पिछली कड़ी में हमने मुंशी प्रेमचंद जी के जीवन और उनके द्वारा समाज के लिए किए गए साहित्यिक अवदान के बारे में चर्चा किया। आइए आज उनके उपन्यास ग़बन पर कुछ चर्चा करते हैं।
मुंशी जी ने इस उपन्यास में सामाजिक,पारिवारिक और मानवीय चरित्र से जुड़ी तमाम समस्याओं को उठाया है और अंत में उनका समाधान भी प्रस्तुत करने का सफल प्रयास किया है।
ग़बन का नायक रमानाथ एक लालची और स्वार्थी वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है।वह अति महत्वाकांक्षा के चलते दोस्तों के पैसों पर ऐश करता है,पत्नी के गहने चुराता है और उससे झूठ बोलता है, उसके सामने अमीर होने का नाटक करता है।इतना ही नहीं ग़बन भी करता है जिसके कारण अपनी नौकरी से हाथ तक धोना पड़ता है। अपनी कमज़ोरियों के चलते पुलिस के चंगुल में फंसकर देशभक्तों के खिलाफ़ मुखबिरी भी करता है। अपने ही झूठ और अंतर्द्वंद के जाल में फंसे व्यक्ति की मानसिक दशा का मुंशी जी ने बहुत ही मार्मिक चित्रण किया है। जीवन के एक मोड़ पर आकर पत्नी की प्रेरणा से रमानाथ को अपनी त्रुटियों का भान होता है और वह फिर से सच्चाई और आत्मसम्मान के महत्व को समझता है।
उपन्यास का दूसरा महत्वपूर्ण पात्र जालपा है जो रमानाथ की पत्नी है जिसे गहनों से बहुत लगाव है। बचपन में उसने अपनी मां के पास चंद्रहार देखा तो उसके मन में भी उसे पहनने की इच्छा बलवती हो जाती है।परंतु उसे यह समझाकर संतुष्ट कर दिया जाता है कि उसे चंद्रहार शादी के समय उसकी ससुराल से मिल जाएगा।इसी उम्मीद को लिए जालपा एक रोज़ ससुराल पहुंच जाती है।शादी में उसे ससुराल की तरफ़ से गहने तो बहुत मिलते हैं परंतु बस वही चंद्रहार नहीं मिलता जिसकी कामना वह किशोर वय से ही करती आ रही थी।जालपा के चरित्र को उभार देकर मुंशी जी ने नारी का गहनों के प्रति लगाव और पति से एक पत्नी की अपेक्षा और उससे उपजे अंतर्द्वंद्व आदि को लेकर बहुत ही यथार्थपरक चित्रण किया है।
परिस्थितियां ऐसा मोड़ लेती हैं कि जालपा जो कभी गहनों से मोह रखने वाली एक सामान्य स्त्री थी नीति और आदर्श के महत्व को समझने लगती है। पति की नादानी पर उसे दया आने लगती है। उसमें देश के प्रति भी अनुराग जाग उठता है।
इस उपन्यास का कालखंड आज़ादी की लड़ाई के समय का है सो अंग्रेज़ों के प्रति देशभक्तों में जो आक्रोश था उसकी भी अभिव्यक्ति इसमें स्थान-स्थान पर हुई है।पुलिस के दोगले चरित्र को भी खूब उजागर किया गया है उपन्यास में। कैसे पुलिस झूठे गवाह और मुखबिर तैयार करती है यह उपन्यास को पढ़कर जान सकते हैं।आज भी पुलिस महकमे की कमोबेश वैसी ही स्थिति है जैसी मुंशी जी ने 70 -80 साल पहले अपने उपन्यास में चित्रित की है।
उपन्यास का एक महत्वपूर्ण चरित्र दयानाथ जी हैं जो रमानाथ के पिता हैं और उनकी पत्नी का नाम जागेश्वरी है। दयानाथ जी कचहरी में नौकरी करते हुए भी आदर्शों की बात करते हैं और रिश्वत को हराम समझते हैं।उनकी आस्था मेहनत से कमाए गए धन में है जो एक संदेश है समाज के लिए।उनके चरित्र को लेकर मुझे अपनी ही ग़ज़ल का एक शेर याद आ गया
कि जिसमें सिलसिला हो बरकतों का,
मैं ऐसा धन कमाना चाहता हूं।
ओंकार सिंह विवेक
उपन्यास के एक और प्रमुख पात्र का नाम है दीनदयाल जो जालपा के पिता हैं।उनकी पत्नी का नाम मानकी है। दीनदयाल जी एक गांव के ज़मीदार के मुख़्तार हैं और दुनियादारी में पूरे रचे-बसे हैं। किस से कैसे काम लेना है और किस पर कैसे असर डालना है,उन्हें अच्छी तरह आता है।जब वह बेटी जालपा की शादी दयानाथ जी के बेटे रमानाथ से तय करते हैं तो बातचीत में उनके चरित्र के विभिन्न शेड्स खुलकर सामने आते हैं।
एक और महत्वपूर्ण किरदार है इस कड़ी में जिसका नाम ज़ोहरा है।जोहरा एक वैश्या है।अपनी कमज़ोरियों की वजह से रमानाथ जब पुलिस की गिरफ्त में फंस जाते हैं तो अंग्रेज़ पुलिस उन्हें देशभक्तों के एक मुकदमें में सरकारी गवाह के रूप में तैयार करने के लिए ज़ोहरा को उनके मनोरंजन के लिए भेजती है। एक समय ऐसा आता है जब तमाम-उतार चढ़ाव के बाद ज़ोहरा का ह्रदय परिवर्तन होता है और वह इस अभिशप्त जीवन से उकताकर समाज में मान-सम्मान से जीने के लिए छटपटाने लगती है।नैतिकता और समाज सेवा का भाव उसमें जाग्रत होता है। इसी भाव के चलते दूसरे को बचाने में वह अपनी जान तक दे देती है।
उपन्यास के और सभी किरदार भी पाठक/श्रीता को अंत तक बांधे रहते हैं।कथानक का कोई भी किरदार बनावटी नहीं लगता।ऐसा लगता है की सभी किरदार हमारे आसपास से ही उठाए गए हैं ।जैसे-जैसे उपन्यास को पढ़ते जाते हैं वैसे-वैसे नई जिज्ञासा उत्पन्न होती जाती है कि अब किस किरदार का अगला क़दम क्या होगा।मुंशी प्रेमचंद जी के लेखन की यही विशेषता है कि हर कोई अपने आप को उससे जुड़ा हुआ पता है।
आशा है प्रेमचंद के इस उपन्यास के कुछ किरदारों के संक्षिप्त परिचय से उपन्यास को पढ़ने की आपकी जिज्ञासा अवश्य उत्पन्न हुई होगी।
अगली कड़ी में मुंशी जी के गोदान उपन्यास के कुछ किरदारों पर चर्चा करेंगे।
इस ब्लॉग पोस्ट पर अपनी प्रतिक्रिया देकर अवश्य ही कृतार्थ कीजिए 🙏🙏
ओंकार सिंह विवेक
प्रेमचंद के उपन्यास ग़बन पर अत्यंत सार्थक चर्चा
ReplyDeleteहार्दिक आभार।
DeleteUpnyas ko padhne ki jigyasa utpann ho gaee padhkar
ReplyDeleteजी 🙏🙏
DeleteGood description
ReplyDeleteThanks
Deleteउपन्यास के बहुत ही महत्पूर्ण बिंदुओं पर आपने प्रकाश डाला, जि
ReplyDeleteससे कहानी का उद्देश्य और परस्पेक्टिव खु
ल गया. एक अच्छी विवेचना के लिये बधाई..!
अतिशय आभार आदरणीया।
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