August 19, 2020

निशाना

ग़ज़ल-ओंकार सिंह 'विवेक'

आँधियों   में  दिये   जलाना  है,
कुछ नया करके अब दिखाना है।

बात  क्या  कीजिये  उसूलों  की,
जोड़ औ तोड़  का ज़माना    है।

फिर से पसरा है इतना  सन्नाटा,
फिर  से  तूफ़ान  कोई आना है।

झूठ   कब   पायदार   है   इतना,
दो क़दम चल के गिर ही जाना है।

ज़िन्दगी    दायमी   नहीं    प्यारे,
एक  दिन मौत सबको  आना है।

इस क़दर बेहिसी के  आलम  में,
हाल  दिल  का  किसे सुनाना है।

बज़्म  में  और  भी  तो  बैठे  हैं,
सिर्फ़ हम पर ही क्यों निशाना है।
------------ओंकार सिंह विवेेेक

August 18, 2020

अटल बिहारी बाजपेयी जी

भारत में जब जब राजनीति के मंच पर  नैतिकता और शुचिता की बात होगी तो सदैव श्री अटल जी का नाम ही सबकी ज़ुबान पर आएगा।श्री बीजपेेई जी ही एक मात्र ऐसे नेेता थे जिनकी राय को उनका विरोध करने वाले भी मानने को विवश हो जाया करते थे।यह उनकी वाकपटुता और व्यवहार कुुुशलता का ही कमाल था।
संयुक्त राष्ट्रसंघ में हिंदी में अपना भाषण देकर उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मंच पर हिंदी का लोहा मनवाया।श्री बाजपेई जी राजनेता होने के साथ ही मानवीय मूल्यों के पोषक,प्रखर वक्ता और संवेदनाओं से लबरेज़ कवि भी थे।
उनकी स्मृति को शत शत नमन🙏🙏!!!!!
        ------ओंकार सिंह विवेक

August 16, 2020

मीठा-खारा

ग़ज़ल--ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल 9897214710

कुछ  मीठा  कुछ  खारापन  है,
क्या क्या स्वाद लिए जीवन है।

कैसे   आँख   मिलाकर   बोले,
साफ़  नहीं जब उसका मन है।

शिकवे  भी   उनसे   ही   होंगे,
जिनसे   थोड़ा  अपनापन   है।

धन  ही  धन है इक तबक़े पर,
इक  तबक़ा  बेहद  निर्धन  है।

सूखा  है  तो  बाढ़  कहीं   पर,
बरसा  यह   कैसा  सावन  है।

कल  निश्चित  ही  काम  बनेंगे,
आज भले ही कुछ अड़चन है।

दिल  का है वह साफ़,भले ही,
लहजे  में  कुछ  कड़वापन है।
        ----ओंकार सिंह विवेक

August 15, 2020

स्वतंत्रता दिवस

स्वतंत्रता दिवस:कुछ दोहे
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           -------ओंकार सिंह विवेक
 🌷
  आज़ादी  पाना  कहाँ, था  इतना आसान।
  वीरों ने  इसके  लिए, प्राण  किए क़ुर्बान।।
 🌷
  लुटा गए जो देश पर,हँसकर अपनी जान।
  हम उनके बलिदान का ,रखें हमेशा मान।।
 🌷
  राष्ट्र  सुरक्षा  में  दिया, अपना  जीवन वार।
  भारत  के   वीरों  नमन, तुमको  बारंबार।।
 🌷
   मन में यह ही कामना, यह ही है अरमान।
   दुनिया का सिरमौर हो,अपना हिंदुस्तान।।
  🌷
                   -----ओंकार सिंह विवेक
                         @CR

August 14, 2020

कवि सम्मेलन ऑनलाइन

पल्लव काव्य मंच रामपुर-उ0प्र0 का कारगिल विजय दिवस के अवसर पर आयोजित  ऑनलाइन राष्ट्रीय कवि सम्मेलन
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पल्लव काव्य मंच,रामपुर(उ0प्र0) के तत्वावधान में मंच के व्हाट्सएप्प पटल पर एक ऑनलाइन राष्ट्रीय कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें कवियों नेअपनी देश प्रेम,समाज और मानवीय सरोकारों से जुड़ी श्रेष्ठ रचनाओँ का सस्वर पाठ किया गया।कार्यक्रम की अध्यक्षता गीतकार डॉ0 शिवशंकर यजुर्वेदी,बरेली जी द्वारा की गई तथा मुख्य अतिथि व विशिष्ठ अतिथि क्रमशः विपिन शर्मा जी,ब्यूरो चीफ हिंदुस्तान दैनिक ,रामपुर तथा डा0 मोनिका शर्मा,पशुचिकित्सा अधिकारी ,रामपुर रहे।

कार्यक्रम का शुभारंभ पल्लव काव्य मंच के संस्थापक रामपुर के वरिष्ठ कवि श्री शिव कुमार शर्मा चंदन की सस्वर  सरस्वती वंदना के द्वारा हुआ--
ग्यान की जगावो ज्योति,अंतस विराजो आये,
भक्ति   सुरसरि  माहि , डूब  डूब  जाऊँ  माँ।
लगन  लगी  है  ऐसी,कान्हा संग खेलों जाए,
दीजे  मन  मीत  गीत, छंदन  को  गाऊँ  माँ।

गीतकार डॉ0 शिवशंकर यजुर्वेदी जी ,बरेली ने कारगिल के वीरों के सम्मान में अपने उदगार कुछ यों व्यक्त किए-
आपके   त्याग   और   बलिदान   का
युग-युगों  तक ऋणी यह रहेगा वतन।
कारगिल  युद्ध  के  वीर   बलिदानियों,
आपको शत नमन आपको शत नमन।

कवि देशराज शर्मा उदार, धामपुर ने राम मंदिर के प्रति  आस्था व्यक्त करते हुए कहा--
श्रीराम मंदिर हमारे राष्ट्रीय गौरव मान का प्रतीक है,
श्रीराम  मंदिर  हमारे  राष्ट्रीय  सम्मान का प्रतीक हैं।

ग़ज़लकार ओंकार सिंह विवेक,रामपुर ने जीवन में माँ की महत्ता बताते हुए माँ के सम्मान में अपना मुक्तक प्रस्तुत किया--
डगर  का  ज्ञान होता है अगर माँ साथ होती है,
सफ़र आसान  होता है अगर माँ साथ होती है।
कभी मेरा जगत में बाल बाँका हो नहीं सकता,
सदा यह  भान होता है अगर माँ साथ होती है।

कवियित्री नीलिमा पाँड़े, मुंबई ने अपने उदगार कुछ यों व्यक्त किए--
कोरे  काग़ज़  पर  पढूँ,  अंतहीन  संवाद,
मृग तृष्णा में नीलिमा,तन मन है आबाद।

ओज कवि श्री अरविंद वाजपेयी,कन्नौज ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा--
काव्य  वही  जो  राष्ट्र  चेतना  को नव स्वर दे,
काव्य वही जो राष्ट्र भक्ति ज्वर घर घर भर दे।

कवि आनंद मिश्र अधीर,बदायूँ ने सामयिक विषय राम मंदिर पर अपने उदगार कुछ यों व्यक्त किए--
हो रहा मंदिर का निर्माण,लो छप्पन इंची सीना तान,
विजय  सत्य  की  हुई, झूठ  पर  हार  गया  है वान।

कवियित्री डॉ0 मोनिका शर्मा,मुरादाबाद ने अपनी प्रस्तुति दी--
हे  माँ   शारदे   चरण  रज   मैं   पाऊँ,
भाव शब्द सुमन तेरे चरणों में चढ़ाऊँ।

श्री विपिन शर्मा,रामपुर द्वारा माता एवं पिता के सम्मान में अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति कुछ यों दी गई--
यकीं मानो तुम्हें मिल जाएँगी ख़ुशियाँ जहाँ भर की,
कभी  माँ  बाप  की  आँखों  को नम होने नहीं देना।

इस ऑनलाइन कवि सम्मेलन में रचना पाठ करने वाले कवियों के अतिरिक्त अन्य कवियों और श्रोताओं ने भी सामयिक रचनाओं का रसास्वादन करते हुए कार्यक्रम के अंत तक रचनाकारों का उत्साहवर्धन किया। कार्यक्रम का सफल संचालन हरदोई के समर्थ कवि गोपाल ठहाका द्वारा किया गया। अंत में पल्लव काव्य मंच के संरक्षक वरिष्ठ कवि श्री शिवकुमार शर्मा चंदन जी द्वारा सभी का आभार व्यक्त करते हुए कार्यक्रम समाप्ति की घोषणा की गई।
         ------ओंकार सिंह विवेक
 ग़ज़लकार,समीक्षक,कंटेंट राइटर व ब्लॉगर
            रामपुर-उ0 प्र0

August 12, 2020

श्रीकृष्ण जी और कोरोना काल

दोहे--कोरोना और कृष्ण जी
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----////ओंकार सिंह विवेक
🌷
कहे  यशोदा  कृष्ण  से, है  यह  कोविड काल।
मास्क  पहन  कर  घूमने, निकलो मेरे   लाल।।
🌷
मंदिर   में   श्रीकृष्ण   जी, आएँ   कैसे   लोग।
डरा   रहा  है  आजकल, कोरोना  का   रोग।।
🌷
सबका  कोविड  दुष्ट  ने , जीना किया  मुहाल।
बनकर  इसका  कालअब,आ जाओ गोपाल।।
 🌷                        -----ओंकार सिंह विवेक

July 24, 2020

कुछ दोहे पावस पर

"
साहित्यिक संस्था 'हस्ताक्षर' मुरादाबाद की ऑनलाइन पावस(वर्षा ऋतु)-गोष्ठी
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२२ जुलाई,2020 को  'हस्ताक्षर' संस्था द्वारा यशभारती सम्मान प्राप्त  नवगीतकार डॉ. माहेश्वर तिवारी के ८१ वें जन्म दिवस पर पावस-गोष्ठी का ऑनलाइन आयोजन किया गया। 
 इस गोष्ठी में  रचनाकारों द्वारा डॉ. माहेश्वर तिवारी को उनके ८१ वें जन्मदिन पर  बधाई देते हुए विषय विशेष (वर्षा ऋतु )पर अपनी प्रभावशाली रचनाएँ प्रस्तुत कीं। गोष्ठी में निम्न रचनाकारों द्वारा सहभागिता की गई--
1.डॉ. माहेश्वर तिवारी 
2.श्री शचींद्र भटनागर 
3. डॉ.अजय 'अनुपम' 
4. डॉ.मक्खन 'मुरादाबादी' 
5.डॉ. मीना नक़वी
6.श्रीमती विशाखा तिवारी 
7.डॉ0प्रेमवती उपाध्याय 
8.श्री योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' 
9. डॉ.मीना कौल 
10..डॉ.मनोज रस्तोगी                                 
11.श्री राजीव 'प्रखर' 
12.डॉ.पूनम बंसल 
13.आदरणीया सरिता लाल 
14. शायर ज़िया ज़मीर 
15.श्रीयुत श्रीकृष्ण शुक्ल 
16.श्री मनोज 'मनु' 
17.डॉ.अर्चना गुप्ता 
18.ग़ज़लकार ओंकार सिंह 'विवेक' (रामपुर)
19.श्रीमती हेमा तिवारी भट्ट 
20.श्रीमती मोनिका 'मासूम' 
21.डॉ.ममता सिंह 
22.आ0 निवेदिता सक्सैना 
23.डॉ.रीता सिंह 
कार्यक्रम में मेरे द्वारा पावस ऋतु पर प्रस्तुत कुछ दोहे निम्नवत हैं---

🌷दोहे--पावस ऋतु🌷
      ----ओंकार सिंह विवेक
🌷.      @CR
पुरवाई   के  साथ  में ,  आई   जब  बरसात।
फसलें  मुस्कानें  लगीं , हँसे  पेड़  के  पात।।
🌷
मेंढक   टर- टर  बोलते , भरे   तलैया- कूप।
सबके मन को भा रहा,पावस का यह रूप।।
🌷
खेतों  में  जल  देखकर , छोटे-बड़े  किसान।
चर्चा  यह  करने  लगे , चलो  लगाएँ  धान।।
🌷
फिर इतराएँ क्यों नहीं , पोखर-नदिया-ताल।
जब सावन ने कर दिया,इनको माला माल।।
🌷
अच्छे   लगते   हैं  तभी , गीत  और  संगीत।
जब सावन में साथ हों , अपने मन के मीत।।
🌷
जब  से  है  आकाश  में,घिरी घटा  घनघोर।
निर्धन  देखे  एकटक , टूटी छत  की  ओर।।
🌷
कभी कभी वर्षा धरे , रूप बहुत  विकराल।
कोप दिखाकर बाढ़ का ,जीना करे मुहाल।।
🌷
-------//ओंकार सिंह विवेक
              रामपुर-उ0प्र0
           @CR
विशेष--गोष्ठी में सहभागिता का अवसर प्रदान करने हेतु संस्था के पदाधिकारियों प्रिय राजीव प्रखर एवं आदरणीय योगेंद्र वर्मा व्योम जी का अतिशय आभार

June 14, 2020

अगर माँ साथ होती है

साहित्यिक संस्था 'हस्ताक्षर' की ऑनलाइन मुक्तक-गोष्ठी
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मुरादाबाद, १३ जून। साहित्यिक संस्था 'हस्ताक्षर' की ओर से  आज संस्था के व्हाट्सएप समूह पर एक ऑनलाइन मुक्तक-गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें  रचनाकारों ने मुक्तकों के माध्यम से अनेक सामाजिक,  राजनैतिक एवं मानवीय विषयों को अभिव्यक्त किया।  मुक्तक-गोष्ठी में माँ को समर्पित मेरा एक मुक्तक यहाँ प्रस्तुत है--
"डगर का  ज्ञान होता है अगर माँ साथ होती है,
 सफ़र  आसान होता है अगर माँ साथ होती है।
 कभी मेरा जगत में बाल बाँका हो नहीं सकता,
 सदा  यह भान  होता है अगर माँ साथ होती है।
                              -----ओंकार सिंह विवेक
 मुक्तक-गोष्ठी में सुप्रसिद्ध व्यंग्य कवि डॉ. मक्खन मुरादाबादी, सुप्रसिद्ध शायरा डॉ. मीना नक़वी, कवि शिशुपाल 'मधुकर', शायर ज़िया ज़मीर, कवि राहुल शर्मा आदि लोकप्रिय रचनाकार भी श्रोताओं के रूप में उपस्थित रहे।
-------ओंकार सिंह विवेक
         रामपुर-उ0प्र0

May 12, 2020

साहित्य का नया दौर

कोरोना काल के बाद सामाजिक व्यवहार के साथ साथ साहित्यिक व्यवहार भी अप्रत्याशित रूप से बदलेंगे।कुछ दिन तक भौतिक रूप से आयोजित किए जाने वाले काव्य सम्मेलनों और मुशायरों में कमी आएगी और ऑन लाइन काव्य सम्मेलनों और पुस्तकों के विमोचन आदि की परम्पराएं प्रभावी रहेंगी।लॉकडाउन के दिनों में हम लगातार कवियों और शायरों को लाइव आता देख रहे हैं।यह अलग बात है कि ऑनलाइन श्रोताओं या दर्शकों का जुड़ाव साहित्यकारों के साथ अभी दिखाई नहीं पड़ रहा है परंतु निकट भविष्य में यह भी अवश्य ही  देखने में आयेगा।
आज एक प्रमुख साहित्यिक संस्था "तूलिका बहुविधा मंच,एटा "( संस्थापक-डॉक्टर राकेश सक्सैना,पूर्व हिंदी विभाग अध्यक्ष,जवाहर लाल नेहरू महाविद्यालय एटा) की इलैक्ट्रोनिक हिंदी साहित्यिक पत्रिका तूलिका के कोरोना विशेषांक का ई विमोचन सम्पन्न हुआ।हम साहित्यकार भी ऑनलाइन इस कार्यक्रम के साक्षी बने। कोरोना जैसी जानलेवा बीमारी के इस आपदा काल में साहित्यकारों ने भी अपने सामयिक सृजन के माध्यम से लोक को साहस और संबल देने का यथोचित प्रयास किया है।साहित्यकारों के इस प्रयास को ही पत्रिका के संपादक द्वय दिलीप पाठक सरस् और ओमप्रकाश फुलारा प्रफुल्ल जी द्वारा अपने सदप्रयासों के माध्यम से  सुंदर साहित्यिक पत्रिका का रूप दिया गया है।
इस पत्रिका में मुझ अकिंचन की रचना को भी स्थान दिया गया है जिसके लिए में संस्था के संस्थापक डॉक्टर राकेश सक्सैना एवं पत्रिका के संपादक मंडल का अतिशय आभार प्रकट करता हूँ।


May 9, 2020

Mother's Day:Special

अंतरराष्ट्रीय मातृ दिवस पर आयोजितऑन लाइन कवि गोष्ठी के आयोजन अवसर के छाया चित्र



April 30, 2020

खोज अभी बाक़ी है

खोज अभी बाक़ी है
कल ही की तो बात है जब भारतीय फ़िल्म इंडस्ट्री के एक बोलती आँखों वाले नेचुरल एक्टर इरफ़ान ख़ान की न्यूरो एंडोक्राइन ट्यूमर(एक प्रकार का दुर्लभ कैंसर जो एक लाख लोगों में से किसी एक को होता है)नामक बीमारी से  असामयिक मृत्यु की ख़बर ने सबके  दिल को गहरा सदमा पहुँचाया था।अभी लोग इस सदमे से उबरे भी न थे कि आज फिर अलसुब्ह वैसी ही दिल को बैठाने वाली ख़बर आई कि फ़िल्म इंडस्ट्री के एक और बेहतरीन एक्टर ऋषि कपूर की ल्यूकेमिया(एक प्रकार का कैंसर)  से मौत हो गई।इस ख़बर से फिर वही  रंज और ग़म का आलम हो गया।

यद्यपि कैंसर जैसी असाध्य बीमारी से लोगों के मरने की यह कोई नई घटनाएं  नहीं हैं परन्तु ये  या ऐसी और अनेक बातें मनुष्य के अस्तित्व, प्रकृति की शक्ति और उसके रहस्यों  से जुड़े तमाम विषयों  पर  बार बार बात करने के रास्ते खोलती हैं।

मनुष्य ने विज्ञान के बल पर प्रकृति के तमाम रहस्यों  को खोल कर रखा है।तमाम बीमारियों पर विजय पा ली है।दुनिया में पहले की  तुलना में मृत्यु दर बहुत कम रह गई है।बहुत सी प्राकृतिक आपदाओं का पूर्वानुमान लगाने में भी आदमी सक्षम हुआ है।ज़मीन के तमाम रहस्य उजागर करने के साथ ही आज आदमी आसमान में चाँद तक पहुँच गया है और उससे  भी आगे की यात्रा  जारी हैं।तमाम ऐसी बीमारियाँ जिन्हें दैवीय प्रकोप मान लिया जाता था,चिकित्सा विज्ञान ने  उनका इलाज खोजकर आदमी को मौत के मुँह से बचा लिया है।ग़रज़  यह कि आदमी निरंतर प्रकृति के रहस्यों पर से पर्दा उठाता जा रहा है और मनुष्य की शारीरिक संरचना को लेकर भी रोज़ नवीन शोध प्रस्तुत कर रहा है।परन्तु अभी भी  प्रकृति में बहुत कुछ अनसुलझे रहस्य हैं जिन तक विज्ञान को पहुँचना है। मनुष्य के शरीर और उस पर बाह्य वातावरण और परिवेश का प्रभाव और उनके साथ अनुकूलन जैसे अभी बहुत से अति आवश्यक विषयों पर विज्ञान की ठोस उपलब्धियाँ  दरकार हैं।कैंसर जैसी बीमारी को ही ले लीजिए चिकिसा विज्ञान इसे किसी हद तक नियंत्रित ज़रूर कर पाया है परन्तु पूरी तरह उन्मूलन नहीं कर पाया है।इस प्रकार की  बीमारियाँ लोगों में बार बार  पनप  रही हैं और अंततः मृत्यु का कारण बन रही हैं।अभी विज्ञान/चिकित्सा विज्ञानको  इस दिशा में बहुत दूर तक जाना है।अगर इन बीमारियों का कोई मुकम्मल  इलाज चिकित्सा विज्ञान द्वारा खोज लिया गया होता तो फिर चाहे वह कितना भी महँगा क्यों न होता कम से कम अमीर आदमी तो इन बीमारियों से कभी न मरते।आज 'कोरोना' जैसी घातक बीमारी पूरे विश्व में अनगिनत लोगों की मृत्यु का कारण बनी हुई  है।चिकित्सा विज्ञान के पास फ़िलहाल इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है।जब तक इस बीमारी की कोई दवा खोजी जाएगी न जाने कितने लोग अपनी जानें गंवा चुके होंगे।

यह क्रम आदि काल से चल रहा है और आगे भी सृष्टि का यह चक्र यूँ ही चलता रहेगा।इस तरह की घटनाएं मनुष्य  में दो तरह के विचारों और भावों को बार बार प्रबल करती हैं। पहले तो यह की मनुष्य विज्ञान के प्रति और सजग होकर अपने अनुसंधान और अन्वेषण को गति देता है और दूसरे यह की परिस्थितियों के आगे असहाय हो कर व्यक्ति  किसी अज्ञात शक्ति के प्रति आस्थावान होने लगता है।उस अज्ञात शक्ति के अस्तित्व को लेकर विज्ञान और आस्था में हमेशा बहस चलती रही है और चलती रहेगी रहेगी।
                         ------ओंकार सिंह विवेक

विनम्र श्रद्धांजलि







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नई ग़ज़ल!!! नई ग़ज़ल!!! नई ग़ज़ल!!!

असीम सुप्रभात मित्रो 🌷🌷🙏🙏 🌷🌱🍀🌴🍁🌸🪷🌺🌹🥀🌿🌼🌻🌾☘️💐 मेरी ग़ज़ल प्रकाशित करने के लिए आज फिर "सदीनामा" अख़बार के संपादक मं...