आपकी मुहब्बतों और आशीष के चलते निरंतर सार्थक जन सरोकारों से जुड़े सृजन की प्रेरणा मिल रही है। यदि सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो इस वर्ष के अंत तक मेरा दूसरा ग़ज़ल संग्रह "कुछ मीठा कुछ खारा"आप सम्मानित जनों के समक्ष होगा।पांडुलिपि को अंतिम रूप देकर जल्द ही प्रकाशक को भेजने पर निरंतर काम कर रहा हूं।
फिलहाल ------
चंद अशआर मुलाहिज़ा फ़रमाएँ :
*************************
ये दिल जो इस तरह ज़ख़्मी हुआ है,
किसी के तंज़ का नश्तर चुभा है।
कहा है ख़ार के जैसा किसी ने,
किसी ने ज़ीस्त को गुल-सा कहा है।
किसे लानत-मलामत भेजते हो,
मियाँ!वो आदमी चिकना घड़ा है।
नज़र आते हैं संजीदा बड़ों-से,
कहाँ बच्चों में अब वो बचपना है।
कहाँ तुमको नगर में वो मिलेगी,
जो मेरे गाँव की आब-ओ-हवा है।
---©️ओंकार सिंह विवेक
Achhi ghazal hai
ReplyDeleteAabhar aapka
Deleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 08 जून 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
ReplyDeleteआभार आदरणीया। ज़रूर हाज़िर रहूंगा
Deleteवाह ! उम्दा शायरी
ReplyDeleteआभार आदरणीया
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteThanks a lot 🙏
Deleteगाँव की आबोहवा की कसक ... अभिनन्दन. नमस्ते.
ReplyDeleteआभार, नमस्कार 🙏
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Delete