अपनी इन चार पंक्तियों के साथ मैं वाणी को विराम देता हूं :
         महफ़िलों का नूर हैं, शृंगार हैं,
         सबकी चाहत हैं सभी का प्यार हैं।
         कहते हैं हम सब जिन्हें रणधीर जी,
         वो अदब के इक बड़े फ़नकार हैं।
                ---ओंकार सिंह विवेक


प्रस्तुतकर्ता : ओंकार सिंह विवेक
                ग़ज़लकार/समीक्षक/कॉन्टेंट राइटर/ब्लॉगर
                (ब्लॉगर पॉलिसी के तहत सर्वाधिकार सुरक्षित)




          


September 23, 2022

गाँव-गाँव की बात

   

गाँव-गाँव की बात 

  ☘️🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀☘️🍀


नीचे जो शानदार तस्वीरें आप देख रहे हैं ये किसी महानगर का दृश्य नहीं है बल्कि बारिश में भीगते स्विट्जरलैंड के एक गाँव का दृश्य है।चौंक गए न आप! यह सुनकर परंतु यही सच है। स्विट्जरलैंड के ही किसी व्यक्ति ने लाइव वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर अपलोड किया था।मुझे यह चित्र बहुत अच्छा लगा सो मैंने साभार इसका स्क्रीनशॉट लेकर आपके साथ साझा कर दिया।

(सभी चित्र गूगल/सोशल मीडिया से साभार)
अगर ध्यान से देखें तो हमें यह किसी पहाड़ी नगर का मनभावन दृश्य-सा लगता है जबकि यह एक छोटे से यूरोपीय देश स्विटजरलैंड के किसी गाँव की मोहक तस्वीरें हैं।इसी से अंदाज़ा हो जाता है कि शहरों की बात तो छोड़ ही दीजिए यूरोपीय देशों के गाँव भी कितने विकसित हैं।
यदपि अपने देश में भी अब ग्रामीण विकास के लिए काफ़ी सराहनीय प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन दिल्ली अभी बहुत दूर है।
भारत की अर्थव्यवस्था पूर्ण रूप से गाँवों पर टिकी है। कृषि प्रधान भारत देश की 60 प्रतिशत जनसंख्या गाँवों में बसती हैं और उसका मुख्य कार्य कृषि और पशुपालन ही है।अतः आधे भारत की अनदेखी करके भारत प्रगति के पथ पर आगे नहीं बढ़ सकता।इसलिए कृषि,उद्योग,शिक्षा,चिकित्सा, बिजली,सड़क और संपर्क मार्गों तथा स्वच्छ पानी आदि की समस्याओं को लेकर हमारे यहां अभी बहुत कुछ करने की ज़रूरत है। नि:संदेह पहले की अपेक्षा हर मामले में भारतीय गाँवों की तस्वीर बदली है परंतु आज भी ऐसे बहुत से गाँव मौजूद हैं जैसी तस्वीर नीचे साझा की गई है :
चित्र : गूगल से साभार 
समय-समय पर केंद्र सरकार की ओर से गाँवों के चहुमुखी विकास के लिए कदम उठाए गये हैं। ग्रामीण विकास मंत्रालय गंभीरता से योजनाएँ बनाकर उनका क्रियान्वयन भी कर रहा है।
बेरोज़गरी निवारण,  प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना, मनरेगा, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, अटल आवास योजना, स्वच्छता कार्यक्रम, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन, जननी सुरक्षा योजना, विद्युत् कनेक्शन योजना आदि सरकारी योजनाओं से गाँवों के स्तर को सुधारने में बड़ा लाभ हुआ है परंतु इस दिशा में मज़बूत इच्छा शक्ति के साथ अभी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है। तेज़ी से होता शहरीकरण भी गाँवों के विकास की यात्रा को बाधित करने का एक बड़ा कारण है।शहरीकरण और ग्रामीण विकास में संतुलन बनाकर चलना होगा।
महात्मा गांधी ने कहा था कि भारत की आत्मा गाँव में बसती है अत: गाँवों की समस्याओं को हल करके ही भारत का विकास संभव है। सभ्यता और संस्कृति के संरक्षण के लिए गाँव में अधिक से अधिक आधुनिक सुख सुविधाएँ एवं उद्योगों की स्थापना करके भारत को विकास के पथ पर  बढ़ाया जा सकता है।
तो आइए इस दिशा में गंभीरता से सोचकर सार्थक प्रयास करें ताकि किसी भारतीय गाँव की ऐसी तस्वीर न रहे जैसी ऊपर के चित्र में दिखाई देती है।
अंत में ताहिर अज़ीम साहब के इस शेर के साथ आपसे इजाज़त चाहता हूं :
 शहर की इस भीड़ में  चल तो रहा हूँ,

  ज़ेहन में पर गाँव का नक़्शा रखा है।

            ---- शायर ताहिर अज़ीम      

रिमझिम यह बरसात👌👌☘️☘️

ओंकार सिंह विवेक 

September 22, 2022

जब चलेंगे वक्त की रफ़्तार से

मित्रो काफ़ी पहले एक ग़ज़ल कही थी जिसमें सिर्फ़ पांच शेर ही हो पाए थे। अब फ़िक्र बढ़ी तो उसमें कुछ और शेर कहे और इस तरह यह सात अशआर की एक मुकम्मल ग़ज़ल हो गई।इस दौरान कुछ नए अनुभव हुए,समाज में तेजी से परिवर्तित हो रहे घटनाक्रम पर नज़र गई तो उन तमाम भावों और कथ्यों को ग़ज़ल में पिरो दिया। अपने जज़्बात को काव्य रूप में आपकी अदालत में प्रतिक्रिया की आशा के साथ प्रस्तुत कर रहा हूं:
ग़ज़ल -- ओंकार सिंह विवेक
🌹
हो   ज़रा   सादा-सरल  व्यवहार  से,
और बशर आला भी हो किरदार से।
🌹
कितनी  ख़बरों  में  मिलावट हो गई,
सच  पता  चलता  नहीं अख़बार से।
🌹
काश! नफ़रत   बाँटने   वाले  कभी,
जीतकर  देखें  दिलों  को  प्यार  से।
🌹
पैरवी   करते    रहे    सच्चाई   की,
हम  गिरे  हरगिज़  नहीं  मेआर  से।
🌹
लाख  कोशिश  कीजिए,होगा  नहीं-
काम  सूई  का   कभी  तलवार  से।
🌹
नाश  हो  इस  कलमुँही महँगाई का,
छीन   लीं   सब  रौनकें  त्योहार  से।
🌹
कामयाबी  भी   मिलेगी   एक  दिन,
जब  चलेंगे  वक़्त   की  रफ़्तार  से।
 🌹       ©️  ओंकार सिंह विवेक 



(ब्लॉगर की पॉलिसी के तहत सर्वाधिकार सुरक्षित)

तलाश किताब के नाम की

 तलाश किताब के नाम की
दोस्तो आप सबको पता ही है कि "दर्द का एहसास" के नाम से मेरा पहला ग़ज़ल संकलन वर्ष 2021 में आ चुका है।उसके रस्म-ए-इजरा (लोकार्पण)और समीक्षा आदि से संबंधित कई ब्लॉग पोस्ट्स में पहले आप लोगों के साथ साझा कर चुका हूं। स्मरण हेतु पुन: उसका कवर पेज आपके साथ साझा कर रहा हूं :
आजकल मैं अपने दूसरे ग़ज़ल संकलन की तैयारी को अंतिम रूप देने में लगा हुआ हूं। मेरा पिछला संकलन 58 ग़ज़लों का 80 पृष्ठों की पुस्तक के रूप में छपा था।इस बार  85-90 ग़ज़लों का लगभग 120 पृष्ठ का संकलन छपवाने की योजना है।अपनी तरफ़ से पांडुलिपि लगभग तैयार कर चुका हूं बस कुछ ग़ज़लों पर नज़र-ए-सानी (अंतिम नज़र डालना) कर रहा हूं।कुछ ग़ज़लों को जब पुन: पढ़ता हूं तो कहन की दृष्टि से बार-बार कुछ न कुछ सुधार की ज़रूरत महसूस होने लगती है।यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। जैसे-जैसे हमारा ज्ञान और चिंतन विकसित होता है,हमें अपने पुराने सृजन में सुधार की गुंजाइश महसूस होने लगती है।ऐसा आपके साथ भी अवश्य होता होगा। अध्ययन,सृजन और सीखने की यह प्यास जीवन भर बनी रहनी चाहिए,ऐसा मैं मानता हूं।

किताब छपवाना भी किसी साधना से कम नहीं होता।सबसे पहले जतन से अच्छा कॉन्टेंट तैयार करना,उसको बार-बार परिष्कृत करके स्तरीय बनाना फिर पांडुलिपि को किसी विषय विशेषज्ञ को समीक्षा करने या भूमिका लिखने के लिए भेजना , विद्वजनों से आशीर्वाद स्वरूप उनके संदेश प्राप्त करना आदि आदि। फिर किताब को प्रेस में देना उसके बाद प्रूफ रीडिंग ,सेटिंग और तरतीब देना आदि अनेक महत्वपूर्ण काम पूरी मेहनत और एकाग्रता चाहते हैं।इन सबके के लिए मानसिक शक्ति, समय प्रबंधन तथा आर्थिक संसाधन आदि की ज़रूरत होती है।फिर किताब के विमोचन/लोकार्पण आदि का प्रबंध करना,जिनसे कार्यक्रम में समीक्षा करानी है उन्हें पुस्तक उपलब्ध कराना और भी न जाने क्या क्या ---। यह सब सफलता पूर्वक संपन्न करना ऐसा ही आभास कराता है जैसे घर में शादी अथवा अन्य कोई समारोह आयोजित करा लिया गया हो।
यदि मन में समर्पण की भावना और कुछ करने की लगन हो तो कार्य अंजाम तक पहुंच ही जाता है। दोस्तो उम्मीद है कि आप सबके आशीर्वाद से यह काम भी पूर्ण हो ही जाएगा।

अब मुद्दे की बात पर आता हूं। दरअस्ल इस ग़ज़ल संकलन का मैं अभी तक कोई शीर्षक/नाम नहीं चुन पाया हूं अत: आप सबसे आग्रह करता हूं कि मेरे आने वाले ग़ज़ल संग्रह का कोई उपयुक्त नाम सुझाइए और इस ब्लॉग पोस्ट के कॉमेंट बॉक्स में मुझे लिख भेजिए। वैसे तो आप सब सुधी पाठक/साहित्यकार बंधु मेरे रचना कर्म से भली भांति परिचित हैं क्योंकि मैं अपनी सभी ग़ज़लें और अन्य रचनाएँ निरंतर ब्लॉग पर साझा करता रहता हूं फिर भी संदर्भ के लिए बता दूं कि मेरी ग़ज़लों का कथ्य सामाजिक विसंगतियों और जन सरोकारों से जुड़ा होता है।
यदि सुझाया गया नाम पसंद आया तो मैं किताब का नाम सुझाने वाले व्यक्ति का उल्लेख "आत्म निवेदन" में करूंगा और किताब की एक प्रति भी भेंट करूंगा।


सादर 🙏🙏
ओंकार सिंह विवेक 

September 19, 2022

अखिल भारतीय काव्य धारा रामपुर का लखनऊ कवि सम्मेलन



अखिल भारतीय काव्यधारा रामपुर की लखनऊ इकाई का आज़ादी का अमृत महोत्सव कवि सम्मेलन तथा साहित्यकार सम्मान समारोह 
************************************************
         --- ओंकार सिंह विवेक 
वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय श्री जितेंद्र कमल आनंद जी द्वारा स्थापित अखिल भारतीय काव्य धारा साहित्यिक संस्था की लखनऊ शाखा द्वारा दिनांक १८सितंबर ,२०२२ को बंसल लॉन, विक्रमनगर, मानक नगर लखनऊ में एक शानदार कवि सम्मेलन और साहित्यकार सम्मान समारोह का आयोजन संपन्न हुआ।

इस कार्यक्रम में स्थानीय साहित्यकारों के अतिरिक्त दूर-दूर से आए २५ साहित्यकारों को सम्मानित किया गया।

सांय ५ बजे कार्यक्रम के अध्यक्ष जितेंद्र कमल आनंद,मुख्य अतिथि ओंकार सिंह विवेक,डाक्टर शिवभजन कमलेश, प्रेमशंकर शास्त्री तथा विशिष्ठ अतिथि देवेंद्र सिंह यादव जीतू जी ने मां सरस्वती की छवि के सम्मुख दीप प्रज्ज्वलित और पुष्प अर्पित करके कार्यक्रम का शुभारंभ किया।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए बरेली की साहित्यकार राजबाला धैर्य द्वारा सर्वप्रथम रश्मि लहर जी को सरस्वती वंदना हेतु मंच पर आमंत्रित किया गया।इसके पश्चात साहित्यकारों को क्रमवार रचना पाठ हेतु आमंत्रित किया जाता रहा।सभी रचनाकारों ने आज़ादी का अमृत महोत्सव, राजभाषा हिंदी और अन्य विभिन्न सामयिक विषयों को लेकर अपनी मोहक प्रस्तुतियों से देर रात तक चले इस कार्यक्रम में श्रोताओं को बांधे रखा।
कुछ रचनाकारों के कविता पाठ की पंक्तियां आवलोकनार्थ प्रस्तुत हैं :
बरेली से राजबाला धैर्य 
 जाति धर्म पर लफड़े-झगड़े,क्षेत्रवाद पर दंगे, 
 भूल सभ्यता देवभूमि की काम करें बेढंगे। 

संस्था-अध्यक्ष जितेंद्र कमल आनंद रामपुर से
 आंधियाँ आएँ तो आने दो कमल,
लिपटी शाखों से तितलियां देखीं।

लखनऊ से डा शिव भजन कमलेश 
आँधियों सर उठाओ नहीं, हम अमन चाहते, 
तुम सताओं नहीं।

रामपुर से पंडित जगदीश शर्मा मधुर
 सीमा पर एक जवान जो शहीद हो गया, 
 वीरता के बीज वो भारत में बो गया।  

 लखनऊ से वर्षा श्रीवास्तव 
 लोरियों की धुन सी लग रही हैं गीतिका, 
 अक्षरों का ज्ञान दे रहीं हैं वीथिका।
 गीत लग रहें हैं जैसे यज्ञ का हवन, 
 हिन्द को प्रणाम मेरी, हिन्दी को प्रणाम।

रामपुर से ग़ज़लकार ओंकार सिंह विवेक ने हिंदी भाषा को लेकर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा :

अंगरेजी ने आज सब, बदल दिया परिवेश,
कहां  रह  गया हिंद अब, हिंदी वाला देश।

सब भाषाएं सीखिए,लेकिन रखिए ध्यान,
किसी दशा में हो नहीं,हिंदी का अपमान।

लखनऊ से अशोक पाण्डेय अनहद
 पूरे भारत संग जगत में अलख जगाएं ऐसी, 
 दुनिया का संपर्क सूत्र बन जाए हिंदी भाषा। 

लखनऊ से कवयित्री रश्मि लहर 
काश हो ना युद्ध, ना संहार फिर,
देश के नव-रुप को आते लिखूँ अब। 
इन कवियों के अतिरिक्त संजय कुमार श्रीवास्तव सागर, मनोज यादव, संजय हमनवा,कुलदीप नारायण, मीना लोकेश,रेनू यादव, सुरेखा अग्रवाल स्वरा, पूनम मिश्रा, प्रिया सिंह, स्वधा रविंद्र उत्कर्षिता, महेंद्र पाल सिंह यादव, डॉ आलोक कुमार यादव आदि साहित्यकारों ने भी अपना काव्य पाठ प्रस्तुत किया।

काव्यपाठ के मध्य ही साहित्यिक सेवाओं हेतु साहित्यकारों को प्रशस्ति पत्र और अंगवस्त्र आदि भेंट करके अखिल भारतीय काव्य धारा और सुरभि कल्चरल ग्रुप द्वारा सम्मानित करने का सिलसिला निरंतर जारी रहा। 
कार्यक्रम में संस्था द्वारा प्रकाशित "आज़ादी का अमृत महोत्सव" काव्य संग्रह का मंचासीन अतिथियों द्वारा लोकार्पण भी किया गया। 

इस बीच काव्यधारा की लखनऊ इकाई का गठन करते हुए संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने रश्मि लहर जी को उपाध्यक्ष तथा आचार्य प्रेम शंकर शास्त्री जी को महासचिव नियुक्त किया। शैलेंद्र सक्सैना जी पूर्व में ही संस्था के सचिव नियुक्त किए जा चुके हैं।
कार्यक्रम के कुछ और चित्र तथा मीडिया कवरेज

कार्यक्रम के अंत में समापन भाषण में मुख्य अथिति ओंकार सिंह विवेक ने कहा कि संस्था और इसके संस्थापक श्री आनंद जी द्वारा हिंदी के संवर्धन  हेतु किए जा रहे प्रयास वंदनीय हैं ।उन्होंने कहा कि लोगों को ऐसी संस्थाओं का तन-मन और धन से सहयोग करना चाहिए। मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डॉक्टर शिवभजन कमलेश जी ने संस्था के संरक्षक श्री आनंद जी के बड़े भाई प्रसिद्ध साहित्यकार श्री वीरेन्द्र सरल जी के साथ अपने आत्मीय संबंध और अपनी साहित्यिक यात्रा का स्मरण करते हुए संस्था की उत्तरोत्तर प्रगति की कामना की। विशिष्ट अतिथि श्री देवेंद्र सिंह यादव जीतू जी ने संस्था के ऐसे आयोजनों की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए भविष्य में भी ऐसे आयोजनों में अपनी ओर से हर संभव मदद का आश्वासन दिया।संस्था-अध्यक्ष श्री आनंद जी ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कहा कि ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन करके उनका उद्देश्य हिंदी भाषा की सेवा करना और नए साहित्यकारों को मंच प्रदान करके उनकी प्रतिभा को निखारना हैं।संस्था की लखनऊ इकाई के महासचिव श्री प्रेम शंकर शास्त्री जी ने अपने काव्य पाठ के उपरांत सभी आगंतुकों का आभार व्यक्त करते हुए कार्यक्रम समापन की घोषणा की। कार्यक्रम को सफल बनाने में संस्था के अन्य पदाधिकारियों के अतिरिक्त सचिव शैलेंद्र सक्सैना जी और उनकी धर्म पत्नी का विशेष सहयोग रहा।

     ओंकार सिंह विवेक
     गजलकार,समीक्षक, कॉन्टेंट राइटर, ब्लॉगर
 (ब्लॉगर की कॉन्टेंट पॉलिसी के तहत सर्वाधिकार सुरक्षित)




  

September 15, 2022

वाह रे ! क़ुदरत

शुभ प्रभात मित्रो 🌹🌹🙏🙏

आज सवेरे के सुहावने मौसम का अवलोकन करते हुए मुझे यह पोस्ट लिखने में बहुत आनंद की अनुभूति हो रही है।प्रकृति के साथ मनुष्य द्वारा किए जा रहे खिलवाड़ और उसके दुष्परिणामों के बारे में पहले भी कई अवसरों पर मैं अपने ब्लॉग पर लिख चुका हूं।
इस समय लिखने बैठा हूं तो मुझे किसी पुरानी फ़िल्म की ये दो पंक्तियां सहसा स्मरण हो आईं:

           क़ुदरत  के   खेल   निराले   मेरे   भैया,
           क़ुदरत का लिखा कौन टाले मेरे भैया।

सचमुच  क़ुदरत के आगे किसी का कोई वश नहीं चलता मगर यह भी सच है की यदि हम इसके साथ संतुलन बनाकर चलें तो यह आदमी को अनमोल उपहार भी प्रदान करती है।जंगल,नदी, पहाड़,फल-फूल और पेड़-पौधों का जो अनमोल तोहफ़ा   क़ुदरत ने हमें बख़्शा है उसका कोई तोड़ नहीं है।आदमी के व्यवहार से कुपित होकर प्रकृति जो अपना रौद्र रुप दिखाती है वह भी किसी से छिपा नहीं है। यह हमें आजकल मौसमों के असंतुलित और अप्रत्याशित व्यवहार से साफ़ पता चल रहा है।अब न तो गर्मी और जाड़े के मौसम में वांछित अनुपात में गर्मी और सर्दी ही पड़ती है और न ही बारिश के मौसम में कुछ हिस्सों में आवश्यकता के अनुरूप बारिश होती है।कहीं सुखा ही सूखा तो कहीं सैलाब के हालत पैदा हो जाते हैं।मौसमों का यह असंतुलन दुनिया में विद्यमान हर चीज़ के अस्तित्व के लिए खतरे की घंटी है।
काश! दुनिया इस विचार करे और प्रगति की इस अंधी दौड़ में  क़ुदरत के साथ अनावश्यक छेड़-छाड़ करने से बचे।यह निरंतर चिंता का विषय है कि अब अक्सर मौसम वैज्ञानिकों की भविष्यवाणियां भी ग़लत साबित होती जा रही हैं।इस बार भी ऐसा ही देखने में आया।वर्षा ऋतु के प्रारंभ में ही मौसम वैज्ञानिकों ने कहा था कि इस बार आशा के अनुरूप भरपूर बारिश होगी किंतु ऐसा नहीं हुआ।इस बार देश के तमाम हिस्सों में ५०प्रतिशत से भी कम बारिश हुई जो फसलों के लिए अभिशाप सिद्ध हुई। यह अलग बात है कि कुछ हिस्से भयानक बाढ़ की चपेट में भी आए।

इधर हमारे क्षेत्र रुहेलखंड (उत्तर प्रदेश) में इस बार मौसम का लंबा सूखा झेलने के बाद एक अच्छी ख़बर की संभावना हो रही है। इस क्षेत्र में १६ और १७ सितंबर को अच्छी बारिश की संभावना बताई जा रही है।प्रदेश की  ग्रामीण कृषि मौसम इकाई के अनुसारअगर २० से ३० मिलीमीटर तक वर्षा होती है तो फसल को लाभ रहेगा लेकिन इससे अधिक वर्षा होने पर फसल को नुक़सान भी हो सकता है।कई जगह बुधवार को आसमान में छाए बादल धरती पर मेहरबान भी हुए।शीतल हवाओं ने भी मौसम को खुशगवार बनाया।तापमान की गिरावट ने भी भारी उमस से थोड़ी राहत प्रदान की है।
काश ! मौसम यूं ही खुशगवार बना रहे और आशा के अनुरूप ही इंद्र देवता जग को अपनी कृपा का पात्र बनाएं इसी आशा के साथ लीजिए मेरी ताज़ा ग़ज़ल का आनंद :

 
(ब्लॉगर की पॉलिसी की तहत कंटेंट के सभी अधिकार सुरक्षित)


---ओंकार सिंह विवेक 

September 14, 2022

हिंदी दिवस पर

शुभ प्रभात मित्रो 🌹🌹🙏🙏

आज हिंदी दिवस है । सभी को इस अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई।हिंदी को लेकर आज बड़े- बड़े व्याख्यान और साहित्यिक आयोजन होंगे किन्तु एक-दो दिन बाद फिर वही सन्नाटा हो जाएगा। सब अंग्रेजी में लिखने और बात करने पर गर्व करने लगेंगे जो दुर्भाग्यपूर्ण है।विश्व की कोई भी भाषा सीखना बुरी बात नहीं है परंतु अपनी राज भाषा/राष्ट्र भाषा या मातृ भाषा की अनदेखी करके ऐसा करना बिल्कुल उचित नहीं होगा।हिंदी का ह्रदय बहुत विशाल है इसने अंग्रेज़ी,उर्दू, फ़ारसी और भी न जाने कितनी विदेशी भाषाओं के शब्दों को बड़े प्रेम से आत्मसात कर लिया है। पिछले कई सालों में परिस्थितियां बहुत बदली हैं।हिंदी अंतरराष्ट्रीय स्तरपर अपना लोहा मनवा रही है।हमारे देश के प्रधानमंत्री और अन्य गणमान्य नेता आज अंतरराष्ट्रीय मंचों पर हिंदी में अपनी बात रखते हैं और लोग ध्यान से सुनते तथा प्रोत्साहन देते हैं।आज चीन और जापान जैसे देश अपनी मातृ भाषा के महत्व को जिस प्रकार  समझकर आगे बढ़ रहे हैं हमें भी इसी का अनुसरण करने की आवश्यकता है।

मुक्तक : हिंदी
*********
      --ओंकार सिंह विवेक
 
हमारे देश के इतिहास की पहचान है हिंदी,

नहीं है झूठ कुछ इसमें,हमारी शान है हिंदी।

विदेशी लोग भी अब गर्व से यह बात कहते हैं,

इसे हम क्यों नहीं सीखें, बहुत आसान है हिंदी।
         ---ओंकार सिंह विवेक
🌹
सब सीखें समझें इसको सबसे इसको सम्मान मिले,
चार दिशाओं में सुनने को हिंदी मंगल गान मिले।
आओ हम सब हिंदी भाषी मिलकर ऐसा काम करें,
हिंदी हो जन-जन की भाषा इसको नव पहचान मिले।
🌹

आज दो दोहे हिंदी भाषा को लेकर कुछ यों भी हुए
-----------------------------------
                  ---ओंकार सिंह विवेक
अँगरेज़ी ने आज सब ,बदल दिया परिवेश,
कहाँ रह  गया हिंद अब, हिंदी  वाला  देश।

सब भाषाएँ सीखिए, लेकिन रखिए ध्यान,
किसी दशा  में  हो नहीं,हिंदी का अपमान।
           ---ओंकार सिंह विवेक
  

(सर्वाधिकार सुरक्षित)
ओंकार सिंह विवेक

 

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नई ग़ज़ल!!! नई ग़ज़ल!!! नई ग़ज़ल!!!

असीम सुप्रभात मित्रो 🌷🌷🙏🙏 🌷🌱🍀🌴🍁🌸🪷🌺🌹🥀🌿🌼🌻🌾☘️💐 मेरी ग़ज़ल प्रकाशित करने के लिए आज फिर "सदीनामा" अख़बार के संपादक मं...