January 12, 2024
(ग़ज़ल कुंभ,2024 मुंबई) : प्रस्थान से पहले
January 5, 2024
झुर्री वाले गाल
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। साहचार्य से रहने में ही जीवन की सार्थकता है।मनुष्य समाज में रहकर बहुत कुछ सीखता है और उससे बहुत कुछ लेता भी है। अत: उसका दायित्व बनता है कि वह समाज को कुछ दे भी। स्वार्थ भाव से ऊपर उठकर समाज की सेवा भी करे।समाज सेवा के विभिन्न माध्यम हो सकते हैं। साहित्य सृजन के माध्यम से भी समाज की सेवा की जा सकती है। सृजनात्मक साहित्य वही कहलाता है जो लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करे और उनकी संवेदनाओं को छुए। हम सब साहित्यकारों का यह कर्तव्य बनता है कि अपने श्रेष्ठ साहित्य सर्जन से समाज की दशा और दिशा बदलते रहें।
आज अपने कुछ दोहे आपकी प्रतिक्रिया की अपेक्षा के साथ प्रस्तुत कर रहा हूं :
आज कुछ दोहे यों भी
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@
दादा जी होते नहीं, कैसे भला निहाल।
नन्हे पोते ने छुए, झुर्री वाले गाल।।
क्या बतलाए गाँव का,मित्र! तुम्हें हम हाल।
आज न वह पनघट रहा ,और न वह चौपाल।।
क्या होगा इससे अधिक,मूल्यों का अवसान।
बेच रहे हैं आजकल, लोग दीन ईमान।।
मन में जाग्रत हो गई,लक्ष्य प्राप्ति की चाह।
कठिन राह की क्या भला,होगी अब परवाह।।
याची कब तक हों नहीं,बतलाओ हलकान।
झिड़क रहे हैं द्वार पर, उनको ड्योढ़ीवान।।
@ओंकार सिंह विवेक
अवसान -- समाप्ति,अंत
याची -- आवेदक, फ़रियादी
हलकान -- परेशान
(चित्र : ३ जनवरी,२०२४ को आकाशवाणी रामपुर में काव्य पाठ की रिकॉर्डिंग के अवसर पर)
December 31, 2023
🌹🌹नव वर्ष,2024 मंगलमय हो🌷🌷
आने वाले साल से उम्मीद बाँधे हुए एक ग़ज़ल
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-- ओंकार सिंह विवेक
©️
गए साल जैसा न फिर हाल होगा,
तवक़्क़ो है अच्छा नया साल होगा।
मुहब्बत के हर सू परिंदे उड़ेंगे,
बिछा नफ़रतों का न अब जाल होगा।
बढ़ेगी न केवल अमीरों की दौलत,
ग़रीबों का तबक़ा भी ख़ुशहाल होगा।
सुगम होंगी सबके ही जीवन की राहें,
न भारी किसी पर नया साल होगा।
सलामत रहेगी उजाले की हस्ती,
अँधेरा जहाँ भी है पामाल होगा।
उठाएँगे ज़िल्लत यहाँ झूठ वाले,
बुलंदी पे सच्चों का इक़बाल होगा।
न होगा फ़क़त फ़ाइलों-काग़ज़ों में,
हक़ीक़त में भी मुल्क ख़ुशहाल होगा।
---©️ ओंकार सिंह विवेक
रामपुर-उoप्रo
December 29, 2023
ग़ज़ल का बदलता स्वरूप
December 27, 2023
अम्न पर खौफ़-सा मुसल्लत है
December 24, 2023
December 19, 2023
अलसाई - सी धूप
आज एक नवगीत : सर्दी के नाम
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-- ©️ओंकार सिंह विवेक
छत पर आकर बैठ गई है,
अलसाई-सी धूप।
सर्द हवा खिड़की से आकर,
मचा रही है शोर।
काँप रहा थर-थर कुहरे के,
डर से प्रतिपल भोर।
दाँत बजाते घूम रहे हैं,
काका रामसरूप।
अम्मा देखो कितनी जल्दी,
आज गई हैं जाग।
चौके में बैठी सरसों का,
घोट रही हैं साग।
दादी छत पर ले आई हैं,
नाज फटकने सूप।
आए थे पानी पीने को,
चलकर मीलों-मील।
देखा तो जाड़े के मारे,
जमी हुई थी झील।
करते भी क्या,लौट पड़े फिर,
प्यासे वन के भूप।
--- ©️ओंकार सिंह विवेक
(चित्र : गूगल से साभार)
December 15, 2023
लुत्फ़-ए-ग़ज़ल
December 10, 2023
सर्दी वाले दोहे
विषयगत दोहे
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दिसंबर , रजाई , अलाव , चाय , धूप
@ओंकार सिंह विवेक
दिसंबर
*****
माह दिसंबर आ गया,ठंड हुई विकराल।
ऊपर से करने लगा,सूरज भी हड़ताल।।
रजाई
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हाड़ कँपाती ठंड से,करके दो-दो हाथ।
स्वार्थ बिना देती रही,नित्य रजाई साथ।।
अलाव
*****
चौराहे के मोड़ पर,जलता हुआ अलाव।
नित्य विफल करता रहा,सर्दी का हर दाव।।
चाय
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खाँसी और ज़ुकाम का,करके काम तमाम।
अदरक वाली चाय ने, ख़ूब कमाया नाम।।
धूप
***
कल कुहरे का देखकर,दिन-भर घातक रूप।
कुछ पल ही छत पर रुकी,सहमी-सहमी धूप।।
@ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
December 5, 2023
December 2, 2023
नई ग़ज़ल!!! नई ग़ज़ल!!!नई ग़ज़ल!!!
December 1, 2023
अभी तीरगी के निशां और भी हैं
November 27, 2023
इज़हारे-ख़याल : एक तरही ग़ज़ल
November 23, 2023
पल्लव काव्य मंच रामपुर (उoप्रo)का शारदीय काव्य महोत्सव
November 15, 2023
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November 1, 2023
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