June 23, 2024

यादों के झरोखे से : गुरुजनों को सादर वंदन के साथ

यादों के झरोखे से : गुरुजनों को सादर वंदन के साथ 
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आज काफ़ी दिनों के बाद अपने गृह जनपद रामपुर (उत्तर प्रदेश) के रामपुर-बाज़पुर रोड से गुज़रना हुआ।इस रोड पर रामपुर से लगभग 15 किलोमीटर चलकर खेमपुर अड्डे पर बाईं ओर को उच्चतर माध्यमिक विद्यालय खेमपुर का बोर्ड देखकर मैंने ड्राइवर से गाड़ी रोकने के लिए कहा।मैं नीचे उतरा और स्कूल के आसपास काफ़ी देर तक निहारता रहा।भावुक होकर बच्चों को बताया कि मैंने 1975 से 1977 कक्षा 6 से 8 तक की शिक्षा इसी विद्यालय में ग्रहण की थी।यह सुनकर बच्चों में उत्सुकता जागी और उन्होंने उस समय की शिक्षा व्यवस्था तथा विद्यालयों आदि के बारे में मुझसे कई सवाल किए।मुझे उस समय की शिक्षा व्यवस्था और आज की शिक्षा व्यवस्था तथा अध्ययन-अध्यापन कार्य आदि में जो कुछ अंतर महसूस होता है उसका तुलनात्मक विश्लेषण उन्हें बताया। मेरे विश्लेषण पर कुछ स्वाभाविक तर्क भी उनके द्वारा दिए गए। परंतु अन्तत: बच्चे उस समय की शिक्षा व्यवस्था और शिक्षण कार्य आदि की जानकारी पाकर बहुत  प्रभावित हुए। बच्चों ने वहां विद्यालय के सामने मेरी और अपनी कुछ तस्वीरें भी उतारीं।
आजकल तो बच्चे अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूलों में प्रारंभ से ही अंग्रेजी भाषा पढ़ते है।परंतु उस समय हमारा कक्षा 6 में पहली पहली बार अंग्रेज़ी विषय से परिचय हुआ था। खेमपुर ग्राम के इस विद्यालय में श्री इमाम बख़्श साहब अंग्रेजी के अध्यापक हुआ करते थे।बहुत कड़क मिज़ाज और अपने विषय में पारंगत मास्टर थे श्री इमाम बख़्श साहब।बहुत मेहनत से पढ़ाते थे और अपने शिष्यों से भी वैसे ही परिणाम की अपेक्षा रखते थे। उस समय इंग्लिश ग्रैमर की "न्यू लाइट इन जनरल इंग्लिश" पुस्तक को लगन से पढ़ने वाले विद्यार्थियों को tenses आदि की पूरी जानकारी हो जाती थी और वे अंग्रेज़ी में कभी मात नहीं खाते थे।मुझे अपनी मातृ भाषा हिंदी के साथ-साथ अंग्रेज़ी भाषा से भी ख़ासा लगाव था।मेरी लगन को देखकर आदरणीय इमाम बख़्श साहब भी मुझसे बहुत प्रभावित रहते थे।जब कभी इंस्पेक्टर ऑफ स्कूल या अन्य निरीक्षक विद्यालय में निरीक्षण के लिए आते थे तो श्री इमाम बख़्श जी अंग्रेज़ी में कुछ पूछे जाने पर उत्तर देने के लिए मुझे ही आगे कर दिया करते थे।मुझे गर्व है कि मैं उनकी अपेक्षाओं पर सदा खरा उतरता था। ऐसे कर्मठ शिक्षकों को याद करके उनके प्रति मन श्रद्धा से भर उठता है।आज प्रसंगवश स्मृति पटल पर खेमपुर विद्यालय के शिक्षकों श्री सी पी सिंह जी,श्री अमर सिंह जी तथा श्री इमाम बख़्श साहब आदि की कितनी ही यादें उभर आती हैं। उन जैसे तमाम योग्य शिक्षकों ने मेरी प्रारंभिक शिक्षा की नीव को जिस तरह मज़बूत किया उसकी सुदृढ़ता मैं आज भी महसूस करता हूं। मैं बार-बार अपने उन गुरुजनों के प्रति कृतज्ञता और सम्मान व्यक्त करता हूं। उस समय की पढ़ाई का जो स्तर था उसकी जितनी भी तारीफ़ करूं वह कम है।जो समर्पण और कर्मठता का भाव शिक्षकों के पढ़ाने में होता था उसी तरह सीखने और शिक्षकों का सम्मान करने का भाव विद्यार्थियों में हुआ करता था। उस समय कक्षा 8 में जो अंग्रेज़ी ग्रैमर का ज्ञान "न्यू लाइट इन जनरल इंग्लिश" पुस्तक से हमने प्राप्त किया उसका आज भी कोई सानी नहीं है।मुझे यह कहने में बिल्कुल भी संकोच नहीं है कि उसी पढ़ाई के बल पर हमने अंग्रेज़ी स्कूल में पढ़े कितने ही साथियों को अंग्रेज़ी पढ़ने और लिखने में मात दी।
 उस समय की अनेक मधुर स्मृतियों को मन में संजोए मुहतरम इसहाक़ विरदग साहब के इस शे'र के साथ वाणी को विराम देता हूं :
         असातिज़ा*  ने   मेरा  हाथ  थाम  रक्खा  है,
          इसीलिए तो मैं पहुँचा हूँ अपनी मंज़िल पर।
                                       ---इसहाक़ विरदग
असातिज़ा* -- शिक्षकगण, गुरुजन, पढ़ाने वाले
©️ ओंकार सिंह विवेक 



June 15, 2024

कितने हसीन लोग हैं

प्रणाम मित्रो 🌹🌹🙏🙏

पारिवारिक व्यस्तताओं के चलते आज काफ़ी दिनों के बाद यह ब्लॉग पोस्ट लिखने बैठा हूं। आठ-दस साल के बाद बैंक के अपने पुराने घनिष्ठ साथियों से मिलने पर जो ख़ुशी हुई उसका वृतांत आपके साथ साझा करने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहा हूं।लीजिए हाज़िर है 👇👇
आज प्रसंगवश किसी मशहूर शाइर का यह शे'र याद आ रहा है :
         कितने हसीन लोग थे जो मिलके एक बार,
         आंखों में  जज़्ब  हो  गए दिल में समा गए।
                      -- अज्ञात
यह शे'र प्रथमा यू पी ग्रामीण बैंक के इन दो अधिकारियों पर बिल्कुल फिट बैठता है जिनके छायाचित्र आप नीचे देख रहे हैं। इन लोगों से आज बैंक के क्षेत्रीय कार्यालय रामपुर में काफ़ी समय बाद मेरी मुलाक़ात हुई।बताता चलूं कि मैंने तत्कालीन प्रथमा बैंक(अब प्रथमा यू पी ग्रामीण बैंक) से 26 मार्च,2019 को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ग्रहण कर ली थी।उस समय मेरी नियुक्ति अधिकारी के रूप में बैंक के मुख्यालय मुरादाबाद में ट्रेनिंग सेंटर में थी। तब ये दोनों प्रतिभाशाली तथा ऊर्जावान अधिकारी भी मुख्यालय में ही कार्यरत थे जिनसे बैंक कार्यों को लेकर अक्सर वार्तालाप होता रहता था।उस समय मुख्य कार्यालय में कार्य करने वाले जिन अधिकारियों से में बहुत अधिक प्रभावित हुआ उनमें इन दोनों के नाम भी प्रमुख हैं।बहुत हंसमुख स्वभाव,विनम्रता और अपने काम के प्रति पूरी निष्ठा-समर्पण का भाव इन दोनों अधिकारियों में मुझे देखने को मिला।अपनी मेहनत ,लगन और कार्यकुशलता के बल पर आज ये दोनों अधिकारी पदोन्नति पाकर उप क्षेत्रीय प्रबंधक(स्काई ब्लू टी शर्ट में दिखाई दे रहे श्री हरनंदन प्रसाद गंगवार जी) तथा क्षेत्रीय प्रबंधक(एक चित्र में लाइट कलर की शर्ट में तथा दूसरे चित्र में ब्लैक कलर की शर्ट में श्री विनय मिश्रा जी) जैसे महत्वपूर्ण पदों पर पहुंच चुके हैं।इन दोनों को इतनी जल्दी बैंक में सीनियर पोजीशन पर देखकर बहुत ख़ुशी महसूस हुई।
आज जब इन दोनों अधिकारियों से इनके कार्यालय में मिलना हुआ तो दोनों में वही आठ-दस साल पहले वाली गर्मजोशी, विनम्रता और आत्मीयता का भाव पाकर दिल गदगद हो गया। काफ़ी देर तक बातचीत करके पुरानी यादों को ताज़ा किया। मैंने दोनों को अपने ग़ज़ल संग्रह "दर्द का एहसास" की प्रतियां भी भेंट कीं। मैं इन दोनों के दीर्घायु होने की कामना के साथ आशा करता हूं कि ये अपने कैरियर में यों ही नित नई बुलंदियों को छूते रहेंगे।
अपनी ही ग़ज़ल का यह  शे'र इन दोनों को समर्पित करते हुए बात को समाप्त करता हूं :
         छुड़ा  देते   हैं   छक्के   मुश्किलों   के,
         यक़ीं हो  जिनको अपने  हौसले  पर।
                           ©️ ओंकार सिंह विवेक
 (यह आठ-दस साल पुराना छाया चित्र एल्बम से मिला जो श्री विनय मिश्रा जी के साथ जुड़ी यादों को ताज़ा करता है)


June 6, 2024

आपकी मुहब्बतों के हवाले

सादर प्रणाम मित्रो 🌹🌹🙏🙏

आपकी मुहब्बतों और आशीष के चलते निरंतर सार्थक जन सरोकारों से जुड़े सृजन की प्रेरणा मिल रही है। यदि सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो इस वर्ष के अंत तक मेरा दूसरा ग़ज़ल संग्रह "कुछ मीठा कुछ खारा"आप सम्मानित जनों के समक्ष होगा।पांडुलिपि को अंतिम रूप देकर जल्द ही प्रकाशक को भेजने पर निरंतर काम कर रहा हूं।
फिलहाल ------
चंद अशआर मुलाहिज़ा फ़रमाएँ :
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ये दिल जो इस तरह ज़ख़्मी हुआ है,
किसी के  तंज़  का  नश्तर चुभा  है।

कहा  है  ख़ार   के   जैसा  किसी  ने,
किसी ने ज़ीस्त को गुल-सा कहा है।

किसे   लानत-मलामत   भेजते   हो,
 मियाँ!वो आदमी  चिकना घड़ा  है।

नज़र   आते   हैं    संजीदा   बड़ों-से,
कहाँ  बच्चों  में  अब  वो बचपना है।

कहाँ  तुमको  नगर  में   वो  मिलेगी,
जो मेरे  गाँव  की  आब-ओ-हवा है।
          ---©️ओंकार सिंह विवेक 


June 3, 2024

मां का आशीष फल गया होगा

नमस्कार मित्रो 🌹🌹🙏🙏

पारिवारिक और सामाजिक सरोकारों को उकेरती हुई मेरी एक ग़ज़ल प्रस्तुत है आपकी अदालत में। प्रतिक्रिया से अवश्य ही अवगत कराएं :

ग़ज़ल-- ©️ओंकार सिंह विवेक

©️

माँ  का  आशीष   फल  गया   होगा,

गिर  के   बेटा   सँभल  गया   होगा।


ख़्वाब  में   भी  न  था  गुमां  हमको,

दोस्त   इतना    बदल   गया  होगा।


छत  से    दीदार   कर   लिया  जाए,

चाँद  कब  का   निकल  गया  होगा।


सच   बताऊँ   तो   जीत   से    मेरी,

कितनों का  दिल ही जल गया होगा।


रख   दिया    था  जो  आईना आगे,

बस  वही  उनको  खल  गया होगा।   


लूट  ली  होगी  उसने   तो  महफ़िल,

जब   सुनाकर   ग़ज़ल   गया  होगा।


जीतकर    सबका   एतबार  'विवेक',

चाल   कोई   वो   चल    गया  होगा।    

            -- ©️ओंकार सिंह विवेक

               (सर्वाधिकार सुरक्षित)



जिनसे रक्खी आस कहां वो लोग भरोसे वाले थे👈👈






May 27, 2024

चिंता में घुलने लगे, बाबू जी दिन-रात

प्रणाम मित्रो 🌹🌹🙏🙏


उत्तर भारत में इस समय भयंकर गर्मी और लू का प्रकोप है। पारा आधे सैकड़े की ओर बढ़ रहा है।सभी साथियों से अनुरोध है कि अपना ध्यान रखें और बहुत अधिक आवश्यकता होने पर ही घर से बाहर निकलें। पिछले कुछ सालों से देखने में आ रहा है कि हर बार बहुत अधिक सर्दी और बहुत अधिक गर्मी के सभी रिकॉर्ड टूट जाते हैं। इसके पीछे पर्यावरण असंतुलन और प्रकृति से अनावश्यक छेड़छाड़ जैसे तमाम कारण हैं जिन पर कभी बाद में विस्तार से चर्चा करेंगे फिलहाल मेरे कुछ दोहों और एक ग़ज़ल का आनंद लीजिए :

आज कुछ दोहे यों भी 
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©️ 
घर   में    होती    देखकर,बँटवारे   की   बात।
चिंता   में   घुलने   लगे,बाबू  जी   दिन-रात।।

लागत    भी     देते    नहीं,वापस    गेहूँ-धान।
आख़िर किस उम्मीद पर,खेती करे किसान।।
 ©️ ओंकार सिंह विवेक 


सदीनामा अख़बार में संपादक मंडल की मेहरबानी से फिर मेरी एक ग़ज़ल प्रकाशित हुई है☝️☝️ उसका भी आनंद लीजिए।मेरे साथ ही श्री विकास सोलंकी साहब की भी शानदार ग़ज़ल छपी है।सोलंकी साहब को भी उम्दा ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद।

विशेष -- (सबसे ऊपर जो छायाचित्र आप देख रहे हैं वह पल्लव काव्य मंच रामपुर के एक आयोजन के अवसर पर लिया गया था।उस शानदार कार्यक्रम पर शीघ्र ही एक ब्लॉग पोस्ट लिखूंगा। कृपया ब्लॉग को विजिट करते रहें🙏🙏)

May 16, 2024

नई ग़ज़ल!!! नई ग़ज़ल!!! नई ग़ज़ल!!!

असीम सुप्रभात मित्रो 🌷🌷🙏🙏

🌷🌱🍀🌴🍁🌸🪷🌺🌹🥀🌿🌼🌻🌾☘️💐

मेरी ग़ज़ल प्रकाशित करने के लिए आज फिर "सदीनामा" अख़बार के संपादक मंडल का हृदय की असीम गहराइयों से आभार।
आज मेरी ग़ज़ल के साथ मुंबई,महाराष्ट्र के शायर जनाब ताज मुहम्मद सिद्दीक़ी साहब की भी बेहतरीन ग़ज़ल छपी हैं।इंसानियत और भाई चारे का पैग़ाम देती हुई जनाब ताज मुहम्मद सिद्दीक़ी साहब की उम्दा ग़ज़ल के लिए उन्हें भी बहुत-बहुत मुबारकबाद। यूं तो ताज मुहम्मद सिद्दीक़ी साहब की ग़ज़ल के सभी अशआर अच्छे हैं परंतु यह शे'र मुझे  ख़ास तौर पर बहुत अच्छा लगा :
  इलाही रहें मिलके हिन्दू व मुस्लिम,
  न झगड़े कभी ये अज़ां-आरती पर।
      -- ताज मुहम्मद सिद्दीक़ी 


ऊपर अख़बार में छपी मेरी नई तरही ग़ज़ल
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फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन 
©️ 
लोग   जब    सादगी   से   मिलते   हैं, 
हम भी फिर ख़ुश-दिली से मिलते  हैं।

आदमी    को     क़रीने    जीने     के,
'इल्म   की    रौशनी   से   मिलते  हैं।

ख़ैरियत   लेने   की   ग़रज़   से   नहीं,  
दोस्त  अब  काम  ही   से  मिलते  हैं।

आस   करते   हैं   जिनसे  नरमी  की,
उनके   लहजे    छुरी-से   मिलते   हैं।

राम   जाने    सियाह   दिल     लेकर,
लोग   कैसे   किसी   से   मिलते   हैं।
                 ©️ ओंकार सिंह विवेक

May 9, 2024

बात ग़ज़लों और दोहों की

मित्रो सादर प्रणाम 🌹🌹🙏🙏
आजकल ख़ूब ज़ेहन बना हुआ है पढ़ने और लिखने का। पिछले हफ़्ते तक मां शारदे की कृपा से कई नई ग़ज़लें हुई हैं और कुछ दोहे भी कहे हैं।कई साहित्यिक आयोजनों में जाना हुआ।कई नए और वरिष्ठ साहित्यकारों ने अपनी पुस्तकें भेंट कीं। पिछले दिनों देश के चर्चित ग़ज़लकार श्री दीक्षित दनकौरी जी का ग़ज़ल संग्रह "सब मिट्टी" पूरी तन्मयता के साथ पढ़ा।कुछ शेर तो कई-कई बार पढ़े। जनसरोकारों से जुड़ी श्री दनकौरी जी की सभी ग़ज़ले बहुत धारदार हैं। ग़ज़ल संग्रह को पढ़कर मैंने उसका परिचय देता हुआ विस्तृत वीडियो भी अपने यूट्यूब चैनल पर अपलोड किया जिसको बहुत पसंद किया गया।
यह ब्लॉग पोस्ट लिखते हुए मुझे श्री दनकौरी जी के दो अशआर याद आ गए :
 शे'र  अच्छा-बुरा  नहीं  होता,
या  तो होता है या नहीं होता।
*
ख़ुलूस-ओ-मुहब्बत की ख़ुश्बू से तर है,
चले  आईए  ये   अदीबों  का   घर  है।
       दीक्षित दनकौरी 
इन अशआर से ही आपको श्री दनकौरी जी के अशआर की गहराई का अंदाज़ा हो जाएगा।
इस दौरान ग़ज़लों के साथ-साथ कुछ दोहे भी कहे मैंने जो आपकी प्रतिक्रिया के लिए प्रस्तुत हैं :
 ©️
करते रहना है उसे,काम काम बस काम।
बेचारे मज़दूर  को,क्या  वर्षा क्या घाम।।

होंगे क्या इससे अधिक,बुरे और  हालात।
चौराहे तक आ गई,अब तो घर की बात।।

हमने दिन को दिन कहा,और रात को रात।
बुरी लगी सरकार को,बस इतनी सी बात।।

घर  में   होती   देखकर,बँटवारे   की  बात।
चिंता में  घुलने   लगे,बाबू  जी  दिन-रात।।
                        ©️ ओंकार सिंह विवेक
बात जब ग़ज़ल की चल ही रही है तो मेरी ग़ज़ल का एक मतला' और एक शेर भी देखिए :
कभी कुछ शादमानी लिख रहा हूं,
कभी मैं  सरगिरानी लिख रहा हूं।

कई तो हैं ख़फ़ा इस पर ही  मुझसे,
कि मैं पानी को पानी लिख रहा हूं।
   ©️ ओंकार सिंह विवेक 





      

May 7, 2024

आज फिर एक नई ग़ज़ल

 एक बार फिर कोलकता के सम्मानित अख़बार/पत्रिका "सदीनामा", ख़ास तौर से शाइर आदरणीय ओमप्रकाश नूर साहब, का बेहद शुक्रिया। सदीनामा निरंतर सामाजिक सरोकारों वाली ग़ज़लें प्रकाशित करके अपने सामाजिक दायित्व का निर्वहन कर रहा है।इस बार मेरे साथ ही भाई श्री दर्द गढ़वाली साहब की भी बेहतरीन ग़ज़ल छपी है। दर्द साहब को भी बहुत-बहुत मुबारकबाद।दर्द गढ़वाली साहब बहुत अच्छे शेर कहते हैं। अब तक आपके दो ग़ज़ल-संग्रह मंज़र-ए-आम पर आ चुके हैं।

--ओंकार सिंह विवेक 


May 1, 2024

मज़दूर दिवस

आज मज़दूर दिवस है। प्रतीकात्मक रुप से इस दिन दीन-हीन को लेकर ख़ूब वार्ताएं और गोष्ठियां आयोजित की जाएंगी। श्रम  क़ानूनों पर व्याख्यान होंगे। मज़दूरों की दशा पर घड़ियाली आंसू बहाए जाएंगे परंतु बेचारे मज़दूर की दशा में कोई ख़ास अंतर नहीं आना है।
ख़ाली जेब,सिर पर बोझा और पांवों में छाले ,यही
 मुक़द्दर है एक श्रमिक का। गर्मी, वर्षा और जाड़े सहते हुए बिना थके और रुके काम में लगे रहना ही उसकी नियति है। मेहनत करके रूखी-सूखी मिल गई तो खा ली,वरना पानी पीकर खुले आकाश के नीचे सो गए । उसकी पीड़ा को भी काश ! कभी ढंग से समझा जाए।उसे उसकी मेहनत का पूरा दाम मिले, बिना भेद भाव के शासन उसकी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के प्रति गंभीर हो।
मज़दूर वर्ग से काम लेने के नीति और नियमों में आवश्यकतानुसार सुधार किए जाएं तभी इस वर्ग का कल्याण सुनिश्चित किया जा सकता है।
प्रसंगवश मुझे अपनी अलग-अलग ग़ज़लों के दो शे'र तथा एक पुराना दोहा याद आ गया :

शेर
***
कहां  क़िस्मत  में उसकी  दो घड़ी आराम  करना  है,
मियां ! मज़दूर को तो बस मुसलसल काम करना है।

***
उसे करना ही पड़ता है हर इक दिन काम हफ़्ते में,
किसी मज़दूर की क़िस्मत में कब इतवार होता है।

दोहा 
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करना है दिन भर उसे, काम काम बस काम।
बेचारे  मज़दूर   को, क्या  वर्षा   क्या  घाम।।
               ©️ ओंकार सिंह विवेक 



     

April 28, 2024

ग़ज़ल/कविता/काव्य के बहाने


सभी साहित्य मनीषियों को सादर प्रणाम 🌷🌷🙏🙏*******************************************

आज फिर विधा विशेष (ग़ज़ल) के बहाने आपसे से संवाद की इच्छा हुई।ग़ज़ल को सिंफ़-ए-नाज़ुक यों ही नहीं कहा जाता है।

दरअस्ल यह शब्दों का बहुत नाज़ुक  बर्ताव चाहती है।कथ्य को दो  मिसरों में पिरोने के लिए शब्दों का बहुत कोमलता से चयन करना पड़ता है। ग़ज़ल सपाट बयानी से बचने और कहन में चमत्कार पैदा करने के लिए बहुत मेहनत चाहती है।प्रसिद्ध ग़ज़लकार आदरणीय अशोक रावत जी के शब्दों में " व्यक्ति को यदि बहर और क़ाफ़िया-रदीफ़ की जानकारी हो भी जाए तो भी ग़ज़ल की कहन को दुरुस्त करने में जीवन निकल जाता है।"


अत: ग़ज़ल कहने वाले नए साथियो से अनुरोध है कि ग़ज़ल के शिल्प आदि को लेकर किताबों अथवा नेट पर उपलब्ध सामग्री का पहले गंभीरता से अध्ययन करें।विधा विशेष के basics को समझें।वरिष्ठ और मंझे हुए साहित्यकारों के सृजन को पढ़ें उस पर मनन करें और फिर ग़ज़ल या अपनी पसंद की किसी भी विधा में सृजन का प्रयास/अभ्यास करें,निश्चित ही सफल होंगे।


अच्छे शे'र/अशआर कहना कितना मुश्किल(असंभव नहीं)काम है ---,आजकल मंचों पर शा'यरी के नाम पर कुछ लोगों द्वारा (सबके द्वारा नहीं) क्या परोसा जा रहा है आदि विषयों पर अक्सर मन- मस्तिष्क में मंथन चलता रहता है।

इन्हीं बातों को लेकर अलग-अलग समय पर अलग-अलग ग़ज़लों में मुझसे कई शे'र (मुतफ़र्रिक़ अशआर)हुए हैं जो प्रसंगवश आपके साथ साझा कर रहा हूं :

©️ 

ख़ूँ जिगर का जलाए बिना कुछ,

रंग  शे'रों   में   आना   नहीं  है।

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शे'र नहीं होते हफ़्तों तक,

ऐसा भी अक्सर  होता है।

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जारी रक्खो मश्क़ 'विवेक',

रंग   सुख़न   में   आएगा।

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दोस्त!कभी तो बरसों भी लग जाते हैं,

दो मिसरों को  सच्चा शे'र  बनाने  में।

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ज़ेहन में इक अजीब हलचल है,

शे'र   ऐसे   सुना   गया   कोई।

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ख़ुश हैं लोग लतीफों से,

अब क्या शे'र सुनाने हैं।

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मंच  पर   चुटकुले  और  पैरोडियाँ, 

आजकल बस यही शा'यरी रह गई।

**

सुनाते   रहे   मंच    से    बस  लतीफ़े,

न आए वो आख़िर तलक शा'यरी पर।©

©️ ओंकार सिंह विवेक 

(सर्वाधिकार सुरक्षित) 


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April 23, 2024

साहित्यिक सरगर्मियां

प्रणाम मित्रो 🌹🌹🙏🙏

साहित्यिक कार्यक्रमों में जल्दी-जल्दी हिस्सेदारी करते रहने का एक फ़ायदा यह होता है कि कुछ नए सृजन का ज़ेहन बना रहता है। मैंने अक्सर यह देखा है कि जब किसी साहित्यिक कार्यक्रम में हिस्सेदारी करके लौटो तो एक-दो दिन में कोई ग़ज़ल मुकम्मल हो ही जाती है।अभी ग़ाज़ियाबाद एक बड़े साहित्यिक कार्यक्रम में शामिल होने का अवसर प्राप्त हुआ।

जमशेदपुर,झारखंड की  सार्थक संवाद,अपनी आवाज़
 अपने अल्फ़ाज़ साहित्यिक,सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्था द्वारा आयोजित लोकार्पण, अभिनंदनम सह साहित्यकार सम्मान समारोह का आयोजन गाजियाबाद में संपन्न हुआ।इसमें रामपुर से विश्वविख्यात शायर जनाब ताहिर फ़राज़ साहब के साथ मैं (ओंकार सिंह विवेक), सुरेन्द्र अश्क रामपुरी तथा राजवीर सिंह राज़ ने सहभागिता की।कार्यक्रम बहुत ही अनुशासित ढंग से कई चरणों में संपन्न हुआ।कार्यक्रम के आयोजकों ख़ास तौर पर आदरणीया सोनी सुगंधा जी तथा आदरणीय सुशील साहिल साहब ने बड़ी सादगी और शालीनता के साथ सबकी आवभगत की।
देश भर से आए साहित्यकारों ने अवसर के अनुकूल काव्य पाठ करके अंत तक श्रोताओं/दर्शकों को बांधे रखा।कार्यक्रम में वरिष्ठ शायर श्री सुशील साहिल साहब के ग़ज़ल संग्रह "यहां सब लोग हँसते बोलते हैं" का रस्म- ए-इजरा भी किया गया।
साहिल साहब की पुस्तक के विमोचन के अवसर पर मैंने भी अपनी चार पंक्तियां साहिल साहब और उनकी पुस्तक के प्रति श्रद्धा प्रकट करते हुए कुछ इस तरह प्रस्तुत कीं :
         मुसलसल   ख़ूबसूरत   शायरी    से,
         फ़ज़ा  में  प्रेम  का  रस   घोलते  हैं।
         रहे आबाद 'साहिल' की ये महफ़िल,
         'यहाँ  सब   लोग   हँसते-बोलते  हैं।'
                        ©️ ओंकार सिंह विवेक 
इस बीच मेरी एक ग़ज़ल प्रतिष्ठित समाचार पत्र दैनिक अमृत विचार में भी प्रकाशित हुई,उसका भी रसास्वादन कीजिए
👇👇
  पटना के मशहूर शायर श्री रमेश कंवल जी के सहयोग से चुनाव जागरूकता को लेकर मेरे कुछ दोहे जहानाबाद, बिहार के अख़बार जहानाबाद अरवल टाईम्स में प्रकाशित हुए,उनका भी आनंद लें।
--- ओंकार सिंह विवेक 

April 11, 2024

बात सोहार्द और सद्भावना की

नमस्कार मित्रो 🌷🌷🙏🙏

हम जिस मिश्रित सोसाइटी में रहे हैं उसमें सांप्रदायिक सौहार्द और सद्भावना की बहुत ज़रूरत है। त्योहार वे चाहे किसी भी संप्रदाय या समूह के हों,हमें एकता और भाई चारे का ही पाठ पढ़ाते हैं।जब कोई भी त्योहार खुले दिल से सोहार्द पूर्ण वातावरण में मनाया जाता है तो उसका उत्साह दुगना हो जाता है। अत: ज़रूरी है कि त्योहार चाहे होली का हो,ईद का हो या फिर क्रिसमस का सभी मिल-जुलकर मनाएं और बिना संकीर्ण मानसिकता के एक-दूसरे को गले लगाएं तथा परस्पर शुभकामनाएं संप्रेषित करें।
आज ईद का त्योहार है सो प्रसंगवश मुझे अपना एक पुराना शे'र याद आ गया :
      न ख़ुशियाँ ईद की कम हों, न होली-रंग हो फीका,
      रहे भारत के  माथे पर  इसी तहज़ीब  का  टीका।
                               ©️ ओंकार सिंह विवेक 
     

April 8, 2024

नव संवत्सर


मंगलमय नव वर्ष 🌹🌹🙏🙏 कुछ साथी ऐसा सुनकर चौंके भी होंगे यह सोचकर कि भाई नव वर्ष तो 1 जनवरी,2024 को अर्थात अब से लगभग सवा तीन माह पूर्व ही शुरू हो चुका है फिर यह -----  दरअस्ल ऐसा सोचने वालों की भी कोई ग़लती नहीं कही जा सकती क्योंकि पाश्चात्य प्रभाव/प्रचार के कारण केवल अंग्रेज़ी नव वर्ष को ही नए वर्ष के रूप में मनाने में अधिकांश भारतीयों की भी रुचि बढ़ रही है।जबकि लोग भारतीय सभ्यता और सनातन संस्कृति के प्रतीक नवसंवत्सर अर्थात नव वर्ष को भूल से गए हैं।आज आवश्यकता है कि हम सामाजिक और सांस्कृतिक चेतना को जागृत करें और अपनी नई पीढ़ी को नवसंवत्सर यानी विक्रम संवत के बारे में जानकारी प्रदान करें।
हिंदी कैलेंडर के अनुसार चैत्र माह की प्रतिपदा से हिंदू नववर्ष की शुरुआत मानी जाती है। जब धरती से लेकर गगन तक उल्लास ही उल्लास हो,खेत-खलिहान अपनी समृद्धि पर इतरा रहे हों अर्थात प्रकृति अपने पूर्ण यौवन पर हो तब नव संवत्सर का शुभारंभ होता है।इस बार हिंदू नववर्ष अर्थात विक्रम संवत 2081, 09 अप्रैल 2024 से शुरू हो रहा है।
हमारा विक्रम संवत ग्रेगोरियन कैलेंडर से 57 वर्ष आगे चलता है।यानी दुनिया में जब वर्ष 2024 चल रहा है तो हमारे सनातनी कैलेंडर में विक्रम संवत वर्ष 2081प्रारंभ हुआ है।
उत्तर प्रदेश विधान सभा के पूर्व अध्यक्ष आदरणीय ह्रदय नारायण दीक्षित जी के अनुसार --- 
" ऋग्वेद के 10 वें मंडल के अंतिम श्लोकों में बताया गया है कि अंधकार पूर्ण जल से संवत्सर का उदय हुआ।संवत्सर यूरोप से आए न्यू ईयर जैसा कोई साधारण काल गणना का परिणाम नहीं है।उनके महीनों पर ग़ौर नहीं किया।जैसे सितंबर शब्द लैटिन से बना है।इसका अर्थ है सातवां। ऐसे ही आक्ट (अक्टूबर) है आठवां और नवंबर है नवां। पहले अंग्रेज़ी में 10 महीने ही थे।बाद में दो और जोड़ दिए गए,इसलिए महीनों का क्रम बिगड़ गया यानी यह साधारण काल्पनिक गणना से बना।इसके विपरीत भारतीय काल गणना के मापन को आश्चर्यपूर्वक देखा गया।पलक झपकिए तो सबसे छोटा खंड है पल। उससे छोटा विपल।वैदिक साहित्य में ऐसे छोटे-छोटे कालखंड की गणना हुई है। उत्तर वैदिक काल में लिखे गए शतपथ ब्राह्मण में भारत की काल गणना विस्तार से दी गई है। इसके अतिरिक्त चारों युगों की वर्षानुवर्ष  गणना की गई है।हम नव संवत्सर को अंतरराष्ट्रीय नव वर्ष बनाएं।"
       ---- आदरणीय ह्रदय नारायण दीक्षित जी
              (दैनिक जागरण 7अप्रैल,2024)
अत: इस पावन अवसर को पूरे उत्साह से मनाएं और दूसरों को भी हिन्दू नव वर्ष की महत्ता बताते हुए इसे मनाने के लिए प्रेरित करें।हमारी कोशिश हो कि हम नवसंवत्सर को केवल भारत के नव वर्ष के रूप में ही न मनाएं अपितु जैसा कि श्री ह्रदय नारायण दीक्षित जी ने कहा है, हम इसे सृष्टि के सृजन का उत्सव मानते हुए अंतरराष्ट्रीय नव वर्ष बनाने की दिशा में अग्रसर हों।
काफ़ी समय पहले कही गई अपनी ग़ज़ल के एक शे'र के साथ वाणी को विराम देता हूं :
            सुगम होंगी सबके ही जीवन की राहें,
             न भारी किसी पर नया साल होगा।
                  ©️ ओंकार सिंह विवेक a
भारतीय नव-संवत्सर २०८१ बारंबार मंगलमय हो!!!
इति 🙏🙏
--- ओंकार सिंह विवेक 



March 29, 2024

सत्याविहार,फेज -2 रामपुर (उoप्रo) में शानदार होली-उत्सव

मित्रो सादर प्रणाम 🌷🌷🙏🙏

       (कार्यक्रम की प्रतियोगिताओं में प्रतिभाग करने वालों को प्रोत्साहन स्वरूप उपहार भी प्रदान किए गए)

त्योहार हमारी सभ्यता, संस्कृति और परंपराओं के वाहक होते हैं।जब सभी लोग मिल-जुलकर सोहार्द पूर्ण वातावरण में तीज-त्योहार मनाते हैं तो जीवन में एक नई ऊर्जा और उमंग महसूस होने लगती है। होली भी एक ऐसा ही त्योहार है जिसमें मन फाग गाने को आतुर हो जाता है,रंगों की धनक सबको आकर्षित करने लगती है गुजियों और ऐसे ही तमाम पकवानों की सुगंध कई दिन पहले से ही आनी प्रारंभ हो जाती है।
होली का ख़ुमार सर चढ़ने पर सत्याविहार फेज-2 रामपुर(उत्तर प्रदेश) के निवासियों ने दिनांक 25 तथा 26 मार्च,2024 को पारस्परिक सहयोग से कॉलोनी में एक शानदार कार्यक्रम का आयोजन किया।
रंग वाले दिन अर्थात 25 मार्च को प्रात: 9 बजे से दोपहर 12 बजे तक सबने जमकर होली खेली।एक-दूसरे को रंग-गुलाल लगाकर तथा ढोल की थाप पर होली और फाग गाकर शुभकामनाओं का आदान-प्रदान किया। रंग के इस उत्सव में सूक्ष्म जलपान की भी व्यवस्था रही। जलपान में ठंडाई को ख़ास तौर पर लोगों ने पसंद किया।
रंग के अगले दिन अर्थात 26 मार्च,2024 को सांय 6 बजे से रात्रि 10 बजे तक क्रमश: सांस्कृतिक कार्यक्रम तथा सहभोज का आयोजन रहा।
दूसरे दिन के कार्यक्रम का प्रारंभ हाऊजी/तंबोला गेम से हुआ। हाऊजी किटी पार्टीज आदि में खेला जाने वाला एक लोकप्रिय गेम है। इसमें महिला वर्ग ने काफ़ी बढ़- चढ़कर हिस्सेदारी की। गेम के संयोजन/संचालन में श्रीमती आशा भांडा तथा श्रीमती सपना अग्रवाल का विशेष सहयोग रहा।
हाऊजी गेम के बाद श्रीमती पूनम गुप्ता व श्रीमती अलका गुप्ता के संयोजन/संचालन में "वह शक्ति हमें दो दयानिधे ---" प्रार्थना से कार्यक्रम का विधिवत शुभारंभ हुआ।सभी महिलाओं ने सस्वर प्रस्तुति देकर कार्यक्रम का सुंदर आग़ाज़ किया। पुरुषों ने भी महिला मंडल के सुर से सुर मिलाकर प्रार्थना का गायन किया।
यदि ऐसे कार्यक्रमों में बच्चों की सक्रिय सहभागिता न हो तो आनंद नहीं आता। अत: कार्यक्रम में बच्चों की सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए कई रोचक आइटम्स जैसे डांस,गायन, ट्रिकी प्रश्न तथा tounge twister आदि ख़ास तौर पर रखे गए।
बच्चों की प्रतिभाओं को पल्लवित और पोषित करने वाले इन कार्यक्रमों का संयोजन और संचालन कलात्मक अभिरुचि की धनी श्रीमती पूनम गुप्ता तथा श्रीमती अलका गुप्ता जी द्वारा किया गया। खचाखच भरे पंडाल में सभी ने मोहक प्रस्तुतियों पर करतल ध्वनि से बच्चों का उत्साहवर्धन किया।
कार्यक्रम में श्रीमती रेखा सैनी जी ने भी अपनी मधुर आवाज़ में लोकप्रिय फिल्मी गीत "झिलमिल सितारों का आंगन होगा, रिमझिम बरसता सावन होगा" गाकर उपस्थित लोगों की ख़ूब तालियां बटोरीं।
श्री अतर सिंह जी ने चुटीले अंदाज़ में देहात और शहर को लेकर अपने कई संस्मरण/जोक्स सुनाए जिन्हें सुनकर लोग हँसने को मजबूर हो गए।
कॉलोनी निवासी व्यायाम शिक्षक श्री वीर सिंह जी ने शारीरिक स्वास्थ्य को लेकर कई महत्वपूर्ण बातें साझा कीं तथा आत्म सुरक्षा के कुछ दांव-पेचों का प्रेजेंटेशन भी दिया।उनके प्रेजेन्टेशन से लोग बहुत प्रभावित हुए।
          (कार्यक्रम में प्रसन्नचित मुद्रा में महिला शक्ति)
कार्यक्रम का संचालन करते हुए बीच-बीच में मुझे भी अपने कुछ सामयिक दोहे प्रस्तुत करने का अवसर प्राप्त होता रहा।आप भी उन दोहों का रसास्वादन करें ---
        बच्चे   आंगन  में   खड़े, रंग   रहे  हैं   घोल।
        बजा रहे हैं भागमल,ढम-ढम अपना ढोल।।

        कर में पिचकारी लिए, पीकर थोड़ी भंग।
         देवर जी  डारन  चले, भौजाई  पर रंग।।
                  ©️ ओंकार सिंह विवेक 
 कार्यक्रम को मूर्त रूप प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले श्री प्रवीण भांडा जी ने भविष्य में और अच्छे कार्यक्रमों की अपेक्षा करते हुए सभी का आभार ज्ञापित किया।
यों तो यह भव्य आयोजन सभी कॉलोनी वासियों के पारस्परिक सहयोग और सहमति से ही संपन्न हो सका। परंतु कुछ लोगों का यदि ख़ास तौर पर ज़िक्र न किया जाए तो यह ब्लॉग पोस्ट अधूरी ही कही जाएगी।कार्यक्रम की रुपरेखा,व्यवस्था और यथोचित क्रियान्वयन में श्री प्रवीण भांडा जी, श्री आर के गुप्ता जी,भाई अंकुर रस्तौगी जी तथा श्री के के अग्रवाल,एडवोकेट का विशेष सहयोग रहा।इन लोगों की पहल के कारण ही इतना सुंदर आयोजन संभव हो सका। अत: इन लोगों के प्रति विशेष आभार प्रकट करना हम सबका दायित्व है।
कार्यक्रम के अंत में सबने लज़ीज़ डिनर का लुत्फ़ उठाया।
इन आयोजनों का उद्देश्य जलपान,सहभोज और मनोरंजन करना मात्र ही नहीं होता।ऐसे अवसरों पर लोग अपने रुतबे/ओहदे आदि के पूर्वाग्रह से मुक्त होकर एक साथ बैठ पाते हैं,यह एक बड़ी बात है।आशा है भविष्य में सबकी सहमति,सुझाव और सहयोग से कॉलोनी में और अच्छे कार्यक्रमों का आयोजन होता रहेगा।
इति !!!
--- ओंकार सिंह विवेक
 ग़ज़लकार/समीक्षक/कंटेंट राइटर/टेक्स्ट ब्लॉगर

March 23, 2024

होली के नव रंग : कुछ दोहों के संग

प्रणाम मित्रो 🌹🌹🙏🙏
आप सभी को रंगोत्सव होली की सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं।
मन फाग गाने को आतुर है,रंगों की धनक सबको आकर्षित कर रही है।गुजियों और ऐसे ही तमाम पकवानों की सुगंध आनी प्रारंभ हो गई है।आशय यह है कि होली का ख़ुमार सर चढ़ने लगा है

त्योहार चाहे किसी भी मत अथवा संप्रदाय द्वारा मनाए जाते हों,सभी त्योहार आपसी सौहार्द और मेल-मोहब्बत का ही संदेश देते हैं।जीवन में नए उत्साह और ऊर्जा का संचार करते हैं। किसी भी त्योहार को संकीर्ण विचारधारा /मानसिकता के साथ मनाने से उसका उद्देश्य ही समाप्त हो जाता है।रंगों का पर्व होली एक-दूसरे को रंग और गुलाल लगाकर गले मिलने का त्योहार है। मनुष्य के जीवन में रंगों का बहुत महत्त्व है।रंगों के बिना जीवन नीरस है।तो आईए भारतीय परंपरा और संस्कृति को संवर्धित और पोषित करने वाले आपसी सौहार्द के प्रतीक रंगोत्सव होली को मिलजुलकर मनाएं।
होली को लेकर कहे गए मेरे कुछ दोहों का आनंद लीजिए :

होली : कुछ दोहे

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©️

महँगाई  की   मार   से, टूट   गई   हर  आस।

निर्धन की  इस  बार भी, होली  रही उदास।।

 🎊🎊🎊🎊🎊🎊🎊🎊🎊🎊🎊

आओ मिलकर आज तो,कर लें कुछ हुडदंग।

मुस्काकर   कहने   लगे, हमसे   सारे    रंग।।

🎊🎊🎊🎊🎊🎊🎊🎊🎊🎊🎊🎊🎊

जाने  उनके  नाम   पर, होती  है  क्यों  जंग।

उजला   केसरिया   हरा ,हैं सब   प्यारे  रंग।।

🎊🎊🎊🎊🎊🎊🎊🎊🎊🎊🎊🎊

बच्चे   आँगन   में   खड़े, रंग   रहे   हैं   घोल।

बजा  रहे हैं भागमल, ढम-ढम अपना ढोल।।

🎊🎊🎊🎊🎊🎊🎊🎊🎊🎊🎊🎊🎊

कर  में  पिचकारी  लिए, पीकर  थोड़ी  भंग।

देवर  जी   डारन   चले, भौजाई   पर   रंग।।

            ©️ ओंकार सिंह विवेक 




March 18, 2024

होली है भाई होली है!!!(उत्तर प्रदेश साहित्य सभा रामपुर इकाई की होली के अवसर पर काव्य गोष्ठी/निशस्त )

होली के अवसर पर उत्तर प्रदेश साहित्य सभा की रामपुर इकाई की शानदार कवि गोष्ठी/निशस्त

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मन फाग गाने को आतुर है,रंगों की धनक सबको आकर्षित कर रही है।गुजियों और ऐसे ही तमाम पकवानों की सुगंध आनी प्रारंभ हो गई है।आशय यह है कि होली का ख़ुमार सर चढ़ने लगा है।होली की इस बढ़ती ख़ुमारी के चलते कल दिनांक 17 मार्च,2024 को रामपुर के होटल कॉफी कॉर्नर में उत्तर प्रदेश साहित्य सभा की रामपुर इकाई द्वारा एक शानदार काव्य गोष्ठी/निशस्त का आयोजन किया गया।


गोष्ठी के अध्यक्ष(स्थानीय सभा के संरक्षक)अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शायर ताहिर फ़राज़ साहब ने तग़ज़्ज़ुल से भरपूर कलाम पेश करते हुए कहा :

     उतरता है  जो आँखों  से  तुम्हारे  ग़म का पैराहन,

      सहर को गुल पहनते हैँ,वही शबनम का पैराहन।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रसिद्ध शायर नईम नज्मी जी ने अपनी फ़िक्र के गुलशन के नायाब फूल/शेर पेश करते हुए कहा :

   जब भी हम फ़िक्र के गुलज़ार में आ जाते हैं,

   लफ़्ज़ महके  हुए अशआर  में आ  जाते  हैं।      

 

साहित्य सभा के संयोजक सुरेंद्र अश्क रामपुरी जी ने आज भी हरियाली को बचाए हुए गांवों का सुंदर चित्र अपनी रचना में प्रस्तुत  किया--

तुम्हारे शहर में हरसू हैं बेशक कोठियां ऊंची,

महकता फूलों  से आंगन  हमारे  गांव में है।

ये माना  है सुकूं  इन ए सी औं  में कूलरों में,

मगर सुख चैन तो उन पीपलों की छांव में है।


कार्यक्रम में सभा की स्थानीय इकाई के अध्यक्ष ओंकार सिंह विवेक ने अपने इस दोहे के माध्यम से होली खेलने एक का शानदार  चित्र प्रस्तुत किया --

         कर में पिचकारी लिए, पीकर थोड़ी भंग।

         देवर  जी  डारन चले, भौजाई  पर  रंग।।


वरिष्ठ शायर डॉक्टर जावेद नसीमी साहब के इस मार्मिक शेर ने सभी के दिलों को छू लिया 

   हाय!वो लोग जो तस्कीने-दिलो-जां थे कभी,

   क्या बिगड़ जाता जो वो लोग भी जीते रहते।

सभा के वरिष्ठ उपाध्यक्ष फ़ैसल मुमताज़ ने अपने सुख़न के रिवायती अंदाज़ से रूबरू कराते हुए कहा --

  मस्त पवन के झोके में जो लहरा दे वो आंचल को,

   पानी-पानी  कर डालेगा आवारा से  बादल को।

शायर अशफ़ाक़ ज़ैदी ने अपने तरन्नुम का कमाल दिखाते हुए पढ़ा --

   दीवानगी-ए-इश्क़ बड़ा काम कर गई,

   कच्चे घड़े पे बैठ के दरिया उतर गई।

कवि/लेखक सुधाकर सिंह जी ने इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में हर तरह से आम जन के ही ठगे जाने की व्यथा कुछ इस तरह अभिव्यक्त की--

कोई हारा कहीं अगर तो,              

समझो जनता ही हारी है।                  

नेता कब नेता से हारा,                        

दल भी दल से नहीं हारते।

सभा के सह सचिव सुमित सिंह मीत का यह आशावादी शेर  बहुत पसंद किया गया --

      नए बहुत से दरवाज़े खुल जाते हैं,

      बंद अगर कोई दरवाज़ा होता है।

कोषाध्यक्ष अनमोल रागिनी चुनमुन ने अपनी सामयिक काव्य प्रस्तुति में कहा --

यत्र तत्र सर्वत्र हैं,ख़ुशियाँ अपरम्पार।

बसंत लेकर आ गया, होली का त्योहार।।

सभा के मंत्री भाई राजवीर सिंह राज़ ने गोष्ठी का संचालन करते हुए ज़ुल्म के पैरोकारों को लेकर तरन्नुम में अपना कलाम पेश करते हुए कहा --

      क्यों सुकूं की वो आरज़ू करते,

       जिनके ख़ंजर लहू-लहू करते।

कार्यक्रम में संरक्षक ताहिर फ़राज़ साहब ने नए रचनाकारों को उच्चारण तथा काव्य में शिल्प और कलात्मकता को लेकर कई महत्वपूर्ण सुझाव दिए। उन्होंने कहा कि इस तरह की अदबी सरगर्मियां जारी रखने से नए रचनाकारों में मश्क़ करने का जज़्बा बना रहता है।


सभा के स्थानीय अध्यक्ष ओंकार सिंह विवेक द्वारा सभी सदस्यों से आपसी सहयोग तथा समन्वय द्वारा नियमित अंतराल पर संस्था की गोष्ठियों के आयोजन को सक्रियता से जारी रखने का अनुरोध किया गया।

उत्साह और उमंग के बीच सबने एक दूसरे को आपसी सौहार्द के प्रतीक रंगोत्सव होली की शुभकामनाएं दीं।अंत में सभा के संयोजक सुरेंद्र अश्क रामपुरी जी द्वारा सभी का आभार प्रकट करते हुए कार्यक्रम समापन की घोषणा की गई।

 ---- ओंकार सिंह विवेक,अध्यक्ष 

उत्तर प्रदेश साहित्य सभा रामपुर इकाई

(ग़ज़लकार/समीक्षक/कंटेंट राइटर/ब्लॉगर)

होली है!!!होली है!!! होली है !!!🌹🌹👈👈

सम्मानित अख़बारों द्वारा कार्यक्रम की शानदार कवरेज करने के लिए हम ह्रदय से आभारी हैं 🙏🙏 👇👇



           

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