March 22, 2023

हिंदुस्तानी ज़बान पत्रिका में मेरी ग़ज़लें

प्रणाम मित्रो 🌹🌹🙏🙏


"हिंदुस्तानी प्रचार सभा" की स्थापना वर्ष 1942 में महात्मा गांधी जी द्वारा की गई थी।देश भर में बोली जाने वाली आसान हिंदी और आसान उर्दू मिश्रित भाषा जिसे हम हिंदुस्तानी भाषा कहते हैं की लोकप्रियता और स्वीकार्यता को दृष्टिगत रखते हुए इस संस्था द्वारा वर्ष 1969 से मुंबई से "हिंदुस्तानी ज़बान" त्रैमासिक पत्रिका का प्रकाशन किया जा रहा है।इस पत्रिका के संपादक एक पूर्व बैंकर श्री संजीव निगम जी हैं जो एक कुशल वक्ता और प्रसिद्ध साहित्यकार हैं।श्री निगम जी के संपादन में पत्रिका में बहुत ही स्तरीय रोचक सामग्री का प्रकाशन होता है।निगम साहब भारतीय सभ्यता,संस्कृति और साहित्य को बचाने के लिए निरंतर सक्रिय रहते हैं। मैं उनकी सार्थक सरगर्मियों को सोशल मीडिया पर देखता रहता हूं।आप बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति हैं।सामाजिक/सांस्कृतिक कार्यशालाओं में सहभागिता/ व्याख्यान और कवि सम्मेलनों आदि में आप निरंतर अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहते हैं।विदेश में भी आप साहित्यिक आयोजनों में अक्सर सहभागिता करते नज़र आते रहते हैं।आपकी सक्रियता और जीवटता को सलाम करते हुए मुझे उनके लिए किसी मशहूर शायर द्वारा कहा गया यह शेर याद आ गया ---
      न खो जाऊं कहीं इस भीड़ में एहसास है मुझको,
      मैं  अपनी  राह  औरों  से ज़रा  हटकर बनाता हूं।
                                                   -----अज्ञात                          
            (पत्रिका के संपादक श्री संजीव निगम जी) 

श्री संजीव निगम साहब ने सम्माननीय पत्रिका के जनवरी- मार्च,2023 अंक में मेरी दो ग़ज़लें छापी हैं और मेरे ग़ज़ल संग्रह "दर्द का अहसास" की सूक्ष्म समीक्षा भी छापी है। मैं इसके लिए आदरणीय संजीव निगम साहब,पत्रिका के संपादन सहयोगी श्री सुरेश प्रताप सिंह जी तथा संपादक मंडल के  अन्य सहयोगियों का ह्रदय से आभार व्यक्त करता हूं।
      ----ओंकार सिंह विवेक
(ग़ज़लकार/समीक्षक/कॉन्टेंट राइटर/ब्लॉगर) 

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