July 31, 2022
मुंशी प्रेमचंद जी की स्मृतियों को नमन
July 28, 2022
दिल तो दर्पण है टूट जाएगा !!!!!!
मिसरा -- ग़म ही आख़िर में काम आएगा
2 1 2 2 1 2 1 2 2 2
काफ़िया -- आएगा,जाएगा --- आदि
ग़ज़ल -- ओंकार सिंह विवेक
संग नफ़रत के सह न पाएगा,
दिल तो दर्पण है टूट जाएगा।
टूटकर मिलना आपका हमसे,
वक़्त-ए-रुख़्सत बहुत रुलाएगा।
दिल को हर पल ये आस रहती है,
एक दिन वो ज़रूर आएगा।
जब कदूरत दिलों पे हो हावी,
कौन किसको गले लगाएगा?
राह भटका हुआ हो जो ख़ुद ही,
क्या हमें रास्ता दिखाएगा?
खींच लेगी ख़ुशी तो हाथ इक दिन,
"ग़म ही आख़िर में काम आएगा।"
होगा हासिल फ़क़त उसे मंसब,
उनकी हाँ में जो हाँ मिलाएगा।
और कब तक 'विवेक' यूँ इंसाँ,
ज़ुल्म जंगल-नदी पे ढाएगा।
ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
संग - पत्थर
वक़्त-ए-रुख़्सत - जुदाई के समय
कदूरत - दुर्भावना
मंसब - पद,ओहदा
(चित्र गूगल से साभार)
चित्र गूगल से साभार
July 25, 2022
एक नशा ऐसा भी
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सावन सूखा
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July 11, 2022
सुखनवरी
मिसरा-ए-तरह : वो चला तो गया याद आया बहुत
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
ग़ज़ल-- ©️ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल 9897214710
©️
फ़िक्र के पंछियों को उड़ाया बहुत,
उसने अपने सुख़न को सजाया बहुत।
हौसले में न आई ज़रा भी कमी,
मुश्किलों ने हमें आज़माया बहुत।
उसने रिश्तों का रक्खा नहीं कुछ भरम,
हमने अपनी तरफ़ से निभाया बहुत।
©️
लौ दिये ने मुसलसल सँभाले रखी,
आँधियों ने अगरचे डराया बहुत।
हुस्न कैसे निखरता नहीं रात का,
चाँद- तारों ने उसको सजाया बहुत।
मिट गई तीरगी सारी तनहाई की,
उनकी यादों से दिल जगमगाया बहुत।
शख़्सियत उसकी क्या हम बताएँ तुम्हें,
"वो चला तो गया याद आया बहुत।"
--- ©️ओंकार सिंह विवेक
फ़िक्र--चिंतन
सुख़न-- काव्य,कविता,शायरी
मुसलसल--निरंतर, लगातार
अगरचे--यद्यपि,हालाँकि
तीरगी-- अंधकार, अँधेरा
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कहां मज़दूर अब तक घर गए हैं
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अनकहे शब्द
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अखिल भारतीय काव्यधारा रामपुर -उ०प्र० का कवि सम्मेलन और साहित्यकार सम्मान समारोह
July 3, 2022
पुस्तक : सत्य और मिथ्या की तुला में
पुस्तक समीक्षा
************
कृति : कविता संग्रह 'सत्य और मिथ्या की तुला में'
कृतिकार : डॉ० शोभा स्वप्निल
समीक्षक : ओंकार सिंह विवेक
कविता की कोई निश्चित परिभाषा कर पाना बहुत कठिन कार्य है। बस इतना कहा जा सकता है कि आत्मा और मन की आवाज़ तथा संवेदनाओं का प्रस्फुटन ही कविता है।
कोरोना की भयानक त्रासदी के काल में कवयित्री डॉ० शोभा स्वप्निल जी ने जो देखा,भोगा और परखा,उसके उपरांत उनका जो मौलिक चिंतन प्रस्फुटित हुआ उसे उन्होंने अपनी अतुकांत कविताओं में ढालकर "सत्य और मिथ्या की तुला में" नामक कविता संग्रह में समाज के संमुख प्रस्तुत किया है।
श्रीमती शोभा स्वप्निल जी की साहित्यिक अभिरुचि को पल्लवित और पोषित करने में उनके पतिदेव श्री संतोष खंडेलवाल जी का बहुत बड़ा योगदान रहा है। अत:यह पुस्तक शोभा जी ने खंडेलवाल जी को ही समर्पित की है। डाक्टर शोभा जी के ये भाव वंदनीय हैं।
यों तो इस काव्य संग्रह की अधिकांश कविताएं मैंने पूरी तन्मयता से पढ़ी हैं।समीक्षा में सबका उल्लेख करना तो संभव नहीं है परंतु कुछ कविताओं के चुनिंदा अंश मैं यहां अवश्य उद्धृत करना चाहूंगा :
"अंतर्यात्रा" शीर्षक से कही गई एक कविता की कुछ पंक्तियाँ देखिए :
जी चाहता है/ दिन भर की उथल- पुथल/ प्रेम-नफ़रत-घृणा लोभ-लालच-लिप्सा के/ शोर से दूर भीतर झाँके/स्वयं को आँकें और सुनें अंत: संगीत/जो कहता है शांति से जिएं/प्रेम कर प्रेम बांटें
इस अंतर्यात्रा कविता के अंत में प्रेम बांटें का जो भाव कवयित्री के मन में प्रस्फुटित होता है वही असली कविता है।
एक अन्य कविता "आशा का दीप" का एक अंश देखिए :
निराशा का घनघोर अंधेरा/ घेरे रहता है दिल को
फिर भी दूर बहुत/जलता है आशा का चिराग़
असफलता में सफलता तलाश लेना, निराशा में आशा का प्रकाश तलाश लेना ही कवि हृदय के सकारात्मक सोच को प्रकट करता है।ऐसा सर्जन ही समाज को दिशा देने में समर्थ हो सकता है। डॉक्टर शोभा स्वप्निल जी की एक कविता बहती हुई नदी से प्रेरणा लेकर सतत् कर्मरत रहने का संदेश देती है तो दूसरी कविता "किताब जीवन की" व्यक्ति के जीवन की जटिलता और उसके गतिमान रहने का जीवंत चित्रण प्रस्तुत करती है। अपनी एक कविता में स्वप्निल जी ने केदारनाथ त्रासदी पर बड़ी मार्मिक अभिव्यक्ति की है।इस कविता में मनुष्य को पर्यावरण से छेड़-छाड़ करने पर ऐसे ही परिणाम भुगतने की बार-बार चेतावनी दी गई है।कवयित्री ने 'खिड़की' और 'खो गई है मानवता' शीर्षकों की कविताओं में प्रतीकों के माध्यम से सुप्त मानवीय संवेदनाओं को जगाने का सफल प्रयास किया है।
कवयित्री ने 'जेब' शीर्षक की कविता में स्वार्थी रिश्तों की कैसे पोल खोल कर रख दी है,आप भी देखिए :
जब जेब थी/तो सब क़रीब थे मेरे
अब सिलाई उधड़ गई है/रिश्तों की
संबंधों की भी/जबकि फटी तो केवल /जेब थी
पुस्तक की शीर्षक कविता "सत्य और मिथ्या की तुला पर" में संस्कृति और प्रकृति को माध्यम बनाकर कवयित्री ने मन के भावों का बहुत ही दार्शनिक विश्लेषण किया है।इस कविता में मन की ऊहापोह/ द्वन्द्व/दुविधा आदि का बड़ा सार्थक और जीवंत चित्रण देखने को मिलता है।इस कविता का कुछ अंश देखें : (दार्शनिक शैली के कारण यह कविता बार-बार पढ़ने का आग्रह करती हुई प्रतीत होती है)
कई रातें बीतीं/कई दिन बीते/घंटे बीते
घड़ियां और क्षण बीते/मेरा मन झूलता रहा
सत्य और मिथ्या की तुला पर/पाप और पुण्य के प्रश्र पर
ढूंढता हुआ/मूल्यांकन के स्रोत/संस्कृति को मानूं अथवा प्रकृति को
काव्य संकलन में कुल 65 कविताएं संकलित हैं। यों तो ये अतुकांत कविताएं हैं परंतु इनमें एक अल्हड़ नदी की तरह प्रवाह है जो एक कविता की पहली शर्त होती है।
डॉक्टर शोभा स्वप्निल जी की कविताओं को पढ़ने के बाद यह कहा जा सकता है कि उनकी हर कविता में एक सर्जक की दृष्टि विद्यमान है।कवयित्री में पूरी संवेदनशीलता के साथ अपने भावों को संप्रेषित करने की बेचैनी है।एक कवि का दायित्व होता है कि वह मुश्किल चीज़ों को भी सरल रूप में काव्यात्मक अभिव्यक्ति दे। स्वप्निल जी ऐसा करने में सफल रहीं हैं।उनकी सभी कविताएं अनुपम सौंदर्य बोध से सुवासित हैं। कविताओं की भाषा बहुत ही सरल और सहज है। संकलन की सभी कविताएं आप और हमसे संवाद करती हुई प्रतीत होती हैं।
पुस्तक की भूमिका के रूप में कवयित्री को डॉक्टर योगेंद्र नाथ शर्मा अरुण,सदस्य कार्यपरिषद महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा,गुजरात , प्रसिद्ध ग़ज़लकार श्री हस्तीमल हस्ती जी,मुंबई तथा प्रसिद्ध साहित्यकार आदरणीया नेहा वेद जी का आशीर्वाद प्राप्त हुआ है।पुस्तक के प्रकाशक न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन,इंद्रपुरी नई दिल्ली हैं।यह पुस्तक एमेजॉन तथा फिलिपकार्ट पर उपलब्ध है।सृजनात्मक साहित्य में रुचि रखने वाले सुधी पाठकों तथा साहित्यकारों से अनुरोध है कि इस पुस्तक को अवश्य ही मंगाकर पढ़ें।
दिनांक :02.07.2022 ओंकार सिंह विवेक
ग़ज़लकार/समीक्षक/कंटेंट राइटर/ब्लॉगर
रामपुर उ ०प्र ०
oksrmp@gmail.com
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शुभ प्रभात मित्रो 🌹🌹🙏🙏 संगठन में ही शक्ति निहित होती है यह बात हम बाल्यकाल से ही एक नीति कथा के माध्यम से जानते-पढ़ते और सीखते आ रहे हैं...