June 6, 2024

आपकी मुहब्बतों के हवाले

सादर प्रणाम मित्रो 🌹🌹🙏🙏

आपकी मुहब्बतों और आशीष के चलते निरंतर सार्थक जन सरोकारों से जुड़े सृजन की प्रेरणा मिल रही है। यदि सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो इस वर्ष के अंत तक मेरा दूसरा ग़ज़ल संग्रह "कुछ मीठा कुछ खारा"आप सम्मानित जनों के समक्ष होगा।पांडुलिपि को अंतिम रूप देकर जल्द ही प्रकाशक को भेजने पर निरंतर काम कर रहा हूं।
फिलहाल ------
चंद अशआर मुलाहिज़ा फ़रमाएँ :
*************************
ये दिल जो इस तरह ज़ख़्मी हुआ है,
किसी के  तंज़  का  नश्तर चुभा  है।

कहा  है  ख़ार   के   जैसा  किसी  ने,
किसी ने ज़ीस्त को गुल-सा कहा है।

किसे   लानत-मलामत   भेजते   हो,
 मियाँ!वो आदमी  चिकना घड़ा  है।

नज़र   आते   हैं    संजीदा   बड़ों-से,
कहाँ  बच्चों  में  अब  वो बचपना है।

कहाँ  तुमको  नगर  में   वो  मिलेगी,
जो मेरे  गाँव  की  आब-ओ-हवा है।
          ---©️ओंकार सिंह विवेक 


12 comments:

  1. Achhi ghazal hai

    ReplyDelete
  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 08 जून 2024 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

    ReplyDelete
    Replies
    1. आभार आदरणीया। ज़रूर हाज़िर रहूंगा

      Delete
  3. वाह ! उम्दा शायरी

    ReplyDelete
  4. गाँव की आबोहवा की कसक ... अभिनन्दन. नमस्ते.

    ReplyDelete

Featured Post

यादों के झरोखे से : गुरुजनों को सादर वंदन के साथ

यादों के झरोखे से : गुरुजनों को सादर वंदन के साथ  ***************************************** आज काफ़ी दिनों के बाद अपने गृह जनपद रामपुर (उत्त...