पारिवारिक व्यस्तताओं के चलते आज काफ़ी दिनों के बाद यह ब्लॉग पोस्ट लिखने बैठा हूं। आठ-दस साल के बाद बैंक के अपने पुराने घनिष्ठ साथियों से मिलने पर जो ख़ुशी हुई उसका वृतांत आपके साथ साझा करने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहा हूं।लीजिए हाज़िर है 👇👇
आज प्रसंगवश किसी मशहूर शाइर का यह शे'र याद आ रहा है :
कितने हसीन लोग थे जो मिलके एक बार,
आंखों में जज़्ब हो गए दिल में समा गए।
-- अज्ञात
यह शे'र प्रथमा यू पी ग्रामीण बैंक के इन दो अधिकारियों पर बिल्कुल फिट बैठता है जिनके छायाचित्र आप नीचे देख रहे हैं। इन लोगों से आज बैंक के क्षेत्रीय कार्यालय रामपुर में काफ़ी समय बाद मेरी मुलाक़ात हुई।बताता चलूं कि मैंने तत्कालीन प्रथमा बैंक(अब प्रथमा यू पी ग्रामीण बैंक) से 26 मार्च,2019 को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ग्रहण कर ली थी।उस समय मेरी नियुक्ति अधिकारी के रूप में बैंक के मुख्यालय मुरादाबाद में ट्रेनिंग सेंटर में थी। तब ये दोनों प्रतिभाशाली तथा ऊर्जावान अधिकारी भी मुख्यालय में ही कार्यरत थे जिनसे बैंक कार्यों को लेकर अक्सर वार्तालाप होता रहता था।उस समय मुख्य कार्यालय में कार्य करने वाले जिन अधिकारियों से में बहुत अधिक प्रभावित हुआ उनमें इन दोनों के नाम भी प्रमुख हैं।बहुत हंसमुख स्वभाव,विनम्रता और अपने काम के प्रति पूरी निष्ठा-समर्पण का भाव इन दोनों अधिकारियों में मुझे देखने को मिला।अपनी मेहनत ,लगन और कार्यकुशलता के बल पर आज ये दोनों अधिकारी पदोन्नति पाकर उप क्षेत्रीय प्रबंधक(स्काई ब्लू टी शर्ट में दिखाई दे रहे श्री हरनंदन प्रसाद गंगवार जी) तथा क्षेत्रीय प्रबंधक(एक चित्र में लाइट कलर की शर्ट में तथा दूसरे चित्र में ब्लैक कलर की शर्ट में श्री विनय मिश्रा जी) जैसे महत्वपूर्ण पदों पर पहुंच चुके हैं।इन दोनों को इतनी जल्दी बैंक में सीनियर पोजीशन पर देखकर बहुत ख़ुशी महसूस हुई।
आज जब इन दोनों अधिकारियों से इनके कार्यालय में मिलना हुआ तो दोनों में वही आठ-दस साल पहले वाली गर्मजोशी, विनम्रता और आत्मीयता का भाव पाकर दिल गदगद हो गया। काफ़ी देर तक बातचीत करके पुरानी यादों को ताज़ा किया। मैंने दोनों को अपने ग़ज़ल संग्रह "दर्द का एहसास" की प्रतियां भी भेंट कीं। मैं इन दोनों के दीर्घायु होने की कामना के साथ आशा करता हूं कि ये अपने कैरियर में यों ही नित नई बुलंदियों को छूते रहेंगे।
अपनी ही ग़ज़ल का यह शे'र इन दोनों को समर्पित करते हुए बात को समाप्त करता हूं :
छुड़ा देते हैं छक्के मुश्किलों के,
यक़ीं हो जिनको अपने हौसले पर।
©️ ओंकार सिंह विवेक
(यह आठ-दस साल पुराना छाया चित्र एल्बम से मिला जो श्री विनय मिश्रा जी के साथ जुड़ी यादों को ताज़ा करता है)
Sundar vrataant
ReplyDeleteDhanywaad
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