April 25, 2023

मियाँ ! शायरी ख़ुद असरदार होगी

प्रणाम मित्रो 🌹🌹🙏🙏

 अस्वस्थ्य होने के कारण काफ़ी दिन से कोई पोस्ट साझा नहीं कर सका।आज एक पुरानी ग़ज़ल में कई संशोधन करके उसे नया रूप दिया है।आपकी प्रतिक्रिया हेतु यहां प्रस्तुत कर रहा हूं

ग़ज़ल--- ओंकार सिंह विवेक
©️
ज़रा  भी   अगर  फ़िक्र  में  धार  होगी,
मियाँ!शायरी   ख़ुद   असरदार   होगी।

सफ़र  का  सभी   लुत्फ़  जाता  रहेगा,
रह-ए-ज़िंदगी   ग़र   न   दुश्वार   होगी।

भले   ही   परेशान  हो  जाए  वो  कुछ,
मगर  हार  सच  को  न  स्वीकार होगी।
©️
मिलेंगे  नहीं   फ़स्ल  के   दाम  वाजिब,
किसानों पे  मौसम  की  भी मार होगी।

ख़ुशी से  भी है  रूबरू  होना  लाज़िम,
अगर  ज़िंदगी  ग़म  से  दो-चार  होगी।

जो   होगा   फ़रेबी, दग़ाबाज़   जितना,
सियासत में  उतनी  ही  जयकार होगी।

'विवेक' अपना ग़म ख़ुद उठाना पड़ेगा,
ये  दुनिया  न  हरगिज़  मददगार होगी।
            --  ©️ ओंकार सिंह विवेक 

April 20, 2023

साहित्यिक सरगर्मियां

दोस्तो नमस्कार 🌹🌹🙏🙏


आज केवल कुछ साहित्यिक सरगर्मियां ही आपके साथ साझा करने का मन है





April 17, 2023

कई दिन बाद

प्रणाम मित्रो 🌹🌹🙏🙏

रचनाकर्म में मैंने यह अनुभव किया है कि कभी-कभी शारदे की कृपा होती है तो अचानक ही बहुत सार्थक सृजन हो जाता है और कभी-कभी तमाम प्रयासों के बाद भी कई-कई दिन तक अच्छा सृजन नहीं हो पाता।साहित्यकार इन्हीं सब अनुभवों से गुज़रते हुए अपनी लेखनी को धार देने का प्रयत्न करता रहता है।कई साल पहले मुझसे एक ग़ज़ल हुई थी जिसके कई शेर मुझे भी बहुत पसंद हैं क्योंकि वे मेरे दिल के बहुत नज़दीक हैं।इस ग़ज़ल को मंचों और सोशल मीडिया तथा मेरे यूट्यूब चैनल पर साहित्य प्रेमियों ने बहुत पसंद किया।

उस ग़ज़ल को आपकी अदालत में प्रस्तुत कर रहा हूं। प्रतिक्रिया से अवश्य ही अवगत कराएं :
ग़ज़ल : ओंकार सिंह विवेक
 (सर्वाधिकार सुरक्षित) 
हँसते - हँसते   तय    रस्ते   पथरीले    करने   हैं,
 हमको    बाधाओं   के    तेवर    ढीले  करने  हैं।

 कैसे   कह  दूँ  बोझ   नहीं  अब  ज़िम्मेदारी  का,
 बेटी  के  भी  हाथ   अभी   तो   पीले   करने  हैं।

 ये   जो   बैठ  गए   हो  यादों   का  बक्सा  लेकर,
 क्या  फिर  तुमको  अपने   नैना   गीले  करने  हैं।
 
 फ़िक्र नहीं  है  आज  किसी  को  रूह सजाने की,
 सबको  एक  ही  धुन  है ,जिस्म सजीले करने हैं।

 होते   हैं  तो  हो  जाएँ   लोगों   के   दिल  घायल,
 उनको   तो   शब्दों   के   तीर   नुकीले  करने  हैं।
 
 तुम तो ख़ुद ही  मुँह  की  खाकर लौटे  हो हज़रत,
 कहते   थे   दुश्मन   के   तेवर   ढीले   करने   हैं।

जैसे  भी  संभव   हो  पाए , प्यार   की  धरती  से,
ध्वस्त  हमें  मिलकर   नफ़रत  के  टीले  करने  हैं।
           --- ओंकार सिंह विवेक 
               (सर्वाधिकार सुरक्षित)
      (एक साहित्यिक समारोह में सम्मान प्राप्त करते हुए)
                                  

April 12, 2023

जीत ही लेंगे बाज़ी वो हारी हुई

प्रणाम मित्रो 🌹🌹🙏🙏

हाल ही में रामपुर (उत्तर प्रदेश) की साहित्यिक संस्था काव्यधारा की उत्तराखंड इकाई की अध्यक्ष आदरणीया गीता मिश्रा गीत जी के आमंत्रण पर हल्द्वानी जाना हुआ। गीत जी और उनकी टीम के कुशल संयोजन में बहुत भव्य कवि सम्मेलन और साहित्यकार सम्मान समारोह संपन्न हुआ।कार्यक्रम में उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के काव्यकारों को सम्मानित किया गया तथा कवियों द्वारा समसामयिक विषयों को लेकर अपनी प्रभावशाली प्रस्तुतियां दी गईं।इस कार्यक्रम की एक विशेषता यह भी रही कि इसमें पड़ोसी मित्र देश नेपाल से आए दो कवियों हरीश जोशी जी और लक्ष्मी प्रसाद भट्ट जी ने भी काव्य पाठ किया।दोनों मेहमान कवियों को संस्था द्वारा सम्मानित भी किया गया।
                        (कार्यक्रम में मेरी प्रस्तुति)
इस कार्यक्रम पर विस्तार से मैं अगली पोस्ट में लिखूंगा।अभी इन मेहमान कवियों के बारे में कुछ बात करना चाहता हूं।नेपाली कवि मित्रों के व्यवहार में बहुत ही आत्मीयता थी। काफ़ी देर तक इन लोगों से हिंदी और नेपाली साहित्य को लेकर चर्चा हुई।मुझे यह कहने में ज़रा भी संकोच नहीं हो रहा है  कि उन लोगों का नेपाली भाषा में काव्य पाठ तो उच्च स्तरीय था ही वे लोग हिंदी भी हमसे कहीं अधिक अच्छी बोल रहे थे।

                   (काव्य पाठ करते हुए नेपाली कवि  )
दोनों नेपाली कवियों ने हिंदी और नेपाली दोनों ही भाषाओं में काव्य पाठ किया।नेपाली भाषा में किए गए काव्य पाठ का उन्होंने हिंदी अनुवाद भी प्रस्तुत किया।सभी उनकी प्रस्तुति और हिंदी के प्रति इतना अनुराग देखकर बहुत प्रसन्न हुए।उनमें से एक कवि मित्र ने बांसुरी बजाकर नेपाली भाषा के गीत की मधुर धुन भी प्रस्तुत की तथा बाद में उस गीत का सुमधुर पाठ भी किया।
मैंने अपने ग़ज़ल संग्रह "दर्द का अहसास" की प्रतियां भी इन मेहमान साहित्यकारों को भेंट कीं।

इस साहित्यिक आयोजन वृतांत के साथ मेरी नई ग़ज़ल का भी आनंद लीजिए :
ग़ज़ल--ओंकार सिंह विवेक
  दिनांक 12.04.2023
©️
सूचना  क्या  इलक्शन   की  जारी  हुई,
धुर  विरोधी  दलों   में   भी   यारी  हुई।

दीन-दुनिया से बिल्कुल ही अनजान थे,
घर  से  निकले तो कुछ जानकारी हुई।

आज  निर्धन  हुआ  और   निर्धन  यहाँ,
जेब   धनवान   की    और   भारी  हुई।
  
मुझ पे होगा भी  कैसे  बला  का  असर,
माँ   ने    मेरी   नज़र   है   उतारी   हुई।
©️
ये  अलग  बात,   गतिरोध   टूटा   नहीं,
बात    उनसे    निरंतर    हमारी     हुई।

रात की नींद और चैन दिन  का  छिना,
सर  पे  बनिए  की  इतनी  उधारी हुई।

हौसला  देखकर  लग  रहा  है 'विवेक',
जीत   ही   लेंगे  बाज़ी   वो  हारी  हुई।
©️ ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)





April 6, 2023

टूटा जब छप्पर होता है

प्रणाम मित्रो 🙏🙏

अचानक कोई वस्तु/घटना या चित्र मन को प्रभावित करता है तो कल्पना अनायास ही उड़ान भरने लगती है और कविता का जन्म हो जाता है।कुछ दिनों पहले नगर में एक झुग्गी बस्ती की तरफ़ से गुज़रना हुआ तो बड़ा मार्मिक दृश्य दिखाई दिया।किसी झुग्गी पर फटी हुई पन्नी पड़ी हुई थी,किसी पर टाट पड़ा हुआ था और किसी झुग्गी पर छत के नाम पर टूटा हुआ छप्पर पड़ा था।इन झुग्गियों में रहने वाले कैसे जीवन गुज़ारते होंगे यह समझते देर न लगी।टूटे छप्पर की छत ने जब मन को उद्वेलित किया तो एक शेर हो गया। काफ़ी दिन तक यह शेर तनहा ही रहा फिर धीरे-धीरे और कई विषयों पर शेर हुए और आख़िरकार ग़ज़ल मुकम्मल हुई जो आपकी प्रतिक्रिया हेतु प्रस्तुत है :

नई ग़ज़ल 
*******
हां,  जीवन   नश्वर   होता   है,
मौत का फिर भी डर होता है।

शेर   नहीं   होते   हफ़्तों  तक,
ऐसा   भी   अक्सर  होता  है।

बारिश  लगती   है  दुश्मन-सी,
टूटा   जब   छप्पर   होता   है।

उनका  लहजा  बस  यूँ  समझें,
जैसे   इक   नश्तर    होता   है।

जो   घर   के    आदाब  चलेंगे,
दफ़्तर   कोई    घर   होता   है।

'कोरोना'  के  डर  से  अब  तो,
घर   में   ही   दफ़्तर  होता  है।

देख लिया अब सबने,क्या-क्या-
संसद    के    अंदर    होता   है।
    --- ©️ओंकार सिंह विवेक

April 3, 2023

अखिल भारतीय काव्यधारा की मासिक काव्य गोष्ठी


काव्यधारा की मासिक काव्य गोष्ठी
 **************************
कविता जीवन से जुड़ी हुई चीज़ है।कविता और जीवन के अंतर्संबंध को इसी बात से समझा जा सकता है कि कविता में भी लय होती है और जीवन में भी।कविता युगों-युगों से समाज के यथार्थ का चित्रण करके उसे दिशा देने का काम करती आ रही है। हम सभी जानते हैं कि भारत को अंग्रेज़ों से आज़ाद कराने में भी कवियों और पत्रकारों के क्रांतिकारी विचारों का बहुत बड़ा योगदान रहा। क्रांतिकारी ख़बरों और कविताओं को पढ़कर लोगों के दिल में देशप्रेम का जो जज़्बा जगा उसने अंग्रेज़ों की सत्ता को उखाड़ फेंकने में अहम रोल अदा किया।आज भी क़लमकार कविता के माध्यम से अपनी-अपनी क्षमता के अनुसार समाज को जागृत करने का काम निरंतर कर रहे है। अनवरत ऑनलाइन तथा ऑफलाइन  साहित्यिक आयोजन हो रहे हैं जो अच्छा संकेत है।
रामपुर (उत्तर प्रदेश) की साहित्यिक संस्था काव्यधारा एक ऐसी ही संस्था है जो निरंतर अपने साहित्यिक आयोजनों से साहित्य और समाज की सेवा द्वारा मातृभाषा हिंदी को समृद्ध करती आ रही है।
रविवार दिनांक २ अप्रैल,२०२३ को संस्था के अध्यक्ष जितेन्द्र कमल आनंद जी के आवास पर संस्था की मासिक काव्य गोष्ठी आयोजित की गई जिसमें कवियों ने समसामयिक विषयों पर अपनी मौलिक रचनाओं का पाठ करके श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया।कार्यक्रम में कई नए रचनाकारों ने भी प्रस्तुति देकर अपने अंदर विद्यमान साहित्यिक क्षमताओं का परिचय दिया।
कवयित्री संध्या निगम "भूषण "के सौजन्य से आयोजित काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता संस्था के संस्थापक अध्यक्ष जितेंद्र कमल आनंद ने की। कार्यक्रम में ओंकार सिंह विवेक मुख्य अतिथि तथा रश्मि चौधरी विशिष्ट अतिथि के तौर पर उपस्थित रहे।संध्या निगम भूषण ने सरस्वती वंदना से गोष्ठी का शुभारंभ किया--
  लगा लो चरणों में ध्यान अपना, 
‌  वो‌ मात वीणा बजा रही है। 

ग़ज़लकार ओंकार सिंह विवेक ने कहा--
   मुस्काते हैं असली भाव छुपाकर चेहरे के,
   उन लोगों  का हँसना-मुस्काना बेमानी है।
   
   कवि राम किशोर वर्मा ने कहा--
यू- टयूब जब खोलिए, तब सुनियेगा‌ आप। 
किसने कैसा क्या लिखा, किसका कैसा भाव।।

‌शिव प्रकाश सक्सेना कड़क ने कहा--
  कैसी ऋतु आई है तात! 
  कभी जाड़ा तो कभी बरसात!! 

शायर अश्क रामपुरी ने अपने विचार कुछ यों अभिव्यक्त किए --
ख़लाओं में बिखरने लग गए हैं,
मेरे ग़म अब  सँवरने लग गए हैं।
  
 अध्यक्ष जितेंद्र कमल आनंद ने  गीतिका सुनाई--
  प्रभु की चाहत से यह चंदन जैसा मन हो जायेगा,
जितना चाहो उतना खर्चो, ऐसा धन हो जायेगा।
  इन रचनाकारों के अतिरिक्त कवयित्री रश्मि चौधरी व प्रियंका सक्सेना, राम प्रसाद आदि ने भी अपनी रचनाओं से श्रोताओं को आत्मविभोर किया। 
अंत में अध्यक्ष जितेंद्र कमल आनंद ने सभी का हार्दिक आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का संचालन कवि रामकिशोर वर्मा द्वारा किया गया।
इस कार्यक्रम की स्थानीय समाचार पत्रों द्वारा अच्छी कवरेज की गई।




अपनी ग़ज़ल के मतले के साथ इस ब्लॉग पोस्ट को समाप्त करता हूं :
  तीर  से  मतलब न  कुछ तलवार से,
  हमको मतलब है क़लम की धार से।
 --- ओंकार सिंह विवेक
ब्लॉग पर जाकर कमेंट्स के माध्यम से अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराएंगे तो हमें प्रसन्नता होगी 🌹🌹🙏🙏

ग़ज़ल कार/समीक्षक/कॉन्टेंट राइटर/ ब्लॉगर 

March 31, 2023

विश्व प्रसिद्ध रामपुरी चाकू (चाकू चौराहा)

मित्रो प्रणाम 🌹🌹🙏🙏

"जानी यह रामपुरी है, लग जाए तो ख़ून निकल आता है" आपने मशहूर अभिनेता स्मृतिशेष राजकुमार साहब को फिल्म में यह डायलॉग बोलते हुए ज़रूर सुना होगा।जब वह अपने ख़ास स्टाइल में यह डायलॉग बोला करते थे तो पिक्चर हॉल में तालियों की गड़गड़ाहट और सीटियों के अलावा कुछ सुनाई नहीं देता था। प्रसंगवश आज में उसी रामपुरी चाकू के बारे में आपसे कुछ बात करना चाहता हूं।
संयोग से मैं भी उसी रामपुर शहर (उत्तर प्रदेश) का निवासी हूं जिस शहर के चाकू की बात हो रही है। नवाबी दौर में रामपुरी चाकू उद्योग बहुत विकसित हुआ करता था।यहां एक चाकू बाज़ार भी है।रामपुर के बने चाकू दुनिया भर में पहचाने  जाते थे।इस उद्योग में अच्छे खासे लोगों को रोज़गार मिला हुआ था।समय और परिस्थितियां बदलने के साथ इस कारोबार में मंदी आती गई। कुछ तो काग़ज़ी खानापूरी जैसे लाइसेंस आदि मिलने में दिक्कत और कुछ मांग में कमी के चलते रामपुर का यह विश्व प्रसिद्ध उद्योग दम तोड़ने लगा। 
नए सिरे से रामपुरी चाकू को पहचान दिलाने के लिए शासन और प्रशासन ने फिर से इस उद्योग को प्रोत्साहित करना प्रारंभ किया है जिससे चाकू उद्योग से जुड़े लोगों में एक नई आस जगी है।
इसी कड़ी में रामपुरी चाकू के प्रचार-प्रसार के लिए रामपुर शहर की उत्तरी सीमा पर एक चौराहे का नाम "चाकू चौराहा" रखा गया है। नैनीताल रोड रामपुर पर 20 मार्च,2023 को इस चाकू चौराहे का भव्य लोकार्पण हुआ। चाकू तो आपने बहुत देखे होंगे पर इतना बड़ा चाकू कभी नहीं देखा होगा जितना बड़ा चाकू इस चौराहे पर लगाया गया है।यह चाकू 6.10 मीटर लंबा और लगभग 3 फिट चौड़ा है। इसके दुनिया का सबसे बड़ा चाकू होने का दावा भी किया जा रहा है।चाकू चौराहे की कुल लागत लगभग 52.52 लाख रुपए है जिसमें अकेले इस चाकू की लागत ही लगभग्र 29 लाख रुपए है।निश्चित तौर पर यह चौराहा पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बनेगा।इस चाकू चौराहे का निर्माण रामपुर विकास प्राधिकरण द्वारा कराया गया है। यहां स्थापित किया गया चाकू बहुत सुंदर है और इसे बनाने में लगभग आठ माह का समय लगा है। चौराहे पर लगे चाकू को पीतल,स्टील और लोहा धातुओं से बनाया गया है तथा इसका भार लगभग 8.5 क्विंटल है।
रामपुर के चाकू चौराहे से पर्यटन स्थल नैनीताल की दूरी लगभग 100 किलोमीटर है और झुमके वाले शहर बरेली की दूरी लगभग 60 किलोमीटर है।यहां से विश्व प्रसिद्ध ब्रास सिटी मुरादाबाद लगभग 30 किलोमीटर है तथा भारत की राजधानी दिल्ली की दूरी लगभग 185 किलोमीटर है।
यहां लोगों की ख़ूब भीड़ लग रही है।बच्चे,वृद्ध और जवान सभी विश्व के सबसे बड़े चाकू को देखने के लिए जुट रहे हैं और चाकू के साथ अपनी सेल्फी ले रहे हैं जिससे चौराहे की रौनक देखते ही बन रही है।हम भी श्रीमती जी के साथ इसे देखने पहुंचे तो इसके साथ फोटो खिंचवाने का लोभ संवरण न कर सके।

आपका भी जब कभी इधर से गुज़रना हो या नैनीताल जाना हो तो इस चौराहे पर रुककर रामपुरी चाकू की सुंदरता को अवश्य निहारिए और हां रामपुरी के साथ  सेल्फी लेना मत भूलिए। 
मुझे विश्वास है कि सेल्फी लेते समय आपको राजकुमार साहब का यह डायलॉग ज़रूर याद आ जाएगा "जानी यह रामपुरी है, लग जाए तो------------ "
           ओंकार सिंह विवेक 


March 25, 2023

कौन पूछेगा हमें दरबार में ???????

दोस्तो नमस्कार 🌹🌹🙏🙏
कई दिन बाद मेरी एक बिल्कुल ताज़ा ग़ज़ल हाज़िर है। आप सभी सम्मानितों की प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा

ग़ज़ल : ओंकार सिंह विवेक 
 ©️ 
आजिज़ी  तो   है  नहीं  गुफ़्तार  में,
कौन    पूछेगा    हमें   दरबार    में।

 नफ़्सियाती   नुक़्स   है  दो-चार में,
 वरना है  सबका  अक़ीदा  प्यार में।

संग  रखता  है  उसे  जो  ये  गुलाब,
कुछ तो देखा होगा आख़िर ख़ार में।

बारहा  रोता   है   दिल  ये  सोचकर,
वन   कटेगा   शह्र   के   विस्तार  में।
©️ 
पूछने    आए    थे    मेरी    ख़ैरियत,
दे   गए   ग़म   और  वो   उपहार  में।

मीर, ग़ालिब, ज़ौक़  सबका  शुक्रिया,
रंग  क्या-क्या  भर  गए  अशआर में।

बैठा  है  परदेस  में   लख़्त-ए-जिगर,
क्या  ख़ुशी  माँ  को  मिले त्योहार में।
           -  ©️ ओंकार सिंह विवेक  
आजिज़ी ------  लाचारी,दीनता
गुफ़्तार ----         बोली,   बातचीत
नफ़्सियाती नुक़्स --- मानसिक कमी 
अक़ीदा    -----         श्रद्धा,भरोसा
ख़ार      -------.      कांटा 
बारहा   ----            बार-बार 
अशआर    -----      शेर का बहुवचन
लख़्त-ए-जिगर ----- जिगर का टुकड़ा अर्थात बेटा
 

 Onkar Singh Vivek
(All rights reserved)






March 22, 2023

हिंदुस्तानी ज़बान पत्रिका में मेरी ग़ज़लें

प्रणाम मित्रो 🌹🌹🙏🙏


"हिंदुस्तानी प्रचार सभा" की स्थापना वर्ष 1942 में महात्मा गांधी जी द्वारा की गई थी।देश भर में बोली जाने वाली आसान हिंदी और आसान उर्दू मिश्रित भाषा जिसे हम हिंदुस्तानी भाषा कहते हैं की लोकप्रियता और स्वीकार्यता को दृष्टिगत रखते हुए इस संस्था द्वारा वर्ष 1969 से मुंबई से "हिंदुस्तानी ज़बान" त्रैमासिक पत्रिका का प्रकाशन किया जा रहा है।इस पत्रिका के संपादक एक पूर्व बैंकर श्री संजीव निगम जी हैं जो एक कुशल वक्ता और प्रसिद्ध साहित्यकार हैं।श्री निगम जी के संपादन में पत्रिका में बहुत ही स्तरीय रोचक सामग्री का प्रकाशन होता है।निगम साहब भारतीय सभ्यता,संस्कृति और साहित्य को बचाने के लिए निरंतर सक्रिय रहते हैं। मैं उनकी सार्थक सरगर्मियों को सोशल मीडिया पर देखता रहता हूं।आप बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति हैं।सामाजिक/सांस्कृतिक कार्यशालाओं में सहभागिता/ व्याख्यान और कवि सम्मेलनों आदि में आप निरंतर अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहते हैं।विदेश में भी आप साहित्यिक आयोजनों में अक्सर सहभागिता करते नज़र आते रहते हैं।आपकी सक्रियता और जीवटता को सलाम करते हुए मुझे उनके लिए किसी मशहूर शायर द्वारा कहा गया यह शेर याद आ गया ---
      न खो जाऊं कहीं इस भीड़ में एहसास है मुझको,
      मैं  अपनी  राह  औरों  से ज़रा  हटकर बनाता हूं।
                                                   -----अज्ञात                          
            (पत्रिका के संपादक श्री संजीव निगम जी) 

श्री संजीव निगम साहब ने सम्माननीय पत्रिका के जनवरी- मार्च,2023 अंक में मेरी दो ग़ज़लें छापी हैं और मेरे ग़ज़ल संग्रह "दर्द का अहसास" की सूक्ष्म समीक्षा भी छापी है। मैं इसके लिए आदरणीय संजीव निगम साहब,पत्रिका के संपादन सहयोगी श्री सुरेश प्रताप सिंह जी तथा संपादक मंडल के  अन्य सहयोगियों का ह्रदय से आभार व्यक्त करता हूं।
      ----ओंकार सिंह विवेक
(ग़ज़लकार/समीक्षक/कॉन्टेंट राइटर/ब्लॉगर) 

March 16, 2023

"ग़बन" : संवेदनाओं को झकझोरता उपन्यास

मित्रो नमस्कार 🌹🌹🙏🙏

पिछली कड़ी में हमने मुंशी प्रेमचंद जी के जीवन और उनके द्वारा समाज के लिए किए गए साहित्यिक अवदान के बारे में चर्चा किया। आइए आज उनके उपन्यास ग़बन पर कुछ चर्चा करते हैं।

मुंशी जी ने इस उपन्यास में सामाजिक,पारिवारिक और मानवीय चरित्र से जुड़ी तमाम समस्याओं को उठाया है और अंत में उनका समाधान भी प्रस्तुत करने का सफल प्रयास किया है।
 ग़बन का नायक रमानाथ एक लालची और स्वार्थी वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है।वह अति महत्वाकांक्षा के चलते दोस्तों के पैसों पर ऐश करता है,पत्नी के गहने चुराता है और उससे झूठ बोलता है, उसके सामने अमीर होने का नाटक करता है।इतना ही नहीं ग़बन भी करता है जिसके कारण अपनी नौकरी से हाथ तक धोना पड़ता है। अपनी कमज़ोरियों के चलते पुलिस के चंगुल में फंसकर देशभक्तों के खिलाफ़ मुखबिरी भी करता है। अपने ही झूठ और अंतर्द्वंद के जाल में फंसे व्यक्ति की मानसिक दशा का मुंशी जी ने बहुत ही मार्मिक चित्रण किया है। जीवन के एक मोड़ पर आकर पत्नी की प्रेरणा से रमानाथ को अपनी त्रुटियों का भान होता है और वह फिर से सच्चाई और आत्मसम्मान के महत्व को समझता है।
उपन्यास का दूसरा महत्वपूर्ण पात्र जालपा है जो रमानाथ की पत्नी है जिसे गहनों से बहुत लगाव है। बचपन में उसने अपनी मां के पास चंद्रहार देखा तो उसके मन में भी उसे पहनने की इच्छा बलवती हो जाती है।परंतु उसे यह समझाकर संतुष्ट कर दिया जाता है कि उसे चंद्रहार शादी के समय उसकी ससुराल से मिल जाएगा।इसी उम्मीद को लिए जालपा एक रोज़ ससुराल पहुंच जाती है।शादी में उसे ससुराल की तरफ़ से गहने तो बहुत मिलते हैं परंतु बस वही चंद्रहार नहीं मिलता जिसकी कामना वह किशोर वय से ही करती आ रही थी।जालपा के चरित्र को उभार देकर मुंशी जी ने नारी का गहनों के प्रति लगाव और  पति से एक पत्नी की अपेक्षा और उससे उपजे अंतर्द्वंद्व आदि को लेकर बहुत ही यथार्थपरक चित्रण किया है।
परिस्थितियां ऐसा मोड़ लेती हैं कि जालपा जो कभी गहनों से मोह रखने वाली एक सामान्य स्त्री थी नीति और आदर्श के महत्व को समझने लगती है। पति की नादानी पर उसे दया आने लगती है। उसमें देश के प्रति भी अनुराग जाग उठता है। 
इस उपन्यास का कालखंड आज़ादी की लड़ाई के समय का है सो अंग्रेज़ों के प्रति देशभक्तों में जो आक्रोश था उसकी भी अभिव्यक्ति इसमें स्थान-स्थान पर हुई है।पुलिस के दोगले चरित्र को भी खूब उजागर किया गया है उपन्यास में। कैसे पुलिस झूठे गवाह और मुखबिर तैयार करती है यह उपन्यास को पढ़कर जान सकते हैं।आज भी पुलिस महकमे की कमोबेश वैसी ही स्थिति है जैसी मुंशी जी ने 70 -80 साल पहले अपने उपन्यास में चित्रित की है।
उपन्यास का एक महत्वपूर्ण चरित्र दयानाथ जी हैं जो रमानाथ के पिता हैं और उनकी पत्नी का नाम जागेश्वरी है। दयानाथ जी कचहरी में नौकरी करते हुए भी आदर्शों की बात करते हैं और रिश्वत को हराम समझते हैं।उनकी आस्था मेहनत से कमाए गए धन में है जो एक संदेश है समाज के लिए।उनके चरित्र को लेकर मुझे अपनी ही ग़ज़ल का एक शेर याद आ गया
   कि जिसमें सिलसिला हो बरकतों का,
   मैं   ऐसा    धन    कमाना   चाहता  हूं।
                   ओंकार सिंह विवेक
उपन्यास के एक और प्रमुख पात्र का नाम है दीनदयाल जो जालपा के पिता हैं।उनकी पत्नी का नाम मानकी है। दीनदयाल जी एक गांव के ज़मीदार के मुख़्तार हैं और दुनियादारी में पूरे रचे-बसे हैं। किस से कैसे काम लेना है और किस पर कैसे असर डालना है,उन्हें अच्छी तरह आता है।जब वह बेटी जालपा की शादी दयानाथ जी के बेटे रमानाथ से तय करते हैं तो बातचीत में उनके चरित्र के विभिन्न शेड्स खुलकर सामने आते हैं।
एक और महत्वपूर्ण किरदार है इस कड़ी में जिसका नाम ज़ोहरा है।जोहरा एक वैश्या है।अपनी कमज़ोरियों की वजह से रमानाथ जब पुलिस की गिरफ्त में फंस जाते हैं तो अंग्रेज़ पुलिस उन्हें देशभक्तों के एक मुकदमें में सरकारी गवाह के रूप में तैयार करने के लिए ज़ोहरा को उनके मनोरंजन के लिए भेजती है। एक समय ऐसा आता है जब तमाम-उतार चढ़ाव के बाद ज़ोहरा का ह्रदय परिवर्तन होता है और वह इस अभिशप्त जीवन से उकताकर समाज में मान-सम्मान से जीने के लिए छटपटाने लगती है।नैतिकता और समाज सेवा का भाव उसमें जाग्रत होता है। इसी भाव के चलते दूसरे को बचाने में वह अपनी जान तक दे देती है।
उपन्यास के और सभी किरदार भी पाठक/श्रीता को अंत तक बांधे रहते हैं।कथानक का कोई भी किरदार बनावटी नहीं लगता।ऐसा लगता है की सभी किरदार हमारे आसपास से ही उठाए गए हैं ।जैसे-जैसे उपन्यास को पढ़ते जाते हैं वैसे-वैसे नई जिज्ञासा उत्पन्न होती जाती है कि अब किस किरदार का अगला क़दम क्या होगा।मुंशी प्रेमचंद जी के लेखन की यही विशेषता है कि हर कोई अपने आप को उससे जुड़ा हुआ पता है।
आशा है प्रेमचंद के इस उपन्यास के कुछ किरदारों के संक्षिप्त परिचय से उपन्यास को पढ़ने की आपकी जिज्ञासा अवश्य उत्पन्न हुई होगी।
अगली कड़ी में मुंशी जी के गोदान उपन्यास के कुछ किरदारों पर चर्चा करेंगे।
इस ब्लॉग पोस्ट पर अपनी प्रतिक्रिया देकर अवश्य ही कृतार्थ कीजिए 🙏🙏
    ओंकार सिंह विवेक 




March 12, 2023

भारत विकास परिषद रामपुर की इस सत्र की अंतिम पारिवारिक बैठक व होली मिलन कार्यक्रम संपन्न

नमस्कार मित्रो 🌹🌹🙏🙏

दिनांक 10 मार्च,2023 को भारत विकास परिषद मुख्य शाखा,रामपुर (उत्तर प्रदेश)की वर्तमान सत्र की अंतिम पारिवारिक बैठक एवं होली मिलन समारोह कार्यक्रम चम्पा कुवंरि न्यास धमॅशाला गांधी समाधि रोड,रामपुर पर संपन्न हुआ।
कार्यक्रम का शुभारंभ करते हुए दीप प्रज्ज्वलन एवं माल्यार्पण तथा वन्देमातरम गीत के पश्चात पूर्व सभा की कार्यवाही की पुष्टि की गई। तत्पश्चात कार्यक्रम के मुख्य अतिथि नगर विधायक श्री आकाश सक्सैना उर्फ़ हनी भैया का सदन से परिचय कराया गया। इसके बाद 19मार्च,2023 रविवार को मुरादाबाद में होने जा रहे प्रान्तीय अधिवेशन के सम्बन्ध में प्रान्तीय महासचिव डाक्टर गौरव वार्ष्णेय  द्वारा सदन को जानकारी दी गई।
तत्पश्चात वैवाहिक वर्षगांठ उपहार वितरण किया गया। हमारी  वैवाहिक वर्षगांठ 8 मार्च को पड़ती है अत: परिषद द्वारा हमें भी इस अवसर पर उपहार प्रदान किया गया।इसके लिए हम परिषद के ह्रदय से आभारी हैं। संस्था के इस स्नेह प्रकटीकरण ने निश्चय ही हमारा उत्साहवर्धन किया।
          ( उपहार गृहण करते हुए श्रीमती जी और मैं )
             (विधायक आकाश सक्सैना जी के साथ)

    (परिषद-सदस्य व अच्छे गायक श्री परमानंद शर्मा जी के          साथ सेल्फी)
प्रांतीय अध्यक्ष जगन्नाथ चावला जी ने अपने उद्बोधन के पश्चात बताया कि अगले सत्र के लिए सर्वसम्मति से रविंद्र गुप्ता जी को अध्यक्ष पद का दायित्व सौंपा गया है।श्री रविंद्र गुप्ता जी को तीसरी बार परिषद का अध्यक्ष चुने जाने पर सभी ने करतल ध्वनि से उनका उनको बधाई दी गई। नए सत्र के लिए पुष्पेंद्र अग्रवाल को उपाध्यक्ष,दीपक पुंडीर को सचिव, संजीव अग्रवाल को कोषाध्यक्ष,सुनीता गुप्ता को महिला संयोजक और माधव गुप्ता जी को संरक्षक चुने जाने की भी जानकारी दी गई।
.           (सभा भवन में उपस्थित सम्मानित साथी गण)
पुन: अध्यक्ष चुने जाने पर रविंद्र गुप्ता जी ने सभी का आभार प्रकट करते हुए सदैव की भांति निष्ठा और पारदर्शिता से कार्य करने का आश्वासन दिया।उन्होंने सदस्य संख्या बढ़ाने का भी विश्वास दिलाया।
मुख्य अतिथि नगर विधायक श्री आकाश सक्सैना जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि वह अपने कार्यकाल में रामपुर का चहुंमुखी विकास कराएंगे।इस कार्य में सहयोग हेतु उन्होंने लोगों से सुझाव भी मांगे।आमंत्रित किए गए कलाकारों ने होली गीत और भजन सुनाकर कार्यक्रम में चार चांद लगा दिए।सभी ने मधुर गीतों पर थिरकते हुए फूलों की होली खेली तथा एक दूसरे के लिए मंगल कामना की।
               (कार्यक्रम की मीडिया कवरेज)
अंत में संरक्षक श्री माधव गुप्ता द्वारा सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया गया।कार्यक्रम का सफल संचालन अध्यक्ष श्री रविंद्र गुप्ता द्वारा किया गया।भाई कुलदीप राणा जी ने कार्यक्रम की वीडियो रिकॉर्डिंग तथा सुंदर फोटोग्राफी में विशेष सहयोग किया। सुरुचिपूर्ण रात्रि भोज के बाद सब ने एक दूसरे से विदा ली।
        (विधायक आकाश सक्सैना जी के साथ परिषद के                   पदाधिकारीगण)
अपने इस दोहे के साथ वाणी को विराम देता हूं
    जीवन  में  उत्साह  का,करते  हैं संचार।
    बेमक़सद होते नहीं,तीज और त्योहार।।
                ओंकार सिंह विवेक
ग़ज़लकार/समीक्षक/कॉन्टेंट राइटर/ब्लॉगर

March 5, 2023

कहानीकार,उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद

मित्रो नमस्कार 🙏🙏🌹🌹

बार-ए-दुनिया  में  रहो,गम-ज़दा या शाद रहो,
ऐसा कुछ करके चलो यां कि बहुत याद रहो।
            मीर तक़ी मीर
मशहूर शायर मीर का यह शेर मुंशी प्रेमचंद जी की शख्सियत पर बिल्कुल फिट बैठता है।मुंशी प्रेमचंद जी अपनी कहानियों और उपन्यासों के माध्यम से साहित्य जगत को इतना कुछ दे गए कि युगों-युगों तक याद किए जाते रहेंगे।
प्रेमचंद जी का जन्म 31 जुलाई,1880 को मुंशी अजायब राय जी के यहां बनारस के पास लमही गांव में एक साधारण कायस्थ परिवार में हुआ था।आपकी मृत्यु केवल 56 वर्ष की आयु में 8 अक्टूबर,1936 में हुई। प्रेमचंद जी का मूल नाम नवाब राय/धनपत राय था तथा इनके पिता जी डाक मुंशी थे।शिक्षक ,लेखक तथा पत्रकार रहे मुंशी जी ने प्रारंभ में नवाब राय नाम से ही उर्दू/हिंदी में लेखन किया।सन 1910 ईसवी में जब उनकी रचना "सोज़-ए-वतन" को अंग्रेज़ सरकार ने ज़ब्त कर लिया तो नवाब राय ने प्रेमचंद के छद्म नाम से लिखना प्रारंभ किया।
मुंशी जी की प्रारंभिक शिक्षा एक मौलवी साहब के यहां उर्दू/फ़ारसी में हुई।स्नातक स्तर तक भी उर्दू/फ़ारसी विषय उनके पास रहे।चूंकि प्रेमचंद जी के पिता जी सरकारी नौकरी में रहे सो उनके परिवार का  लखनऊ,बनारस ,देवरिया और गोरखपुर आदि स्थानों पर आना-जाना रहा।उन दिनों अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ़ लोगों के आक्रोश और आंदोलनों ने प्रेमचंद जी को बहुत प्रभावित किया। देश की आज़ादी को लेकर भारतीयों में जो जोश और जज़्बा था वह प्रेमचंद जी के सृजन में साफ़ देखा जा सकता है।
प्रेमचंद जी का जीवन बहुत संघर्षों से भरा रहा।माता और पिता की मृत्यु के समय उनकी उम्र काफ़ी कम थी।परिवार की ज़िम्मेदारी को पूरा करने के दबाव में आगे की शिक्षा भी किसी तरह प्राइवेट रूप से ही पूरी की।जब नौकरी मिली तो अपने मनमौजी और फक्कड़ स्वभाव के चलते उससे भी त्यागपत्र देना पड़ा।घर-गृहस्थी चलानी थी सो 1930 में "मर्यादा" पत्रिका से जुड़े,साप्ताहिक पत्र "जागरण" में काम किया। यहां कोई बात नहीं बनी तो अपना मासिक पत्र "हंस" भी निकाला जो बहुत लोकप्रिय हुआ। ईमानदारी और उसूलों पर चलने वाले प्रेमचंद जी को इन कामों से भी परिवार को चलाने में कोई मदद नहीं मिली उल्टे उन पर अच्छा-ख़ासा क़र्ज़ और चढ़ गया।
ऐसी विपरीत आर्थिक परिस्थितियों और पारिवारिक दायित्वों के चलते मुंशी जी ने फिल्म नगरी बंबई का रुख़ किया।वहां उनकी एक कहानी पर मिल/मज़दूर नाम से फ़िल्म भी बनी।वहां भी तरह-तरह की शर्तों के कारण मुंशी जी का मन नहीं लगा और वह वापस बनारस आ गए।बॉम्बे टॉकीज के हिमांशु राय जी ने उनसे बहुत कहा कि आप अच्छे कहानीकार हैं आपकी कहानियां फिल्मों में बहुत चलेंगी आप बंबई छोड़कर न जाएं परंतु मुंशी जी ने इंकार कर दिया।
इन सब बातों को देखकर लगता है कि मुंशी प्रेमचंद जी का जीवन संघर्षों में ही गुज़रा होगा।उनके पुत्र अमृत राय जी का भी यही कहना है कि पिताजी का जीवन अभावों में ही बीता परंतु कुछ विद्वान इस पर भिन्न मत भी रखते हैं।
मुंशी प्रेमचंद का सभी साहित्य जन सरोकारों से जुड़ा हुआ साहित्य है।इसकी लोकप्रियता का आलम यह है कि भारतीय भाषाओं में ही नहीं वरन कई विदेशी भाषाओं में भी उनकी कहानियों और उपन्यासों का अनुवाद हो चुका है।
उनकी नमक का दारोग़ा, कफ़न,ईदगाह,मंत्र, पंच परमेश्वर और दो बैलों की कथा आदि कहानियां पढ़कर आंखों में आंसू आ जाते हैं।ऐसा लगता है कि 70 या 80 साल पहले लिखी गई ये कहानियां हमारे आज के समाज का ही सच दर्शा रहीं हों।इसलिए ही साहित्यकार को भविष्य दृष्टा कहा जाता है।यदि प्रेमचंद जी के उपन्यासों की बात करें तो गोदान,ग़बन,कर्मभूमि और रंगभूमि जैसे उपन्यास भी समाज की सच्ची तस्वीर दिखाते हैं।सामाजिक विसंगतियों,नैतिक मूल्यों के क्षरण,मानव चरित्र की दुर्बलता और ऊंच-नीच के भेद आदि की मार्मिक अभिव्यक्ति उनमें  देखने को मिलती है।मुंशी प्रेमचंद के साहित्य में कोई बनावट नहीं लगती क्योंकि उन्होंने जिन समस्याओं और दशाओं का अपने साहित्य में वर्णन किया है वह स्वयं उनसे गुज़रे थे।
प्रेमचंद जी की कोई भी कहानी या उपन्यास आप पढ़ना शुरू कर दीजिए उसे पूरा पढ़े बिना संतुष्ट हो ही नहीं सकते।यही उनके लेखन की विशेषता है।पाठक पढ़ना शुरू करते ही ख़ुद को चित्रित घटनाओं से जुड़ा हुआ महसूस करने लगता है। मुंशी जी ने अपने उपन्यासों और कहानियों में यदि किसी पारिवारिक,सामाजिक समस्या को उठाया है तो उसका समाधान भी प्रस्तुत करने का प्रयास किया है।ऐसा लेखन ही वास्तविक लेखन कहलाता है।
इस सिलसिले की अगली कड़ी में मुंशी जी के प्रसिद्ध उपन्यास ग़बन पर कुछ बात करेंगे। ग़बन उपन्यास का मुख्य किरदार रमानाथ है जो अति महत्वाकांक्षा और लालच के चलते ग़बन  करता है,पत्नी के गहने चोरी करता है और भी न जाने क्या-क्या अनैतिक कार्य करता है।एक झूठ को छुपाने के चक्कर में सौ और झूठ बोलता और फिर उलझता ही चला जाता है।
(उपन्यास पर विस्तार से रोचक चर्चा अगली कड़ी में)
ओंकार सिंह विवेक 


February 27, 2023

देखन में छोटे लगें

शुभ संध्या मित्रो 🙏🙏🌹🌹

कल अपने नगर में ही अखिल भारतीय काव्यधारा के एक साहित्यिक आयोजन में सहभागिता का अवसर प्राप्त हुआ।बहुत अच्छा कार्यक्रम रहा। स्थानीय कवियों के अतिरिक्त बाहर से आए कवियों ने भी रंगों के पर्व होली तथा अन्य विविध विषयों पर अपनी श्रेष्ठ रचनाएँ सुनाकर आमंत्रित श्रोताओं को आनंदित किया।कार्यक्रम में कुछ साहित्यकारों को उनके साहित्यिक अवदान के लिए सम्मानित भी किया गया।
ऐसे आयोजनों में अपना काव्य पाठ करने का ही अवसर प्राप्त नहीं होता अपितु दूसरे श्रेष्ठ साहित्यकारों को सुनने का भी अवसर प्राप्त होता है जिससे चिंतन की उड़ान तीव्र होती है और सृजन कौशल का विकास होता है।नए साहित्यकारों के लिए भी ऐसे आयोजन निरंतर श्रेष्ठ सृजन की प्रेरणा का कारण बनते हैं। 
कविता और जीवन का बहुत गहरा अंतर्संबंध है।कविता और जीवन दोनों में ही एक लय होती है।कविता भाषा के पल्लव और पोषण का भी बड़ा काम करती है।अत: जीवन को प्रवाहमान बनाए रखने के लिए ऐसे काव्य आयोजन होते रहने चाहिए।
हाल ही में कुछ नए दोहे कहे हैं जो आपकी प्रतिक्रिया हेतु यहां प्रस्तुत कर रहा हूं :
कुछ नए दोहे 
**********
धूर्त-छली  चलते  रहे, प्रतिदिन अपनी चाल।
सच्चों के  सम्मुख कभी,गली नहीं पर दाल।।

उजियारे  की   सौंप  दी,रक्षा  जिनके   हाथ।
उनके  भी  दिल  हो गए,अँधियारे  के साथ।।

हमने  दिन  को  दिन कहा,और रात को रात।
बुरी  लगी  सरकार  को,बस इतनी सी बात।।

कैसे  कह  दें  है  नहीं, उनके  मन   में  खोट।
धर्म-जाति  के  नाम  पर,माँग  रहे   हैं  वोट।।

छीन  रही   है  वृक्ष से, जीने   का   अधिकार।
आँधी अपने कृत्य पर,कर तो तनिक विचार।।
                    ©️ ओंकार सिंह विवेक
 (सर्वाधिकार सुरक्षित)

प्रस्तुतकर्ता : ओंकार सिंह विवेक 

February 25, 2023

पुस्तकें मिलीं ("भावों के पंख" व "जो आधा-अधूरा कह दूं तो")



मित्रो सादर प्रणाम 🌹🌹🙏🙏

हाल ही में दो वरिष्ठ साहित्यकारों ने अपने काव्य संग्रह मुझे भेंट किए। इनमें एक कविता-संग्रह  "भावों के पंख" झांसी निवासी श्री निहाल चंद्र शिवहरे जी ने भेंट किया तथा दूसरा काव्य-संग्रह "जो आधा-अधूरा कह दूं तो" गुरुग्राम निवासी श्री विनोद कुमार पहिलाजानी द्वारा भेंट किया गया।
काव्य सृजन एक साधना के समान होता है।उसमें साहित्यकार को पूरी तरह रमना पड़ता है।किसी रचनाकार की किताब निकलना तो और भी बड़ी बात होती है। रचनाकार को अपनी किताब छपने पर इतनी ही खुशी का अनुभव होता है जैसे घर में कोई समारोह होने पर।अक्सर देखने में आता है कि कोई रचनाकर जिस भाव से अपनी पुस्तक किसी को भेंट करता है उस भाव से बहुत कम ही लोग उसे पढ़ने और उस पर प्रतिक्रिया देने की ज़रूरत समझते हैं।
मेरी हमेशा कोशिश रहती है कि भेंट की गई कृति को मनोयोग से पढ़कर उस पर समीक्षा लिखूं या कम से कम रचनाकार को एक पत्र/संदेश के माध्यम से अपनी प्रतिक्रिया से अवश्य ही अवगत कराऊं।
इसी क्रम में मैंने उल्लिखित दोनों साहित्यकारों को संदेश प्रेषित किए जो यहां साझा कर रहा हूं :

मान्यवर निहाल चंद्र शिवहरे जी को
****************************
आपके कविता-संग्रह "भावों के पंख" को पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ।आपकी रचनाओं की भाव प्रधानता ने बहुत प्रभावित किया।
मैंने अधिकांश रचनाओं में आपके अंतर्मन की गहन अनुभूतियों को शिद्दत से महसूस किया। मानव जीवन या प्रकृति का कोई ऐसा पक्ष नहीं बचा जिस पर आपकी दृष्टि न पड़ी हो।भोगे-परखे और आसपास घटित हो रहे घटनाक्रम को आपने अपनी कविताओं में जो अभिव्यक्ति दी है वह मन को उद्वेलित करती है।कविता वास्तव में वही सार्थक कही जाती है जो सीधे दिल से निकलकर श्रोता/पाठक के मर्म को छूकर आह या वाह करने के लिए बाध्य कर दे।प्यार और शृंगार पर तो कवियों द्वारा बहुत कुछ लिखा जा चुका है।आज  क़लमकार को सामाजिक सरोकारों पर लेखनी चलाने की आवश्यकता है। मुझे ख़ुशी है कि आपने इस दायित्व को समझते हुए अपने भावना प्रधान काव्य में सामाजिक सरोकार, प्रकृति/पर्यावरण संरक्षण जैसे महत्वपूर्ण विषयों को प्रभावशाली ढंग से उठाया है।आपने गद्यात्मक लेखन अधिक किया है जिसकी छाप इस काव्य कृति में भी झलकती है।
आशा है भविष्य में आपकी ओर भी उत्कृष्ट काव्य रचनाएँ/पुस्तकें हमें देखने को मिलेंगी।मैं आपके स्वस्थ्य और सुखी समृद्ध जीवन की मंगल कामना करता हूं ताकि आप यों ही जीवन पर्यंत साहित्य सृजन के माध्यम से समाज की सेवा करते रहें।

मान्यवर विनोद कुमार पहिला जानी जी को
***********************************
आपके कविता संग्रह "जो आधा-अधूरा कह दूं तो" को पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ।आपकी रचनाओं की भाव प्रधानता रचनाओं ने प्रभावित किया। तकनीकी क्षेत्र में कार्यरत रहते हुए भी कविता के प्रति अनुराग आपकी संवेदनशीलता का द्योतक है।
मैंने अधिकांश रचनाओं में आपके अंतर्मन की प्रेम-अनुभूतियों को शिद्दत से महसूस किया।कविता वास्तव में वही सार्थक कही जाती है जो सीधे दिल से निकलकर श्रोता/पाठक के मर्म को छूकर आह या वाह करने के लिए बाध्य कर दे।आपकी अभिव्यक्ति में मुझे वह सामर्थ्य दिखाई देती है।प्रेम/प्यार के बिना जीवन की कल्पना निरर्थक है।युगों-युगों से कवि प्रेम को काव्य-रूप में जीवंत अभिव्यक्ति प्रदान करते आ रहे हैं। आपने भी अपने भाव प्रधान काव्य में प्रेम की विविध रूपों में सुंदर अभिव्यक्ति की है जो पाठक का ध्यान खींचती है।
आशा है भविष्य में आपकी ओर भी उत्कृष्ट काव्य रचनाएँ/पुस्तकें हमें देखने को मिलेंगी।
मैं आपके स्वस्थ्य और समृद्ध जीवन की मंगल कामना करता हूं।

सादर
ओंकार सिंह विवेक
ग़ज़लकार/समीक्षक/कॉन्टेंट राइटर/ ब्लॉगर
रामपुर (उत्तर प्रदेश)






February 23, 2023

कौन रहता है कैसी सुहबत में

नमस्कार दोस्तो 🌹🌹🙏🙏

फागुन की खुमारी में कवि और साहित्यकारों की चैतन्यता भी आजकल देखते ही बन रही है। ख़ूब कवि सम्मेलन और मुशायरे हो रहे हैं।कहा भी गया है कि हरकत में ही बरकत है अर्थात कुछ होता रहता है तो सक्रियता भी बनी रहती है।आजकल खूब कवि सम्मेलनों में जाना हो रहा है तो चिंतन की उड़ान भी अपने शबाब पर है।इस दौरान कही गई एक ग़ज़ल आपके सामने रख रहा हूं। प्रतिक्रिया से अवश्य ही अवगत कराएं

नई ग़ज़ल
फ़ाइलातुन   मुफ़ाइलुन   फ़ेलुन 
©️
लुत्फ़  क्या  आएगा  शराफ़त  में,
आप  अब  आ  गए सियासत में।

हद तो ये, वो भी पढ़ लिया  उसने,     
हमने लिक्खा नहीं था जो ख़त में।

थी  जो  मसरूफ़ियत  हमें थोड़ी,
आप  भी  कब  थे यार फ़ुर्सत में। 
©️ए
फिर से  तारीख़  मिल गई अगली,   
आज  भी  ये  हुआ  अदालत  में।

ये   रवैया  नहीं   है   ठीक  मियाँ! 
कीजिए  कुछ   सुधार  आदत  में।

 गर्व   कैसे   न  हो  भला  हमको,
जन्म  हमने  लिया  है  भारत  में।
©️
आप  पूछें  न  तो  ही  बेहतर  है,
कितने  धोखे  मिले  शराफ़त  में।

हो  गई  मौत  सुनते  हैं  कल  भी,
एक   मासूम   की   हिरासत   में।

हो   गया    गुफ़्तगू   से   अंदाज़ा,
कौन  रहता  है  कैसी  सुहबत में।
      --- ©️ओंकार सिंह विवेक 

February 21, 2023

होली का हुडदंग : होली है !!होली है!!होली है भई होली है!!

दोस्तो नमस्कार 🌹🌹🙏🙏

फागुन आते ही सब पर होली के रंगों की मस्ती छाने लगती है।होली के स्वागत का मूड बनने लगता है।फाग गाने को मन मचलने लगता है। बाज़ारों में रंग,पिचकारी और गुलाल से दुकानें सजी दिखाई देने लगती हैं।होली के स्वागत में मतकटा सम्मेलन और कवि गोष्ठियां आदि प्रारंभ हो जाती हैं।
इसी क्रम में उत्साही युवा पत्रकार भाई गौरव त्रिपाठी ने अपनी हरफनमौला साहित्यिक संस्था के बैनर तले 19फरवरी,2023 को हल्द्वानी के यूरो किड्स स्कूल में एक शानदार कवि सम्मेलन और सम्मान समारोह का आयोजन किया।उनके आमंत्रण पर मुझे भी इस भव्य कार्यक्रम का हिस्सा बनने का अवसर प्राप्त हुआ। कार्यक्रम में आए सभी मेहमानों का संस्था के पदाधिकारियों द्वारा गुलाल का टीका लगाकर स्वागत किया गया।
कार्यक्रम के शुभारंभ के बाद गौरव त्रिपाठी ने संस्था के उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए बताया कि जहां एक ओर संस्था प्रतिष्ठित साहित्यकारों को आमंत्रित करती है वहीं दूसरी ओर नवांकुरों की काव्य प्रतिभा को पहचानकर उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए मंच भी प्रदान करती है। श्री गौरव त्रिपाठी ने बताया कि उनकी संस्था उत्तराखंड में अब तक ऐसे अनेक कार्यक्रम आयोजित करके छुपी हुई प्रतिभाओं को सामने ला चुकी है।
                   (मेरा उद्बोधन और काव्य पाठ)
कार्यक्रम में अन्य कवियों के साथ मेरे द्वारा भी  अवसर के अनुकूल काव्य पाठ प्रस्तुत किया गया 
     दीवाली के दीप हों,या होली के रंग।
     इनका आकर्षण तभी, जब हों प्रियतम संग।।

     होली का त्योहार है,हो कुछ तो हुडदंग।
     सबसे यह कहने लगे, नीले पीले रंग।।
                 ओंकार सिंह विवेक 
              (कार्यक्रम में उपस्थित अतिथिगण)
                    (भाई गौरव त्रिपाठी के साथ) 
          (मुख्य अतिथि से स्मृति चिह्न प्राप्त करते हुए मैं) 
             (संस्था प्रमुख गौरव त्रिपाठी का संबोधन)
कार्यक्रम में विद्यालय के बाल कवियों द्वारा होली को लेकर अपनी दमदार काव्य प्रतुतियां दी गईं। बाल कवियों की रंग भरी कविताएं सुनकर आमंत्रित श्रोताओं ने जमकर उनका  उत्साहवर्धन किया। 
             (काव्य पाठ करते हुए एक बाल कवि)
काव्यपाठ के बाद बच्चों को स्थानीय विधायक और अन्य मंचासीन अतिथियों द्वारा प्रोत्साहन पुरस्कार प्रदान किए गए। पुरस्कार पाकर बच्चों के चेहरे खिल उठे।
            (पुरस्कार गृहण करते हुए बाल कवि) 
       (कार्यक्रम में सम्मानित हुए कवि तथा अतिथिगण)
कार्यक्रम में यों तो सभी कवियों को स्मृति चिह्न प्रदान किए गए परंतु निम्न चार रचनाकारों को विशेष सम्मान प्रदान किए
  1. विनोद कुमार पहिलाजानी,गुड़गांव
  2. कैलाश जोशी पर्वत,कानपुर
  3. डॉo शशि जोशी,रामनगर
  4. किरन पंत वर्तिका, हल्द्वानी 
कार्यक्रम के अध्यक्ष और मुख्य अतिथियों ने अपने-अपने उद्बोधनों में कार्यक्रम की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए कहा कि साहित्य के संरक्षण और संवर्धन के लिए ऐसे कार्यक्रम आयोजित होते रहने चाहिए।अंत में संस्था अध्यक्ष गौरव त्रिपाठी ने सभी का आभार प्रकट करते हुए कार्यक्रम समाप्ति की घोषणा की।
उत्तराखंड के अखबारों में इस कार्यक्रम की बहुत अच्छी कवरेज हुई।एक अख़बार ने मेरी रचना की पंक्तियों को खबर की हैड लाइन बनाया इसके लिए संपादक मंडल का शुक्रिया।


प्रस्तुत कर्ता : ओंकार सिंह विवेक
ग़ज़लकार/समीक्षक/कॉन्टेंट राइटर/ब्लॉगर
 (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Featured Post

आज फिर एक नई ग़ज़ल

 एक बार फिर कोलकता के सम्मानित अख़बार/पत्रिका "सदीनामा", ख़ास तौर से शाइर आदरणीय ओमप्रकाश नूर साहब, का बेहद शुक्रिया। सदीनामा निरं...